परम पावन 14 वें दलाई लामा
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साक्षात्कार तथा विश्व में स्वतंत्रता लाने हेतु अभिव्यक्ति के संभावित प्रकार के विषय पर वार्तालाप २४/नवम्बर/२०१३

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क्योतो, जापान - २४ नवंबर २०१३  -परम पावन दलाई लामा ने आज प्रातः तीन साक्षात्कार दिए। पहले में क्योतो सेइका विश्वविद्यालय की सुश्री किंटोये, जो क्योतो में उनकी मेज़बान थी, ने उनसे विभिन्न छवियों के विषय में बोलने के लिए प्रेरित किया। परम पावन ने उनसे कहा कि जब भी वे मरियम द्वारा शिशु ईसा को गोद में ली हुई छवि देखते हैं, उनके मन में प्रबल मातृत्व की भावना आती है जो एक सार्वभौमिक प्रभाव है। ईसा की सूली पर लटकी और उपवास करते हुए बुद्ध की कंकाल छवि का गहन अर्थ तथा महत्व है पर उसमें पारम्परिक बुद्ध की प्रतिमा और मरियम व शिशु के सार्वभौमिक आकर्षण का अभाव है।

उन्होंने उल्लेख किया कि सृजनात्मकता हमारी बुद्धि से जुड़ी है, पर साथ में यह भी बताया कि हम सभी अपनी बुद्धि को एक जैसा उपयोग में नहीं लाते। उन्होंने कहा कि उन्होंने ध्यान दिया है कि जब वे शिक्षा देते हैें तो चीनी और अन्य एशियायी श्रोता उतना ध्यान नहीं देते, पर जब कोई अनुष्ठान शामिल हो तो अधिक सचेत हो जाते हैं। इसके विपरीत, पश्चिम के लोग उनके शिक्षा देते समय गहरा ध्यान देते हैं और अत्यंत सावधानी से नोट्स लेते हैं। उन्होंने तिब्बत के महाविहारों के शास्रार्थ आंगन में प्रश्न करने की प्रक्रिया का समर्थन किया क्योंकि प्रश्न करना मस्तिष्क को खोलने का एक उपाय है। 


सपीयो पत्र के पत्रकारों ने हाल ही में थियाननमेन चौक में गाड़ी के जलाए जाने की घटना के बारे में बातचीत की, जिसमें दो व्यक्तिओं की मृत्यु हुई थी और इसके अतिरिक्त तीन गाड़ी में और ४० व्यक्ति घायल हुए थे। ऐसा आरोप है कि यह हमला ज़िनजियांग उइघुर्र्स द्वारा किया गया। गत वर्षों में शरणार्थी तिब्बतियों तथा पूर्व तुर्किस्तान के प्रतिनिधियों के बीच संबंध रहे हैं, किन्तु परम पावन के अनुसार हिंसा को लेकर विचार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।   
“मुझे लगता है कि हमारा अहिंसा का दृष्टिकोण इन भाइयों तथा बहनों से बहुत अधिक समर्थन आकर्षित करता है। यदि हिंसा एक प्रभावशाली दृष्टिकोण होता तो अब तक उइघुर्र्स स्थिति में परिवर्तन हो गया होता।”

तिब्बत चीन संबंध के संदर्भ में उन्होंने बल दिया कि जहाँ तिब्बत आध्यात्मिक रूप से धनी है वह भौतिक रूप से पिछड़ा है, इसलिए यह तिब्बत के हित में है कि वह चीन की पीपुल्स रिपब्लिक (पीआरसी) के साथ बना रहे। चीन के विषय में, उन्होंने विगत ६० वर्षों को चार युगों में बाँटा: माओ के आदर्शवाद का युग, देंग का आर्थिक नीति को खोलने और आर्थिक विकास का प्रारंभ, जियांग ज़ेमिन के दल के आधार को व्यापक करना तथा तीन प्रतिनिधि और हू जिंताओ की एक समन्वयात्मक समाज का विषय। उन्होंने सुझाव दिया कि यह दर्शाता है कि दल में नए वास्तविकता का उत्तर देने की क्षमता है। उन्होंने उल्लेख किया कि नए राष्ट्रपति गंभीर रूप से भ्रष्टाचार का समाधान कर रहे हैं और कार्यशील व्यक्ति प्रतीत होते हैं।

अनन फैशन तथा सौदंर्य पत्रिका के पत्रकारों के साथ बातें करते हुए परम पावन ने उन्हें छेड़ते हुए कहा कि उनका दृष्टिकोण संकुचित है कि वे मात्र जापान और जापानी लड़कियों के बारे में लिखते हैं। कई सुंदर तिब्बती और चीनी लड़कियाँ और लड़के भी हैं, उन्होंने कहा ।

उन्होंने परम पावन का माओ ज़ेदोंग के लिए प्रशंसा की भावना पर ध्यान देते हुए कहा कि ज़ि जिनपिंग ने भी लगभग यही कहा था। उन्हें समझ में नहीं आया कि वे किस तरह अलग हैं। परम पावन ने उत्तर दियाः

“मैं माओ से कई बार मिला और हम घंटों बातें करते थे। पर माओ ने केवल एक ही बार चीन छोड़ा था जब उन्होंने मॉस्को की यात्रा की थी और उनके पास आधुनिक शिक्षा नहीं थी। दूसरी ओर ज़ि जिनपिंग कई जगह घूमे हैं और उन्हें पूर्ण आधुनिक शिक्षा का लाभ है। माओ ने अपनी कृषक पृष्ठभूमि कायम रखी। वे धीरे सार्थक शब्दों में बोलते थे और एक से अधिक बार मुझसे कहा कि चीनी शासन तिब्बत समस्या को अन्य दूसरे प्रांतों से अलग अनूठा मानती थी।”

अनन के संवाददाता ने परम पावन से पूछा कि क्या वे कभी अपने विषय में सोचते हैं।
“हाँ”, उन्होंने कहा। “मैं अपने स्वास्थ्य की अच्छी देखरेख करता हूँ और अच्छी तरह सोता हूँ जो मेरे लिए केवल लाभकर है। क्योंकि यदि मेरा स्वास्थ्य अच्छा हो तो मैं दूसरों की अच्छी तरह देखभाल करने में सक्षम हो सकता हूँ।”
 
क्योतो अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में मध्याह्न के भोजन के बाद परम पावन के साथ ‘विश्व में स्वतंत्रता लाने हेतु अभिव्यक्ति के संभावित प्रकार’ के विषय पर वार्तालाप के लिए जाने माने लेखिका, बनाना योशिमोतो शामिल हुई। विश्वविद्यालय के अध्यक्ष शिगिआकि त्सुबौची द्वारा कार्यवाही प्रारंभ करने के पश्चात, सुश्री योशिमोतो ने पूर्व निर्मित प्रस्तुति को पढ़ा। उन्होंने कहा कि वे वहाँ बैठ परम पावन जी के साथ बैठ कर बातें करने में घबराहट का अनुभव कर रही थी। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वे कुछ समय से उनकी समर्थक रही है और आशा की कि युवा पीढ़ी के सदस्य इसे जारी रखेगें। उन्होंने कहा कि यह परम पावन के विचारों का लचीलापन था जिसने उसे प्रभावित किया।
उन्होंने काठमंडू के स्वयंभूनाथ, जिसके तिब्बत के साथ प्रबल संबंध हैं, की यात्रा का स्मरण किया। 

उन्होंने बताया कि वे उन अनोखे प्रतीकों और भूषणों से बहुत प्रभावित हुई थी, पर अवर्णित रूप से सबसे अधिक, भिक्षुओं के लाल चीवरों से। उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि यदि पूर्व तथा आगामी जीवन हैं तो वे संभवतः १३वें दलाई लामा के समय तिब्बत में भिक्षु थी।

वर्तमान पर लौटते हुए उन्होंने कहा कि वे ओछेपन के विषय में बात करना चाहती थी और उस विषय में एक लघु कथा बताना चाहती थी। आज के संदर्भ में लौटते हुए, उन्होंने कहा कि वे ओछेपन के विषय में बात करना चाहती थी और उसके बारे एक छोटी कहानी बताना चाहती थी। उन्हंोंने जो अनुभव किया वह जापान में उनके साथ हुई एक अप्रिय घटना थी जब वे शिंकअनसेन पर अपने पति और बच्चे के साथ यात्रा कर रही थी। वे गलियारे के दूसरे भाग में थे और उसके बगल की सीट खाली थी। कुछ समय से परेशान करने वाली अनिद्रा के कारण वे ट्रेन में सो गयी कि कंडक्टर ने उन्हें अभद्र रूप से जगाया और चिढ़चिढ़े भरे स्वर में झकझोरा क्योंकि वे पास वाली सीट का उपयोग कर रही थी। उसने उनके पति से बात नहीं की बल्कि स्वयं ही उसे बुरी तरह से जगाया। उन्होंने कहा कि वे यदि उसके स्थान पर होती तो वे नरमी से काम लेती। वे उसके व्यवहार से आश्चर्यचकित थी और उन्होंने इसे जापानियों के प्रबल कर्तव्य की भावना, जो तनाव व क्रोध को जन्म देता है, के उदाहरण के रूप में लिया।

 
“अपनी निजी कहानी बाँटने के लिए धन्यवाद”, परम पावन ने प्रारंभ किया, “बौद्ध धर्म में जीवन के सुखी तथा इस प्रकार के दुख भरे क्षणों को हम संसार कहते हैं। जब हम जन्म लेते हैं तो शारीरिक दुख होता है, जीवन के अंत में मृत्यु है, जिनसे हम प्रेम करते हैं उनसे अलग होते हैं। इसके बीच हम रोग और बुढा़पा झेलते हैं। यहाँ तक कि आकाशगंगाओं का भी प्रारंभ और अंत है, यह प्राकृतिक प्रक्रिया है। पर इसके अतिरिक्त हमारे पास एक अनूठा मस्तिष्क है जिसमें चिंतन और विश्लेषण की शक्ति है, जो आशा तथा निराशाओं का स्रोत है। हमारी ऐन्द्रिक प्रतििक्रयाओं में हम जानवर जैसे हैं पर हमारा मस्तिष्क हमें उनसे अलग करता है।”

उन्होंने बात जारी रखी, “जब मैं १६ वर्ष का था तो मैंने अपनी स्वतंत्रता खो दी, जब मैं २४ वर्ष का था तो मैंने अपना देश खो दिया। और विगत ५४ वर्षों से मेरे देश से कई दुख भरे, हिंसा, विनाश की घटनाओं के समाचार मुझे मिलते रहते हैं जो हमें एक असहाय भावना से भर देते हैं। परन्त्ु यदि आप दुःख को अपने पर हावी होने दें तो यह आपके स्वास्थ्य को नष्ट कर देगी। मानवीय बुद्धि सहायता कर सकती है क्योंकि उन पर पुनः विचार करने पर वही घटनाएँ, जो असहाय भावना और नैराश्य उकसाती है, को आंतरिक शांति के निर्माण के लिए काम में लाया जा सकता है।”

“ उन्होंने कहा कि महत्त्वपूर्ण तत्व सौहार्दता है, दूसरंों के प्रति चिंता की भावना जो शांति तथा आत्म विश्वास लाती है। उन्होंने एक तिब्बती भिक्षु की कहानी सुनाई जिसे वे जानते हैं, जिसे १८ वर्षों तक चीनी श्रम शिविर में बंदी कर दिया गया था, और जिसे बाद में रिहा कर दिया गया और जो ८० के दशक में भारत आया। उसने परम पावन को बताया कि अपने बंदी होने के दौरान वह कई बार खतरे में था, जिसको सुनकर परम पावन को लगा कि उसके जीवन को खतरा था। पर उसने स्पष्ट किया कई अवसरों पर उसे उन लोगों, जिन्होंने उन्हें कैद किया था, के प्रति करुणा के खोने का भय था। इस पूरे दौरान उसका चित्त शांत था, आध्यात्मिक अभ्यास का सच्चा उदाहरण।”

सुश्री योशिमोतो जानना चाहती थी कि क्या परम पावन ऐसी कोई अवसर या घटना के बारे में बता सकते हैं िजसने उनके जीवन को परिवर्तित कर दिया हो। उन्होंने कहा २४ वर्ष की आयु से पहले उन्होंने पेकिंग की यात्रा की थी और अध्यक्ष माओ सहित कई प्रभावशाली चीनी नेताओं से भेंट की थी। १९५६ में भारत में नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों से मुलाकात की थी, पर १९५९ में वे एक शरणार्थी हो गए और उसके बाद किसी प्रकार की औपचारिकता या प्रोटोकोल की आवश्यकता नहीं थी। परिणामस्वरूप कठिनाइयों ने उन्हें यथार्थवादी होना सिखाया और उनके दृष्टिकोण में व्यापकता ला दी। उन्होंने पाया कि यदि हम प्रत्येक दिन ध्यान दें तो जो कुछ भी हमारे साथ होता है, हम उससे सीख सकते हैं और जिस तरह हम अपने सिर के बाल खोते हैं, समय चलते हम अनुभव इकट्ठा करते हैं। 


सुश्री योशिमोतो ने उनसे कहा : जब मैं लिखती हूँ तो जो मैं देखती हूँ उसके विषय में लिखती हूँ और मैं अपनी भावनाओं को अलग रखने का प्रयास करती हूँ। मैं केवल पारदर्शी होने का प्रयास करती हूँ। जब मेरा हृदय भावुक हो उठता है तो मैं लिखती हूँ और दूसरों के हृदयों को छूने का प्रयास करती हूँ।
यह सही है, परम पावन सहमत हुए। जब भावनाएँ बहुत अधिक होती है तो चित्त पक्षपाती हो जाता है और वह वस्तुनिष्ठ नहीं हो सकता। आप चीजों की वास्तविकता को नहीं देख सकते।”

उन्होंने कहा कि वे युवा जापानियों को विदेश यात्रा के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, क्योंकि जापान जानी मानी विश्व की सीमा नहीं है। वह उन्हें अंग्रेज़ी सीखने के लिए भी प्रोत्साहित कर रहे हैं क्योंकि अच्छा लगे या नहीं, वह अंतर्राष्ट्रीय भाषा है और उन्हें लगता है कि अापस में संवाद करने के लिए वह महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यहाँ तक ​​कि उनकी टूटी फूटी अंग्रेजी से भी काम चल जाता है।
 
“जब हम तिब्बत में थे तो हमें अपना एकाकीपन अच्छा लगता था। बर्फ के पर्वतों से घिरे हम स्वयं को सुरक्षित महसूस करते थे। हम दूसरों के साथ संबंध स्थापित करने की आवश्यकता का अनुभव नहीं हुआ। जापान भी समुद्र से घिरा हुआ है पर उस तरह के एकाकीपन पर निर्भर रहना एक गलती है।”

दर्शकों से प्रश्न लेते हुए परम पावन ने स्वप्नों की बात की। उन्होंने कहा कि दिन में जो कुछ भी आपके साथ हुआ उसे मात्र प्रतिबिंबित करते हैं पर स्वप्नों को लाभकारी बनाने की कुंजी अपने आप को इस बात की पहचान करने के लिए प्रशिक्षित करना है कि आप स्वप्न देख रहे हैं। यह आपको जानबूझकर अपने स्वप्नों को नियंत्रित करने में सहायता देगा। और इसके लिए प्रारंभ में आप सहायता ले सकते हैं। यदि एक मित्र उपस्थित है और वह आँखों की तीव्र गति देखता है तो वे हल्के स्वर में आप से कह सकता है, “अब आप स्वप्न देख रहे हैं।”

बौद्ध तंत्रयान महत्त्वपूर्ण अभ्यास हैं जो मृत्यु के समय शरीर के तत्वों के विघटन पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। जब आप स्वप्न देख रहे हैं तो यह अपेक्षाकृत सरल है क्योंकि विघटन का एक स्तर पहले से ही हो चुका है और स्वप्न काय पर ध्यान करना सरल है। आप जो भी अभ्यास करें फिर वह करुणा के विकास से संबंधित हो या फिर विश्लेषण करना हो, वह स्वप्न - समय में सरल और प्रभावशाली होता है क्योंकि संवेदी चेतनाएँ निष्क्रिय रहती हैं। अतः जागरूकता जाग्रत अवस्था से भी अधिक प्रबल हो सकती है। उन्होंने आगे कहा:

“मैं जब प्रातः जागता हूँ तो मैं बुद्ध, प्रतीत्य समुत्पाद और करुणा की उनकी शिक्षा का स्मरण करता हूँ। उस दिन के लिए मैं इस तरह अपने चित्त को आकार देता हूँ। यदि आप ऐसा करें तो समय के साथ आप अपने चित्त को परिवर्तित कर सकते हैं।”
 
स्वतंत्रता और एक दूसरे की सृजनात्मकता के प्रति सम्मान के विषय में एक प्रश्न के उत्तर में, परम पावन ने कहा :

“हमें स्वतंत्रता की आवश्यकता है - हमारी रचनात्मकता के विकास की अनुमति के लिए विचार की स्वतंत्रता, बोलने की स्वतंत्रता, क्योंकि हमें एक दूसरे से चर्चा की आवश्यकता है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। उदाहरण के लिए जब हम चिंताओं से भरे होते हैं तो उसे व्यक्त करने से हमें चैन मिलता है।
 
”अंत में एक छात्र ने उनसे पूछा कि वह और उसके मित्र तिब्बत की परवाह करते हैं और वे सहायता के लिए क्या कर सकते हैं। परम पावन ने उत्तर दियाः

“मैं तिब्बती संस्कृति की स्थिति को लेकर अत्यंत चिंितत हूँ जो खतरे की स्थिति में है। तो आप जो कर सकते हैं, वह यह कि लोगों तक यह बात पहुँचाएँ कि यह शांति और करुणा की संस्कृति है और वह खतरे में है। और यदि आप कर सकें तो तिब्बत जाएँ और स्वयं देखें कि क्या हो रहा है और जब आप लौटें तो दूसरंों के साथ बाँटे कि आपने क्या देखा ।”

बातचीत निर्धारित समय से चालीस मिनट अधिक हो चुकी थी। सफेद रेशम स्कार्फ और फूलों के गुलदस्तों का आदान प्रदान हुआ। परम पावन की छात्र स्वयंसेवकों के साथ एक संक्षिप्त भेंट हुई जिन्होंने कार्यक्रम में सहायता प्रदान की थी और वह अपने होटल लौट आए ।

 

 

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