परम पावन 14 वें दलाई लामा
मेन्यू
खोज
सामाजिक
भाषा
  • दलाई लामा
  • कार्यक्रम
  • तस्वीरों में
  • वीडियो
हिंदी
परम पावन 14 वें दलाई लामा
  • ट्विटर
  • फ़ेसबुक
  • इंस्टाग्राम
  • यूट्यूब
सीधे वेब प्रसारण
  • होम
  • दलाई लामा
  • कार्यक्रम
  • समाचार
  • तस्वीरों में
  • वीडियो
  • अधिक
सन्देश
  • करुणा
  • विश्व शांति
  • पर्यावरण
  • धार्मिक सद्भाव
  • बौद्ध धर्म
  • सेवानिवृत्ति और पुनर्जन्
  • प्रतिलिपि एवं साक्षात्कार
प्रवचन
  • भारत में प्रवचनों में भाग लेने के लिए व्यावहारिक सलाह
  • चित्त शोधन
  • सत्य के शब्द
  • कालचक्र शिक्षण का परिचय
कार्यालय
  • सार्वजनिक दर्शन
  • निजी/व्यक्तिगत दर्शन
  • मीडिया साक्षात्कार
  • निमंत्रण
  • सम्पर्क
  • दलाई लामा न्यास
पुस्तकें
  • अवलोकितेश्वर ग्रंथमाला 7 - आनन्द की ओर
  • अवलोकितेश्वर ग्रंथ माला 6 - आचार्य शांतिदेव कृत बोधिचर्यावतार
  • आज़ाद शरणार्थी
  • जीवन जीने की कला
  • दैनिक जीवन में ध्यान - साधना का विकास
  • क्रोधोपचार
सभी पुस्तकें देखें
  • समाचार

टी एन खोशू स्मृति पुरस्कार ,व्याख्यान देते, सड़क के बच्चों के लिए एक संरक्षण गृह की यात्रा, ९/दिसम्बर/२०१३

शेयर

नई दिल्ली, भारत - ७ दिसंबर, २०१३ - आज प्रातः परम पावन दलाई लामा पारिस्थितिकी और पर्यावरण के अनुसंधान के लिए अशोक न्यास (अट्री) के  अतिथि थे।  उन्हें  टी एन खोशू स्मृति पुरस्कार और व्याख्यान देने  के लिए आमंत्रित किया गया था और आगमन पर डॉ. गणेश बालचंदर और टी एन खोशू के पुत्र श्री राजीव खोशू ने उनका स्वागत किया।


डॉ. बालचंदर के संक्षिप्त परिचय के बाद परम पावन को अट्री द्वारा प्रकाशित के एस बावा तथा एस कडुर की एक पुस्तक 'हिमालय - जीवन का पर्वत' भेंट की गई, जिसे उन्होंने बड़े ध्यान से देखा। तत्पश्चात डॉ. बालचंदर ने टी एन खोशू स्मृति पुरस्कार की पृष्ठभूमि समझाई, जो २००४ में डॉ. त्रिलोकीनाथ खोशू के सम्मान में स्थापित की गई थी, जिन्होंने पर्यावरण विभाग के भारत के प्रथम सचिव के रूप में भारत की पर्यावरण नीति के विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह पुरस्कार संरक्षण और सतत विकास के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धियों को प्रोत्साहित और बढ़ावा देने के िलए खोशू संरक्षण निधि द्वारा प्रारंभ किया गया था। अवनि के सह संस्थापक रश्मि भारती और उनके पति रजनीश जैन, जो इस वर्ष के पुरस्कार के प्राप्तकर्ता थे, ने अपने काम की एक संक्षिप्त प्रस्तुति की। इसमें हस्तनिर्मित प्राकृतिक रूप से रंगे वस्त्र और उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में ग्रामीण जीवन शैली को बनाए रखने के लिए सौर प्रौद्योगिकी और जल संसाधन प्रबंधन के प्रसार शामिल थे। परम पावन और श्रीमती खोशू ने मिलकर पुरस्कार दिया।

अपने व्याख्यान को प्रारंभ करते हुए परम पावन ने उल्लेख किया "पर्यावरण के प्रति चिंता बहुत महत्त्वपूर्ण है पर इसे एक अलग मुद्दे के रूप में मैंने तभी सीखा जब मैं एक शरणार्थी के रूप में भारत आया। अतीत में हमारी मानवीय जनसंख्या अपेक्षाकृत कम थी, पर हाल ही में यह बहुत बढ़ गयी है और हमारी जीवन शैली में नाटकीय परिवर्तन हो गया है। स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि जलवायु बदल रहा है। मेरे जीवन काल में हिमनद पिघल गए हैं और पर्वतों पर बर्फ कम हो गयी है। वैश्विक तापमान की अधिकता से जुड़ी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हुई है। मैं नहीं जानता कि मानव जीवन शैली ने किस सीमा तक इसे प्रभावित किया है, पर हमें देखना होगा कि हम क्या प्रभावशाली कार्यवाही कर सकते हैं। जहाँ तक मेरा संबंध है, मैंने सुंदरलाल बहुगुणा को वचन दिया है कि हिमालय में पर्यावरण संरक्षण का समर्थन करने के लिए मैं जो कुछ कर सकता हूँ, वह करूँगा।"


उन्होंने कहा कि हमें स्वयं से पूछना होगा कि हम जिस तरह जीते हैं, क्या वह स्थायी है। यह ध्यान में रखते हुए कि भारत और चीन की संयुक्त जनसंख्या २ अरब से अधिक है, उन्होंने अपने श्रोताओं से ऐसी कल्पना करने को कहा कि उन २ अरब में से प्रत्येक के पास अपने गाड़ी है। इसी तरह उन्होंने सुझाया कि हम जल्द से जल्द आने वाली पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के उपाय खोजें। इसके अतिरिक्त आज, धनवानों और निर्धनों के बीच की उपस्थित खाई नैतिक रूप और व्यावहारिक रूप से असमर्थनीय है।


"कल मैंने दो लड़कियों को सड़क पर बैसाखी के सहारे भीख माँगते देखा, उनके निराश चेहरे उनकी लाचारी को स्पष्ट कर रहे थे। यातायात ऐसे लोगों के बीच चलता रहता है और ऐसा लगता है कि कोई भी किसी प्रकार का ध्यान नहीं देता। यह बहुत दुखद बात है। हमें वास्तव में इस तरह के लोगों का समर्थन करने के लिए प्रयास करने चाहिए। उदाहरण के लिए, यहाँ इस शहर में मैंने आजकल लोगों को भव्य रूप से शादियाँ मनाते देखा है। धन की इतने भव्य प्रदर्शन के स्थान पर क्या गरीब के लिए भोजन उपलब्ध कराना अधिक लाभकारी नहीं होगा?"

"अभी हाल ही में एक धनी मुंबई परिवार मेरी सलाह लेने के लिए आया था और मैंने सलाह दी कि वे अपने धन का उपयोग निर्धनों की सहायता, जैसे कि उन्हें भोजन, स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएँ प्रदान देने हेतु करें। इसी तरह, हिरोशिमा में नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं की बैठक में मैंने सुझाव दिया कि विश्व में शांति प्रार्थना से नहीं अपितु कार्य से आएगी।"

"इस बीच" उन्होंने आगे कहा,"भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर जो कि वास्तव में चीन और प्राचीन मिस्र की सभ्यताओं जैसी प्राचीन है, वह दो सकारात्मक विषयों में अंतर रखती है जो आज के विश्व में परिवर्तन ला सकती है और जिसे लेकर आप वास्तव में गर्व का अनुभव कर सकते हैंः वे हैं धार्मिक सहिष्णुता और अहिंसा।"


श्रोताओं के प्रश्नों में परम पावन से पूछा गया कि वे किससे प्रभावित हैं। उन्होंने उत्तर दिया कि एक मनुष्य के स्तर पर उन्हें लगता है कि हम सभी समान हैं, हम सभी एक ही तरह से पैदा होते हैं, हम सभी माँ का दूध पीते हैं। सभी मनुष्य अनिवार्य रूप से कोमल और करुणाशील हैं। दूसरी ओर यदि हम आत्मकेन्द्रितता के काबू में आ जाएँ तो मोह से ग्रसित होकर हम और अधिक क्रोधित तथा हिंसक हो सकते हैं। और तो और आत्मकेन्द्रित भावना हमारे तथा दूसरों के बीच एक दूरी पैदा करती है जो शंका, भय और अंततः एकाकीपन को जन्म देती है।

यह पूछे जाने पर कि मानव समाज बेहतर या बदतर हो रहा है, परम पावन ने १९९६ में ब्रिटेन की राजमाता,  जब वे ९६ वर्ष की थी, के साथ हुई एक बातचीत को उद्धृत किया। उन्होंने उनसे यही प्रश्न पूछा था और बिना किसी हिचकिचाहट के उन्होंने कहा कि २०वीं सदी में विश्व बेहतर हो गया था। उन्होंने मानव अधिकारों और स्वनिर्णय का उल्लेख किया, जिसे अब सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जा रहा है पर जब वह छोटी थी तो उनके विषय में सोचा नहीं गया था। परम पावन ने आगे कहा कि पर्यावरण के प्रति चिंता एक और सकारात्मक विकास है जिसका अब चर्चा होती है। 


मध्याह्न के भोजन के दौरान परम पावन ने अपने पुराने मित्र, तिब्बती प्रश्न की सच्चाई और न्याय की समर्थक, भारतीय विद्वान और इतिहासकार कपिला वात्स्यायन के साथ भेंट की। वहाँ से वे गाड़ी से सड़क के बच्चों के लिए एक संरक्षण गृह की यात्रा के लिए गए। वहाँ पहुँचने पर लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता, हर्ष मंदर ने अपने वयोवृद्ध पिता, जिन्हें वे १९५९ से जानते हैें, के साथ उनका स्वागत किया। जब वे तिब्बत से भारत पहुँचे थे हरमंदर सिंह, जो बोमडिला में जो उस समय नेफा का भाग था, राजनीतिक अधिकारी थे और शरणार्थीं के प्रारंभिक दिनों में उन्होंने परम पावन का आतिथ्य सत्कार किया था। दोनों ने साथ मिलकर गृह और उसकी सुविधाओं का एक संक्षिप्त दौरा किया और वहाँ के बच्चों तथा कर्मचारियों से भेंट की।  

दिल्ली के सड़क के बच्चों और अन्य राज्यों में से इसी तरह के गृहों, साथ ही मित्रों और समर्थकों के एक दर्शकों के सामने, हर्ष मंदर ने इस अवसर पर एक संक्षिप्त परिचय दिया। उन्होंने कहा कि वह विश्व के दो सबसे अधिक चहेते लोग, नेल्सन मंडेला और परम पावन का उल्लेख करने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन दुख की बात है कि केवल परम पावन जीवित हैं। उन्होंने कहा कि संरक्षण गृह प्रेम और करुणा की भावना पर बना है और यह स्पष्ट किया कि परम पावन से अधिक कोई  दूसरा इन मूल्यों का प्रतिनिधित्व नहीं करता। उन्होंने स्मरण किया कि ५४ वर्ष पूर्व परम पावन को उनके जन्म स्थान से विस्थापित किया गया था पर फिर भी मंडेला की तरह, उनके साथ जो भी हुआ उसके प्रति वे कोई क्रोध या कड़वाहट नहीं जताते। और तो और यद्यपि वे एक बौद्ध नेता हैं पर मंदर ने उन्हें कभी विशेष रूप से बौद्ध धर्म को बढ़ावा देते नहीं सुना है। अपितु वे अन्य धर्मों के गुणों की प्रशंसा करते हैं।

हर्ष मंदर ने घोषित किया:

"इस घर की प्रार्थना है कि किसी भी बच्चे को घर या संरक्षण का अभाव नहीं होना चाहिए। संरक्षण गृह के बच्चे कौन हैं? इनमें से अधिकतर बच्चों ने अपने परिवार की परेशानियों के कारण सड़क पर बहुत दुख झेले हैं। उन्होंने उनके जैसे अन्य बच्चों से सीखा है कि किस तरह जीवित रहा जाए। प्रमुख बात यह है कि उनके लिए एक घर बनाया जाए जो उन्हें सुरक्षा, प्रेम, शिक्षा और सम्मान दे सके। अब मैं परम पावन से अनुरोध करूँगा कि वे हमारे बच्चों और माताओं को संबोधित करें। यदि वे अंग्रेजी में बोलते हैं तो मैं उसका हिंदी में अनुवाद करूँगा।"

"मेरे प्यारे बड़े भाई", परम पावन ने हरमंदर सिंह को संबोधित करते हुए प्रारंभ किया, "ने मार्च १९५९ के अंत में मेरी बहुत सहायता की। मैंने उनके साथ कई दिन आराम करते हुए बिताए जब हर्ष मंदर बहुत छोटे थे। अब देखिए उनका सिर मेरे और उनके पिता के समान चमकदार हैं।"

"और मेरे युवा भाइयों और बहनों, इस घर में आपसे मिलकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ जो आपने बसाया है और जहाँ आपको भोजन, आवास और शिक्षा मिलती है। इससे पहले आज मैं कुछ अन्य लोगों से कह रहा था कि, कल सड़क के भिखारियों को देख मेरा मन व्याकुल हो गया था। उनके चेहरे गरीब और निर्बल लग रहे थे, उनकी आँखें खोखली और पूरी तरह से हतोत्साहित थी। इसलिए यह घर जो आपको दिया गया है अत्यंत उत्साहजनक है। कल मैंने उदासी देखी थी आज आशा देखता हूँ।"


"मेरे मन में यह बात आई है कि गरीब लोगों में एक स्पष्टवादिता और सीधापन है जो मुझे कहीं और दिखाई नहीं देता। लॉस एंजिल्स के एक सूप रसोई घर में जहाँ मैं शामिल हुआ हूँ, मैंने वहाँ खाते हुए लोगों में औपचारिक रात्रि भोज खाने वालों से अधिक खुशी देखी है। संभवतः इसका कारण है कि कठिनाइयाँ हमें वास्तविकता से जोड़े रखती है।"

उन्होंने ७ अरब मनुष्यों को एक ही मानव परिवार का अंग होने की भावना को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता की बात की।

"यदि हम उस पर ज़ोर दें तो युद्ध का, धौंस जमाने या धोखाधड़ी का कोई आधार न रह जाएगा।  यदि हम दूसरों को 'हम' के हिस्से के रूप में देखें तो उनकी उपेक्षा के लिए कोई स्थान न होगा।"

"बच्चों, बेघर या असहाय अनुभव मत करो।  गंभीरता से अध्ययन करो और अंततः उच्च शिक्षा के लिए जाओ। याद रखो कि तुम अकेले नहीं हो। तुम शिक्षा प्राप्त कर काम कर सकते हो तथा अपने जीवन का निर्माण कर सकते हो।  आत्मविश्वास का विकास करो।  हतोत्साहित का अनुभव करना विफलता का एक स्रोत है। तुम्हें आशा नहीं छोड़नी चाहिए। १९५९ के मार्च के अंत और अप्रैल के प्रारंभ में जब मैं और कई तिब्बती भारत पहुँचे तो हमने अपना आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प बनाए रखा, तुम्हें भी ऐसा ही करना चाहिए।"

जब वे आयोजकों से यह कहने के िलए मुड़े कि उन्हें अन्य शहरों में भी अपने कार्य  का विस्तार करना चाहिए, तो उन्हें बताया गया कि पहले से ही छह राज्यों में ४५ गृह कार्य कर रहे हैं। परम पावन ने बताया कि जब उन्होंने राजस्थान के नंगे पांव कॉलेज (Barefoot College) का दौरा किया था तो वे उस कार्य में अपना योगदान कर खुश थे। उन्होंने समझाया कि दलाई लामा ट्रस्ट की स्थापना दलाई लामा के रूप में उनको भेंट की गई धन राशि और उनकी पुस्तकों से आई रॉयल्टी का प्रबंधन करने के िलए की गई है।  यह कहते हुए कि, उन्हें दान करने में प्रसन्नता होगी उन्होंने दस लाख रुपये का एक चेक भेंट किया और कहा कि भविष्य में यदि किसी परियोजनाओं में सहायता की आवश्यकता होगी तो वे आशा करते हैं कि वे उनसे सहायता लेंगे।

"जब तक मेरे पास धन है मैं सहायता करने में खुश हूँ, और जब पैसा न होगा, तो मुझे ना करना होगा।"


उन्होंने धर्मशाला के एक भिक्षु की कहानी सुनाई जो तिब्बत से आए थे। उन्होंने देखा कि देश के कई अन्य भागों से मजदूर काम की खोज में आते हैं और उनके बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने का कोई अवसर नहीं मिलता। इसके स्थान पर वे कचरा चुनते हैं। उन्होंने इन बच्चों के लिए स्कूल और शैक्षिक सहायता के लिए तोंग लेन नाम की एक संगठन का गठन किया है जो उनके दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास की अभिव्यक्ति है।  

"यदि आप हताश हों तो कोई प्रगति नहीं कर सकते। यदि आप कड़ी मेहनत करें, अपना आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प को बनाए रखें, तो आप जो भी करेंगे उसमें सफल होंगे। यदि दूसरे अब आप के प्रति स्नेह दिखाते हैं, आप जब बड़े हों तो बिना शोषण, धोखा या धौंस के दूसरों की सहायता करें तो आप स्वयं को मित्रों से घिरा पाएँगे। इसे ध्यान में रखें। मैं आपके साथ हूँ, कृपया मेरा विश्वास करें।"

अपने धन्यवाद के समापन शब्दों में, स्टाफ के सदस्यों में से एक ने परम पावन की शुभेच्छाओं और प्रोत्साहन को इन बच्चों की सहायता करते हुए इसे और आगे ले जाने का वादा किया। बच्चों, अभिभावकों और शुभचिंतकों के साथ फोटो खिंचवा कर और हाथ मिलाते हुए परम पावन अपनी गाड़ी की ओर गए।

अब से २१ दिसंबर तक वे पूरी तरह से विश्राम करेंगे।

  • फ़ेसबुक
  • ट्विटर
  • इंस्टाग्राम
  • यूट्यूब
  • सभी सामग्री सर्वाधिकार © परम पावन दलाई लामा के कार्यालय

शेयर

  • फ़ेसबुक
  • ट्विटर
  • ईमेल
कॉपी

भाषा चुनें

  • चीनी
  • भोट भाषा
  • अंग्रेज़ी
  • जापानी
  • Italiano
  • Deutsch
  • मंगोलियायी
  • रूसी
  • Français
  • Tiếng Việt
  • स्पेनिश

सामाजिक चैनल

  • फ़ेसबुक
  • ट्विटर
  • इंस्टाग्राम
  • यूट्यूब

भाषा चुनें

  • चीनी
  • भोट भाषा
  • अंग्रेज़ी
  • जापानी
  • Deutsch
  • Italiano
  • मंगोलियायी
  • रूसी
  • Français
  • Tiếng Việt
  • स्पेनिश

वेब साइय खोजें

लोकप्रिय खोज

  • कार्यक्रम
  • जीवनी
  • पुरस्कार
  • होमपेज
  • दलाई लामा
    • संक्षिप्त जीवनी
      • परमपावन के जीवन की चार प्रमुख प्रतिबद्धताएं
      • एक संक्षिप्त जीवनी
      • जन्म से निर्वासन तक
      • अवकाश ग्रहण
        • परम पावन दलाई लामा का तिब्बती राष्ट्रीय क्रांति दिवस की ५२ वीं वर्षगांठ पर वक्तव्य
        • चौदहवीं सभा के सदस्यों के लिए
        • सेवानिवृत्ति टिप्पणी
      • पुनर्जन्म
      • नियमित दिनचर्या
      • प्रश्न और उत्तर
    • घटनाएँ एवं पुरस्कार
      • घटनाओं का कालक्रम
      • पुरस्कार एवं सम्मान २००० – वर्तमान तक
        • पुरस्कार एवं सम्मान १९५७ – १९९९
      • गणमान्य व्यक्तियों से भेंट २०११ से वर्तमान तक
        • गणमान्य व्यक्तियों से भेंट २००० – २००४
        • गणमान्य व्यक्तियों से भेंट १९९० – १९९९
        • गणमान्य व्यक्तियों से भेंट १९५४ – १९८९
        • यात्राएँ २०१० से वर्तमान तक
        • यात्राएँ २००० – २००९
        • यात्राएँ १९९० – १९९९
        • यात्राएँ १९८० - १९८९
        • यात्राएँ १९५९ - १९७९
  • कार्यक्रम
  • समाचार
    • 2025 पुरालेख
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2024 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2023 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2022 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2021 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2020 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2019 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2018 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2017 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2016 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2015 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2014 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2013 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2012 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2011 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2010 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2009 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2008 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2007 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2006 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2005 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
  • तस्वीरों में
  • वीडियो
  • सन्देश
  • प्रवचन
    • भारत में प्रवचनों में भाग लेने के लिए व्यावहारिक सलाह
    • चित्त शोधन
      • चित्त शोधन पद १
      • चित्त शोधन पद २
      • चित्त शोधन पद ३
      • चित्त शोधन पद : ४
      • चित्त् शोधन पद ५ और ६
      • चित्त शोधन पद : ७
      • चित्त शोधन: पद ८
      • प्रबुद्धता के लिए चित्तोत्पाद
    • सत्य के शब्द
    • कालचक्र शिक्षण का परिचय
  • कार्यालय
    • सार्वजनिक दर्शन
    • निजी/व्यक्तिगत दर्शन
    • मीडिया साक्षात्कार
    • निमंत्रण
    • सम्पर्क
    • दलाई लामा न्यास
  • किताबें
  • सीधे वेब प्रसारण