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“संक्रमण काल में समाज” पर फोरम २००० सम्मेलन September 17, 2013

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प्राग, चेक गणतंत्र - सितम्बर १६, २०१३ - परम पावन दलाई लामा अपने पुराने दोस्त राष्ट्रपति वाक्लाव हावेल द्वारा स्थापित फोरम २००० फाउंडेशन के निमंत्रण पर प्राग की यात्रा पर है। १९९० में मखमली क्रांति, जिसने चेकोस्लोवाकिया में ५१ कम्युनिस्ट शासन का अंत किया, के तीन महीनों के बाद की गई अपनी पहली यात्रा के बाद यह उनकी दसवीं यात्रा है। अंतिम बार जब वे २०१२ में यहाँ थे तब कुछ ही समय बाद राष्ट्रपति हावेल का निधन हो गया। आज परम पावन ने हावेल के कार्यालय का दौरा कर उन्हें श्रद्धांजलि देने की इच्छा व्यक्त की। यह उन्होंने विधिवत किया, द्वार पर स्वर्गीय राष्ट्रपति की पत्नी डागमर हावोल्वा उनसे मिली, जो उन्हें अंदर ले गई। परम पावन ने उस कुर्सी पर सिर झुकाया, जिस पर उनकी अंतिम भेंट के समय हावेल बैठे थे और उस पर एक रेशमी वस्त्र रखा।

यह पूछे जाने पर कि क्या उनके पास राष्ट्रपति हावेल की अपनी हस्तलिपि में कुछ है, उनके हस्ताक्षर युक्त अंतिम नाटक ‘लीविंग’ की प्रति पाई गई, जिसे डागमर हावोल्वा ने परम पावन को भेंट की। बाहर निकलते समय हावेल की तस्वीरों के पोस्टर देख, जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था और अधिकारियों द्वारा बंदी बनाया गया था, परम पावन भावुक हो उठे। राष्ट्रपति हावेल के कार्यालय से परम पावन ज़ोफिन पेलेस गाड़ी से गए, जहाँ इस वर्ष का फोरम २००० सम्मेलन हो रहा है।

जैसे ही उन्होंने कमरे में प्रवेश किया कई मित्रों के बीच, परम पावन ने दृष्टिहीन चीनी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता, चेन गुआंगचेन का अभिनंदन किया। उनका उत्साह भरी तालियों के साथ स्वागत किया गया और जैक्सरुपनिक द्वारा सभा से परिचय करवाया गया, जिन्होंने कहा कि परम पावन राष्ट्रपति हावेल के अंतिम आगंतुक थे और यही उचित होगा कि जिस सम्मेलन की स्थापना उन्होंने की, वे उसका उद्घाटन भाषण प्रस्तुत करें।

“सम्माननीय भाइयों व बहनों, राष्ट्रपति हावेल के एक लम्बे समय के मित्र होने के नाते उनके द्वारा शुरू की गई बैठक में भाग लेते हुए मैं एक महान गौरव की भावना का अनुभव करता हूँ। मैं आपको बताना चाहूँगा कि मैं उसी कार्यालय से आ रहा हूँ जहाँ हमारी पिछली बैठक हुई थी। मैंने इस तरह से मित्रों को सम्मानित करने का एक अभ्यास बना लिया है। स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के निधन के बाद मैं श्रद्धांजलि देने उनके पटना स्थित घर गया, इसी तरह  भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के देहांत के बाद उनके घर गया और मुझे उनके बिस्तर के पास रखी एक छोटी बौद्ध पुस्तक और रोलेक्स घड़ी की याद है।”

“इस बार मैं राष्ट्रपति हावेल के घर दुख भरी भावनाओं के साथ गया कि यह विनम्र, ईमानदार, सच्चा व्यक्ति अब  नहीं है। पर यद्यपि वह हमारे साथ शारीरिक रूप से नहीं है परउनकी भावना बनी हुई है और उनके कार्य को जारी रखने का उत्तरदायित्व हमारा बनता है।”

उन्होंने कहा कि वह स्वयं को आज जीवित ७ अरब मनुष्यों में से सिर्फ एक मानते हैं, कुछ विशिष्ट नहीं।

“मनुष्य होते हुए हम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से एक ही हैं। हम सब एक सुखी जीवन चाहते हैं और दुःखों की खोज नहीं करते, पर फिर भी हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वे हमारी अपनी बनाई हुई हैं। यदि हम अपनी आधारभूत स्नेह की भावना पर निर्भर हों तो हम इन समस्याओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। हमें मानवीय एकता की भावना की आवश्यकता है। हमें वस्तुओं को मानव के धरातल पर देखना होगा और स्मरण रखें कि जिस तरह हम एक सुखी जीवन चाहते हैं, दूसरे भी चाहते हैं।”

उन्होंने कहा कि हमारी बढ़ती परस्पर निर्भरता के बावजूद हमारा आग्रही होकर 'वे' और 'हम' पर जोर देना युद्ध और हिंसा का आधार बन जाता है। पर अपने दुश्मन को पूर्ण रूप से नष्ट कर 'उन' पर काबू पाने की धारणा अप्रचलित है, पुरानी हो चुकी है। परम पावन ने कहा कि जबकि उनकी पीढ़ी बीसवीं शताब्दी के अंतर्गत आती है पर आज का युवावर्ग इक्कीसवीं शताब्दी का है। इसके कई विकासों के बावजूद बीसवीं सदी हिंसा और रक्तपात की सदी थी। वर्तमान शताब्दी के युवा लोगों के पास एक नया विश्व बनाने का अवसर है और यद्यपि वह उसे देखने के लिए जीवित न रहें पर परम पावन ने मजाक में कहा कि स्वर्ग या नरक से वे उन पर दृष्टि रखें होंगे कि वे किस प्रकार से हैं।


“अतीत अतीत है; उसे कुछ भी नहीं बदल सकता। लेकिन भविष्य  वर्तमान पर निर्भर करता है; हमारे पास अभी भी इसे आकार देने का अवसर है। यह प्रौद्योगिकी को काम में लाने या अधिक धन खर्च करने की बात नहीं है, यह दूसरों की भलाई के लिए चिंता की भावना के विकास का प्रश्न है। हमें एक दूसरे के प्रति स्नेह प्रदर्शन की आवश्यकता है, समझदार, सहृदयता,मअधिक करुणाशील मनुष्य बनें। इस इक्कीसवीं सदी को शांति का युग होना चाहिए और यह कुछ कबूतरों के उड़ाने से प्राप्त नहीं होगा अपितु हमारे अपने अंदर आंतरिक शांति के विकास द्वारा संभव हो पाएगा। अहिंसक कार्रवाई ही इसे शांति का युग बना पाएगी।”

परम पावन ने हम सभी का अपनी माताओं से जन्म और हमारे माता पिता के स्नेहभरे देखभाल का संदर्भ दिया। उन्होंने कहा कि हम में से जो बाल्यावस्था में इस तरह के स्नेह का आनंद पाते हैं वे अधिक सुखी वयस्क के रूप में बड़े होते हैं। यह हमारा साधारण अनुभव है। इस बीच वैज्ञानिकों ने पाया है कि एक स्वस्थ मन हमारे शारीरिक भलाई के लिए भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने सुझाव दिया कि जिस तरह हम अपने स्कूलों में शारीरिक स्वच्छता के बारे में सिखाते हैं, हमें धर्मनिरपेक्ष नैतिकता तथा सौहार्दता को भावनात्मक स्वच्छता के रूप में देखना चाहिए जो मानव करुणा और स्नेह से संबंधित है।

“एक और अधिक शांतिपूर्ण सदी का बनाना शिक्षा के माध्यम से प्राप्त होगा,  प्रार्थना के माध्यम से नहीं। जब मानव कल्याण का प्रश्न आता है तो मैं पूरी तरह से निश्चित नहीं हूँ  कि प्रार्थना वास्तव में बहुत प्रभावशाली है। यह निजी व्यक्तियों के लिए मूल्यवान है पर जब विश्व को परिवर्तित करने की बात आती है तो कार्य अधिक महत्वपूर्ण है।”

“मुझे सार्वजनिक रूप से जब भी बोलने का अवसर  मिलता है तो मैं इसी के बारे में बात करता हूँ तो मुझे लगा कि मैं यहाँ भी इसे आपके साथ बाँटू।”

उसके पश्चात, परम पावन फोरम २००० के अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार बोर्ड और साझा चिंता पहल सदस्यों, जिनमें बर्मा के विपक्षी नेता आंग सान सूची, दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति एफ ड्बल्यू डी क्लार्क और पूर्व चेक विदेश मंत्री कैरेल श्वार्ज़ेनबर्ग शामिल हैं, की बैठक में गए।

अपने होटल में वापस आकर परम पावन ने सबसे बड़े चेक समाचार पत्र होस्पोडार्स्क नोविनि को एक साक्षात्कार दिया। उन्होंने दोनों पत्रकारों को बताया कि अपनी यात्रा में वह राजनैतिक नेताओं से मिलने की बजाय जनता के साथ मिलने की अधिक सोचते हैं। जब पत्रकारों ने उनकी यात्रा का प्रभाव, उदाहरण के लिए, चीन के साथ चेक गणराज्य के व्यापार पर पूछा, तो उन्होंने यह कहते हुए व्यापार के महत्व को स्वीकार किया, कि जब अमरीका चीन को सबसे पसंदीदा राष्ट्र का दर्जा देने की बात सोच रहा था तो वे उसके पक्ष में थे क्योंकि हमें १.३ अरब लोगों के देश को अलग करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। व्यापार संबंध महत्वपूर्ण हैं  और चीनी आर्थिक दुनिया के समुदाय का भाग बनना चाहते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि अन्य देश मानव अधिकारों जैसे सिद्धांत के मामलों पर दृढ़ होकर खड़े न हों। 

चीन में भावी सुधारों के विषय में उनके विचार पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि कुछ कहना बहुत जल्दी है। उन्होंने टिप्पणी की, कि १९४९ से पहले चीन एक कठिन स्थिति में था और साम्यवादी एक नए सिरे की पहचान और नेतृत्व लाए। उन्होंने उस समय से चीन के विकास में चार अलग युगोंका उल्लेख किया और कहा कि उसी प्रणाली ने नए यथार्थ को समायोजित करने की क्षमता दिखाई थी।

उन्होंने कहा कि वे आशा करते हैं कि नए नेता शी जी फिंग चीनी लोगों और अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं के बीच सद्भाव के लिए काम करना जारी रखेंगे। परन्तु बल और धमकी का प्रयोग इसके विपरीत होता है। उन्होंने उल्लेख किया कि शी जी फिंग ने भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक साहसी आंदोलन प्रारंभ किया है और उनके कई मित्र कहते हैं कि उनकी सोच अधिक यथार्थवादी है।

“चीन एक विशाल देश है और विश्व में वह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है पर उस भूमिका को निभाने के लिए उसे विश्व के विश्वास की आवश्यकता है। एक बंद समाज जो सेंसरशिपसे विवश हो उस विश्वास को पा नहीं सकता। चीन चाहे कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, उसे लोकतंत्र और सूचना की स्वतंत्रता के प्रति दुनिया की प्रवृत्ति का अनुसरण करना चाहिए।”

तिब्बत के विषय में परम पावन ने एशिया में उसके पारिस्थितिक महत्व, तीसरे ध्रुव के रूप में उसकी भूमिका को दोहराया, पर इंगित किया कि, यद्यपि नीति कल बदल सकती है पर पर्यावरण के नुकसान को ठीक करने में दशकों लग सकते हैं।

एक अंतिम प्रश्न, कि एक राजनीतिक नेता को सफल मानने के लिए किस की आवश्यकता पड़ती है, उनका संक्षिप्त उत्तर था:

“लोगोंकाविश्वास।”

परम पावन हेनोवर की यात्रा से पहले, फोरम २००० के समापन पैनल और चार्ल्स विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ कल एक पैनल चर्चा 'लोकतंत्र, मानवाधिकार और पूर्व एशिया में धार्मिक स्वतंत्रता' में भाग लेंगे।

  • सभी सामग्री सर्वाधिकार © परम पावन दलाई लामा के कार्यालय

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