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माइंड एंड लाइफ सम्मेलन - तीसरा दिन March 14, 2018

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थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा माइंड एंड लाइफ सम्मेलन के तीसरे दिन के प्रारंभ में बैठे तो आज के संचालक रिचर्ड डेविडसन ने उनसे पूछा कि वे कितनी देर सोए। उन्होंने उत्तर दिया, "नौ घंटे," और अरुणाचल प्रदेश में एक राजनीतिक नेता की कहानी बताने लगे जिसने उनसे यही प्रश्न पूछा था। परम पावन ने उन्हें बताया कि वे नौ घंटे सोए और वह प्रातः ३ बजे ध्यान करने हेतु उठे ताकि वे लोगों को बेहतर ढंग से धोखा देने के िलए अपने चित्त को प्रखर कर सकें। राजनेता हँसे और उत्तर दिया कि चूंकि वह मात्र छह घंटे सोते थे तो स्पष्ट रूप से वे लोगों को धोखा देने में सक्षम न थे।  

परम पावन दलाई लामा मुख्य तिब्बती मंदिर में माइंड एंड लाइफ सम्मेलन के तीसरे दिन के प्रारंभ में एक कहानी का स्मरण करते हुए, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, मार्च १४, २०१८ चित्र/तेनज़िन छोजो

डेविडसन ने कहा कि पहले दिन एसईईएल के पीछे आधारभूत विज्ञान के बारे में सुनने के उपरांत और कल, कार्रवाई में इस तरह के उदाहरणों को देखते हुए, आज और कल इन कार्यक्रमों के महत्वपूर्ण घटकों पर ध्यान दिया जाएगा। उन्होंने अमीशी झा और सोना दिमिद्जियन का परिचय कराया जो अपने कार्य में मेत्ता-सम्प्रजन्यता और ध्यान देने के प्रशिक्षण के बारे में बात करेंगी और आगे कहा कि थुबतेन जिनपा एक बौद्ध परिप्रेक्ष्य से इन विषयों का मूल्यांकन करेंगे।  

अमीशी झा ध्यान और मेत्ता-सम्प्रजन्यता पर शोध करती हैं। एक सामान्य उदाहरण, किसी को पुस्तक पढ़ने का उद्देश्य है। वे पढ़ना प्रारंभ करते है, पर एक समय आता है जब उन्हें अनुभूत होता है कि उनका चित्त भटक गया है और वे वास्तव में ध्यान नहीं दे रहे हैं। यह अनुभूति वास्तव में मेत्ता-सम्प्रजन्यता का एक उदाहरण है, उनकी चेतना की वर्तमान विषय के बारे में स्पष्ट रूप से जागरूकता। ध्यान किसी वस्तु के चयन और उस वस्तु के अधिमान्य प्रसंस्करण की अनुमति देता है। यह एक अंधेरे कमरे में एक मशाल के चमकने जैसा है। इसे एक वस्तु से दूसरे पर स्थानांतरित किया जा सकता है और इसके भीतर और बाहर भी ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।  

मुख्य तिब्बती मंदिर में माइंड एंड लाइफ सम्मेलन के तीसरे दिन अमीशी झा मेत्त-जागरूकता तथा एकाग्रता प्रशिक्षण पर बोलती हुईं, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, मार्च १४, २०१८ चित्र/तेनज़िन छोजोर

झा ने ध्यान तथा मेत्ता-सम्प्रजन्यता को मापने के प्रयोगों को प्रस्तुत किया जिसमें एक चेहरे और एक घर का चित्र एक दूसरे पर आरोपित है जिसमें प्रतिभागी को किसी एक पर ध्यान देने के लिए कहा जाता है और उससे संबंधित प्रश्नों के उत्तर देने हेतु कहा जाता है। एक अन्य में चेहरे की एक उबाऊ श्रृंखला को चेहरे के सामने लाने की थी जिसमें बीच बीच में एक उल्टा चेहरा दिखाया गया। यदि प्रतिभागी ध्यान दे रहा है तो वह उल्टा चेहरा देखकर संकेत करने हेतु एक बटन दबा सकता है, अन्यथा यह दिखाता है कि उसका चित्त भटक गया है।  

परम पावन ने टिप्पणी की कि मानसिक विचार और धारणा के बीच एक स्पष्ट अंतर है। पशुओं में प्रखर ऐन्द्रिक धारणा हो सकती है, परन्तु चिन्तन में मनुष्य बेहतर होता है।  

"जब हम चेतना के बारे में बात करते हैं तो हमें वैचारिक और ऐन्द्रिक अवधारणात्मक स्तरों के बीच भेद करना पड़ता है," उन्होंने कहा। "जब आप गंभीरता से चिन्तन कर रहे होते हैं तो आप अपने अवधारणात्मक अनुभव पर ध्यान नहीं देता। इसके बारे में हमें लोगों को शिक्षित करना है। चेतना के विभिन्न स्तरों की एक गहन समझ की आवश्यकता है। यदि आप चेतना के ऐन्द्रिक और मानसिक स्तरों के बीच अंतर नहीं करते तो यह भ्रम की ओर जाता है। यही कारण है कि मैं कभी-कभी सुझाता हूँ कि चित्त की कार्यप्रणाली की प्राचीन भारतीय समझ आधुनिक पश्चिमी मनोविज्ञान की तुलना में बहुत प्रारंभिक स्तर पर है।"  

मुख्य तिब्बती मंदिर में माइंड एंड लाइफ सम्मेलन के तीसरे दिन परम पावन दलाई लामा अमीशी झा की प्रस्तुति के दौरान उनके साथ अनुभूति की चर्चा करते हुए, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, मार्च १४, २०१८ चित्र/तेनज़िन फुनछोग

अमीशी झा ने टिप्पणी की कि ध्यान देने की क्षमता, चित्त प्रशिक्षण का एक महत्वपूर्ण तत्व है। परन्तु एक सामान्य स्तर पर जब हमारा चित्त भटकता है उसकी पहचान की हमारी क्षमता बहुत खराब है।  

सोना दिमिद्जियन ने नैदानिक संदर्भ में चित्त प्रशिक्षण के अपने कार्य की बात की। वे विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं तथा प्रसव के तुरंत बाद की माताओं में अवसाद को रोकने और राहत देने का प्रयास करती हैं। यह स्वीकार किया जाता है कि माँ के शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाता है, परन्तु उनका मानसिक स्वास्थ्य भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह पाया है कि जो माइंडफुलनेस बेस्ड कॉगनिटिव थेरेपी (एमसीबीटी) के साथ जुड़े हैं वे सामान्य देखभाल में रहने वालों की तुलना में बेहतर स्थिति में रहते हैं।  

मुख्य तिब्बती मंदिर में माइंड एंड लाइफ सम्मेलन के तीसरे दिन सोना दीमिद्जियन नैदानिक संदर्भ में चित्त प्रशिक्षण पर अपने कार्य के बारे में बात करती हुईं, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, मार्च १४, २०१८ चित्र/तेनज़िन छोजोर

परम पावन ने कहा कि जब कोई नैराश्य में डूबा होता है तो सुंदर दृश्यों का संपर्क भी उनमें रूचि पैदा करने में असफल होता है। दूसरी ओर जिनमें करुणा का अभ्यास तथा शून्यता की समझ के कारण चित्त में शांति और आंतरिक स्थिरता होती है, वह सरलता से निराश नहीं होते।  

दिमिद्जियन ने बताया कि जो लोग अवसाद की स्थिति में होते हैं वे उसकी वापसी को रोकने को लेकर आतुर होते हैं तथा जागरूकता प्रशिक्षण को लेकर उत्साह रखते है जिसमें शारीरिक गतिविधि फिर मानसिक गतिविधि, फिर कठिन विचार पर ध्यान देना शामिल है। इस संबंध में मेत्ता-सम्प्रजन्यता में बिना कोई पहचान किए, बिना अन्यमनस्कता के, पर दया भावना के साथ विचारों तथा भावनाओं के प्रति जागरूकता पैदा करना है। मेत्ता-सम्प्रजन्यता आत्म-सम्मान की अनुमति देता है, स्वयं के साथ दया भावना से व्यवहार करना के लिए, यह समझने के लिए कि आप आपके विचार नहीं हैं और चीजों को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य से देखने के लिए।  

मुख्य तिब्बती मंदिर में माइंड एंड लाइफ सम्मेलन में भाग ले रहे ३०० से अधिक अतिथियों में से कुछ परम पावन दलाई लामा को टीवी परदों पर देखते हुए, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, मार्च १४, २०१८ चित्र/तेनज़िन छोजोर

परम पावन ने पुनः शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की तुलना की। यदि आपका शारीरिक स्वास्थ्य मूल रूप से ठीक है तो आप वायरल संक्रमण का विरोध कर सकते हैं। इसी तरह यदि आपका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा है, तो नकारात्मक विचार या अनुभव आपके मनोबल को कम नहीं करेंगे। चूंकि बहुत से लोग वैज्ञानिकों पर विश्वास करते हैं, इसलिए उनका उत्तरदायित्व बनता है कि वे आम लोगों को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की आवश्यकता को समझने में सहायता करें।  

चाय के अंतराल के उपरांत, थुबतेन जिनपा ने ध्यान और मेत्ता-सम्प्रजन्यता के बौद्ध परिप्रेक्ष्य पर बोलने हेतु अनुवादक के रूप में अपनी भूमिका को पृथक किया। उन्होंने अपने स्रोत के लिए शांतिदेव के 'बोधिसत्वचर्यावतार' के पञ्चम अध्याय सम्प्रजन्य रक्षण का चयन किया। उन्होंने कहा कि शांतिदेव अपने विहारवासी सहयोगियों के लिए परोपकारिता पर आधारित जीवन का पालन करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने में रुचि रखते थे। वह एक अन्य स्रोत सतिपत्थान सुत्त का उल्लेख करने ही वाले थे, जब परम पावन ने बीच में टोका:  

"बुद्ध स्वयं चित्त प्रशिक्षण देने की भारतीय परम्पराओं से उभरे। उन्होंने तप का अभ्यास करने हुए छह वर्ष बिताए, पर वह केवल उपवास ही नहीं कर रहे थे, वह गहन ध्यान में भी रत थे  उन्होंने उन अभ्यासों का पालन किया जो उनके पूर्व संभवतः हजारों वर्षों से चले आ रहे थे। आजकल मैं स्वयं को प्राचीन भारतीय विचारों का एक दूत मानता हूँ, जो कई रूपों में बुद्ध से अधिक महान परंपरा थी।"  

मुख्य तिब्बती मंदिर में माइंड एंड लाइफ सम्मेलन के तीसरे दिन थुबतेन जिनपा और परम पावन दलाई लामा बौद्ध परिप्रेक्ष्य से ध्यान तथा मेत्ता जागरूकता के एक बिंदु पर चर्चा करते हुए, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, मार्च १४, २०१८ चित्र/तेनज़िन छोजोर

जिनपा ने स्पष्ट किया कि बौद्ध परंपरा में स्मृति एक योग्यता है जो एक चुनी वस्तु पर ध्यान बनाए रखने की अनुमति देता है, जबकि मेत्ता-सम्प्रजन्यता में काय व चित्त के भीतर चल रही प्रक्रियाओं को देखना शामिल है। उन्होंने शांतिदेव के अनुरोध को उद्धृत करते हुए कहा:  

२३
आप में से सब जो चित्त रक्षा करें,
अपनी स्मृति व सम्प्रजन्यता बनाए रखें;
अपने जीवन व शरीर के अंग की कीमत पर उन दोनों की रक्षा करें
मैं अञ्जलिबद्ध होकर आपसे प्रार्थना करता हूँ।

स्पष्ट उद्देश्य स्मृति तथा मेत्ता-सम्प्रजन्यता को व्यवहृत कर चित्त की रक्षा कर नैतिक नियमों की रक्षा करना है।  ;

शान्तिदेव मेत्ता-सम्प्रजन्यता को इस तरह परिभाषित करते हैं:  

१०८
अपने काय व चित्त की स्थिति व कर्मों का
बार बार प्रत्यवेक्षण कर
मात्र यही संक्षेप में परिभाषित करता है
सम्प्रजन्यता की स्थिति

स्मृति को सदैव रक्षा करने के लिए रहना चाहिए  

३३
जब स्मृति एक प्रहरी के रूप में
चित्त की दहलीज पर एक पहरेदार की तरह तैनात है
तो अनायास सम्प्रजन्यता भी उपस्थित होता है
और स्मृति भंग होने या हटाए जाने पर लौटता है

यदि आप चित्त के द्वार की रक्षा करते हैं तो आप अपने व्यवहार को नियमित कर सकते हैं। सफल होने के लिए दो तत्वों की आवश्यकता होती है सम्प्रजन्यता तथा आत्म सम्प्रजन्यता की निगरानी रखना। एक स्मृति की स्थिति है और अन्य इसके परिणाम की। जिनपा ने सुझाव दिया कि मनोविज्ञान और मेत्ता-सम्प्रजन्यता के विकास में चिंतनशील परम्पराओं और विज्ञान के बीच सार्थक सहयोग के लिए एक स्पष्ट अवसर है।  

मुख्य तिब्बती मंदिर में माइंड एंड लाइफ सम्मेलन के तीसरे दिन परम पावन दलाई लामा, साथी प्रतिभागी और अतिथियों का एक विहगंम दृश्य, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, मार्च १४, २०१८ चित्र/तेनज़िन छोजोर

बाद में एक स्वतंत्र चर्चा के दौरान, जिसमें परम पावन ने टिप्प्णी की कि न केवल जब आप शमथ का विकास करते हैं तो स्मृति की आवश्यकता होती है पर विपश्यना ध्यान बनाए रखने में भी आवश्यक है, अमीशी झा ने पूछा, "पहली बात तो चित्त भटकता क्यों है?" उन्होंने एक पल के लिए सोचा और उत्तर दिया, "एक स्पष्टीकरण है - वह बस वैसा ही है," जिससे प्रशंसात्मक हँसी फैल गई। चिंतन के उपरांत उन्होंने आगे कहा कि यह, उदाहरण के लिए, बुद्धिमानी और घुमक्कड़ जिज्ञासा का परिणाम हो सकता है।  

सत्र संपन्न हुआ। परम पावन घर लौटे और वे पुनः कल आएंगे।

  • सभी सामग्री सर्वाधिकार © परम पावन दलाई लामा के कार्यालय

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