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परम पावन दलाई लामा वियतनाम के एक दल को धर्मनिरपेक्ष नैतिकता और बौद्ध शिक्षाओँ का परिचय देते हुए ९/नवम्बर/२०१३

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थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, भारत - नवम्बर ७, २०१३ - परम पावन दलाई लामा ने अपने आवासीय परिसर के भीतर ७१ वियतनामी मुख्य कार्यकारी अधिकारियों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों के एक दल से भेंट की, जिनमें से अधिकांश महिलाएँ थी। जैसा वे प्रायः करते हैं, उन्होंने अपने और उनकी समान मानवता पर बल देते हुए प्रारंभ किया।

"मनुष्य होने के नाते हम सब समान हैं। एक स्नायु - विशेषज्ञ आपको बताएँगे कि वियतनामी और तिब्बती मस्तिष्क एक समान हैं, हमारी भावनाएँ एक जैसी हैं और हमारी बुद्धि भी समान है, अतः जिस परिस्थिति में हम अपने आप को पाते हैं उसके विषय में और अधिक गहराई से सोचने की हम सबमें एक जैसी क्षमता है।"


उन्होंने कहा कि जिस समाज में हम रहते हैं, वह भौतिक विकास की ओर उन्मुख है और हमारी शिक्षा प्रणाली भौतिक मूल्यों से जुड़ी है। परिणाम स्वरूप नैतिक सिद्धांतों की एक सामान्य कमी है। उन्होंने अपने अतिथियों से पूछताछ कर यह जाना कि गत ३० - ४० वर्षों में वियतनाम की अर्थव्यवस्था का अत्यंत विकास हुआ है और वियतनाम में साक्षरता लगभग ९५% है और संभवतः देश में मात्र २ अरबपति हैं।
 
उन्होंने टिप्पणी की कि भ्रष्टाचार एक प्रकार का कैंसर बन गया है, जिसने विश्व के कई भागों को पीड़ित किया है, जिसका परिणाम यह है कि अधिकांश गरीब ही पीड़ित हैं। यह तथा जलवायु परिवर्तन प्रमुख चुनौतियों में से एक है, जिसे आज सम्बोधित करना आवश्यक है। नैतिकता के सामान्य अभाव में भ्रष्टाचार होता है। परम पावन ने सुझाया कि युवा पीढ़ी में ईमानदारी जैसे बुनियादी मूल्यों का विकास करने के लिए तरीके ढूँढने की आवश्यकता है; अन्यथा भ्रष्टाचार का नासूर लगातार बना रहेगा। इसी कारण वे शिक्षा प्रणाली में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर इतना दृढ़ विश्वास बनाए हैं। आज की अधिकांश समस्याएँ जिनका हम सामना कर रहे हैं, जिनमें से कई मानव निर्मित हैं, उनके समाधान का आधार धर्मनिरपेक्ष नैतिकता है।

परम पावन ने अपने दर्शकों से प्रश्न आमंत्रित किए। एक महिला ने कहा कि वह बौद्ध धर्म का पालन करती है, जो उसे सुख देता है। उसके मित्र उससे सहायता और सलाह माँगते हैं और वह उनसे भिक्षुओं से पूछने को कहती है पर वे ज़ोर देते हैं कि उन्हें यह जानने में रुचि है कि उसका क्या विचार है - उसे क्या करना चाहिए? परम पावन ने उत्तर दिया कि चूँकि हम तेज़ी से अन्योन्याश्रित हो रहे हैं, तो समय आ गया है कि एक दूसरे की सहायता करने और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए एक वैश्विक उत्तरदायित्व भावना का विकास करें। एक अन्य प्रश्नकर्ता ने कहा, अधिक संख्या में जिन लोगों को वह जानती है पाते हैं, कि प्रार्थनाएँ और अनुष्ठान सहायक नहीं हैं, उन्हें क्या करना चाहिए? परम पावन ने उत्तर दिया:

"यदि मंत्र पाठ मात्र से दुख से उबर सकते तो बोधिसत्वों ने पहले से ही ऐसा कर लिया होता, पर वह पर्याप्त नहीं है। बुद्ध हमें वास्तविकता का सत्य दिखाते हैं, वे मार्ग उद्घाटित करते हैं, पर यह हम पर निर्भर है कि हम उसका पालन करें।"


भारत में एक अंतर्धर्म सम्मेलन में एक सूफी शिक्षक के विचार को आधार बनाकर कि सभी धर्म तीन प्रश्नों को संबोधित करते जान पड़ते हैः आत्मा क्या है? क्या इसका कोई प्रारंभ है? और क्या इसका कोई अंत है? परम पावन ने विश्व के अन्य प्रमुख धर्मों के संदर्भ में बौद्ध शिक्षाओं का परिचय दिया। उन्होंने समझाया कि केवल बौद्ध धर्म सिखाता है कि आत्मा ऐसी नहीं जिसका ठोस, स्वतंत्र अस्तित्व हो पर शरीर और चित्त के आधार पर ज्ञापित है, जिस तरह एक गाड़ी अपने अंगों के आधार पर ज्ञापित होती है।
 
चार आर्य सत्यों का संदर्भ देते हुए, उन्होंने कारणों के दो रूपों का उल्लेख कियाः दुख और उसका कारण जैसा प्रथम दो सत्यों में वर्णित किया गया है, और निरोध तथा मार्ग जिसकी रूपरेखा तीसरे तथा चौथे सत्य में मिलती है। उन्होंने इस बात को दोहराया कि दुख का निरोध मार्ग के अभ्यास से होता है और मार्ग नैतिकता पर आधारित एकाग्रता तथा प्रज्ञा के तीन प्रशिक्षणों से बनता है।

दल के साथ उनकी चर्चा कल जारी रहेगी।

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