परम पावन 14 वें दलाई लामा
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वर्तमान समाज में करुणा और सम्मान १५/सितम्बर/२०१३

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प्राग, चेक गणतंत्र, सितम्बर १४, २०१३ - आज प्रातः विलनियस, लिथुआनिया में तीन दिनों के बाद परम पावन दलाई लामा विमान से चेक गणतंत्र की राजधानी प्राग पहुँचे। हवाई अड्डे पर चेक सरकार के पूर्व विदेश मंत्री और टॉप ०९ पार्टी के नेता कारेल श्वार्ज़ेनबर्ग, प्राग के मेयर टॉमस हुडेसेक और फोरम २००० फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक जाकुब क्लेपल ने उनका स्वागत किया। होटल पहुँचने पर चेक गणतंत्र, हंगारी और तिब्बत के चेक समर्थक उनका स्वागत करने हेतु जमा थे।

दोपहर के भोजन के पश्चात् उन्होंने विकलांक चेक के एक समूह का अभिनंदन किया, जो उस समय साथ गा रहे थे जब वे अपने सार्वजनिक व्याख्यान स्थल टिपस्पोर्ट एरीना की ओर जा रहे थे। ६००० से अधिक जमा हुए श्रोताओं का अभिनंदन करने के बाद मंच से उनके पहले शब्द उनके स्वर्गीय मित्र और फोरम २००० के संस्थापक राष्ट्रपति वक्लव हवेल के लिए श्रद्धांजलि के थे।


“वे एक विनम्र और सच्चे अर्थों में एक अच्छे इंसान थे, जिसमें कोई अकड़ न थी। पहली भेंट में ही वे ईमानदार और सच्चे थे। हमारी पहली मुलाकात के बाद मैं उनसे कई बार मिला और उनकी मृत्यु से पहले अंतिम मिलने वालों में मैं भी था। उनके साथ और यहाँ अन्य लोगों के साथ मैत्री भावना के कारण चेक लोगों के लिए मेरे दिल में खास जगह है। परसों मैं अपनी श्रद्धांजलि देने के लिए उनके कार्यालय जाने की आशा कर रहा हूँ, यद्यपि वे शारीरिक रूप से हमारे साथ नहीं हैं, ठीक उसी तरह जब मैं भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के देहांत के बाद पटना में उनके निवास स्थल गया। जैसा मैंने हवेल की विधवा और जो उन्हें जानते और उनके प्रशंसक थे, से कहा कि जो परम श्रद्धांजलि हम उन्हें दे सकते हैं वह उन्हीं की भावना से उनके कार्य को आगे ले जाना है।”

“मैं पुनः फोरम २००० में भाग लेने आया हूँ, जिसकी स्थापना राष्ट्रपति हवेल ने की थी और जिसका नेतृत्व ओल्डरिच सर्नि ने किया और जब मैं पिछले बार यहाँ था, उसके बाद दुख यह है कि उनका भी देहांत हो गया। मैं अभी उनकी विधवा से मिला और दुखी चेहरे के बजाय जिस तरह मुस्कुराहट लिए उन्होंने मेरा अभिनंदन किया मैं उससे बहुत प्रभावित हूँ।”

“मैं यहाँ आकर और आप सभी लोगों से एक परिवार के समान बातें कर बहुत खुश हूँ और मैं इस कार्यक्रम के आयोजकों का धन्यवाद करता हूँ जिनके कारण यह संभव हो पाया।”

परम पावन ने अपने सदा के तरीके से अपना सार्वजनिक भाषण प्रारंभ कियाः
“आधारभूत तौर पर हम सभी समान हैं, मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्तर पर। हम सभी एक सुखी जीवन चाहते हैं और उसे प्राप्त करने का हमारा अधिकार है। हम सभी में समान भावनाएँ हैं, कुछ विनाशकारी और कुछ सकारात्मक। मैं स्वयं को कोई विशिष्ट नहीं समझता; मैं अपने आप को, आप में से ही एक मानता हूँ।”


उन्होंने सविस्तार बताया कि मानव रूप में हम सामाजिक प्राणी हैं। उदाहरण के लिए अन्य प्राणियों, चींटियों और मधुमक्खियों की तरह हमारा जीवित रहना हमारे समुदाय के बाकियों पर निर्भर करता है। आज की वास्तविकता है कि समूचा विश्व परस्पर आश्रित है। जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएँ सीमाओं को अनदेखा करती हुई  हम सब को प्रभावित करती हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं के आने की संभावना है, साथ ही प्राकृतिक संसाधन दुर्लभ हो जाएँगे और अमीर और ग़रीब के बीच की खाई गहरी होती जाएगी। मानवता को एक परिवार मानते हुए और साथ कार्य करते हुए हमें इन सब चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

“जहाँ प्राचीन काल में मानव समुदाय साथ मिलकर काम करता था, आज हम तकनीकी की सहायता और मानवीय मूल्यों की उपेक्षा करते हुए भौतिक मूल्यों पर आश्रित हैं।”  परम पावन ने कहा, “मैं मानव समाज में संकट पर कई सम्मेलनों में भाग ले चुका हूँ। सेन फ्रांसिस्को के एक सम्मेलन में निष्कर्ष यह था कि हमारी कठिनाइयाँ मानव स्नेह की सामान्य कमी से निकलती है। दुर्भाग्यवश हमारी शिक्षा प्रणाली भौतिकवाद की ओर उन्मुख है और धर्म का प्रभाव जो कि नैतिक मूल्यों का स्रोत था, उसका पतन हो गया है। कई जो धर्म का पालन करने में लगे हैं, उनमें वास्तविक समर्पण कम है और उनका झुकाव भ्रष्टाचार और दूसरों का शोषण करने में है।”

“हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में नैतिकता लाने की आवश्यकता है, श्रद्धा पर आधारित नहीं पर कारण पर। मैं विश्व के विभिन्न भागों में सभी तरह के लोगों से मिलता हूँ और यह मेरे लिए स्पष्ट है कि एक सुखी जीवन जीने की कुंजी चित्त की शांति है। मैं कई लोगों से मिलता हूँ जो कि भौतिक दृष्टि से सफल हैं, जबकि आंतरिक रूप से दुखी बने रहते हैं।”


उन्होंने टिप्पणी की, कि महिलाएँ जो अपने आप को प्रसाधनों से सुंदर बनाती हैं, उन्हें स्मरण कराती है कि जहाँ बाह्य सौंदर्य एक बात है, आंतरिक सौंदर्य कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। जब एक सुंदर चेहरे पर क्रोध की भावना छा जाती है, तो सौंदर्य खो जाता है। इस बीच चित्त की शांति सुखी परिवार बनाती है और एक समुदाय अधिक सुखी होगा यदि उसमें निहित परिवार शांतिपूर्ण और करुणाशील होंगे।
यदि उद्देश्य अच्छा हो तो कभी कभी क्रोध सकारात्मक हो सकता है। इसी तरह एक साहसी व्यक्ति को एक प्रबल आत्म की भावना की आवश्यकता होती है; आत्म विश्वास सकारात्मक होता है। पर आत्म और स्वार्थी चिन्ताओं पर अधिक बल देना सहायक नहीं होता, जबकि एक करुणाशील हृदय सदैव सहायक होता है।

परम पावन ने सुझाया कि यह समझने के लिए कि हमारी भावनाएँ किस प्रकार कार्य करती है, हमें अपनी भावनाओं के नक्शे की आवश्यकता होती है। कोई भी क्रोध का आनंद नहीं उठाता, पर सभी स्नेह की सराहना करते हैं। चूँकि स्नेह सकारात्मक होता है, हमें भावनात्मक स्वास्थ्य की भावना का विकास करना चाहिए। जो आचार संहिता हमें इस तक ले जाती है उसमें धर्मनिरपेक्ष नैतिकता होनी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब वे ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द का उपयोग करते हैं, वह उसे भारतीय संदर्भ में करते हैं, अर्थात बिना किसी पूर्वाग्रह के सभी धार्मिक परम्पराओं के प्रति सम्मान। स्वतंत्रता के बाद जिन व्यक्तियों ने अनेकता लिए भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान के प्रारूप को तैयार करने में सहयोग दिया, जैसे गाँधी, डॉ अम्बेडकर और डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सभी व्यक्तिगत रूप से धार्मिक व्यक्ति थे। धर्मनिरपेक्ष नैतिकता वह है जो हमारी धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रणाली के लिए उपयुक्त हो। 

“हमारी समस्याओं में से कई हमारी अपनी निर्मित है। वे हमारी आत्म केन्द्रित होने की भावना से आती है। पर एक बार जब हम दूसरों के कल्याण के लिए अधिक सोचने लगते हैं, तो  वहाँ धौंस, धोखा और शोषण के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता। मनुष्य के सभी विध्वंसकारी कार्य हमारे क्लेशों से उत्पन्न होते हैं। ये हमारे  निशाने होने चाहिए। दूसरी ओर, दूसरों के कल्याण के प्रति सच्ची चिंता उनके प्रति निहित सम्मान की अभिव्यक्ति है। यदि हम अपनी आत्म केन्द्रितता की भावना को  कम कर सकते हैं, हम अपने क्लेशों को कम कर सकते हैं।”

परम पावन ने इस बात को दोहराया कि सभी धर्मों की मुख्य शिक्षा प्रेम है और एक बार तुम प्रेम और स्नेह का विकास कर लो तो स्वाभाविक रूप से तुम दूसरों के प्रति सम्मान का भाव रखोगे। महत्त्वपूर्ण तथ्य शिक्षा है; शिक्षा जिसमें स्नेह निहित होता है और जो मानवीय मूल्यों पर ध्यान देता है।


“यदि जो कुछ भी मैंने कहा वह आपको रुचिकर लगे, “परम पावन ने समाप्त किया, “कृपया इस पर सोचें और दूसरों के साथ चर्चा करें। संगीतकार स्नेह के विषय में गा सकते हैं। फिल्म निर्माता, सेक्स और हिंसा दिखाने के बजाय, लोगों को स्नेह और एक दूसरे के प्रति सम्मान के मूल्य की शिक्षा दे सकते हैं। परन्तु यदि आपको लगता है कि जो दलाई लामा कह रहे हैं, वह बासी ,अवास्तविक है, तो कृपया उसे भूल जाएँ।”

श्रोताओं द्वारा पूछे गए प्रश्नों में पहला था कि हम यह कैसे जानते हैं कि जो निर्णय हम ले रहे हैं वे सही हैं। परम पावन ने प्रश्न को एक कोण से न देखकर कई कोणों से देखने का सुझाव दिया। उन्होंने यह भी कहा कि चित्त को बहुत स्पष्ट होना चाहिए और जब तक कि आप यथार्थ को भी ध्यान में नहीं रखते, आपके निर्णय अवास्तविक होंगे और परिणाम देने में असफल होंगे। भय के संबंध में एक अन्य प्रश्न पर, उन्होंने उत्तर दिया कि भय दो प्रकार के होते हैः व्यावहारिक आधार पर भय, जैसे कि पागल कुत्ते का भय और वह भय जो बड़े पैमाने पर हमारा मानसिक प्रक्षेपण है।

किसी ने प्रश्न किया कि करुणा को किस प्रकार कार्य में ढाला जा सकता है। परम पावन ने कहा करुणा का अर्थ केवल स्थिर होकर बैठना नहीं है, इसका अर्थ उठना और कुछ करना है। करुणा कार्य करने के लिए ऊर्जा और उत्साह लाती है, पर प्रज्ञा उसे एक अच्छा निर्णय देती है। उत्साह स्वयं में अंधा है, पर परिस्थिति के विश्लेषण से उत्पन्न प्रज्ञा एक निष्पक्ष दृष्टिकोण के साथ मिल कर उसे एक दिशा देती है।

जैसे ही परम पावन ने हाथ जोड़कर श्रोताओं को उन्हें सुनने के लिए आने हेतु धन्यवाद दिया, उन्होंने मुस्कुराते चेहरों और लंबी तालियों की गड़गड़ाहट से उत्तर दिया। कल वे एक पारम्परिक तिब्बती ग्रंथ “चित्त शोधन के आठ पदों” पर व्याख्या देंगे।

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