परम पावन 14 वें दलाई लामा
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परम पावन दलाई लामा की नेशनल कैथेड्रल और नेशनल इंस्टिट्यूट्स फॉर हेल्थ (राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थानों) की यात्रा ७/मार्च/२०१४

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वॉशिंगटन डी सी, संयुक्त राज्य अमेरीका - ७ मार्च २०१४ -  आज प्रातः वाशिंगटन नेशनल कैथेड्रल में आने पर, राइट श्रद्धेय मारिएन एडगर बड्डी और डीन, अति श्रद्धेय गैरी हॉल ने परम पावन दलाई लामा का उत्साहपूर्वक स्वागत किया। जैसे ही उन्होंने भवन में प्रवेश किया, अंतर्राष्ट्रीय शुगदेन समुदाय की आड़ में नव कदम्प परम्परा के प्रदर्शनकर्ता की नारेबाज़ी का तथा एक और बड़े समूह द्वारा अपने बीच परम पावन की उपस्थिति का हर्षोल्लास मनाने के िलए ड्रम बजाने से उत्पन्न शोर सुनाई दे रहा था।


कैथेड्रल में, श्रद्धेय हॉल ने समझाया कि परम पावन अपनी चौथी यात्रा पर थे और राइट रेव बड्डी ने दर्शकों से उनका परिचय करवाया। वे पोड़ियम पर चढ़े और तुरंत पीछे मुड़कर अपने बैग से टोपी निकाली ताकि चुँधियाती रोशनी से अपनी आँखंों की रक्षा कर सकें और श्रोताओं को देखने में सक्षम हो सकें। उन्होंने प्रारंभ किया:

"आदरणीय बड़े भाई और बहनों, छोटे भाइयों और बहनों, मेरा यहाँ पुनः आना मेरे लिए एक महान सम्मान की बात है। हम इस समय २१वीं शताब्दी में हैं, एक ऐसे समय में जब धार्मिक सद्भाव उतना ही महत्त्वपूर्ण है। साधारणतया सभी ओर शांति की एक प्रबल इच्छा है, जबकि लोग और अधिक मानने लगे हैं कि हिंसा समस्याओं का समाधान करने का उचित उपाय नहीं है। वास्तव में लोग हिंसा से तंग आ चुके हैं। हमें पिछली सदी की त्रुटियों को दोहराने की आवश्यकता नहीं है और इस में एक तत्व अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देना है।"

इस संबंध में उन्होंने भारत द्वारा रखे जा रहे उदाहरण की प्रशंसा की। सभी प्रमुख धार्मिक परंपराएँ न केवल भारत में मौजूद हैं, पर पनपते हैं और साथ साथ मिलकर रहते हैं। उन्होंने माना कि ये परम्पराएँ अपने दार्शनिक विचारों में व्यापक रूप से भिन्न हो सकती है पर उनका एक सामान्य लक्ष्य है, जो परम पावन बनाए रखने के िलए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि वास्तविक सद्भाव को हृदय से आना चाहिए, यह मात्र कुछ मिनटों के िलए मुस्कुराना नहीं हैं पर ऐसी जागरूकता से उत्पन्न है, कि धार्मिक परंपराओं की विवधता, मानवता का एक आवश्यक अंग है। हमारे क्लेशों को शांत करने में उनकी एक भूमिका है। क्रोध और विद्वेष प्रेम तथा करुणा के विपरीत हैं इसीलिए सभी धार्मिक परम्पराएँ सहिष्णुता और क्षमा की शिक्षा देते हैं। वे आत्मकेन्द्रितता और लोभ से भी जुड़े हैं जो ईर्ष्या और अविश्वास को भड़काते हैं, और इसीिलए धार्मिक परम्पराएँ संतोष तथा सादगी भी सिखाते हैं।

"इस बीच", परम पावन ने कहा,"हमारे ईसाई भाइयों और बहनों ने अपनी श्रद्धा तथा विश्वास से प्रेरित हो, कि गरीब की सेवा भगवान की सेवा करने का उत्तम रूप है, विश्व के कई दूरस्थ भागों में शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ा योगदान दिया है। मेरा एक मुसलमान मित्र भी कहता है कि एक अच्छे मुसलमान को अल्लाह के बनाए हुए सब के प्रति स्नेह और करुणा दिखाना चाहिए।


"कुछ लोगों के लिए एक सृजनकर्ता का विचार बहुत शक्तिशाली है। मैंने एक ईसाई मित्र से पूछा कि क्या उसे पूर्व जन्मंो में विश्वास करने में कोई कठिनाई होगी और उसने काफी दृढ़ता से कहा कि होगी, क्योंकि ईश्वर ने इस जीवन का निर्माण किया था। यह एक शक्तिशाली शिक्षा है। ऐसा सोचना कि आपका सृजन ईश्वर ने किया है, का अर्थ यह हुआ कि आप में भी ईश्वर की एक चिनगारी है ।"

"एक बौद्ध के रूप में मुझे बौद्ध धर्म के विषय में भी कुछ कहना है। हम कार्य - कारण के नियम में विश्वास करते हैं, अतः हम स्वयं ही सृजनकर्ता हैं। यह भी एक शक्तिशाली शिक्षण है क्योंकि इसका अर्थ यह हुआ कि हम स्वयं ही अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी हैं। यदि हम दूसरों के िलए अच्छा करेंगे तो परिणाम सुखपूर्ण होगा, यदि हम उनका अहित करें तो दुख होगा। यह एक और शक्तिशाली शिक्षण है।"

परम पावन ने समझाया कि उनकी मुख्य प्रतिबद्धता मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा कि एक धर्म, चाहे वह कितना ही अनोखा क्यों न हो, समूची मानवता के लिए एक सार्वभौमिक आकर्षण नहीं रखेगा। उन्होंने कहा, कि उदाहरण के लिए एक अरब लोग दावा करते हैं कि वे गैर - विश्वासी हैं, जबकि कई जो विश्वास रखने का दावा करते हैं वे निष्ठाहीन या समस्या को जन्म देने वाले हैं। मुख्य बात यह है कि नैतिकता की एक सामान्य कमी है। समारोहों और अनुष्ठानों के माध्यम से नैतिकता को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता, यह मात्र एक व्यवस्थित शिक्षा के माध्यम से हो सकता है। उन्होंने कहा कि भावनात्मक शुचिता के समतुल्य एक प्रकार की शारीरिक शुचिता की आवश्यकता है।

"हममें बहुत अधिक तनाव है और अपना ध्यान बँटाने के लिए हम जो कुछ करते हैं वह मात्र अस्थायी राहत प्रदान करना है।"

उन्होंने कहा कि जिन बच्चों को अपनी माँओं से बहुत अधिक स्नेह िमलता है वे अधिक सुखी वयस्कों के रूप में बड़े होते हैं, पर और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है कि शिक्षा व्यवस्था में नैतिकता को शामिल करने के उपाय ढँूढे जाएँ।

"यदि ये विचार आपको रुचिकर लगें, तो इन पर आगे चिंतन करें, अपने मित्रों तथा परिवार के साथ उन पर चर्चा करें। आइए, हम अपनी शिक्षा में नैतिकता और आंतरिक मूल्यों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर संदेश का प्रसारण करें।"


श्रोताओं में से एक ने परम पावन को दोलज्ञल - शुगदेन से संबंधित प्रश्न करते हुए टोका। परम पावन ने कहा कि एक समय था कि अज्ञानता के कारण उन्होंने स्वयं उसका अभ्यास किया था पर उन्होंने अनुभव किया कि यह उनकी एक त्रुटि थी। शोध के द्वारा ज्ञात हुआ है कि ५वें तथा १३वें दलाई लामा ने स्पष्टतः इसका विरोध किया था। यह अनुभव करने पर, कि यह एक गलती थी, परम पावन ने कहा कि यह उनका उत्तरदायित्व था कि वे अन्य लोगों को बताएँ। उस जानकारी के आधार पर वे किस प्रकार के कार्य का चयन करते हैं, ये उन पर निर्भर है। उन्होंने कहा, कि यह अच्छा है कि प्रदर्शनकारी मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित कर लोगों को इस संबंध में स्पष्टीकरण प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित कर रहे थे।

"एक मानव के रूप में, मैं मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देता हूँ, एक बौद्ध के रूप में मैं धार्मिक सद्भाव को प्रोत्साहित करता हूँ और एक तिब्बती के रूप में, मैं तिब्बत की बौद्ध संस्कृति और देश के प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण के बारे में चिंतित हूँ।"

जब डीन हॉल ने प्रश्न किया कि वे किस प्रकार लगे रहते हैं, उन्होंने उत्तर दिया कि तिब्बत के प्रश्न के संबंध में वे एक पक्षीय सफलता की ओर नहीं, अपितु पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान की ओर देख रहे हैं। तिब्बती, विगत लगभग ५५ वर्षों से श्रेष्ठ की आशा करते हुए सबसे बुरी स्थिति के लिए तैयारी कर रहे हैं। डीन ने पूछा कि वह करुणा और न्याय की माँग किस प्रकार एक साथ करते हैं और परम पावन ने उत्तर दिया, कि यदि आप करुणा से प्रेरित होकर कार्य करें, तो स्वाभाविक रूप से न्याय आ जाता है।

तीन छात्रों ने प्रश्न पूछे, पहला कि वह किस प्रकार विनम्र बने रहते हैं जिसके उत्तर में परम पावन ने कहा कि वह हमेशा दूसरों को भी अपने समान एक मानव समझते हैं। उन्होंने कहा कि यदि वह अंतर पर जोर दें कि वह तिब्बती, एक बौद्ध और परम पावन दलाई लामा हैं तो उससे उनके और दूसरों के बीच में दूरी उत्पन्न होती है। एक दूसरे छात्र ने पूछा कि राष्ट्रपति ओबामा के साथ उनकी बैठक कैसी रही, और वह यह जानना चाहता था कि उनको लेकर चीनी सरकार के अधिकारी इतने क्रोधित क्यों हुए थे। परम पावन ने उत्तर दिया:


"उनसे पूछिए! फिर भी चीनी लोग एक अन्य बात है। इन १.३ अरब लोगों को यह जानने का अधिकार है, कि क्या हो रहा है। उनमें उचित तथा अनुचित में अंतर करने की क्षमता है, अतः जिस सेंसरशिप का सामना वे कर रहे हैं वह लोगों को बेवकूफ बनाने के एक प्रयास जैसा होगा। इसके अतिरिक्त यह उनके लिए महत्त्वपूर्ण है कि चीनी न्यायपालिका को अंतरराष्ट्रीय मानकों के स्तर तक लाया जाए।"

विश्वास और प्रेरणा से संबंधित एक प्रश्न के उत्तर में, उन्होंने कहा कि आप जो भी करें, आपकी प्रेरणा शुद्ध होनी चाहिए और लक्ष्य यथार्थवादी होना चाहिए।

"मैं २०वीं सदी का हूँ, पर आप युवा लोग इस नई २१वीं सदी के हैं। २०वीं सदी अतीत है, हम केवल अनुभव से सीख सकते हैं, लेकिन भविष्य को अभी आना है और यदि हम बुद्धि और सौहार्दता को काम में लाएँ, तो उसे पुनः आकार दिया जा सकता है। आप के पास करुणा के आधार पर एक अधिक सुखी सदी बनाने का अवसर है।"

उन्होंने समापन करते हुए कहा कि अमेरिका मुक्त विश्व का अग्रणी देश है और उसे केवल अमेरिका के हितों की ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण िवश्व के कल्याण की बात सोचनी चाहिए। डीन हॉल के अनुरोध के उत्तर में उन्होंने फिर प्रार्थना के तीन पदों का पाठ किया:

अनमोल बोधिचित्त हो उत्पन्न हो वहाँ
जहाँ यह पहले उत्पन्न न हुआ हो,
और जहाँ हुआ हो यह उत्पन्न
यह िबना क्षय हुए निरंतर बढ़ता रहे ।

विश्व में आध्यात्मिक शिक्षकों का आविर्भाव हो
शिक्षाएँ चमकें सूरज की किरणों सम
आध्यात्मिक परंपराओं के रक्षक बने रहें समानता, सद्भाव में
और वे परम्पराएँ दीर्घ काल तक लाभदायी बनी रहें ।

जब तक आकाश है स्थित, जब तक रहें सत्व यहाँ,
तब तक मैं भी बना रहूँ, संसार के कष्ट दूर करने के लिए।
***

मध्याह्न के भोजनोपरांत, परम पावन का नेशनल इंस्टिट्यूट में एक कार्यक्रम था, परन्तु पहले वे निकट रहने वाले तिब्बतियों से या जो न्यूयॉर्क से आए थे, उनसे िमले।


"आप सब को मेरा अभिनन्दन। हम निर्वासन में लगभग ५५ वर्षों से हैं, पर उससे अधिक महत्त्वपूर्ण है, कि तिब्बत ने पिछले ६० साल वर्षों से क्या झेला है और फिर भी अपना दृढ़ संकल्प और साहस बनाए रखा है। यहाँ तक ​​कि छोटे बच्चों में भी तिब्बती होने की एक सशक्त भावना है। वैसे भी हमारी पीढ़ी ने कम से कम तिब्बत की प्रतिष्ठा और अतीत के महान राजाओं की धरोहर को कलंकित नहीं किया है।"

उन्होंने कहा कि जब से तिब्बती निर्वासन में आए हैं, बड़े पैमाने पर लोग तिब्बती संस्कृति और परम्पराओं को सराह रहे हैं। इसको लेकर भी अधिक जागरूकता है कि तिब्बती विनम्र, दयालु, ईमानदार लोग हैं। तिब्बत के आगंतुकों में यह देखकर प्रसन्नता है और धर्मशाला में आ रहे पर्यटक भी अन्य स्थानों की तुलना में यह वातावरण पसंद करते हैं। हेनरिक हार्रेर ने अुनभव किया कि यद्यपि कुछ अर्थों में उन्हें तिब्बत में कष्टों का सामना पड़ा पर तिब्बत में बिताया सात वर्ष उसके जीवन का श्रेष्ठ समय था।

"हम तिब्बती अपनी तिब्बती बौद्ध संस्कृति को लेकर उत्साहित हैं, पर मैं आपको स्मरण कराना चाहूँगा कि बुद्ध ने अनुयायियों को सलाह दी थी, कि उन्होंने जो भी शिक्षा दी, उसे उसी रूप में न लिया जाए अथवा अंधश्रद्धा के कारण। जिस प्रकार एक सुनार सोने को परखता है उसी तरह उन्होंने उनकी शिक्षा पर प्रश्न उठाने और जाँच करने के िलए प्रोत्साहित किया। तो आपको शिक्षा के बारे में सोचना चाहिए और अपने अनुभव पर लागू करना चाहिए। बुद्ध ने दुख पर बल, हमें भयभीत करने के िलए नहीं अपितु उससे मुक्ति प्राप्त करने की संभावना के प्रति हमें सचेत करने के लिए दिया।"


"हमारे पूर्वजों ने तिब्बत में नालंदा परंपरा स्थापित करने के लिए बहुत परिश्रम किया, पर आपको इससे परिचित होने के लिए संस्कृत, अंग्रेजी या किसी भी अन्य भाषा को जानने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह हमारी अपनी ही तिब्बती भाषा में उपलब्ध है। यद्यपि ९वीं शताब्दी के बाद तिब्बत खंडित हो गया था पर जो संपूर्ण तिब्बत में था और अब भी है, वह हमारी भाषा और बुद्ध की शिक्षाएँ हैं।"
 
उन्होंने आगे शिक्षाओं की प्रकृति, प्रतीत्य समुत्पाद का अनूठा बौद्ध दृष्टिकोण तथा तिब्बत में बौद्ध धर्म को स्थापित करने में शांतरक्षित की भूमिका के बारे में बात की।
 
विषयांतरण करते हुए उन्होंने उल्लेख किया कि तिब्बती समस्या, गृह युद्ध या प्राकृतिक आपदाओं की बात नहीं है, यह ऐसा है, कि बिन बुलाए सशस्त्र अतिथि मु्क्ति की बात करते हुए द्वार तक आ पहुँचे और सब कुछ नियंत्रण में लेना प्रारंभ कर दिया। यह ऐसी समस्या है, जिसका समाधान केवल बैठकर बातचीत द्वारा किया जा सकता है।

"यदि हम शारीरिक रूप से उनका सामना करने का प्रयास करें तो हम तिब्बत में रह रहे लोगों को जोखिम में डालेंगे और हमारे ही अंतरराष्ट्रीय समर्थन को बलहीन करेंगे।" उन्होंने कहा।


***
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ (एन टी एच) में, निदेशक डॉ. फ्रांसिस कोलिन्स ने परम पावन का स्वागत किया जिन्होंने कुछ बंद विमर्श के पूर्व उन्हें कई सहयोगियों और कर्मचारी सदस्यों से मिलवाया। परम पावन के माइंड एंड लाइफ इंस्टिट्यूट के एक पुराने मित्र डॉ. रिचर्ड डेविडसन भी वहाँ मौजूद थे।


इसके कुछ समय बाद परम पावन ने एक खचाखच भरी सभागार में एड राल सांस्कृतिक व्याख्यान देना प्रारंभ किया, तो उनकी पहली टिप्पणी उसके बारे में थी जिसे उन्होंने तभी देखा था। मस्तिष्क पक्षाघात से पीड़ित एक १३ वर्ष की लड़की एक प्रक्रिया से गुज़र रही थी जिसमें उसके मस्तिष्क को पुनः प्रशिक्षित करने के लिए उसके पैरों को प्रशिक्षित किया जा रहा था।

"विज्ञान ने वास्तव में मानव कल्याण के लिए एक योगदान दिया है। मैं अपने बाल्यकाल से ही इसमें रुचि रखता आया हूँ और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रभाव का साक्षी बनने का प्रथम अवसर मुझे १९५४ में मुख्य भूमि चीन में और एक बार निर्वासन में आने पर १९५९ में मिला। पर एक चेतावनी यह है कि यह आवश्यक नहीं कि वैज्ञानिक निष्कर्ष और विकास एक और अधिक शांतिपूर्ण विश्व की गारंटी हैं, जैसा कि परमाणु हथियारों के विकास साक्षी हैं। और न ही केवल वैज्ञानिक ज्ञान आंतरिक शांति ला सकता है। आंतरिक शांति बुद्धि तथा करुणा दोनों के परिणामस्वरूप आती है। पर ऐसा कहते हुए, भी २०वीं सदी के अंत तक एक उचित संख्या मेंं सम्मानित वैज्ञानिकों ने चित्त क्या है, के प्रश्न पर ध्यान देना प्रारंभ कर दिया था। मेरा विश्वास है कि २१वीं सदी के अंत तक चित्त की समझ और अधिक पूरा हो जाएगी।"

एन आइ एच से डलेस हवाई अड्डे के लिए रवाना होने से पूर्व परम पावन संक्षेप रूप में कई प्रश्नों के उत्तर दे सके। संयुक्त राज्य अमेरीका के एक सफल तथा व्यापक यात्रा की समाप्ति पर उन्होंने डलेस हवाई अड्डे से फ्रैंकफर्ट के लिए उड़ान भरी।

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