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बौद्ध विज्ञान पाठ्य पुस्तकों की समीक्षा के लिए तिब्बती विद्वानों की परम पावन दलाई लामा से भेंट ७/अक्तूबर/२०१३

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सितम्बर २६, २०१३ - थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, भारत - सितम्बर ५, २०१३ - परम पावन दलाई लामा की विज्ञान में रुचि जानी मानी है। आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ संवाद, उन्होंने जो लगभग तीस वर्षों पूर्व प्रारंभ किया था, ने ऐसे सम्पन्न सहयोग पैदा किए हैं जैसे कि माइंड एंड लाइफ इंस्टिट्यूट, एक गैर लाभकारी संगठन, जो वैज्ञानिक समझ के निर्माण और दुःख को कम करने के लिए भलाई को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।

हाल ही के वर्षों में प्राचीन भारतीय विचार और विशेष रूप से बौद्ध साहित्य में उदाहरण के लिए चित्त और भावनाओं के संबंध में जो कहा गया है, उसके प्रति वैज्ञानिक रुचि बढ़ी है। पर इसी के साथ परम पावन जी अधिकांश रूप से भारतीय स्रोतों से अनूदित एक विशाल साहित्य, कांग्यूर (बुद्ध वचनों के अनुवाद) और तेंग्यूर (भारतीय बौद्ध पंडितों के भाष्य के अनुवाद) के ३०० संस्करण के विषय में नए ढंग से सोचने की बात करने लगे हैं। उन्होंने कुछ विषयों का वर्गीकरण बौद्ध विज्ञान, कुछ का बौद्ध दर्शन और बचे हुए का आध्यात्मिक अभ्यास से संबंधित रूप में करने का सुझाव दिया है। उनका दृष्टिकोण है कि जहाँ आध्यात्मिक अभ्यास से संबंधित सामग्री संभवतः बौद्धों तक सीमित हो सकती है, पर बौद्ध विज्ञान और दर्शन से संबंधित सामग्री का एक व्यापक शैक्षिक और बौद्धिक आकर्षण हो सकता है। 

२०१० में टी सी वी स्कूल में अपने प्रवचन के दौरान परम पावन ने नमज्ञेल विहार के उपाध्याय ठोमथोग रिनपोछे से बौद्ध विज्ञान और दर्शन से संबंधित सामग्री का संग्रह कर उन्हें परिचयात्मक संस्करणों के रूप में प्रस्तुत करने की एक योजना बनाने के लिए कहा था। प्रारंभिक रूप में कांग्यूर  और तेंग्यूर को पढ़ने और संदर्भों का संग्रह करने के लिए करीब ७० विद्वानों की नियुक्ति हुई। इन खोजों को संयोजित करने के लिए १० विद्वानों के एक छोटे वर्ग का चयन हुआ। ठोमथोग रिनपोछे, जिनको यंगतेन रिनपोछे और गेशे थुबतेन पेलसंग द्वारा सहायता प्रदान की गई, ने इस कार्य की देख-रेख की। माइंड एंड लाइफ इंस्टिट्यूट के अध्यक्ष गेशे थुबतेन जिनपा, पी एच डी, ने प्रारंभिक मसौदे को पढ़ा और सामग्री को पुनर्गठित किया।
सोमवार २३ सितम्बर को ठोमथोग रिनपोछे और यंगतेन रिनपोछे के साथ आठ विद्वानों के एक दल ने बौद्ध विज्ञान की उनकी प्रस्तुति को लेकर समीक्षा के लिए परम पावन जी से भेंट की। वर्तमान तिब्बती पांडुलिपि जिसमें दस अध्याय हैं, दो संस्करणों में परिव्याप्त है, जिसमें से पहला ज्ञान की वस्तुओं से जुड़ा है, जबकि दूसरा अध्याय चित्त और वह किस रूप में वस्तुओं से व्यवहार करता है, से संबंधित है। अध्याय के शीर्षक में एक साधारण रूपरेखा, ज्ञान की वस्तुएँ,  समय, सूक्ष्म कण, तथा यह ब्रह्मांड और इसके निवासियों की उत्क्रांति और विनाश शामिल हैं। दूसरे संस्करण के अध्याय में चित्त की साधारण प्रस्तुति, मानसिक तत्व, चित्त किस प्रकार उसकी वस्तुओं से जुड़ता है, चित्त शोधन और शमथ तथा विपश्यना शामिल हैं।
 
चार दिनों के दौरान परम पावन और तीन पीठों के प्रख्यात विद्वानों का एक वर्ग जीवंत विचार विमर्श में लगा रहा कि कांग्यूर और तेंग्यूर ग्रंथों के उद्धरण मुख्य पाठ में शामिल किए जाएँ अथवा नहीं, या फिर उन्हें अंत टिप्पणी में डाल दिया जाए, प्रस्तुति में कुछ बिन्दुओं को कितनी प्रधानता दी जाए और विभिन्न तकनीकी शब्दावली के पक्ष विपक्ष। दूसरे और तीसरे दिन उनके साथ प्रो. समदोंग रिनपोछे शामिल हुए, जिन्होंने कार्यवाही में भारतीय स्रोतों के संबंध में अपने विशिष्ट ज्ञान का योगदान दिया। परम पावन के निजी आमंत्रण पर ग्यूमे तांत्रिक महाविहार के पूर्व उपाध्याय गेशे थुतोप ने भाग लिया, जबकि नमज्ञेल विहार के शिक्षकों ने प्रेक्षकों के रूप में हिस्सा लिया।

एक बार विज्ञान सामग्री की समीक्षा समाप्त हुई तो बौद्ध दर्शन पर प्रस्तावित पुस्तक की रूपरेखा पर भी चर्चा हुई। परम पावन ने अब तक की हुई प्रगति पर प्रसन्न दिखते हुए कहाः

“जब हम चित्त और उसकी वस्तुओं के बारे में बात करते हैं तो हम यथार्थ को किस तरह समझें उस पर बात कर रहे हैं। हमारा जो भी उद्देश्य हो उन्हें वैध अनुभूति के प्रयोग से प्राप्त किया जा सकता है। चित्त में यथार्थ को समझने की क्षमता है और यह वास्तविक प्रस्तुति है।”

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