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परम पावन दलाई लामा का तिब्बती राष्ट्रीय क्रांति दिवस की ५२ वीं वर्षगांठ पर वक्तव्य

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आज १९५९ में तिब्बती राजधानी ल्हासा में साम्यवादी चीन द्वारा किए गए दमन के विरोध में तिब्बती लोगों की शांतिपूर्ण क्रांति की ५२ वीं वर्षगांठ और २००८ में तिब्बत में हुए अहिंसक प्रदर्शनों की तीसरी वर्षगांठ का स्मरण दिवस है। इस अवसर पर, मैं उन वीर पुरुषों और महिलाओं के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करना चाहता हूँ जिन्होंने तिब्बत के न्यायोचित मुद्दे के लिए अपना जीवन समर्पित किया। मैं उन लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करता हूँ जो निरंतर दमन सहन कर रहे हैं और सभी सत्वों के कल्याण के लिए प्रार्थना करता हूँ।

परम पावन दलाई लामा मुख्य तिब्बती मंदिर में तिब्बती राष्ट्रीय क्रांति दिवस की ५२ वीं वर्षगांठ पर अपना वक्तव्य पढ़ते हुए, मार्च ३,२०११ धर्मशाला, हि.प्र. भारत (चित्र द्वारा तेनज़िन छोजोर/ओएचएचडीएल)

साठ वर्षों से भी अधिक समय से स्वतंत्रता से वंचित होने और भय और असुरक्षा में रहने के बावजूद तिब्बती अपनी अनूठी तिब्बती अस्मिता और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने में सक्षम रहे हैं। अधिक परिणामस्वरूप, आने वाली नई पीढ़ियों, जिन्हें मुक्त तिब्बत का कोई अनुभव नहीं है, ने तिब्बत के मुद्दे को आगे बढ़ाने में साहसपूर्वक उत्तरदायित्व लिया है। यह प्रशंसनीय है, क्योंकि वे तिब्बती शक्ति के लचीलेपन का उदाहरण हैं।

यह पृथ्वी मानवता से संबंधित है और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) का संबंध उसके १.३ अरब नागरिकों से है, जिनको उनके देश में मामलों की स्थिति और व्यापक स्तर पर विश्व के बारे में सत्य जानने का अधिकार है। यदि नागरिक पूरी तरह से जानकारी रखें तो उनमें गलत से सही में भेद करने की क्षमता होती है। सेंसरशिप और सूचना का प्रतिबंध बुनियादी मानव सभ्यता का उल्लंघन करता है। उदाहरण के लिए,चीन के नेता साम्यवादी विचारधारा और इसकी नीतियों को सही मानते हैं। यदि ऐसा है, तो इन नीतियों को पूरे विश्वास के साथ सार्वजनिक किया जाना चाहिए और जाँच के लिए खुला होना चाहिए।

चीन विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या लिए एक उभरती हुई विश्व शक्ति है और मैं इसके आर्थिक विकास की प्रशंसा करता हूं। इसमें मानवीय प्रगति और विश्व शांति में योगदान करने की भी बहुत बड़ी क्षमता है। पर ऐसा करने के लिए, चीन को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का सम्मान और विश्वास अर्जित करना चाहिए। ऐसे सम्मान की प्राप्ति हेतु चीन के नेताओं को अधिक पारदर्शिता का विकास करना चाहिए, उनके कार्य को उनके शब्दों के अनुरूप होने चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता आवश्यक है। इसी प्रकार प्रशासन में पारदर्शिता भ्रष्टाचार को रोकने में सहायक हो सकती है। हाल के वर्षों में, चीन ने राजनीतिक सुधार और अधिक खुलेपन की मांग करने वालों बुद्धिजीविकों की संख्या में वृद्धि देखी है। प्रीमियर वेन जियाबाओ ने भी इन चिंताओं को लेकर समर्थन व्यक्त किया है। ये महत्वपूर्ण संकेत हैं और मैं उनका स्वागत करता हूँ।

पीआरसी एक देश है जिसमें अनेक राष्ट्रीयताएँ सम्मिलित हैं जो भाषाओं और संस्कृतियों की विविधता से समृद्ध है। प्रत्येक राष्ट्रीयता की भाषा और संस्कृति का संरक्षण पीआरसी की नीति है, जो स्पष्ट रूप से इसके संविधान में अभिव्यक्त है। मात्र भोट भाषा ऐसी है जो बुद्ध की शिक्षाओं के सम्पूर्ण व्यापक रूप, जिसमें तर्कशास्त्र और ज्ञान मीमांसा पर ग्रंथ शामिल हैं, जो हमें भारत के नालंदा विश्वविद्यालय से धरोहर के रूप में प्राप्त हुआ है, को संरक्षित कर सकती है। यह ज्ञान और तर्क द्वारा शासित ज्ञान की ऐसी व्यवस्था है जिसमें सभी प्राणियों की शांति और सुख में योगदान करने की क्षमता है। अतः ऐसी संस्कृति को संरक्षित और विकसित करने की बजाय उसकी उपेक्षा करना मानवता की सामान्य विरासत के विनाश जैसा होगा।

चीनी सरकार प्रायः कहती है कि तिब्बत के दीर्घकालीन हित के लिए स्थिरता और विकास आधार है। परन्तु सत्ता ने समूचे तिब्बत में अभी भी बड़ी संख्या में सेना तैनात की है और तिब्बती लोगों पर प्रतिबंध बढ़ाया है। तिब्बती निरंतर भय और चिंता में रहते हैं। हाल ही में तिब्बतियों की आधारभूत आकांक्षाओं को व्यक्त करने के कारण कई तिब्बती बुद्धिजीवियों, सार्वजनिक लोगों और पर्यावरणविदों को दंडित किया गया है। उन्हें तथाकथित "राज सत्ता को नष्ट करने " के कारण कारागार भेजा गया है जबकि वास्तव में वे तिब्बती अस्मिता और सांस्कृतिक विरासत को अभिव्यक्त कर रहे थे। ऐसे दमनकारी उपाय एकता और स्थिरता को दुर्बल करते हैं। इसी तरह चीन में, लोगों के अधिकारों, स्वतंत्र लेखकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रक्षा वाले वकीलों को गिरफ्तार कर लिया गया है। मैं चीन के नेताओं से इन घटनाओं की समीक्षा करने और इन जागरूक बंदियों को तत्काल मुक्त करने का आग्रह करता हूँ।

चीनी सरकार का दावा है कि तिब्बत में व्यक्तिगत विशेषाधिकार और दलाई लामा की स्थिति के अतिरिक्त कोई समस्या नहीं है। वास्तविकता यह है कि तिब्बती लोगों के निरंतर दमन ने मौजूदा आधिकारिक नीतियों के खिलाफ व्यापक, गहन आक्रोश उत्पन्न किया है। जीवन के सभी क्षेत्रों के लोग प्रायः अपना असंतोष व्यक्त करते हैं। यह कि तिब्बत में एक समस्या है चीनी अधिकारियों के तिब्बतियों पर भरोसा करने या उनकी निष्ठा को जीतने की विफलता में परिलक्षित होता है। इसके बजाय तिब्बती लोग लगातार संदेह और निगरानी में रहते हैं। तिब्बत में चीनी और विदेशी यात्री इस गंभीर वास्तविकता की पुष्टि करते हैं

इसलिए, ठीक उसी तरह जब १९७० के दशकांत और १९८० के प्रारंभ में हम तिब्बत में तथ्यों - खोजी प्रतिनिधियों को भेजने में सक्षम हुए थे, हम पुनः इसी तरह की यात्राओं का प्रस्ताव रखते हैं। पर उसी के साथ हम सांसदों सहित स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय निकायों के प्रतिनिधियों को भेजने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। यदि वे यह पता लगा लें कि तिब्बत में तिब्बती खुश हैं, तो हम इसे तत्काल स्वीकार कर लेंगे।

१९५० के दशक के प्रारंभ में माओ के नेतृत्व में प्रबल यथार्थवाद की जो भावना उपस्थित थी उसने चीन को तिब्बत के साथ १७ बिंदु समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रेरित किया। इसी तरह की वास्तविकता पुनः १९८० के दशक में हू याओबाँग के समय में दिखाई दी। यदि ऐसा यथार्थ निरंतर बना रहता तो तिब्बती मुद्दा और साथ ही कई अन्य समस्याएँ सरलता से हल हो जातीं। दुर्भाग्य से, रूढ़िवादी विचारधाराओं ने इन नीतियों को पटरी से उतार दिया । परिणाम यह है कि छह दशकों से अधिक के बाद, समस्या अधिक दुःसाध्य हो गई है।

तिब्बती पठार एशिया की प्रमुख नदियों का स्रोत है। क्योंकि इसमें दो ध्रुवों के अतिरिक्त ग्लेशियर का सबसे बड़ा जमाव है, इसे तीसरा ध्रुव माना जाता है। तिब्बत में पर्यावरण गिरावट का एशिया के बड़े हिस्सों पर विशेष रूप से चीन और भारतीय उपमहाद्वीप पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा। केंद्रीय और स्थानीय सरकारों दोनों को, साथ ही साथ चीनी जनता को तिब्बती पर्यावरण के अवमूल्यन की अनुभूति होनी चाहिए और उसे सुरक्षित रखने के लिए स्थायी उपाय विकसित करना चाहिए। मैं चीन से तिब्बती पठार पर पर्यावरणीय स्थिति के कारण होने वाले प्रभावित लोगों के अस्तित्व को ध्यान में रखने की अपील करता हूँ।

तिब्बत के मुद्दे को सुलझाने के हमारे प्रयासों में, हमने लगातार पारस्परिक रूप से लाभकारी मध्यम मार्ग दृष्टिकोण का पालन किया है, जो पीआरसी के भीतर तिब्बती लोगों के लिए सच्ची स्वायत्तता चाहता है। चीनी सरकार के संयुक्त मोर्चा कार्य विभाग के अधिकारियों के साथ हमारी बातचीत में हमने स्पष्ट रूप से तिब्बती लोगों की आशाओं और आकांक्षाओँ को समझाया है। हमारे उचित प्रस्तावों पर किसी भी सकारात्मक प्रतिक्रिया के अभाव से हम सोचने लगते हैं कि क्या ये बातें उच्च अधिकारियों को पूरे और सही रूप से बताई गईं थीं।

प्राचीन काल से ही तिब्बती और चीनी लोग पड़ोसियों के रूप में रहते आए हैं थे। यह एक भूल होगी यदि हमारे अनसुलझे मतभेद इस पुरानी मैत्री को प्रभावित करें । विदेशों में रहने वाले तिब्बतियों और चीन के बीच अच्छे संबंधों को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे हैं और मुझे खुशी है कि इसने हमारे बीच बेहतर समझ और मैत्री के लिए योगदान दिया है।
तिब्बत के अंदर तिब्बतियों को भी हमारे चीनी भाइयों और बहनों के साथ अच्छे संबंधों को जन्म देना चाहिए। हाल के सप्ताहों में हमने उत्तरी अफ्रीका और अन्य जगहों के विभिन्न हिस्सों में स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए उल्लेखनीय अहिंसक संघर्ष देखा है। मैं अहिंसा और जन -शक्ति में दृढ़ विश्वास रखता हूँ और इन घटनाओं ने एक बार पुनः दिखाया है कि दृढ़ अहिंसक कार्रवाई वास्तव में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती है। हम सब को आशा रखनी चाहिए कि ये प्रेरक परिवर्तन इन देशों के लोगों के लिए सच्ची स्वतंत्रता, खुशी और समृद्धि ला सकते हैं।

बचपन से जो मेरी कामना रही है, वह तिब्बत के राजनैतिक और सामाजिक ढांचे में सुधार लाना है और कुछ वर्षों में जब मेरे पास तिब्बत में प्रभावशाली शक्ति थी तब मैंने कुछ मौलिक परिवर्तन करने में सफलता प्राप्त की। यद्यपि तिब्बत में मैं इसे आगे नहीं बढ़ा सका, पर निर्वासन में आने के उपरांत मैंने ऐसा करने का यथासंभव प्रयास किया है। आज, निर्वासन में तिब्बतियों के लिए चार्टर के रूपरेखा के भीतर, कालन ठिपा, राजनैतिक प्रमुख और जन प्रतिनिधि लोगों द्वारा सीधे निर्वाचित किए जाते हैं। हम निर्वासन में लोकतंत्र को लागू करने में सक्षम हुए हैं जो एक उन्मुक्त समाज के मानकों के अनुरूप है।

१९६० के दशक के प्रारंभ में ही, मैंने बार-बार बल दिया है कि तिब्बतियों को एक नेता की आवश्यकता है, जिसे तिब्बती लोगों ने निर्वाचित किया हो, जिसे मैं सत्ता सौंप सकूँ । अब, हम इसे प्रभावी रूप में लागू करने के समय पर स्पष्टतया पहुँच चुके हैं। निर्वासन में चौदहवें तिब्बती संसद के आगामी ग्यारहवीं अधिवेशन के दौरान, जो १४ मार्च से प्रारंभ होता है, मैं औपचारिक रूप से प्रस्तावित करता हूँ कि निर्वासन में तिब्बतियों के चार्टर के लिए आवश्यक संशोधन किए जाएँ जो मेरे निर्वाचित नेता को औपचारिक अधिकार देने के निर्णय को परिलक्षित करे ।

जब से मैंने अपना उद्देश्य स्पष्ट किया है मुझे तिब्बत और बाहर दोनों से बार बार अनुरोध प्राप्त हुए हैं कि मैं राजनैतिक नेतृत्व प्रदान करना जारी रखूँ। सत्ता को कम करने की इच्छा का अर्थ मेरे द्वारा उत्तरदायित्व को परे करना नहीं है। यह दीर्घ परिप्रेक्षय में तिब्बतियों को लाभान्वित करना है। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि मैं निराशा का अनुभव करता हूँ। तिब्बतियों ने मुझ पर इतना विश्वास और आस्था रखी है कि उनके ही बीच का एक होकर मैं तिब्बत के न्यायोचित मुद्दे में अपनी भूमिका निभाने हेतु प्रतिबद्ध हूँ। मुझे विश्वास है कि शनैः शनैः लोग मेरा मंतव्य समझेंगे, मेरे निर्णय का समर्थन करेंगे और तदनुसार उसे प्रभावी होने देंगे ।
मैं इस अवसर पर विभिन्न देशों के नेता, जो न्याय का सम्मान करते हैं, सांसद, बुद्धिजीवी, और तिब्बत समर्थन समूह की करुणा का स्मरण करना चाहूँगा जो तिब्बती लोगों के समर्थन में दृढ़ बने हुए हैं। विशेष रूप से, तिब्बतियों को अपने धर्म और संस्कृति को बनाए रखने और बढ़ावा देने और निर्वासन में तिब्बतियों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए लोगों और भारत सरकार की दयालुता और निरंतर सहयोग को हम सदैव याद रखेंगे। उन सभी के प्रति मैं ह्रदय से आभारपूर्ण कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ।

सभी सत्वों के कल्याण और सुख के लिए मेरी प्रार्थनाओं के साथ।

१० मार्च २०११

धर्मशाला

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