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दक्षिण पूर्व एशियाइयों के लिए 'बुद्धपालित' पर प्रवचनों का अंतिम दिन September 4, 2017

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थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत - परम पावन दलाई लामा द्वारा किए जा रहे बोधिचित्तोत्पाद अनुष्ठान के कारण समारोह के लिए सिंहासन व चुगलगखंग के स्तंभ गेंदों की मालाओं से अलंकृत थे। आगमन पर जब परम पावन ने अपना आसन ग्रहण कर लिया, तो साघारण लोगों के एक छोटे समूह ने उनके समक्ष बैठकर, इस मन्दिर में प्रथम बार इंडोनीशियाई भाषा में 'हृदय सूत्र' का सस्वर पाठ किया। फिर एक बार पुनः इस सूत्र का पाठ सिंगापुर की एक भिक्षुणी ने बड़े ही मोहक स्वर में किया।

जैसा वे सदैव करते हैं भोट भाषा में पाठ करते हुए, परम पावन ने 'प्रज्ञा पारमिता स्तुति', 'अभिसमयालंकार' से वंदना के छंद तथा नागार्जुन के 'मूलमध्यमकारिका' से वंदना का एक छंद दोहराया:
 
उस सम्बुद्ध को प्रणाम करता हूँ,
शास्ताओं में श्रेष्ठ, जिसने प्रतीत्य समुत्पाद,
अनिरोध, अनुत्पाद,
अनुच्छेद, अशाश्वत,
अनागम, अनिर्गम,
अनेकार्थ, अनानार्थ,
प्रपञ्च उपशम, शिव की देशना दी है।

 
"इस अवसर पर आज हमारी शिक्षा का अंतिम दिन है," परम पावन ने घोषित किया "और हमारा संबंध मुख्य रूप से बोधिचित्त समारोह से होगा।

"धर्म का उद्देश्य-और सभी धार्मिक शिक्षाओं का उद्देश्य सुख की प्राप्ति है सुख व दुःख दोनों के मूल हमारे चित्त में हैं। और ठीक जिस तरह हमें स्वस्थ रहने के लिए शारीरिक स्वच्छता का पालन करने की आवश्यकता होती है, उसी तरह यदि हम सुखी रहना चाहते हैं तो हमें चित्त के प्रकार्य को समझने और भावनात्मक स्वच्छता बनाए रखने की आवश्यकता है।
 
"मैत्रेय ने कहा कि अभ्यास जो दुर्गति को अस्तित्वों को बंद कर देता है, वह बोधिचित्त है। दूसरों का अहित करना इस तरह के लोकों में जन्म लेने का कारण है और जब हममें बोधिचित्त होता है तो हम स्वयं को नियंत्रण में रखते हैं। जहाँ श्रावक निर्वाण की शांति तक पहुंचने के लिए व्याकुल करने वाली भावनाओं और उनके परिणामों से बचते हैं, बोधिसत्व सभी सत्वों के लिए प्रबुद्धता का उद्देश्य रखते हैं। वे यथार्थ और वस्तु की प्रकृति को समझने वाली प्रज्ञा का विकास करते हैं और पर कल्याण को पूरा करने का उत्तरदायित्व लेते हैं।"

परम पावन ने शांतिदेव के 'बोधिसत्वचर्यावतार' से एक उद्धरण प्रस्तुत किया:

यदि मैं अपने सुख आदान-प्रदान नहीं करता
दूसरों के दुखों के लिए,
मैं बुद्धत्व की स्थिति को प्राप्त नहीं हूँगा
और भव चक्र में भी कोई आनन्द न होगा।

 
"अति आत्म-केंद्रित व्यवहारों से प्रेरित होकर हम दुर्भाग्य से हताश हो गए हैं, जिनमें दुर्गति भी सम्मिलित है। दूसरी ओर, बोधिचित्तोत्पाद से अस्थायी और परम सुख प्राप्त होता है। जो भी हो सौहार्दता से लाभ प्राप्त होता है फिर चाहें हम धार्मिक हों अथवा नहीं। अपने 'पथक्रम अनुभव के गीत' में जो चोंखापा ने बोधिचित्त का वर्णन इस तरह किया है:
 
"बोधिचित्तोत्पाद परम यान का केंद्रीय अक्ष है;
यह सभी उदार चर्या का आधार व प्रतिष्ठा है;
सभी संभार द्वय में रसायन की तरह है;
असंख्य शुक्लगण एकत्रित करने वाला पुण्य निधि है
इस प्रकार जानकर वीर बोधिसत्व
इस रत्न परम चित्त को अपने अभ्यास के मूल के रूप में धारण करते हैं,
योगी मैं भी इस तरह अभ्यास करता हूँ
आप मोक्ष अभिलाषी भी इसी भांति करना चाहिए।"

परम पावन ने टिप्पणी की, कि जहाँ लोग जो दूसरों का शोषण, धौंस जमाते हैं वे असहज होते हैं, सौहार्दता वाले शांतिपूर्वक रहते हैं। उन्होंने टिप्पणी की कि बोधिचित्त में शून्यता का पूरक होना चाहिए और इसे अपने अंदर विकसित करना महत्वपूर्ण है।
 
अपनी 'रत्नावली' में, नागार्जुन उन अभ्यासों की रूपरेखा देते हैं जो अभ्युदय या सुगति और तथा नैश्रेयस या प्रबुद्धता को जन्म देते हैं। बुद्धत्व सरलता से एक ही जीवन काल में नहीं प्राप्त होता, इसके लिए क्रमशः एक व्यापक समय तक अभ्यास की आवश्यकता होती है। नागार्जुन स्पष्ट करते हैं कि क्या करना हैः

अहिंसा, चोरी से विरत
पर संगी का वर्जन करना
मिथ्या से बच कर रहना,
पैशुन्य, कटु वचन तथा असंबद्ध वाक्,
 
लोभ, व्यापाद, हानिकारक उद्देश्य
तथा नास्तिकों की दृष्टि
यह कर्म पथ के दस प्रकाश हैं
इनके विपरीत के अंधकार हैं
 
अमद्यपान, सज्जीविका,
अहिंसा, आदर सहित दान देना
माननीयों का सम्मान और मैत्री
संक्षिप्त में यही अभ्यास है

 
परम पावन ने दोहराया कि जीवन को सार्थक बनाने का उपाय सौहार्दता को विकसित करना है। उन्होंने कहा कि जब एक डॉक्टर सुझाता है कि हम आराम करें और चीजों को आसानी से देखें तो इसका अर्थ यह नहीं कि हम मात्र शरीर से आराम करें - उनका अर्थ होता है कि हमारे चित्त भी सहज होने चाहिए।
 
उन्होंने टिप्पणी की, कि "सभी धार्मिक परम्पराएँ सौहार्दता का महत्व रखती हैं और सराहना करती हैं।" यहाँ तक कि जानवर भी सच्चे प्रेम की अभिव्यक्ति के प्रति संवेदनशील होते हैं। आप जो भी कार्य करें, उसे दूसरों की सहायता के लिए काम में ला सकते हैं - और इससे उनको व आपको दोनों को ही लाभ होगा। मुख्य बात नित्य प्रतिदिन के आधार पर सौहार्दता विकसित करना है।"

तत्पश्चात परम पावन ने बोधिचित्तोत्पाद हेतु एक औपचारिक अनुष्ठान किया। इसमें थोड़े समय के लिए बाधा उत्पन्न हुई जब श्रोताओं में से एक को मिरगी का दौरा पड़ा। दो चिकित्सकों ने उसकी देख रेख की और वह शीघ्र ही ठीक हो गया।
 
जैसे ही सत्र समाप्त होने को आया, सभी १५०० एशियाई बौद्धों के लिए परम पावन के सान्निध्य में उनके साथ तसवीरें खिंचवाने के लिए छोटे समूहों में एकत्रित होने की व्यवस्था की गई। परम पावन ने टिप्पणी की, कि वे सोच रहे थे कि क्या वे बुद्धपालित के ग्रंथ के सातवें अध्याय को पढ़ने में सक्षम हो पाएंगे, पर समय समाप्त हो गया था। "हम आने वाले वर्षों में इसका पाठ निरंतर रखेंगे," उन्होंने कहा।

  • सभी सामग्री सर्वाधिकार © परम पावन दलाई लामा के कार्यालय

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