परम पावन 14 वें दलाई लामा
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२१वीं सदी के वैश्विक ग्राम में उत्तरदायी नागरिकता के स्तंभ १०/अक्तूबर/२०१३

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अटलांटा, जॉर्जिया, संयुक्त राज्य अमरीका, अक्तूबर  ८, २०१३ - सुरक्षा गाड़ियों के काफिले की चमकती नीली और लाल बत्तियाँ, मोटरसाइकिल चालकों की गरज और ऊपर उड़ान भरते हेलिकॉप्टर की खड़खड़ाहट के बीच परम पावन दलाई लामा अटलांटा के अपने होटल से ग्विन्नेट्ट एरीना, जो कि दिन का कार्यक्रम स्थल था, गाड़ी से गए। द्वार पर एमरी विश्वविद्यालय के अध्यक्ष जेम्स वैगनर ने उनसे भेंट की और गर्मजोशी तथा मैत्री भरी तालियों की गड़गड़ाहट के साथ १०,००० सीट के स्थान के दर्शकों द्वारा उनका स्वागत किया गया।


अपने परिचय में, राष्ट्रपति वैगनर ने उल्लेख किया कि एमरी विश्वविद्यालय मेथोडिस्ट द्वारा संस्थापित किया गया था और लंबे समय से उसकी प्रेरणा न केवल नागरिकों को अच्छा जीवन जीने के लिए तैयार करने की है, पर अच्छा कार्य करने की भी है। संयोजक पॉल वोल्पे ने उनके बाद कहा कि विश्वविद्यालय ज्ञान से जुड़ा है, पर प्रज्ञा, गहन समझ और अंतर्दृष्टि की भी आवश्यकता है। परम पावन को बोलने के लिए आमंत्रित करते हुए उन्होंने कहा कि इसलिए किसी ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति में होना एक असाधारण सौभाग्य है, जो प्रज्ञावान है।
 
परम पावन ने प्रारंभ किया ही था, जब उन्होंने अपने मित्र  रिचर्ड मूर को देखा और उनका अभिवादन करने के लिए मंच छोड़ दिया।

"उनका उदाहरण वास्तव में असाधारण है," उन्होंने कहा, जब वह उत्तरी आयरलैंड में १० वर्ष के बालक थे तो एक रबर की गोली के लगने से उन्होंने अपनी दृष्टि खो दी पर उसे लेकर वह क्षमावान थे, उनमें कोई क्रोध की भावना न थी। मैं तो करुणा के विषय में बोलता हूँ,' बकवास, बकवास, बकवास' है, लेकिन वह उसे प्रयोग में लाते हैं। वह मेरे हीरो हैं।"
 
धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के विषय पर लौटते हुए परम पावन ने कहा कि हमें मानवता और मानव इतिहास को इसलिए देखना चाहिए कि उनकी आवश्यकता क्यों है। इस बात की ओर संकेत करते हुए कि उनके जैसे ५० वर्ष की आयु से अधिक आयु के लोग बीसवीं शताब्दी के हैं पर जो १५, २० यहाँ तक कि ३० आयु के हैं, वे इक्कीसवीं शताब्दी के हैं और उनके सामने भविष्य है। उन्होंने यह देखने के लिए कि युवा पीढ़ी के कितने लोग वहाँ थे, वहाँ बैठे लोगों से हाथ उठाने के लिए कहा। 
 

"इतिहासकार कहते हैं कि बीसवीं सदी में २०० करोड़ लोगों की मृत्यु हिंसक रूप से हुई, कई अद्भुत घटनाओं के बावजूद, यह रक्तपात और हिंसा का युग था। मेरा विश्वास है कि यदि हम दूसरों को हमारे मानव भाइयों और बहनों की तरह मानें तो उनके साथ छल, धोखा अथवा हिंसा के लिए कोई स्थान न रहेगा।  हमें अपनी समस्याओं और संघर्षों के समाधान के ढंग को बदलने की आवश्यकता है; बल के स्थान पर हमें संवाद पर निर्भर होने की आवश्यकता है। हमें ‘उनके’  और ‘हमारे’ विषय में कम सोचने की ज़रूरत है और दूसरों के बारे में विचार की आवश्यकता है। हमारे बीच संघर्ष के स्रोत सदा रहेंगे पर जब वे उत्पन्न होते हैं तो हमें उनके विषय में बात करनी चाहिए, उनके विषय में लड़ना नहीं चाहिए।"

उन्होंने कहा कि हमें इस नई सदी को करुणा की सदी बनाने की आवश्यकता  है। उन्होंने दो प्रकार की करुणा में अंतर किया: एक तो अपनी स्वाभाविक प्रतिक्रया, जो जैविक तत्वों से निकलती है, जिसके मूल में शिशुओँ को माँओं से मिला स्नेह है और एक अधिक व्यापक, समावेशी करुणा, जो कारण द्वारा समर्थित है। 
 
"आजकल हम इतने अन्योन्याश्रित हैं कि हमारे पड़ोसी के विनाश का अर्थ हमारा विनाश है। इसलिए हमें एक और अधिक करुणाशील समाज के निर्माण के बारे में सोचना है और उसे तर्क के बजाय, विश्वास के आधार पर करने की आवश्यकता है। यदि सामान्य ज्ञान को काम में लाएँ तो हम अपने पड़ोसी परिवारों में देख सकते हैं कि जो एक दूसरे से प्रेम करते हैं और विश्वास करते हैं, वे मैत्री भाव से एक दूसरे का अभिनंदन करते हैं। दूसरी ओर एक परिवार भौतिक रूप से बेहतर होने के बावजूद, यदि उनमें एक दूसरे के लिए सौहार्दता की भावना नहीं है, यदि वे ईर्ष्यालु तथा संदेह के कारण अविश्वासी हैं तो वे अधिक सुखी नहीं हैं।"

"आगे उन्होंने वैज्ञानिक निष्कर्षों का उदाहरण दिया कि किस प्रकार संदेह, क्रोध और भय हमारी प्रतिरोधक शक्ति को नष्ट करने का प्रभाव रखते हैं। अपने शारीरिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए हमें मन की शांति की आवश्यकता  है। अतः जिस तरह स्वस्थ रहने के लिए हमें शारीरिक स्वच्छता के पालन करने की आवश्यकता है, हमें भावनात्मक स्वच्छता के विकास की भी जरूरत है।"
 
"समाज संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप से या कैपिटल हिल के निर्णयों से बदला नहीं जाएगा। समाज व्यक्तियों से बना है, इसलिए परिवर्तन व्यक्तियों के साथ ही प्रारंभ होना चाहिए। पैसे देने या खर्च करने से परिवर्तन नहीं आएगा, बल्कि हमारे चित्त के परिवर्तन से होगा। हम सामान्य ज्ञान, सामान्य अनुभव और वैज्ञानिक खोजों पर आधारित धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को लागू कर अपनी समस्याओं पर काबू पा सकते हैं। धन्यवाद - अब प्रश्न"


इक्कीसवीं सदी में चुनौतियों के संबंध में एक प्रश्न के उत्तर में परम पावन शिक्षा ने कहा कि एक सुखी, अधिक शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण में शिक्षा एक महत्वपूर्ण तत्व है। उन्होंने कहा कि हमें शिक्षा को इस प्रकार का स्वरूप देना चाहिए, जो ज्ञान और एक स्वस्थ चित्त दोनों को पोषित करे। इसके अतिरिक्त हमें पूछना है कि क्या वर्तमान अमरिकी जीवन शैली अंततः स्थायी है । और हमें करुणा की भावना का निर्माण करना है जो सभी मानवता के प्रति संवेदनशील हो।
 
"हमें मानवता  को एक बड़े परिवार के रूप में सोचने की जरूरत है; यदि वे सुखी हैं, तो मुझे सुख मिलेगा। अत्यधिक प्रतिस्पर्धा आपके पड़ोसियों के प्रति ईर्ष्या और अविश्वास की ओर ले जाती है, जो आगे और अविश्वास की ओर जाता है। तो हम कैसे सुखी हो सकते हैं? यह साधारण ज्ञान है।" 
 
"धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की शिक्षा मात्र करुणा के बारे में ही नहीं, पर चित्त को समझना भी है। यह समझने के लिए कि हमारा चित्त कैसे काम करता है, हमें चित्त के मानचित्र की आवश्यकता है; और हम जागरूकता से  चित्त को प्रशिक्षित कर सकते हैं।" 

यह पूछे जाने पर कि ऐसा प्रतीत होता है कि विवेक का विकास पश्चिम में बेहतर हुआ और करुणा को पूर्व में बेहतर विकसित किया गया, परम पावन ने यह कहते हुए इस तरह के विभाजन से इनकार किया कि विश्व के दोनों भागों में मनुष्य एक जैसे ही हैं, उनमें समान भावनाएँ हैं इत्यादि। एक वैश्विक या राजनीतिक स्तर पर करुणा के एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने यूरोपीय संघ का उदाहरण दिया, जो व्यक्तिगत चिंताओं के बजाय अपने सदस्यों के साझा हितों के अधिक महत्व की भावना से प्रेरित थे।

परम पावन से पूछा गया यदि सभी करुणाशील कार्यों से आप अच्छा महसूस करते हैं, तो क्या वे वास्तव में परोपकारी हैं? उन्होंने उत्तर दिया, दूसरों की सहायता हमें लाभ पहुँचाती है। हममें आत्म हित की भावना है, हम स्वार्थी है, पर हमें बुद्धिमानी से स्वार्थी होना चाहिए, न कि मूर्खता से स्वार्थी। उन्होंने उदाहरणों का उल्लेख करते हुए कहा जहाँ नशा करना मूर्खतापूर्ण स्वार्थ है, पर व्यायाम करना बुद्धिमान भरा स्वार्थ है। एक सामाजिक प्राणी के रूप में हमें सहयोग करने की आवश्यकता है, जिसका अर्थ है कि हमें विश्वास की जरूरत है, और जो हमारी दूसरों के प्रति कल्याण की भावना पर आधारित है।

दो छोटे बालकों की माँ जानना चाहती थी कि उनके लिए करुणा कैसे सहायक हो सकती है। परम पावन ने उत्तर दिया:
“मुझमें थोड़ी बहुत करुणा है और वह सब मेरी माँ से प्रारंभ हुई, एक अनपढ़, अशिक्षित ग्रामीण महिला, जो वास्तव में सौहार्द पूर्ण थी। आज जब और अधिक सौहार्द की आवश्यकता है, जिसके प्रति महिलाओं में विशेष क्षमता है, जैसा कि वैज्ञानिक खोजों ने सुनिश्चित किया है, तो हमें और अधिक महिला नेतृत्व की आवश्यकता है।”

सुबह के सत्र के अंत में परम पावन ने उन श्रोताओं से अनुरोध किया कि जिन्हें उनकी बातें रुचिकर लगी हो वे उस पर और चिन्तन करें, अपने मित्रों के साथ इस पर चर्चा करें और यदि वह सार्थक लगे तो उसे कार्य में लाएँ। उन्होंने उनसे कहा कि जिन्हें यह रुचिकर न लगा हो तो चिन्ता न करें और  जब वे हॉल से बाहर निकलें तो उसे भुला दें।
  
दोपहर के भोजन के बाद उन्होंने एमरी तिब्बत चिकित्सा विज्ञान पहल और तिब्बती चिकित्सा अनुसंधान के प्रमुख सदस्यों से भेंट की, जिन्होंने तिब्बती औषधियों पर किए जा रहे कुछ वैज्ञानिक अनुसंधानों के विषय में समझाया। 
 

'धर्मनिरपेक्ष नैतिकता और शिक्षा' विषय पर पैनल चर्चा के लिए एरीना लौट कर परम पावन ने कहा कि जहाँ आधुनिक विज्ञान में भौतिक और माप कर सकने वाली वस्तुओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है, चित्त भी यथार्थ का एक भाग है, इसलिए विज्ञान को चित्त और भावनाओं को अपने अध्ययन के क्षेत्र में शामिल करना चाहिए। उन्होंने टिप्पणी की कि हमारी कई समस्याएँ जिनका हम सामना करते हैं वे हमारी अपनी बनाई हैं और उनका स्रोत कुछ शारीरिक नहीं है; समस्याओँ का निर्माण करने वाला हमारे अपने अंदर है।उन्होंने बंदूक नियंत्रण के मुद्दे का उल्लेख किया और कहा कि बंदूक को चलाने वालों की अपेक्षा बंदूक कम समस्याएँ देती है। आवश्यक है मानसिक नियंत्रण। एक शस्त्र सुरक्षा के भी काम आता है; समस्याओं का वास्तविक स्रोत विनाशकारी भावनाएँ हैं । शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से हम अपनी नकारात्मक भावनाओं को कम करना सीख सकते हैं। मैं यहाँ रिची डेविडसन जैसे वैज्ञानिकों के साथ काम कर रहा हूँ, जो २०-३० वर्षों से अध्ययन कर रहे हैं, धन या प्रसिद्धि के लिए नहीं पर विश्व को एक बेहतर जगह बनाने के लिए। और मैं उनका बहुत धन्यवाद करना चाहूँगा और उन्हें इसी तरह लगे रहने को कहूँगा।"

फ़्रांस डे वाल नर वानरों के साथ काम करते हैं और उन्होंने पाया कि वे मनुष्यों की तरह नैतिक हो सकते हैं। नैतिकता के ‘निर्माण खंड’  है। वे सहानुभूति दिखाते हैं और एक दूसरे की सहायता करते हैं। सहानुभूति जो एक प्रमुख नैतिक निर्माण खंड है वह स्तनधारियों में बहुत विकसित है। उन्होंने यह बताने के लिए वीडियो प्रमाण दिखाए और कहा कि उनमें से कुछ में निष्पक्षता की एक विकसित भावना है।

रिची डेविडसन भी तीन महत्वपूर्ण बिंदु बाँटना चाहते थे जो यह दिखाते हैं कि नन्हें शिशु, शिक्षा से पूर्व उदारता की ओर, ऐसे दृश्य जहाँ किसी और को बाधा के स्थान पर सहायता दी जा रही हो, सकारात्मक रूप से प्रवृत्त होते हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह हम सभी में भाषा की क्षमता है, पर उसे फलित करने के लिए हमें उसका प्रयोग करना पड़ता है, उसी तरह हममें करुणा की भी क्षमता है, लेकिन इसी तरह उसे विकसित करने की आवश्यकता है। फ़्रांस डे वाल ने जोड़ा, कि जहाँ यह सत्य है कि प्रतिस्पर्धा और आक्रामकता प्रकृति में मौजूद है, पर जब आप समूह में रहते हैं, तो आप को समझौता करना पड़ता है, दूसरों का ध्यान रखना होता है।

परम पावन ने उत्तर दिया कि यहाँ शिक्षा के महत्व का प्रमाण था। सबसे प्रथम हमें जागरूकता की आवश्यकता है और फिर दृढ़ निश्चय और उस आधार पर हमारा व्यवहार अधिक, खुला सच्चा और पारदर्शी हो जाएगा।

गेशे लोबसंग तेनजिन नेगी ने करुणा को धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की आधारशिला बताया और उन वैज्ञानिक खोजों का वर्णन किया जो इसका समर्थन करते हैं। वे ऐसे प्रमाण प्रकट करते हैं कि करुणा की शिक्षा दी जा सकती है। ब्रुक डोडसन-लावेल्ले इस बात की पहचान के महत्व के विषय में बोले कि बच्चे उन्हें बाहर रख देने के भय से चिंतित होते हैं, वे प्रेम अनुभव करने की आवश्यकता रखते हैं और दूसरों तक करुणा पहुँचाना चाहते हैं। इसलिए यह सच है कि एक बच्चे को बड़ा करने में पूरे समुदाय का योग होता है।

परम पावन ने एक प्रश्न, धर्म की भूमिका का उत्तर यह समझाते हुए दिया कि प्रेम और करुणा जैसे गुणों को बढ़ावा देने में प्रमुख धर्मों की भूमिका रही है और रहेगी । परन्तु हर धर्म की सीमाएँ रही हैं और आज हमें नैतिकता की भावना की आवश्यकता है जो सीमाओं से परे जाता है। इसलिए धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की ज़रूरत है।
 
दिन की परिचर्चा का अंत होने से पहले राष्ट्रपति वैगनर ने गेशे लोबसंग तेनजिन नेगी और उनके सलाहकार रॉबर्ट ए पॉल को, जिसने डॉ. रॉबर्ट ए पॉल एमरी तिब्बत वैज्ञानिक पहल को जन्म दिया, एमोरी तिब्बत भागीदारी को समन्वित करने के उनके कार्य के लिए प्रशंसा के प्रमाण पत्र दिए। परम पावन ने अपनी सराहना भी जोड़ी कि उनके समान गेशे ला एक दूरदराज के गांव से आए हैं और बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
 
माइंड एंड लाइफ इंस्टिट्यूट के अध्यक्ष आर्थर ज़जोंक ने सत्र का समापन किया और उन्होंने उस उस प्रेरणा को स्वीकार किया, जो सुस्पष्टता की भावना परम पावन के विचारों और अवलोकन में उन्होंने और उनके सहयोगियों ने पाया। उन्होंने कहा कि वे हमारे आंतरिक यथार्थ को हमारे चारों ओर के यथार्थ के साथ लाने के लिए काम में लगे हैं। इसका एक उदाहरण तिब्बती विहारों में विज्ञान शुरू करने की परियोजना है। उन्होंने फ्रेंच दार्शनिक सिमोन वेल के एक उद्धरण से अपनी बात समाप्त कीः

"मैत्री के अतिरिक्त  मानव वस्तुओँ के बीच इतनी शक्ति कहीं और नहीं जो हमारी दृष्टि अधिक तीव्रता से भगवान पर टिका सके ...."

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