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परम पावन दलाई लामा ' युवा नेताओं के विचार विनिमय ' में सम्मिलित होते हुए May 4, 2016

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थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, ३ मई २०१६ - आज परम पावन दलाई लामा समस्त मध्य पूर्व, अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया के संकट-ग्रस्त राष्ट्रों के युवा महिलाओं और पुरुषों के युवा नेताओं के विचार विनिमय की एक बैठक में सम्मिलित हुए, जो अहिंसक उपायों से संघर्ष के प्रबंधन के लिए समर्पित है। यह बैठक युनाटेड स्टेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ पीस (यूएसआइपी) के तत्वावधान में हुई, जो विश्व भर में संघर्ष को रोकने, कम करने और उनके समाधान के लिए कार्य करता है। परम पावन ने उनके साथ सम्मिलित होने के लिए दो भारतीय मुस्लिम नेताओं को आमंत्रित किया था - डॉ सैयद जफर महमूद, एक सेवानिवृत्त नौकरशाह और सामाजिक कार्यकर्ता और दीवान सैयद जैनुल अबेदीन, अजमेर दरगाह के एक सूफी तथा दरगाह आध्यात्मिक प्रमुख। दोनों अपने अंतर्धार्मिक समझ को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते हैं।


बैठक प्रारंभ करने के लिए युवा नेताओं ने अपना परिचय दियाः युगांडा से अहमद, दक्षिण सूडान से अमुले, मिस्र से दोआ, केन्या से दिदास, मायनमार से हैरी, सोमालिया से हसन, इराक से हस्तियार, सूडान से इखलस, नाइजीरिया से इमराना, इराक से इस्सा, सोमालिया से खादीजा, अफगानिस्तान से मरियम, नाइजीरिया से मिरियम, सूडान से महमेद, मोरक्को से मौआद, सोमालिया से नसरो, ट्यूनीशिया से नादिया, अफगानिस्तान से नोरिया, नाइजीरिया से रेबेका, केन्या से स्कोफील्ड, युगांडा से शुभे, दक्षिण सूडान से सिल्वियो, ट्यूनीशिया से सौहीर, मोरक्को से सौकैना, सीरिया से क़ातिबा, मायनमार से थेट, नाइजीरिया से विक्टोरिया, मायनमार से ये तुत और लीबिया से योनस।
 
परम पावन द्वारा दीवान सैयद जैनुल आबदीन को कार्यवाही प्रारंभ करने से पूर्व प्रार्थना करने हेतु आमंत्रित किए जाने के पश्चात संचालिका यूएसआइपी की अध्यक्षा, नैन्सी लिंडबोर्ग ने परम पावन से पूछा कि क्या वे कुछ प्रारंभिक टिप्पणी करना चाहेंगे। परम पावन ने यह कहते हुए प्रारंभ किया कि वे इतने युवाओं से मिलकर कितने प्रसन्न थे। उन्होंने टिप्पणी की, कि भारत एक जीवंत उदाहरण है कि सभी धार्मिक परंपराएँ में शांति और मैत्री सहित एक साथ रह सकती हैं। उन्होंने आगे कहाः

"१९७३ में यूरोप की अपनी पहली यात्रा की दौरान मैंने मानवता की एकता के बारे में बोलना प्रारंभ किया। इसके लिए स्वाभाविक रूप से मुझे अधिक वैश्विक उत्तरदायित्व की आवश्यकता की अभिव्यक्ति करनी पड़ी। अब विशेष रूप से युवा लोगों में वैश्विक नागरिकता की बढ़ती भावना के प्रमाण हैं, जो प्रोत्साहजनक है क्योंकि यह ग्रह हमारा एकमात्र घर है और हमें इस पर समरसता से रहना है।


"सभी ६ अरब मनुष्यों का एक साझा अनुभव है कि हम सभी प्रेम को सराहते हैं। हम सबके अंदर प्रेम और स्नेह का बीज और अधिक प्रेम और करुणा का विकास करने की क्षमता है। यदि हम विश्व में शांति का निर्माण करना चाहते हैं तो इसका प्रारंभ हृदय से करना होगा, आंतरिक शांति के साथ।"

परम पावन ने धार्मिक परम्पराओं के तीन पहलुओं के बारे में बात की, धार्मिक पक्ष, जैसे कि प्रेम का अभ्यास, दार्शनिक पक्ष, जैसे कि कोई सृजन करने वाला ईश्वर है अथवा नहीं, और एक सांस्कृतिक पक्ष जैसे कि भारतीय जाति व्यवस्था या बौद्ध धर्म में लैंगिक भेदभाव की भावना। उन्होंने सुझाया कि जब ऐसे सांस्कृतिक पक्ष का औचित्य नहीं रह जाता तो उन्हें परिवर्तित किया जाना चाहिए। उन्होंने इस्लाम की सुरक्षा की भी बात की, विशेषकर सितंबर ११वीं घटना के बाद से। वे इस आलोचना को, कि इस्लाम स्वाभाविक रूप से आतंकवादी है और यह सुझाव कि हम सभ्यताओं के संघर्ष का सामना कर रहे हैं, वास्तविक स्थिति को गलत रूप से समझना मानते हैं। उन्होंने मुसलमान मित्रों को उद्धृत किया जिन्होंने उन्हें बताया है कि जो कोई दूसरे का खून बहाता है वह सच्चा मुसलमान नहीं है और यह कि जिहाद दूसरों के साथ संघर्ष से नहीं अपितु अपने क्लेशों से संघर्ष है। उन्होंने वहाँ आने और बैठक को संभव करने के लिए प्रतिनिधियों और आयोजकों को धन्यवाद दिया।

दीवान सैयद जैनुल आबदीन हिंदी में बोले, परम पावन से सहमति जताते हुए कि भारत एक अनुकरण करने योग्य देश है जहाँ विभिन्न आस्थाओं के लोग साथ साथ सद्भाव से रहते हैं।

चाय के अंतराल के पश्चात, बैठक युवा नेताओं के लिए खोली गयी और उन्हें अपने अनुभवों को साझा करने अथवा प्रश्न पूछने के लिए आमंत्रित किया गया, जिनके उत्तर परम पावन ने दिए। उन्होंने उल्लेख किया कि जहाँ २०वीं सदी की पीढ़ी के सदस्य जिससे उनका संबंध है, ने तरह तरह की समस्याएँ खड़ी कर दी हैं, यह २१वीं सदी की पीढ़ी का उत्तरदायित्व बनता है कि उन्हें ठीक करें। परन्तु उन्होंने कहा कि यदि वे इस समय प्रारंभ करें तो शताब्दी के अंत तक विश्व के एक अधिक शांतिपूर्ण स्थान बनने की संभावना है। एक महत्वपूर्ण कारक चित्त और भावनाओं की बेहतर समझ को शामिल करने के लिए शिक्षा को सुधारने और व्यापक बनाने का होगा। उन्होंने टिप्पणी की, कि एक शांत चित्त के होने से सामान्य ज्ञान को काम में लाना अपेक्षाकृत सरल हो जाता है।

उन देशों के प्रयासों के प्रति सराहना व्यक्त करते हुए जिन्होंने वर्तमान युद्ध और विनाश से पलायन करते शरणार्थियों की ओर सहायता बढ़ाई है, परम पावन ने दोहराया कि वास्तविक दीर्घकालिक समाधान उन राष्ट्रों में शांति पुर्नस्थापित करना है जहाँ से वे पलायन कर रहे हैं। उस ओर पहला कदम एक संघर्ष विराम को प्राप्त करना है, जिसके पश्चात प्रतिस्पर्धा करने वाले पक्षों को आपसी बातचीत के लिए प्रोत्साहित करना होगा।

"एक बौद्ध भिक्षु और नालंदा परम्परा के छात्र के रूप में," परम पावन ने कहा, "मुझे तर्क का उपयोग करने के लिए, मेरी मानव बुद्धि को काम में लाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। विश्लेषण समस्याओं को हल करने का एक शक्तिशाली उपाय है। अमेरिकी मनोवैज्ञानिक हारून बेक ने मुझे बताया कि दूसरी ओर जब हम किसी वस्तु अथवा किसी पर क्रोधित होते हैं, तो हमारे क्रोध की वस्तु पूरी तरह से नकारात्मक लगती है। पर फिर भी उस भावना का ९०% हमारे अपने मानसिक प्रक्षेपण का परिणाम है। हमारे समक्ष दृश्य और वास्तविकता के बीच एक अंतर है। हम वास्तविकता पर दृश्य को ग्राह्य करने का प्रयास करते हैं।"

परम पावन ने बैठक में सम्मिलित हुए सभी का धन्यवाद करते हुए, उन्हें बताते हुए कि विश्व के विभिन्न भागों में, संकट भरे और कठिन परिस्थितियों में युवा नेताओं की गतिविधियों के बारे में सुनकार उन्हें बहुत प्रोत्साहन मिला था। कल प्रातः बैठक पुनः प्रारंभ होगी। 

  • सभी सामग्री सर्वाधिकार © परम पावन दलाई लामा के कार्यालय

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