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एक चीनी तिब्बती सम्मेलन को संबोधन २८/अगस्त/२०१४

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हैमबर्ग, जर्मनी - २७ अगस्त २०१४ - भारत लौटने की अपनी यात्रा प्रारंभ करने के लिए रवाना होने से पहले परम पावन दलाई लामा ने ‘आम धरातल की खोज’ शीर्षक के अंतर्गत प्रथम चीनी और तिब्बतियों के एक सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए प्रारंभ किया:


"मैं आप सब चीनी भाइयों और बहनों का अभिनन्दन करना चाहता हूँ, जो यहाँ विभिन्न स्थानों से एकत्रित हुए हैं। विशेष रूप से थियाननमेन घटना के बाद से मैंने तिब्बतियों को हमारे चीनी भाइयों और बहनों से संबंध स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया है। तब से उत्पन्न हुए कई अवसरों में से यह नवीनतम है।"

"१९७४ में, हमारे प्रशासन के उत्तरदायी तिब्बतियों ने इस पर चर्चा की कि हम क्या करने जा रहे थे। हमने अुनभव किया कि आज नहीं तो कल हमें चीनी अधिकारियों से बात करनी होगी और परिणामस्वरूप स्वतंत्रता को लेकर हम कोई पूर्व शर्त नहीं रख पाए। तब से जब भी संभव हुआ है, हम चीनियों के साथ संबंध बनाए हुए हैं।"

उन्होंने समझाया कि किस प्रकार तिब्बतियों को पहले १९५० - ५१ में चीनी साम्यवादियों का सामना करना पड़ा था और १९५४ उन्होंने माओ चेतुंग, देंग जियोपिंग और हू याओबांग जैसे चीनी नेताओं से भेंट करने के लिए पेकिंग की यात्रा की। उन्होंने उल्लेख किया कि उनके मन में समाजवादियों के िलए प्रशंसा की भावना बढ़ रही है और वे जिन चीनियों से मिले हैं उनसे निकटता का अनुभव करते हैं। उन्होंने कहा कि तिब्बतियों को चीनी लोगों के साथ एक साथ रहने का दीर्घकालीन अनुभव है और इसलिए वे उन के निकट पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने रास्ते में भेंट िकए गए एक चीनी अधिकारी से यह कहने का स्मरण किया उनसे मिलने की यात्रा के जाते समय वे आशंकित थे, पर घर लौटते समय वे आश्वस्त थे कि समाधान खोजा जा सकता है। विदा लेते हुए उन्होंने माओ चेतुंग से साथ हाथ मिलाया था।

"चीन के लोगों का गणराज्य विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है" परम पावन ने कहा। "इसमें िवश्व के लिए एक महान योगदान करने की क्षमता है, परन्तु जापान और अन्य पड़ोसी राष्ट्रों, जिसमें भारत शामिल है, में इसको लेकर एक महत्वपूर्ण आशंका है। यह चीन के अंतर्राष्ट्रीय मुख्यधारा में प्रवेश के लिए एक बाधा है। चीन के अपने रीति रिवाज़ और परंपराएँ, एक विशाल आबादी और एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। इसमें ऐसी आशा है कि यह एक ऐसा राष्ट्र बन सकता है जिसकी ओर लोगों की आशाएँ बँध सकती हैं।"

उन्होंने सूचित किया कि भारतीय मित्रों ने उन्हें बताया है कि नया चीनी नेतृत्व शी जिनपिंग और ली केिकयांग अपने पूर्ववर्तियों से भिन्न हैं। अतीत में जब दल की बैठक होती थी तो सभी के पास पढ़ने के लिए पहले से तैयार एक वक्तव्य होता था पर अब ऐसा नहीं है। परम पावन ने कहा कि उन्होंने एक पूर्व भारतीय मंत्री से, जो ब्राजील में शी जिनपिंग से मिले थे, सुना था कि वह पूर्ववर्ती नेताओं की तरह नहीं हैं, उनका व्यवहार अधिक मानवीय है।



परम पावन ने कहीं और कही गयी बात दोहराई कि १.३ अरब चीनी लोगों को सच्चाई जानने का अधिकार है। यदि उनके पास वह है तो सही तथा गलत के बीच निर्णय कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि पारदर्शिता महत्वपूर्ण है जबकि सेंसरशिप अनैतिक और व्यर्थ है।

परम पावन ने स्पष्ट किया कि विगत लगभग १५ वर्षों से, समदोंग रिनपोछे के प्रथम प्रधान मंत्री के कार्य काल के समय से केंद्रीय तिब्बती प्रशासन ने 'निर्वासन में सरकार' शब्द का प्रयोग नहीं किया है और न ही राजनीतिक नेता को प्रधानमंत्री के रूप में संदर्भित किया है। चीनी अधिकारियों का कहना है कि वे निर्वासन में तिब्बती सरकार को मान्यता नहीं देते, न ही वे जिसे 'विशाल तिब्बत' कहते हैं, को मानते हैं पर फिर भी यह उन्हीं के द्वारा दी गई अभिव्यक्ति है। उन्होंने कहा कि उइगुर नेता रेबिया कदीर के साथ हुई उनकी भेंट की बहुत आलोचना की गई यद्यपि उन्होंने उन्हें एक अहिंसात्मक दृष्टिकोण की योग्यता को अपनाने के लिए राजी किया था, जो एक सकारात्मक कदम था।

उनके चीन की यात्रा की संभावना के संबंध में परम पावन ने कहा ः

"मैं सदा से ही वू ताई शान की यात्रा करना चाहता हूँ। मैं १९५४ में वहाँ जाना चाहता था। फिर उसके पश्चात यह चीन के साथ वार्ता के ११वें चरण के दौरान उठा, पर उसे अस्वीकार कर दिया गया।"

श्रोताओं में से एक सदस्य जानना चाहता था कि इस प्रकार की आशंका का समाधान किस प्रकार निकाला जाए कि चीन में धार्मिक दलों का दमन है, परन्तु पश्चिमी सरकारें आर्थिक कारणों की वजह से चीन पर दबाव नहीं डालना चाहतीं। परम पावन ने उत्तर दिया कि अमरीकी सरकार चीन में मानव अधिकारों के विषय में एक वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करती है जिसमें स्पष्ट रूप से तिब्बत का उल्लेख है। इस बीच, उन्होंने कहा कि वह चांसलर एंजेल मर्केल द्वारा हाल ही में चीन में मानव अधिकारों के बारे में खुलकर बोलने की सराहना करते हैं।

"जब कुछ वर्षों पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा सबसे पसंदीदा व्यापार राष्ट्र का दर्जा देने की बात की जा रही थी तो मैं वाशिंगटन में था और मुझसे इसके बारे में पूछा गया। मैंने कहा दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश के रूप में चीन इसकी योग्यता रखता है। इसी तरह मैंने ओलंपिक के आयोजन के लिए चीन के प्रयास का समर्थन किया। चीन में जो कमी है वह लोकतंत्र और नैतिक उत्तरदायित्व की भावना है, और यदि वे वास्तव में विश्व के लिए खोलना चाहते हैं तो यह उनके आवश्यक है।"

उन्होंने उल्लेख किया कि ऐसा प्रतीत होता है कि नवम्बर में कम्युनिस्ट पार्टी चीन की राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक के दौरान न्याचपालिका से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। उन्होंने पूछा:

"आप में से जो वकील हैं वे इस पर गौर कर न्यायिक प्रणाली के विषय में क्यों नहीं लिखते? नारे लगाना एक बात है, परन्तु शांत भाव से स्थिर कार्रवाई करना अधिक प्रभावी हो सकता है।"

परम पावन से पूछा गया कि हाल ही में चीन तिब्बती संचार में विस्तार हो रहा है अथवा सिकुड़ रहा है। उन्होंने उत्तर दिया कि वे बढ़ रहे हैं; आपसी व्यवहार बढ़ा है। उन्होंने कहा कि अधिक से अधिक चीनी उनकी शिक्षा सुनने के िलए आते हैं और २-३ वर्ष पूर्व उन्होंने मुख्य चीन प्रदेश से दलों के लिए शिक्षा देना प्रारंभ किया।

उन्होंने हाल ही में दिए गए शी जिनपिंग की टिप्पणी उद्धृत की, कि चीनी संस्कृति को पुनर्जीवित करने और अब चीन में ३०० -४०० अरब बौद्ध होने की खोज में बौद्ध धर्म की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।

परम पावन ने प्रतिभागियों को बताया कि भारत लौटने की यात्रा के लिए उन्हें जाना होगा, परन्तु निर्वाचित तिब्बती नेता सिक्योंग लोबसंग सांगे और अन्य उनके प्रश्नों का उत्तर देने के िलए उपलब्ध हैं। जैसे ही वे कक्ष से बाहर निकले कई व्यक्ति परम पावन के साथ व्यक्तिगत रूप से बातचीत करने हेतु उत्सुकता पूर्वक आगे आए। वहाँ से उन्होंने म्यूनिख और आगे दिल्ली उड़ान भरने के लिए सीधे हैमबर्ग हवाई अड्डे के लिए गाड़ी से प्रस्थान किया। 

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