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परम पावन दलाई लामा भारत लौटने के लिए टोक्यो से रवाना April 14, 2015

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नई दिल्ली, भारत - १४ अप्रैल २०१५ -  जापान की एक सफल दो सप्ताह की यात्रा के समापन पर, जिस दौरान उन्होंने जापानी वैज्ञानिकों, राजनीतिज्ञों, चिकित्सकों, बौद्ध समुदायों, छात्रों और आम जनता के सदस्यों के साथ भेंट की और विचार-विमर्श किया, उनकी अंतिम संक्षिप्त बैठक तिब्बतियों और ताइवान के लोगों के साथ थी।

उन्होंने तिब्बतियों को न केवल अपने स्वयं के हितों को आगे बढ़ाने, अपितु समूची मानवता के लिए काम करने हेतु प्रोत्साहित किया।

"दूसरों की सेवा करना हमारी धार्मिक परंपरा का भाग है," उन्होंने कहा। "आज के विश्व में, तिब्बती संस्कृति ध्यान आकर्षित कर रहा है, तो यह लज्जाजनक बात होगी यदि हम स्वयं ही इसे न बनाए रख सकें। मैं विदेश में लोगों से कहता हूँ कि तिब्बतियों की सौहार्दता की प्रतिष्ठा है, पर यदि तिब्बती आपस में लड़ें और एक दूसरे को मार डालें तो यह अपमानजनक है। साथ मिलें, चर्चा करें कि आप क्या कर रहे हैं, रचनात्मक आलोचना प्रस्तुत करें और सुधार करने का प्रयास करें।"

"तिब्बत द्वारा सामना किए जा रहे समस्याओं के संबंध में, हम उन्हें हल करने के लिए अपनी ओर से पूरा प्रयास कर रहे हैं, पर हमें अंतरराष्ट्रीय समर्थन की आवश्यकता है। परिस्थितियों को बदलना होगा। पारदर्शिता लानी होगी, इससे बचा नहीं जा सकता। चीनी अधिकारियों ने हिंसा के साथ तिब्बतियों के दमन का प्रयास किया है, उन्होंने हमारी अस्मिता को समाप्त करने की कोशिश की है, लेकिन हम दृढ़ हैं, हम जीवित हैं। जब चीन वास्तव में उन बातों को सुनेगा जिनकी अवश्यकता तिब्बतियों को है, तो समस्या का समाधान किया जा सकता है।"


१००० ताइवान के लोगों के लिए परम पावन के व्याख्यान का प्रमुख विषय यह था कि वे बौद्ध धर्म में अपनी रुचि को अध्ययन के साथ सशक्त करें। उन्होंने कहा:
 
"मैं ८० वर्ष साल का हो गया हूँ, पर मैं अभी भी नालंदा के पंडितों की रचनाओं का अध्ययन कर रहा हूँ। यही मैं आपको भी करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा हूँ । आज, २१वीं सदी में, महत्वपूर्ण बात मात्र अपने भौतिक हित के सुधार की नहीं है। विश्व भर में हम नैतिक भ्रम की स्थिति के संकेत देखते हैं । लोग नकारात्मक भावनाओं के नियंत्रण में हैं। महत्वपूर्ण बात एक अच्छा इंसान बनने की कोशिश, सौहार्द पूर्ण होने और आत्मविश्वासी होने की है।"

"आप में से अधिकांश प्रतिदिन हृदय सूत्र का पाठ करते हैं, पर मात्र पाठ करना पर्याप्त नहीं है, आपको यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि इसका क्या अर्थ है। मैं प्रायः लोगों से कहता हूँ कि २१वीं शताब्दी का बौद्ध होना कितना महत्वपूर्ण है, श्रद्धा और चर्या मात्र वंशज परम्परा पर आधारित न कर, एक अच्छी समझ पर आधारित हो। हम इसी तरह से अज्ञान को आमूल नष्ट कर अपने चित्त को परिवर्तित कर सकते हैं।"

परम पावन जब टोक्यो से नारिता हवाई अड्डे के लिए गाड़ी से चले तो लगातार बारिश हो रही थी, पर भारत वापसी की उनकी उड़ान ठीक समय पर रवाना हुई। उड़ान के दौरान कुछ अशांति के बावजूद, वह सहज थी और शीघ्र ही दिल्ली पहुँची। कल परम पावन धर्मशाला लौट जाएँगे। 

  • सभी सामग्री सर्वाधिकार © परम पावन दलाई लामा के कार्यालय

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