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बिहारी छात्रों को संबोधन और पलयुल थुबतेन छोखोर दरज्ञेलिंग विहार की यात्रा December 31, 2016

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बोधगया, बिहार, भारत - आज मध्याह्न भोजनोपरांत, परम पावन दलाई लामा बोधगया के आसपास के क्षेत्रों के २५ विभिन्न विद्यालयों के लगभग २००० छात्रों से भेंट करने के लिए गाड़ी से कालचक्र प्रवचन स्थल गए। यह कार्यक्रम बोधगया के इंटर रिलिजियस फ्रेंड्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित किया गया था। आगमन पर श्रद्धेय रत्नेश्वर चकमा और फॉदर लॉरेंस उज्ज्वल ने परम पावन का स्वागत किया। जब वे मंच पर आए तो उनसे उन्हें चित्रित करने की एक छात्र प्रतियोगिता के परिणामों की समीक्षा करने तथा विजेताओं का अभिनन्दन करने के लिए आमंत्रित किया गया।

जब परम पावन तथा अन्य अतिथियों ने अपना स्थान ग्रहण कर लिया, तो संचालक किरण लामा ने श्रद्धेय रत्नेश्वर चकमा, मगध विश्वविद्यालय के कुलपति - डॉ मोहम्मद इश्तियाक और गया कॉलेज के प्राचार्य- डॉ एम शम्सुल इस्लाम को परम पावन के स्वागत करने, सम्मानित करने और उनका परिचय कराने के लिए आमंत्रित किया। फॉदर लॉरेंस उज्ज्वल ने छात्रों को प्रोत्साहित किया कि वे परम पावन को ध्यानपूर्वक सुनें और उनकी बातों को नोट कर लें ताकि वे बाद में होने वाली निबंध प्रतियोगिता में भाग लेने में सक्षम हो सकें।
"प्रिय युवा भाइयों और बहनों, और साथ ही जयेष्ठ भाइयों और बहनों," परम पावन ने प्रारंभ किया, "जब भी मैं सार्वजनिक रूप से बोलता हूँ तो मुझे अनौपचारिक होना अच्छा लगता है। मुझे लगता है कि औपचारिकता मात्र लोगों के बीच अवरोध उत्पन्न करती है। यह मेरे लिए एक महान सम्मान की बात है कि इस स्थान में, जिसे हममें से कई पवित्र मानते हैं, मैं आप युवाओं से बात कर रहा हूँ।

"मनुष्य के रूप में हम सब एक समान हैं। जिस तरह से हम जन्म लेते हैं और जिस तरह हम मरते हैं, वह समान है। हम शारीरिक रूप से, मानसिक रूप से और भावनात्मक रूप से एक ही हैं। हमारे बीच राष्ट्रीयता, आस्था, रंग या सामाजिक प्रतिष्ठा के अंतर केवल गौण हैं। हमारे लिए बेहतर होगा कि हम बच्चों की तरह हों, जो ऐसे अंतरों की चिंता किए बिना खुशी और प्रेम से एक साथ खेलते हैं।

"बहुत सारी समस्याएँ, जिनका सामना आज हम कर रहे हैं वे हमारी अपनी निर्मित हैं। उनमें से कई पैदा होती है क्योंकि हम अपने बीच की विभिन्नताओं पर अधिक ध्यान देते हैं इसके बजाय कि मानवता की एकता की ओर ध्यान दें - कि सभी एक मानव परिवार के हैं।"

परम पावन ने टिप्पणी की, कि क्योंकि समय सदैव अतीत गतिमान होता है अतीत जा चुका है । २०वीं शताब्दी जा चुकी है और हम इसके बारे में जो भी अनुभव करें, पर जो हुआ उसे हम बदल नहीं सकते। परन्तु हम भविष्य को आकार दे सकते हैं।

"मेरी उम्र के लोग २०वीं शताब्दी के हैं। हमारा समय जा चुका है। पर आप २१वीं सदी की पीढ़ी के हैं। आपका एक बेहतर विश्व निर्माण करने का उत्तरदायित्व है। मेरा विश्वास है कि आप एक उज्जवल भविष्य देखेंगे, पर विश्व को एक और अधिक शांतिपूर्ण, अधिक करुणाशील स्थान बनाने के लिए समय और प्रयास की आवश्यकता होगी।

"विश्व शांति केवल चित्त की शांति पर आधारित की जा सकती है। यदि हम यह पूछें कि क्या है जो हमारे चित्त की शांति को नष्ट कर देता है, तो वह शस्त्र और बाहरी संकट नहीं पर क्रोध जैसी हमारी अपनी आंतरिक विकृतियाँ हैं। जब आप किसी से मिलते हैं जो आपको अच्छा नहीं लगता या फिर कोई आपसे कुछ अप्रिय कहता है, तो यह आपकी अपनी स्वयं की प्रतिक्रिया है जो आपकी आंतरिक शांति को विचलित करती है। और तो और निरंतर भय और क्रोध हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल करता है। यह एक कारण है कि प्रेम और करुणा क्यों महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे हमें सशक्त करते हैं। यह आशा का एक स्रोत है।"

परम पावन ने कहा कि वैज्ञानिक निष्कर्ष दिखा रहे हैं कि आधारभूत मानव प्रकृति सकारात्मक और करुणाशील है, परन्तु दुर्भाग्य से जब इसके विकास की बात आती है तो आधुनिक शिक्षा अपर्याप्त है। आंतरिक मूल्यों के प्रति बहुत कम ध्यान दिया जाता है। उन्होंने टिप्पणी की कि चूँकि अत्यधिक विकसित देशों में कई लोग दुखी रहते हैं, स्पष्ट रूप से मात्र भौतिक विकास आंतरिक शांति लाने में विफल रहता है।

यह टिप्पणी करते हुए कि भारत मोटे तौर पर एक धार्मिक विचारधारा वाला देश है, परम पावन ने आश्चर्य व्यक्त किया कि भ्रष्टाचार इतने बड़े पैमाने पर है। उन्होंने विनोद पूर्वक स्वर में कहा कि वह सोच रहे थे कि जब प्रतिदिन प्रातः लोग शिव, गणेश या सरस्वती के समक्ष नमन करते हैं और समर्पण चढ़ाते हैं तो वे वास्तव में यह प्रार्थना नहीं कर रहे कि 'मेरी भ्रष्ट गतिविधियाँ सफल हों!' उन्होंने सुझाव दिया यह इस सख्त नैतिक सिद्धांतों की आवश्यकता को इंगित करता है।

"करुणा केवल एक धार्मिक बात नहीं अपितु हमारे अस्तित्व का आधार है। हमारा अपना जीवन दूसरों के स्नेह पर निर्भर करता है, तो यह हमारे हित में है कि हम उनकी चिंताओं पर ध्यान दें। अतः मैं आपसे जो २१वीं सदी की पीढ़ी के हैं, आग्रह करता हूँ कि आंतरिक मूल्यों के बारे में अधिक सोचें और अपने स्वयं के जीवन में करुणा का विकास करें।

"मैत्री विश्वास पर निर्भर होती है और विश्वास दूसरों के हितार्थ चिंता की एक मजबूत भावना के होने पर निर्भर करता है। ईमानदार, सच्चे और सौहार्दपूर्ण बनें। अपनी दृढ़ता के लिए करुणा को आधार बनाएँ। सोचें कि भविष्य क्या हो सकता है, यह नहीं कि अतीत में क्या हुआ।"

छात्रों के प्रश्नों के अपने उत्तर में परम पावन ने शिक्षा की तीन आयामी निर्देश की बात की, जो निर्देश के पढ़ने या सुनने से प्रारंभ होता है, जारी रहता है जब जो आपने पढ़ा या सुना है उस पर चिन्तन करते हैं और अंततः भावना में अपने आपको उससे वास्तव में परिचय कराता है। तत्पश्चात यह महत्वपूर्ण है कि जो आपने सीखा है उसे प्रभाव में लाएँ, यह ध्यान में रखते हुए कि आंतरिक परिवर्तन में समय और प्रयास लगता है, जैसे एक पौधा विकास करने में समय लेता है।

क्रोध के साथ निपटने के लिए परम पावन ने चित्त और भावनाओं के प्रकार्य की प्राचीन भारतीय समझ के आधार पर भावनात्मक स्वच्छता की भावना के विकास की सराहना की। उन्होंने यह भी सुझाया कि आगामी सप्ताह वह जिस ग्रंथ को समझाने वाले हैं, 'बोधिसत्वचर्यावतार' वह क्रोध और आत्मकेन्द्रितता से निपटने को समझाने में पूर्ण रूप से पर्याप्त है।

उन्होंने आगे कहा कि अहिंसा, जहाँ करुणा पर आधारित है वह वास्तव में कार्य से संबंधित है। यह उस समय आती है जब आपके पास किसी को मारने का कारण और अवसर होता है, पर आप अपने आप को नियंत्रित करते हैं। उन्होंने कहा कि यदि आप दूसरों के क्रोध का उत्तर क्रोध से देते हैं या फिर उनकी हिंसा का उत्तर हिंसा से करते हैं, तो उसका कोई अंत न होगा। संघर्ष का सर्वोत्तम समाधान मुस्कान और संवाद में संलग्न होना है।

जब बैठक समाप्त होने को आई तो संभागीय आयुक्त श्री लियान कुनगा ने अपनी आशंका जताई कि एक ईसाई के रूप में उनका विश्वास था कि आप तभी स्वर्ग जा सकते हैं जब आपका ईसा मसीह में विश्वास हो। परम पावन ने उत्तर दिया कि जहाँ तक उनका संबंध है, ऐसी श्रद्धा शक्तिशाली और बहुत सहायक है। उन्होंने स्वीकार किया कि एक व्यक्तिगत स्तर पर केवल एक सत्य और धर्म एक उपयुक्त है, पर हम जिस विश्व में रहते हैं उसके संदर्भ में स्पष्ट रूप से कई सत्य और एक से अधिक धर्म हैं।

फॉदर लॉरेंस ने धन्यवाद की एक संक्षिप्त औपचारिक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की।

कालचक्र क्षेत्र से, परम पावन गाड़ी से पलयुल थुबतेन छोखोर दरज्ञेलिंग विहार गए, एक नूतन ञिंङमा विहार, जो दिवंगत पेनोर रिनपोछे की इच्छाओं में से एक की पूर्ति के लिए निर्मित हुआ है। पूर्व मंत्री श्रद्धेय छेरिंग फुनछोग और ज्ञंगखंग रिनपोछे ने नूतन अलंकृत मंदिर में उनका स्वागत किया।

अपनी टिप्पणी में परम पावन ने ञिंङमा परम्परा के संरक्षण के लिए पेनोर रिनपोछे की महान निष्ठा का उल्लेख किया, विशेष रूप से अध्ययन के संदर्भ में। उन्होंने कहा कि उन्हें कुछ विरोध का सामना करना पड़ा था, जब उन्होंने १३ महान ग्रंथों के अध्ययन के साथ साथ शास्त्रार्थ भी प्रारंभ किया, पर अंत में परिणाम हुआ कि भारत, नेपाल और भूटान में विभिन्न ञिंङमा महाविहारों के बीच नमडोललिंग के छात्रों के सबसे बड़े विद्वान थे। उनमें भिक्षुणियाँ और भिक्षु सम्मिलित हैं। वसुबंधु को उद्धृत करते हुए जिन्होंने सिद्धांत और धर्म की अनुभूति का संदर्भ दिया, परम पावन ने कहा कि उनका संरक्षण अध्ययन और अभ्यास के माध्यम से होता है। उन्होंने तीन पिटकों के अध्ययन और तीन अधिशीलों के अभ्यास का सुझाव दिया।

परम पावन परसों कालचक्र अभिषेक के लिए तैयारी प्रारंभ करेंगे।

  • सभी सामग्री सर्वाधिकार © परम पावन दलाई लामा के कार्यालय

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