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धर्म निरपेक्षता सभी धर्मों का सम्मान करना है – दलाई लामा तथा जे पी वासवानी ने कहा ३१/जुलाई/२०१३

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२९ जुलाई २०१३ - धर्म निरपेक्षता एक ईश्वर की तुलना में अन्य ईश्वर का पक्ष लेना नहीं, अपितु संपूर्ण मानवता में स्थित एक परम शक्ति स्वरूप के विश्वास का प्रकट रूप है, आध्यात्मिक नेता परम पावन दलाई लामा तथा दादा जे पी वासवानी बोले, जब वे दोनों दादा वासवानी के ९५वें जन्म दिवस के एक सप्ताह समारोह कार्यक्रम के पहले िदन रविवार को साथ ही मंच पर आए।

अभिनेता आमिर खान की मेज़बानी में हुई इस चर्चा में दोनों नेताओं ने आध्यात्मिक उत्साह से भरे श्रोताओं को प्रेरित किया कि सुख पाने के लिए वे प्रेम, करुणा और क्षमा के मार्ग  का पालन करें।


परम पावन दलाई लामा, श्रद्धेय दादा जे पी वासवानी तथा आमिर खान  साधु वासवानी मिशन में पारस्परिक वार्तालाप सत्र के दौरान, पुणे, महाराष्ट्र, भारत - जुलाई २८,२०१३    चित्र/तेनज़िन छोजोर/ओ ओ एच डी एल
दलाई लामा ने लीन श्रोताओं से बच्चों में अल्पायु से ही नैतिक मूल्य और नैतिकता भरने का आग्रह किया जो उन्हें सभी धर्मों और सभी मनुष्यों के प्रति सम्मान रखने की भावना से सशक्त करेगा। “धर्म निरपेक्षता का अर्थ सभी धर्मों का सम्मान करना है। व्यक्ति ईश्वर में विश्वास न रखते हुए भी धर्म निरपेक्ष हो सकता है। बच्चों को सही मूल्यों की शिक्षा देकर हम एक अनुचित कार्य और कर्ता के बीच के अंतर के प्रति उन्हें सशक्त कर सकते हैं,” मानवता की सेवा ईश्वर की प्रार्थना का सबसे परम रूप है, उन्होंने आगे कहा।

“समूचे विश्व के लिए भारत हमेशा से इस बात का प्रमाण रहा है कि विभिन्न धर्मों का बिना किसी संघर्ष के सह अस्तित्व संभव है। मैं स्वयं को उस अहिंसा का संदेश वाहक मानता हूँ जिसे भारत ने सदैव परिपुष्ट किया है,” वे बोले।

इसी प्रकार का संदेश दादा वासवानी का भी था जिन्होंने एकत्रित जन मानस से क्षमा के मार्ग में कार्य और उसके स्रोत में अंतर स्पष्ट करने का आग्रह किया। जब उनसे २०१४ के लोक सभा चुनाव के पूर्व देश के लिए सलाह को लेकर प्रश्न किया गया तो दादा वासवानी ने कहा कि एक साथ आगे आने के अतिरिक्त दलीय राजनीति में कोई संभावना नहीं है। “सरकारें आती जाती हैं, पर परिस्थितियाँ वैसी की वैसी बनी रहती हैं। सही अर्थों में परिवर्तन तभी आएगा जब सभी राजनैतिक दल साथ मिलकर लोगों के उत्थान के लिए कार्य करें,” वे बोले।

यह समझाते हुए कि राजनीति समुदाय में भेद पैदा करती है, वासवानी ने कहा कि किसी समुदाय का भाग बनने के बजाय ईश्वर में विश्वास कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। “यदि ऐसा विश्वास रहा कि ऐसी कोई परम शक्ति है जो समूची मानवता पर दृष्टि बनाए है, तो कोई भी अनुचित कार्य नहीं करेगा,” उन्होंने कहा।


परम पावन दलाई लामा, श्रद्धेय दादा जे पी वासवानी तथा आमिर खान के साधु वासवानी मिशन में पारस्परिक वार्तालाप सत्र में भाग ले रहे लगभग पाँच हज़ार से भी अधिक लोग, पुणे, महाराष्ट्र, भारत - जुलाई २८, २०१३     चित्र/अश्विन झंगियानी
५००० सशक्त श्रोता, जो दोनों आध्यात्मिक नेताओं को आमिर खान के साथ पारस्परिक वार्तालाप करते सुनने आए थे, को निराश न होना पड़ा क्योंकि प्रेम और करुणा पर अपने विचार रखते हुए तीनों ने कुछ हलके फुलके क्षण भी दर्शकों के साथ बाँटे।

जहाँ दादा वासवानी ने स्वीकार किया कि अपने युवावस्था में वे भी प्रेम की भावना से परिचित हुए थे, दलाई लामा ने कहा कि वैवाहिक संबंध में सुख के लिए शारीरिक आकर्षण के स्थान पर मनुष्य के आंतरिक सौंदर्य की पहचान आवश्यक है।

दो घंटे की चर्चा को समाप्त करते हुए आमिर खान ने श्रोताओं से प्रतिस्पर्धा में भी करुणा बनाए रखने और अपने विरोधी को भी एक मनुष्य के रूप में देखने का आग्रह किया।

दोपहर को आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कहा कि भारतीयों को अपने दो प्राचीन मूल्यों अहिंसा और धार्मिक समन्वयता का परम्परा का अभ्यास करना चाहिए। वे वादगाँव शिन्दे स्थित शिवाजी महाराज म्यूज़ियम ऑफ इंडियन हिस्ट्री में तिब्बती मंडप के उद्घाटन के अवसर पर बोल रहे थे। तिब्बती मंडप,  पिछले ६० वर्षों की तिब्बतियों की पीड़ा से संबंधित  पुस्तकों और चित्रों की प्रदर्शनी है। दलाई लामा ने कहा कि ये दो ऐसी चीज़ें हैं जो आज के विश्व में भी प्रासंगिकता रखती है और इसलिए भारत को देश के अंदर इनका अभ्यास करना चाहिए और बाद में इसका प्रसार विश्व में करना चाहिए। “महान नेता जैसे महात्मा गाँधी, नेलसन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग ने भी भारत की अहिंसा का पालन किया क्योंकि यह सत्य की शक्ति और बल का संकेत है।”


परम पावन दलाई लामा शिवाजी महाराज म्यूज़ियम ऑफ इंडियन हिस्ट्री में नए तिब्बती मंडप के उद्घाटन समारोह पर बोलते हुए, पुणे, महाराष्ट्र, भारत - जुलाई २८,२०१३     चित्र/तेनज़िन छोजोर/ओ ओ एच डी एल
वे भारत तिब्बत के संबंधों पर भी बोले और कहा कि यह एक गुरु और उसके शिष्य के समान है, जहाँ भारत गुरु है और तिब्बत उसका शिष्य। दलाई लामा ने कहा “तिब्बत ने ७ अथवा ८ शताब्दी में भारत से बौद्ध धर्म ग्रहण किया और उसके मूल्यों को उसी रूप में बनाए रखा है।”  उन्होंने कहा कि इस विश्व में सभी मनुष्य एक हैं। जात पाँत, रंग, कुल आदि के अनावश्यक भेद मनुष्य द्वारा निर्मित हैं जो कि समस्याओं को जन्म दे रहे हैं।  “अगर यह अंतर निर्मित न होते तो समस्त विश्व में शांति छाई होती। यह भेद मानव निर्मित हैं और ईश्वर भी असहाय हैं।”

इस बीच शिव सेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने, दारा शिकोह, एक सूफी संत पर एक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। उनके पुत्र आदित्य ठाकरे तथा स्वामी सद्योजता भी उपस्थित थे। यह निजी संग्रहालय लाभ-निरपेक्ष न्यास फॉक्ट की उत्पत्ति है, जिसके संस्थापक फ्रानकोइ गाउटियर हैं।

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