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ग्यूमे तांत्रिक महाविद्यालय में आठ महान तांत्रिक भाष्यों पर प्रवचन December 12, 2015

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हुन्सुर, कर्नाटक, भारत - १२ दिसंबर २०१५ - परम पावन दलाई लामा ने आज प्रातः अपना आसन ग्रहण किया और मंदिर के अंदर और बाहर देखते हुए उस ग्रंथ की प्रतियों को वितरित करते देखा जिस पर वह प्रवचन देने वाले थे। ये पुस्तकें एक छोटे पारम्परिक लकड़ी खंड के प्रारूप में थीं और पीले कपड़े में लिपटी थीं। उन्होंने हस्तक्षेप करते हुए घोषित किया कि 'ग्यूमे के आठ महान तांत्रिक भाष्य' हर किसी के लिए नहीं थे।


"यह एक मोहरबंद और प्रतिबंधित पाठ है, जो केवल उन्हीं लोगों द्वारा देखा जा सकता है जो वज्रभैरव अथवा गुह्यसमाज का अभ्यास करते हैं। केवल वही प्रतियाँ लें, जो प्रतिबद्धताएँ बनाए रख सकते हैं। यदि आप में से जिन्होंने इसे ग्रहण किया है अभ्यास करने के संबंध में दृढ़ संकल्पी हैं तो आप कर सकते हैं परन्तु केवल सौ एक प्रतियाँ छपी हैं। ग्युतो में भी मैंने वज्रभैरव के सात अध्याय पर प्रवचन दिया जो इसी प्रकार सीमित था और मैंने कहा कि केवल तभी लें यदि आप अभ्यास करेंगे।

"सक्या दगठी इस शिक्षण को सुनने के लिए यहाँ आज हमारे साथ हैं तो वह न केवल मार्ग व निष्पन्नता परम्परा को धारण करने वाले होंगे पर साथ ही से-ग्यु के भी। गुह्यसमाज के अपनी रचना के गुह्यसमाज प्रार्थना के अंत में जे चोंखापा कहते हैः यह एक जीवन काल में आप को प्रबुद्धता की ओर ले जाने वाला उपाय है।


परम पावन ने समझाया कि आठ ग्रंथ अधिकांश रूप से निष्पन्न चरण के अभ्यासों से संबंधित है जो कि ग्यूमे महविहार के विभिन्न तांत्रिक परम्पराओं से संबंधित हैं, जो गुह्यसमाज प्रणाली पर आधारित है। उन्होंने कहा कि कालचक्र की अपनी व्यवस्था है और ञिड्मा के काज्ञे की अपनी व्यवस्था है। ज़ोगछेन भी अप्रबुद्ध चित्त और मौलिक जागरूकता के बीच अंतर करता है।


"तिब्बत में ग्यूमे महाविहार में ३२ भिक्षुओं द्वारा छुमिगलुंग में एक सख्त बंद गुह्यसमाज एकांतवास की प्रथा थी। मैं नहीं जानता कि वे वास्तव में गुह्यसमाज पर ध्यान करते थे, पर उपाध्याय इन ग्रंथों की शिक्षा देते थे। यदि किसी की मृत्यु भी हो जाए तो भी वे खोलते नहीं थे, द्वार बंद रहते थे। जब जमयंग ङवंग चोनडु छुमिगलुंग में इस प्रकार के एकांतवास में थे तो वे तीन प्रकार के ज्ञान के १७३ पहलुओं पर ध्यान करने में सफल रहे।


"मैंने सेरा डेपुंग और गदेन महाविहारों को सुझाव दिया है कि उनके भी एकांतवास केन्द्र होने चाहिए। जैसा कि अर्हत विशाखदेव ने कहा: "ध्यान के माध्यम से इस जीवन का निचोड़ निकालो। मात्र एक भिक्षु के चीवर पहन कर संतुष्ट मत हो। धर्म पर ध्यान करो। अध्ययन, एकाग्रता और अभ्यास द्वारा सार निकालो।"


"जे रिनपोछे ने अष्ट लौकिक धर्मों में उलझे बिना अपना जीवन सार्थक बनाया। उन्होंने चीनी सम्राट के निमंत्रण को ठुकरा दिया जो संभवतः अन्य लोग प्रसन्नता से स्वीकार कर लेते।


"यदि हम उचित सुविधाओं के साथ एकांतवास केंद्रों की स्थापना कर सकें तो हमें करना चाहिए। जैसा जमयंग शेपा ने किया था हमें भी तीन प्रकार के ज्ञान के १७३ पहलुओं पर ध्यान करने का प्रयास करना चाहिए। मात्र मंत्र जाप में समय बिताना पर्याप्त नहीं है। ग्यूमे तांत्रिक महाविद्यालय के पिछले दलाई लामाओं के ग्रंथों पर आधारित एक अध्ययन पाठ्यक्रम प्रारंभ करने की योजना है। वे मेरे पास पुस्तकें दिखाने के लिए लाए और मैंने जो उठाई वह अभिसमयालंकार पर ५वें दलाई लामा की टीका थी। दलाई लामा के लेखन का संरक्षण और अध्ययन एक परम्परा है जो देयंग विहार द्वारा व्यवहृत थी।"


ग्रंथों का पाठ करने से पहले, परम पावन ने कहा कि उन्होंने इन आठ भाष्यों की शिक्षा लिंग रिनपोछे से प्राप्त की थी और उनमें से अधिकांश का संबंध निष्पन्नता अवस्था के अभ्यासों से है। शांत तथा स्थिर आवाज़ में परम पावन ने मध्याह्न के भोजन तक पढ़ा और बाद में जब सब पुनः एकत्रित हुए तो पुनः प्रारंभ किया और मध्याह्न के मध्य भाग तक कालचक्र के अंतिम ग्रंथ का पाठ पूरा किया। यह टिप्पणी करते हुए कि खेंडुप-जे की संयोजित रचनाओं में भी कालचक्र की विस्तृत व्याख्या है उन्हें स्मरण हुआ कि कल उपक्रमात्मक अनुष्ठानों के दौरान उन्होंने वेदी की ओर देखा और सोचा कि जहाँ बुद्ध की प्रतिमा के ऊपर जे रिनपोछे की मूर्तियाँ हैं वहाँ कांग्यूर और तेंग्यूर की प्रतियां भी होनी चाहिए।



"बहुत पहले नहीं कि मुझे छोपेमा (रिवालसर) में गुरु पद्मसंभव की एक विशाल प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा के लिए आमंत्रित किया गया था। यदि आप इतिहास का पुनरावलोकन करें तो गुरु पद्मसंभव की तिब्बत में बुद्ध धर्म को लाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी । उन्होंने तिब्बती लोगों के लिए महान प्रार्थनाएँ की। मैं उनकी दया को पहचानता हूँ, पर मैंने कहा कि यह प्रतिमा भविष्य में लंबे समय तक बनी रहेगी पर यह कभी बात नहीं करेगी। इसी तरह, हम बोधगया में बुद्ध की प्रतिमा के प्रति महान सम्मान अभिव्यक्त करते हैं पर वह भी कभी बोलेगी नहीं।


"मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि यदि जे चोंखापा प्रकट हों और हम उनसे प्रश्न पूछें तो वे कहेंगे कि 'उत्तर पहले से ही मेरे संकलित कार्य के १८ खंडों में दर्ज हैं।' कृपया अध्ययन करने का प्रयास करें। हमें २१वीं सदी का बौद्ध होना है, हमें समझने और शब्दों को दोहराने में सक्षम होने की आवश्यकता है। और तो और जे चोंखापा की रचनाओं को पढ़ने के साथ साथ उनके आलोचकों को पढ़ना भी अच्छा होगा। देखें कि तगछंग लोचावा, शाक्य छोगदेन, गोरम्पा और रोंगतोन शेजा कुनरिग क्या कहते हैं। आजकल हमारे कई भिक्षु अपने पठन को उनके महाविहार के मानक ग्रंथों के पठन तक ही सीमित रखते हैं।


"अंत में आइए, बुद्ध की शिक्षाओं के फलने फूलने हेतु प्रार्थना करते हैं।"


अंत में परम पावन ने रेत मंडल की ओर जाकर उसे देखने सलाह दी।


"भक्ति के साथ मंडल देखते हुए आप अनगिनत जीवन के दुष्कर्मों को शुद्ध कर सकते हैं। तो एक अच्छी प्रेरणा से, बोधिचित्त तथा शून्यता की अपनी समझ का स्मरण कर उसे देखें। कोई जल्दी नहीं है, उसे मिटाने से पहले कई दिनों तक भिक्षुओं द्वारा इसके समक्ष प्रार्थना जारी रहेगी। मैं आशा करता हूँ कि हममें से कई टाशी ल्हुन्पो में पुनः मिलेंगे पर कोई भी जो सेरा में माइंड लाइफ सम्मेलन में सम्मिलित होने की रुचि रखता है उसका स्वागत है।"

  • सभी सामग्री सर्वाधिकार © परम पावन दलाई लामा के कार्यालय

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