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तिब्बती समुदाय को संबोधन और चीनी छात्रों के साथ भेंट November 6, 2014

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न्यूयॉर्क, एन वाई, अमरीका - ६ नवंबर, २०१४ - धुमैले गगन तले, न्यूयॉर्क की सड़कें गंभीर प्रतीत हो रही थी, जब परम पावन दलाई लामा अपनी संयुक्त राज्य अमरीका के लगभग अंतिम कार्यक्रम के लिए गाड़ी से जविट्स कन्वेंशन केन्द्र आए। अंदर का वातावरण रंगभरा था और वहाँ एकत्रित ५००० तिब्बती चेहरे मुस्कुराहट से खिले थे, जब परम पावन पोतल राजभवन की पृष्ठभूमि में मंच पर आए। प्रत्येक व्यक्ति तिब्बती राष्ट्रीय गान के लिए खड़ा था, और उसके बाद न्यूयॉर्क और न्यू जर्सी तिब्बती एसोसिएशन(एन वाइ एन जे टी ए) के अध्यक्ष ने परम पावन को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने समझाया कि यह संस्था १९७९ में प्रारंभ हुई थी और यह गैर सांप्रदायिक है, जिसमें कोई क्षेत्रीय पूर्वाग्रह भी नहीं है। इसका उद्देश्य सभी तिब्बतियों को एक समुदाय की भावना प्रदान करना है और उसके सांस्कृतिक जीवन में भाग लेना है। यह तिब्बती बच्चों को तिब्बती भाषा पढ़ने के अवसर देने से भी संबंधित है। संघ इस तरह की कक्षाओं में आए खर्च को वहन करता है। ग्रीन बुक योगदान बनाए रखते हुए, संघ के सदस्य सी टी ए के लिए प्रति वर्ष $ २००,००० का योगदान करते हैं।


संघ परम पावन की पहचान न केवल तिब्बतियों के नेता के रूप में अपितु समूचे विश्व के नेता के रूप में करता है और उनकी सलाह के पालन करने का वचन देते हुए, उनसे दीर्घ काल तक बने रहने का अनुरोध करता है।

"मेरे प्रिय तिब्बती भाइयों और बहनों," परम पावन ने उत्तर दिया ,"आज जब आप सब लोगों से मिलने अवसर मिला है तो एक क्षण के िलए मुझे लग रहा था कि क्या मैं कहीं वापस तिब्बत में या दक्षिण भारत की बड़ी आवास बस्तियों में तो नहीं हूँ। आप सभी अपनी तिब्बती पहचान और भावना को बनाए रखने के लिए कड़ा परिश्रम कर रहे हैं और मैं आपका धन्यवाद करता हूँ। यहाँ इस नई धरती पर, प्रतीत होता है कि आप ने कई बच्चे भी बनाए हैं। सुनिश्चित करें कि वे तिब्बतियों के रूप में बड़े हों। वे संभवतः त्रिशरण के छंदों का पाठ करना सीख जाएँगे पर वह पर्याप्त नहीं है। आप एक तोते को भी मंत्र पाठ की शिक्षा दे सकते हैं। नोर्बुलिंगका राजभवन में हमारे पास एक तोता था जो अच्छी तरह से अपना सिर हिलाते हुए 'मणि' का जाप कर सकता था। बच्चों को अध्ययन करने और यह जानने की आवश्यकता है कि धर्म क्या है। साष्टांग, मंत्र जाप तथा प्रदक्षिणा अच्छे हैं, पर वे मुख्य अभ्यास नहीं हैं। आप को यह जानने की आवश्यकता है कि किस तरह चित्त में परिवर्तन लाया जाए।"

उन्होंने आगे कहा कि तिब्बती बौद्ध परंपरा, जो नालंदा परंपरा से आई है तथा प्रभावशाली है। यह शांति की संस्कृति है, जो प्रतियोगिता और संघर्ष से विखंडित विश्व में अपना योगदान दे सकता है। आज, उन्होंने कहा, यहाँ तक कि वैज्ञानिक भी इसके चित्त और भावनाओं के ज्ञान में रुचि लेते हैं। चित्त की शांति महत्वपूर्ण है और मात्र जाप से उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता।

परम पावन ने कांग्यूर तथा तेंग्यूर की विषय सामग्री को विज्ञान, दर्शन और धर्म के विषय के आधार पर पुनर्वर्गीकरण को लेकर उनकी आशा की बात की। उन्होंने इस ओर ध्यानाकर्षित किया कि चित्त मात्र और मध्यमक परम्पराएँ कई रूपों में क्वांटम भौतिकी के दृष्टिकोण के साथ मेल खाती हैं और किसी के लिए भी रुचिकर हो सकती हैं, जबकि चार आर्य सत्य जैसे विषयों में मुख्य रूप से बौद्धों की रुचि होती है। इन स्रोतों से विज्ञान के दो संस्करण हाल ही में तिब्बती में प्रकाशित किए गए हैं और शीघ्र ही इनका अनुवाद अंग्रेजी, चीनी और अन्य भाषाओं में उपलब्ध होगा।


तिब्बत में बौद्ध धर्म के आने के बाद समाज के सामूहिक मूल्य अधिक करुणाशील हो गए। तिब्बतियों की अपनी बोलचाल की और लिखित भाषा है, और यह बौद्ध मार्ग को अभिव्यक्त करने के लिए जिसमें तंत्र, तर्क और ज्ञान-मीमांसा शामिल हैं, श्रेष्ठ भाषा है। परम पावन ने भिक्षु विहारों और भिक्षुणी िवहारों में भी, बौद्ध शास्त्रीय ग्रंथों के अध्ययन को प्रोत्साहित किया है, जहाँ पहले मात्र मंत्र जाप का अनुष्ठान होता था। आजकल ऐसी भिक्षुणियाँ हैं, जिन्होंने भली भाँति अध्ययन किया है, तथा गेशे मा की उपाधि प्राप्त करने के अत्यंत निकट हैं। वे व्यक्ति जो बौद्ध धर्म में रुचि रखते हैं, उन्हें अध्ययन की आवश्यकता है। लद्दाख में आम लोगों ने इसे प्रोत्साहित करने के लिए चर्चा समूहों का गठन किया है और परम पावन ने कहा कि उन्होंने तिब्बत में लोगों को ऐसा करते हुए सुना है। किसी लामा को उसका अंग होने की आवश्यकता नहीं है। इसी तरह तिब्बती धर्म और संस्कृति की रक्षा की जा सकती है।

"मैंने अपनी में परम्परा में अध्ययन किया है और मैं जिनसे भी मिलता हूँ, जहाँ भी हूँ, मुझ में गर्व और विश्वास है। मैं सभी प्रमुख धार्मिक परंपराओं का सम्मान करता हूँ, पर मैं इसके प्रति जागरूक हूँ कि सभी महान धार्मिक गुरुओं में यह केवल बुद्ध थे, जिन्होंने अपने अनुयायियों को सलाह और प्रोत्साहन दिया कि उन्होंने जो शिक्षा दी उसे जाँचे और उसका परीक्षण करें।"

विषयातंरण करते हुए, कि तिब्बत में क्या हो रहा है, को लेकर परम पावन ने कहा:

"तिब्बत के ६ लाख तिब्बती हमारे सच्चे गुरु हैं। तिब्बत में चीनी अधिकारियों द्वारा अपनाई गई कठोर नीतियों के कारण वे कठिन समय से गुजर रहे हैं। पर फिर भी तिब्बतियों ने अपनी भावना और चरित्र नहीं खोया। जिस प्रकार चीनियों को अपनी संस्कृति पर गर्व है और वे उसके प्रति समर्पित हैं, उसी प्रकार हम तिब्बती भी हैं। तीन प्रांतों के लोग तिब्बतियों के रूप में एकता की एक प्रबल भावना का अनुभव करते हैं और हम जो निर्वासन में रह रहे हैं, हमें उन्हें अपना समर्थन देना चाहिए।"


"जब भी संभव होता है, मैं चीनियों से मिलता हूँ। कई साल पहले मैंने चीन-तिब्बत मैत्री संघ की स्थापना को प्रोत्साहन दिया और वे काफी प्रभावी रहे हैं। आज, लगभग ४०० अरब चीनी हैं, जो स्वयं को बौद्ध कहते हैं, और जिनमें से कइयों की तिब्बती बौद्ध धर्म में रुचि है। दूसरों ने स्वयं को तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण और पारिस्थितिकी संरक्षण के साथ संबद्धित िकया है। साधारण चीनियों के साथ संबंधों में सुधार हुआ है। तिब्बती मुद्दा बंदूक, बल प्रयोग, और सत्य के बीच एक संघर्ष सा लगता है। ऐसा प्रतीत हो सकता है कि अल्पावधि के िलए बंदूक अधिक प्रभावी है पर फिर भी अंततः सत्य ही अभिभावी होगा।"

"जब मैं ल्हासा में छोटा था तो सेवक मुझे सूचना दिया करते थे। मैं भी कुछ चन्द हाथों में बहुत अधिक सत्ता की कमियों से परिचित हो गया। सब कुछ इस पर निर्भर था कि आप किसे जानते हैं। मैं इसमें परिवर्तन करना चाहता था, पर मेरे सुधार लाने के प्रयास नाकाम रहे। हमने १९६० में लोकतंत्रीकरण करना प्रारंभ किया और जब २०११ में एक नया नेतृत्व का चयन हुआ तो मैं सेवानिवृत्त हो गया। इसमें समय लगा पर अंततः हम एक ऐसे बिंदु पर पहुँच गए हैं, जहाँ हमारे नेता चुने जाते हैं।"

परम पावन ने समझाया कि विनय भी लोकतांत्रिक आधार पर कार्य करता है। इस का एक उदाहरण महिलाओं की पूर्ण प्रवज्यता है, जिसका वह सम्पूर्ण रूप से समर्थन करते हैं। बहुत सारे लोग, विशेष रूप से पश्चिम के लोग उनसे इसके विषय में एक अध्यादेश जारी करने के लिए कहते हैं, और कहते हैं कि चूँकि वे ऐसा नहीं कर रहे, वे विकास में बाधक हैं। वास्तव में, विनय से संबंधित परिवर्तन को वैध बनाने के लिए कम से कम पाँच योग्य व्यक्तियों के एक समूह की आवश्यकता होती है।
 
परम पावन ने दोलज्ञल के विषय पर विस्तार से बात की। उन्होंने कहा:

"मैं डोमो में था, नेचुंग और गदोंग हमारे साथ नहीं थे, पर वहाँ एक माध्यम था, जो यद्यपि अनपढ़ था पर अपने अच्छी भविष्यवाणियों के लिए प्रतिष्ठित था। इस प्रकार दोलज्ञल के साथ मेरा संबंध प्रारंभ हुआ। मैं फबोंगका परम्परा का भी संरक्षक हूँ, इसलिए १९५० - ७० तक मैंने दोलज्ञल की तुष्टि की। ६० के दशक में नेचुंग ने उल्लेख किया कि आवारा, असे खेनपो को तुष्ट करना अच्छा नहीं। मैंने चुप रहने के लिए कहा था और वह चुप रहे और मैंने अभ्यास जारी रखा।"


"तो फिर पीली पुस्तक आई, यह सुझाव देते हुए कि किसी गेलुगपा द्वारा अन्य परम्पराओं के अभ्यास से दोलज्ञल का क्रोध जाग्रत होगा। मैंने पुनः नेचुंग की सलाह ली और उन्होंने मुझे एक लंबी कहानी सुनाई। परिणामस्वरूप पालदेन ल्हामो के लिए विशेष प्रसाद के रूप में मैंने एक भविष्यवाणी का अनुष्ठान किया, जिसमें नमज्ञल विहार के विहाराधीश ने भाग लिया। वे नहीं जानते थे कि यह किसको लेकर है, पर जब मैंने उन्हें बताया तो उन्होंने टिप्पणी की कि यह बहुत शक्तिशाली अनुष्ठान था। प्रश्न यह थे कि क्या मुझे यह अभ्यास बंद कर देना चाहिए, धीरे-धीरे, या तुरन्त। मैंने बंद कर दिया। मैंने लिंग रिनपोछे को सूचित िकया जो प्रसन्न हुए, क्योंकि वे पहले दोलज्ञल के साथ मेरे संबंधों को लेकर अत्यंत आशंकित थे। मैंने ठिजंग रिनपोछे को भी सब कुछ समझाया, जिन्होंने कहा कि पालदेन ल्हामो के संबंध की भविष्यवाणी अचूक थी। उन्होंने कहा इस विषय में कोई संदेह न था और कहा कि नेचुंग भी बहुत विश्वसनीय था। उन्होंने कहा कि हमने जो सीखा उसका कोई कारण होगा कहा, पर वह नाराज या ऐसा कुछ भी नहीं थे।"

"दोलज्ञल समर्थक प्रदर्शनकारी धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर चिल्लाते हैं, पर जब मैं वह अभ्यास कर रहा था तो मेरी अपनी धार्मिक स्वतंत्रता प्रतिबंधित हो गई थी। मैं खुनु लामा रिनपोछे से गुह्यगर्भ की शिक्षाएँ प्राप्त करना चाहता था, पर चूँकि वे दोलज्ञल के बारे में आशंकित थे, लिंग रिनपोछे ने इसके खिलाफ सलाह दी। मैं उसी समय मुक्त हुआ जब मैंने दोलज्ञल को छोड़ दिया और मैं दिलगो खेंछे रिनपोछे से कई शिक्षाएँ प्राप्त करने में सक्षम हुआ।"

"दोलज्ञल एक सांसारिक देवता हैं। कुछ लोगों की मान्यता है कि वे मंजुश्री का प्रकट रूप हैं, पर हम यह भी कह सकते हैं कि नेचुंग अंततः परा भी हैं। १३वें दलाई लामा ने फबोंगका रिनपोछे को चेतावनी दी थी कि दोलज्ञल से संबंध रखते हुए, जैसा उन्होंने किया, उन्होंने अपने शरणागमन के उल्लंघन का संकट उठाया, जो कि उनकी अपनी आत्मकथा में दर्ज की है। ५वें दलाई लामा ने कहा कि दोलज्ञल का जन्म विकृत प्रार्थनाओं से हुआ है, वह मृतकों का भूत है और उसका कार्य अहित करना है। ठिजंग नवांग छोगदेन जैसे कई अन्य महान गेलुगपा गुरुओं ने इस अभ्यास का विरोध किया। ये प्रदर्शनकारी गलत हैं और अज्ञानता से भरे हुए हैं, लेकिन मेरे मन में उनके प्रति क्रोध नहीं है।"


"वे कहते हैं, 'झूठ बोलना बंद करो, झूठ बोलना बंद करो', पर आप मेरे साथ रहे; मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। बात यह है कि यह हानिकारक है, पर चाहे लोग इसे सुने अथवा नहीं, यह उन पर निर्भर है। जो भी हो मेरा उत्तरदायित्व लोगों को सचेत करना और स्थिति को स्पष्ट करना है। मैंने किसी से मेरी बात मानने के िलए कभी नहीं कहा।"

परम पावन ने वैंकूवर और ब्रिटिश कोलंबिया में स्कूलों में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता लागू करने के लिए किए जा रहे काम का भी संदर्भ दिया। उन्होंने अपना व्याख्यान बुद्ध, अवलोकितेश्वर, मंजुश्री, वज्रपाणि, तारा, हयग्रीव, वज्रकिलय और भैषज्य बुद्ध के मंत्रों के संचरण के साथ समाप्त किया। उन्होंने कहा कि उन्हें भारत छोड़े २० दिन हो गए हैं, कि कुछ लाभ हुआ है और उनका स्वास्थ्य अच्छा है।

"खुश रहिए, टाशी देलेग।"

अपने होटल में मध्याह्न के भोजनोपरांत, हवाई अड्डे के लिए रवाना होने से पहले, परम पावन ने न्यूयॉर्क और आसपास के इलाकों में पढ़ रहे चीनी छात्रों के एक समूह के साथ भेंट की। भाइयों और बहनों के रूप में उन्हें संबोधित करते हुए उन्होंने तिब्बतियों और चीनियों के बीच के दीर्घ काल के संबंध का संदर्भ दिया जो प्रायः अच्छे पर कभी कभी कठिन रहे हैं।

"हम दोनों के बीच समस्याओं में से एक अज्ञान है। बहुत लंबे समय से कई तिब्बतियों को पिछड़े और बर्बर रूप में देखते हैं। पर अब जब उनके पास अवसर है, तो और अधिक चीनियों को तिब्बत में प्रशंसा के लिए वस्तुएँ दिखाई दे रही हैं। आध्यात्मिक रूप से, चीन और तिब्बत के बहुत निकट हैं। आज, ३००- ४०० अरब चीनी हैं, जो स्वयं को बौद्ध कहते हैं, जिनमें से कइयों में तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रति रुचि है।"


श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने विगत ५० वर्ष या उससे अधिक समय से चीन और तिब्बत के बीच के संबंधों का एक सर्वेक्षण दिया और िकस तरह समय समय पर समाधान की आशा उठाई गई है और फिर धराशायी हो गई। उन्होंने उल्लेख िकया कि किस प्रकार उन्होंने सुधारों का प्रयास िकया था और उन्हें अवरोधों का सामना करना पड़ा, पर दूसरों ने बल प्रयोग से सुधार मढ़ दिए।

उन्होंने कहा कि चूँकि तिब्बती भौतिक विकास भी देखना चाहते हैं तो यह उनके हित में है कि वे पी आर सी के अंग के रूप में बने रहें, और उन्होंने यूरोपीय देशों के प्रति प्रशंसा व्यक्त की, कि यूरोपीय संघ के भीतर किस तरह उन्होंने स्वैच्छिक रूप से राष्ट्रीय हित के आगे आम हित रखा था। उन्होंने इस ओर भी ध्यानाकर्षित िकया कि किस तरह भारत में देश को खंडित करने के कोई संकट के बिना विविधता पनपती है। उन्होंने वू-ताई-शान की तीर्थ यात्रा करने की अपनी इच्छा भी अभिव्यक्त की।

होटल से निकलकर परम पावन गाड़ी से जे एफ के हवाई अड्डे पहुँचे और फ्रैंकफर्ट होते हुए वापस भारत के लिए उड़ान भरी। 

  • सभी सामग्री सर्वाधिकार © परम पावन दलाई लामा के कार्यालय

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