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टोक्यो में व्याख्यान - जीवन का श्रेष्ठतम लाभ उठाएँ २५/नवम्बर/२०१३

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टोक्यो, जापान - नवंबर २५, २०१३ - परम पावन के जापान में रहने की पूरी अवधि के दौरान जहाँ मौसम साफ था, आज जब यात्रा की समाप्ति निकट थी, तो मौसम गंभीर तथा उत्साहहीन सा जान पड़ा। जब वह टोक्यो के लिए शिंकनसेन बुलेट ट्रेन पकड़ने क्योतो स्टेशन की ओर मोटरगाड़ी में जा रहे थे तो वर्षा होने लगी। शिज़ुओका से पुनः लौटते हुए, जहाँ पिछले सप्ताह सूरज चमक रहा था और आकाश स्वच्छ था, आज फूजी पर्वतीय शिखर मेघाच्छादित था।

परम पावन के मध्याह्न के व्याख्यान स्थल अंदर के खेल का मैदान, जहाँ प्रायः कुश्ती प्रतियोगिताएँ होती है, का रियोगोकु कोकुगिकन सभागार था। सभागार के ऊपरी परिसर से पिछले चैंपियनों की बड़ी तस्वीरें नीचे झाँकती प्रतीत होती हैं, जो उन पालकों का स्मरण कराती है, जो पारंपरिक रूप से मंदिर के प्रवेश द्वारों की सुरक्षा करते हैं।
अपनी अभ्यस्तता के अनुसार परम पावन ने उन्हें सुनने के लिए जमा हुए २५०० लोगों को भाइयों तथा बहनों कहकर संबोधित किया और उनसे कहा कि वे उनसे मिलकर कितने प्रसन्न थे


"हम सभी महान मानव परिवार का भाग हैं," उन्होंने कहा, "यदि हम मानवता की एकता पर अधिक गंभीर ध्यान दें तो हमारे बीच संघर्ष के लिए कम स्थान होगा। कई समस्याएँ, जिनका हम सामना करते हैं, इसलिए आती है क्योंकि हम गौण अंतर जैसे राष्ट्रीयता, धार्मिक संप्रदाय इत्यादि पर बहुत अधिक बल देते हैं। वास्तव में इन वर्गों के अंदर और आगे रंग, सम्पत्ति या निर्धनता और शैक्षणिक स्तरों को लेकर और भी अंतर निहित हैं। एक ही परिवार के सदस्यों के बीच अंतर हो सकते हैं। वास्तव में एक व्यक्ति के अंदर ही दिन के प्रारंभ और उसके अंत के बीच अंतर हो सकता है। हम और उनके भड़काने वाले अंतर पर केन्द्रित भावना हमें और अधिक आत्म केन्द्रित होने के लिए प्रेरित करती है। और जब हम केवल अपने अल्पकालीन हित की चिंता करते हैं तो हम दूसरंों के अधिकार की अवहेलना करते हैं,जो धमकाने और शोषण की ओर ले जाता है।"
उन्होंने कहा कि हममें से कोई भी समस्याएँ नहीं चाहता, प्रातः जिस समय से हम उठते हैं, हम यही आशा करते हैं कि हमारी समस्याएँ कम हो जाएँगी। यदि हम कम समस्याओं का सामना करना चाहते हैं तो उसकी कुंजी अपने आत्मकेन्द्रित व्यवहार को त्यागना है।

" आत्मकेन्द्रितता दूसरों से एक दूरी उत्पन्न करती है, जो बेईमानी, भय और क्रोध की ओर ले जाती है। क्लेश इसी तरह कार्य करते हैं। जहाँ भय, विद्वेष और क्रोध स्वास्थ्य के लिए बुरे हैं, दूसरों के लिए चिंता, आत्म-विश्वास और अधिक आंतरिक शक्ति की ओर ले जाती है, जिससे क्रोध को कम करने में सहायता मिलती है। इसकी कुंजी चित्त की शांति का विकास है।"

परम पावन ने अपने ७८ वर्ष के अच्छे स्वास्थ्य का कारण कम से कम आंशिक तौर पर उनके चित्त की शांति को बनाए रखने की क्षमता को दिया। उन्होंने कुछ अवसरों पर क्रोध के कारण भड़कने को स्वीकार किया, परन्तु समझाया कि वे शीघ्र ही समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र अमरिका के एमरी, स्टेनफोर्ड तथा मैडिसन विश्वविद्यालयों में करुणाशील विचारों को विकसित करने के लाभों को मापने को लेकर हो रहे प्रयोगों का संदर्भ दिया। निष्कर्ष पहले ही बताते हैं कि रक्तचाप और तनाव कम होते हैं। 

सौहार्दता, दूसरों की कुशलता के प्रति संवेदनशीलता और आधारभूत स्नेह से न केवल शारीरिक लाभ होते हैं, पर वे जैविक मूलों से भी निकलते हैं। जाने-माने वैज्ञानिकों ने छोटे बच्चों पर प्रयोग किए हैं जो इस विचार का समर्थन करता है कि आधारभूत मानव प्रकृति कोमल है। माँ की प्रवृत्ति का प्रभाव पड़ता है, उस समय भी पड़ता है जब बच्चा गर्भ में होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बाद में मस्तिष्क के उचित विकास के लिए माँ का स्पर्श महत्त्वपूर्ण है।

सामाजिक प्राणी के रूप में हम अपने अस्तित्व के लिए दूसरों पर निर्भर होते हैं। यदि हम अपने सामान्य ज्ञान का उपयोग करें और अपने पड़ोसियों को देखें तो पाएँगे कि जब वे विद्वेष और अविश्वास से भरे होते हैं, तो यद्यपि वे धनवान हों, पर वे दुखी हैं। जब स्नेह का अभाव हो तो सुख अदृश्य हो जाता है। जबकि आंतरिक शांति सौहार्दता पर आधारित है।

ऐतिहासिक रूप में, ईश्वरवादी धर्म जैसे ईसाई, इस्लाम और यहूदी धर्म एक सृजनकर्ता पर विश्वास करते हैं, अनीश्वरवादी परम्पराएँ जैसे सांख्य की एक शाखा, जैन और बौद्ध, कारण के नियम को मानते हैं। इन सभी परंपराओं का प्रमुख संदेश प्रेम है। सहिष्णुता और क्षमा इसके अभ्यास के संरक्षण का प्रकार्य करते हैं। और चूँकि लोभ एक बाधा हो सकता है इसलिए धर्म संतोष और आत्म- अनुशासन सिखाते हैं। इस तरह सहिष्णुता, धैर्य और संतोष हमारे प्रेम के अभ्यास के संरक्षण के लिए कार्य करते हैं। 
"यह प्रमुख शिक्षाएँ हैं, यद्यपि समय तथा स्थान के कारण दार्शनिक दृष्टिकोणों में अंतर होते हैं। उनका उद्देश्य एक बेहतर, अधिक करुणाशील, समझदार मानव बनाना है। यदि आप अभ्यास का चुनाव करें तो आपको निष्ठा के साथ ऐसा करना चाहिए। मुख्य बिंदु सौहार्दता का िवकास है।"

"मानवता के हितों की चिंता करना हमारे अपने हित में है। अपने आप की सहायता करने का सबसे अच्छा उपाय दूसरों की सहायता करना है, जो कार्य कारण सिद्धांत और प्रतीत्यसमुत्पाद के सिद्धांतों से मेल खाता है। विगत ३० वर्षों में" परम पावन ने समझाया कि "मेरी वैज्ञानिकों के साथ तंत्रिका जीव विज्ञान, ब्रह्माण्ड विज्ञान, क्वांटम भौतिकी, पर्यावरण और मनोविज्ञान के विषय को लेकर गंभीर बातचीत हुई है। कइयों ने प्रतीत्यसमुत्पाद में रुचि दिखाई है। मुझे स्मरण है कि एक बार मैंने वैज्ञानिकों से पूछा था कि क्या उनके पास ऐसी कोई धारणा है, और मुझे उत्तर मिला 'नहीं' पर यह एक ऐसा विचार है जो वैज्ञानिक धरातल पर प्रवेश करने का प्रयास कर रहा है और प्रतीत होता है कि उसे एक सुविधाजनक स्थान मिल गया है।"

परम पावन द्वारा श्रोताओं से प्रश्न आमंत्रित किए जाने पर पहला प्रश्न का संबंध प्रतिस्पर्धा के मूल्य पर था। उन्होंने कहा कि ये दो प्रकार के होते हैं, शीर्ष तक पहँुचने की एक सीधी प्रेरणा,जो सकारात्मक है और दूसरों को बाधित करने की इच्छा, ताकि आप जीत सकें, जो नकारात्मक है।
 
एक महिला ने जेल से रिहा हुए लोगों द्वारा भेदभाव का सामना करने के बारे में पूछा।  परम पावन ने उत्तर दिया:
जेल से छूटे व्यक्ति भी मनुष्य हैं। उन्होने कुछ ग़लत किया होगा पर वे दंड भुगत चुके हैं। उन्हें समाज में वापस लिया जाना चाहिए। उनकी लगातार निंदा करना ग़लत है; जो भी कार्य हो, वह व्यक्ति धैर्य और क्षमा के योग्य है।"

कोई और जानना चाह रहा था कि उपद्रवी शक्तियों द्वारा गुमराह हुए बिना किस प्रकार अच्छा कार्य करें और उन्हें बताया गया, कि नैतिक शिक्षा सीढ़ी दर सीढ़ी होती है।

"सहनशीलता का अभ्यास करें और अपना साहस और आत्म - विश्वास बनाएँ रखें। आपका सकारात्मक उद्देश्य जो भी हो, उसका विश्लेषण करें, दूसरों के सुझाव लें और अपने मित्रों की सलाह लें। पर एक बार आपने निश्चय कर लिया कि क्या करना है, तो उसका पालन करें।"

कोरिया से बौद्धों के एक समूह के एक सदस्य ने परम पावन से कहा कि उन्होंने सुना था कि स्टीफन हॉकिंग ने टिप्पणी की थी कि एक हजार साल में हमें कोई और ग्रह खोजना होगा, जिस पर हम रह सकें। परम पावन हँसे और उत्तर दिया कि भविष्य के बारे में भविष्यवाणी करना सरल नहीं है।

"मेरा विचार है कि हम अभी भी कुछ हजार साल से अधिक रहेंगे। निस्संदेह तार्किक स्तर पर हर उस वस्तु जिसका प्रारंभ है, उसका अंत होता है। पर स्पष्ट कहूँ तो मुझे अब से एक हज़ार वर्ष के बारे में चिंता नहीं है। इसके स्थान पर हमें इस जीवन और इस  शताब्दी के बारे में सोचना चाहिए। चलिए,  इसे शांति की एक शताब्दी बनाने पर ध्यान दें।"

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