परम पावन 14 वें दलाई लामा
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परम पावन दलाई लामा का दिल्ली में शीतकालीन प्रवास प्रारंभ २९/नवम्बर/२०१३

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नई दिल्ली, भारत - २९ नवंबर २०१३  -  जापान की अपनी यात्रा से लौटने और दक्षिण भारत में बोधिपथक्रम के महान ग्रंथों पर प्रवचन के लिए अपने प्रस्थान के बीच परम पावन दलाई लामा ने दिल्ली में रहने का निश्चय किया है।  


आज प्रातः अपने एक पुराने दोस्त, नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. देवेन्द्र सूद का निमंत्रण स्वीकार करते हुए, वे  मोतियाबिंद के लिए हाल ही में खोले गए आई क्यू संस्थान के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करने के लिए वहाँ गए।  वे डॉ. सूद और उसके पहले उनके पिता को कई वर्षों से जानते हैं। द्वार पर उन्होंने विधिवत फीता काटा और आशीर्वाद में फूल की पंखुड़ियाँ बिखेरी।  डॉ. सूद ने फिर उन्हें संस्थान के कर्मचारी सदस्यों से परिचय करवाया और विशिष्ट रूप से मोतियाबिंद से राहत देने के लिए प्रदान करने के उपचार के बारे में बताते हुए उन्हें संस्था का परिसर और उपकरण दिखाए।

मध्याह्न के भोजन के बाद परम पावन ने इथाका न्यूयॉर्क के बौद्ध अध्ययन नमज्ञल संस्थान के छात्रों के साथ एक सामूहिक भेंट की। उन्होंने उनसे कहा:

"यहाँ भारत में पिछले ३००० वर्षों से धार्मिक सद्भावना रही है। सभी आध्यात्मिक परम्पराओं के प्रति एक सामान्य सम्मान है और उन लोगों के लिए भी जिनकी कोई परम्परा नहीं है।  यह आज के विश्व में प्रासंगिक और सराहनीय है। आज जीवित ७ अरब मनुष्यंों में से १ अरब यह ज़ोर देते हैं कि वे नास्तिक या विश्वास न करने वाले हैं। यद्यपि शेष बचे ६ अरबंों के बारे में यह स्पष्ट नहीं है कि अपने विश्वास में सच्चे हैं।  जब मैंने, बहुत पहले तो नहीं, मेक्सिको के बिशप विश्वविद्यालय की यात्रा की थी तो मैंने  सुझाया था कि हमारा विश्वास हमारे धार्मिक चोगों और पहनाओं पर लटका हुआ सा लगता है। वह उस समय तक सशक्त है जब तक कि हम उन्हें पहने हुए हैं, पर एक बार हम उन्हें उतार कर रख दें तो हमारा विश्वास भी एक तरफ उतरा हुआ सा लगता है।"

कालचक्र और विश्व शांति के बीच  की  कड़ी  के  बारे में एक  प्रश्न के उत्तर में उन्होंने उल्लेख किया कि सबसे प्रथम तो यह कि विश्व शांति तभी आएगी जब लोगों के हृदयों में शांति होगी। उन्होंने कहा कि कालचक्र एक महत्त्वपूर्ण और गहन तांत्रिक प्रणाली है, लेकिन जो उसे अन्य तंत्रों से अलग करती है कि अन्य तंत्र अधिकतर व्यक्तियों को दिए जाते थे, जबकि कालचक्र एक देश को दिया गया था। उन्होंेने हँसी में कहा कि जहाँ यह दीक्षा निस्संदेह रूप से लाभकर है, पर वे इनसे पूर्व दी जा रही शिक्षाओं को और अधिक मूल्यवान समझते हैं। एक सीमा तक उनका इसकी दीक्षा देना लोगों को प्रारंभिक शिक्षाओं के लिए आकर्षित करती है जिनके लिए संभव है कि वे अन्यथा न आएँ।


परम पावन ने समूह को एक ऐसी पुस्तक के विषय में सूचित किया जिस पर अभी काम चल रहा है और जो कांग्यूर (सूत्र) तथा तेंग्यूर (शास्त्र)  में से निकाले बौद्ध विज्ञान की सामग्री का एक संकलन है। उन्होंने उनसे कहा कि विद्वान इस पर दो या उससे अधिक वर्षों से कार्य कर रहे हैं, और विषय सामग्री को अंतिम रूप देने के लिए कई संपादकीय बैठकें हो चुकी है और आगामी वर्ष में इसे तिब्बती और अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित करने के प्रयास जारी हैं। उन्होंने उनसे उन्हें पढ़ने के लिए तैयार करने को कहा ताकि अगली बार जब वे मिलें तो वे उस पर चर्चा कर सकते हैं।

इसके बाद जर्मनी की तीसरी सबसे बड़ी साप्ताहिक समाचार पत्रिका, फोकस की श्रीमती डोरोथिआ राइकर ने उनका साक्षात्कार लिया। उसने परम पावन से शरारत से यह पूछते हुए प्रारंभ किया कि क्या परम पावन इस बात को जानते हैं कि आध्यात्मिक जगत में लोकप्रियता के लिए उनका एक प्रतिद्वंद्वी है। उन्होंने उत्तर दिया:

" मैं वास्तव में सोचता हूँ कि पोप फ्रांसिस में हम एक व्यावहारिक, यथार्थवादी आध्यात्मिक नेता पाते हैं। यह बहुत अच्छी बात है, हमें इसी की आवश्यकता है। मेरे विचार से कुछ धार्मिक नेता एक कोकून के अंदर कार्य करते प्रतीत होते हैं, जो पुराना हो चुका है। आज की वास्तविकता में हमें ईमानदार होना होगा। हम धर्म को स्वीकार करें या नहीं एक व्यक्तिगत चयन है, पर यदि हम करते हैं, तो हमें इसको लेकर सच्चा होना चाहिए। नए पोप की सादगी के विषय में व्यापक रूप से बताया गया है। हाल ही में जब उन्होंने एक जर्मन बिशप की अत्यधिक सुख साधन के उपभोग पर कार्रवाई की गई तो मैंने अपनी प्रशंसा व्यक्त करने के लिए उन्हें लिखा था। मेरा मत है कि उन्होंने चर्च की रक्षा के लिए ऐसा किया।"

धार्मिक सहिष्णुता और विश्व शांति के मुद्दों पर, उन्होंने कहा:

"हम विश्व शांति की समस्या को हल कर पाते हैं अथवा नहीं, हमें कम से कम प्रयास तो करना चाहिए। समाज की उपेक्षा या शोषण करना हमारे हित में नहीं है, इसके स्थान पर हमें एक करुणाशील समाज का निर्माण करना चाहिए। एक बौद्ध भिक्षु के रूप में, मेैंने देखा है कि सभी धार्मिक परंपराएँ सहिष्णुता और क्षमा के साथ साथ प्रेम तथा करुणा सिखाती है, यही कारण है कि हमें उन दोनों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। यह करने के लिए असीसी में १९८६ की दुनियावी बैठक महान अवसर था और मैंने जॉन पॉल द्वितीय को बताया कि मैं ऐसी आशा करता हूँ कि यह मात्र एक अवसर न होगा, अपितु आगे इससे बैठकें निकलेंगी।"

यह पूछे जाने पर कि धर्म कट्टरपंथी क्यों बन जाते हैं, परम पावन ने उत्तर दिया कि इसका कारण ज्ञान की कमी है। उन्होंने टिप्पणी की, कि कुछ देशों में लोग अन्य धर्मों के लोगों के साथ रहने के आदी होते हैं, जबकि कहीं केवल एक ही धर्म प्रतीत होता है। व्यक्तिगत स्तर पर मात्र एक सत्य, एक धर्म के विषय में सोचना ठीक है, पर एक सामुदायिक या वैश्विक स्तर पर सत्य यह है कि कई सत्य हैं और कई धर्म हैं।


श्रीमती राइकर ने अगले दलाई लामा के चयन के विषय में पूछा और परम पावन ने स्पष्ट किया कि यदि तिब्बती उनके बाद एक और दलाई लामा नहीं चाहते, तो संस्था समाप्त हो जाएगी।  पर यदि वे चाहते हैं, तो प्रश्न यह उठेगा कि    उसका चयन किस प्रकार हो। उन्होंने कहा कि २०११ में एक लिखित कथन में वे स्पष्ट कर चुके हैं कि जब वे लगभग वह करीब ९० वर्ष के हो जाएँगे तो वे तिब्बती आध्यात्मिक नेताओं की एक बैठक बुलाकर मार्ग निश्चित करेंगे। उन्होंने अभी के लिए अपनी तीन प्रमुख प्रतिबद्धताओं, जिनमें मानवीय मूल्यों का विकास, धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने और तिब्बती संस्कृति और बौद्ध ज्ञान को संरक्षित करने हेतु कार्य शामिल हैं, की पुष्टि की।
 चीन के विषय में बात करने के लिए दबाव डाले जाने पर, उन्होंने उल्लेख किया कि ४०० चीनी बौद्ध हैं जो तिब्बती बौद्ध धर्म में रुचि रखते हैं।  शी जिनपिंग के बारे में उन्होंने  टिप्पणी की, कि वे साहस से भ्रष्टाचार से निपट रहे हैं और हाल ही में हुई तीसरी विस्तृत बैठक में ग्रामीण गरीबों के प्रति चिंता व्यक्त की और न्यायिक प्रणाली का संदर्भ दिया । "यद्यपि तिब्बत में स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है, तिब्बती भावना अधिक है तथा तिब्बत के ६ करोड़ तिब्बतियों में प्रबल है।  परिवर्तन के लिए पीढ़ियाँ लग सकती है, किन्तु यहाँ वहाँ बिखरे होने के बावजूद भी, हमारा समुदाय सशक्त बना हुआ है।"

यह पूछे जाने पर कि वह अपनी सबसे बड़ी गलती क्या समझते हैं, परम पावन स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने १६ वर्ष की अवस्था में तिब्बती परिस्थितियों का उत्तरदायित्व लिया और जब वे ७६ वर्ष के हुए तो उन्होेंने उसे निर्वाचित नेतृत्व के रूप में न्यागत किया । पीछे मुड़कर देखने पर वे आश्वस्त अनुभव करते हैं कि उस समय उन्होंने जो भी निर्णय लिए वे उचित थे । 

क्या उन्हें खेद था कि उनकी हाल की यात्रा के दौरान जर्मन चांसलर, श्रीमती मार्केल, उनसे नहीं मिली, उनका उत्तर था कि वे किसी को भी असुविधा में नहीं डालना चाहते ।

उन्होंने स्मरण किया कि जब वे विपक्ष में थी तो वे उनसे मिले थे।  यह वह समय था जब कुछ चीनी कट्टरपंथियों ने परम पावन की आलोचना दैत्य कहकर की, जाहिर तौर पर श्रीमती मार्केल का भी संदर्भ एक चुड़ैल के रूप में दिया। उन्होंने कहा :

"मुझे लगता है कि इस प्रकार का आलोचनात्मक दृष्टिकोण बचकाना है उसे विश्व का विश्वास अर्जित करना है और विश्वास सत्य और खुलेपन से पनपती है।  संप्रति,  १.३ अरब चीनियों को यह पता लगाने के लिए कि क्या हो रहा है अपने अधिकार का प्रयोग करने से रोका जाता है।  उनमें एक यथार्थवादी आधार पर सही और गलत के निर्णय की क्षमता है, इसलिए चीन में प्रचलित आंतरिक सेंसरशिप लोगों की आँखों में धूल झोेंकने के बराबर है।  इस तरह का सेंसरशिप हानिकारक है। यहाँ तक ​​कि एक तानाशाही को भी जनता के समर्थन की आवश्यकता होती है। जब आंतरिक सुरक्षा का बजट रक्षा बजट से अधिक हो, तो कुछ तो है जो ठीक नहीं है।"

अंत में, यह पूछे जाने पर कि चीन को अपना नए नेतृत्व के अंतर्गत परिवर्तित करने में कितना समय लग सकता है, परम  पावन ने कहा यह अभी कहना जल्दबाजी होगी पर हम देखेंगे।

 

 

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