परम पावन 14 वें दलाई लामा
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३३ वें कालचक्र अभिषेक का अंतिम दिन १२/जुलाई/२०१४

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लेह, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, भारत - १२ जुलाई २०१४ - आज ३३वें कालचक्र अभिषेक की परिणति हुई। प्रारंभिक अनुष्ठानों पर पाँच घंटे लगाकर और शीघ्रता से मध्याह्न के भोजनोपरांत परम पावन दलाई लामा दोपहर से पहले अभिषेक का अंतिम सत्र प्रारंभ करने के लिए तैयार थे। सिंहासन पर अपना स्थान ग्रहण करने से पूर्व उन्होने विशाल जन समुदाय, लामाओं, स्थानीय गणमान्य व्यक्तियों और अन्य अतिथियों का अभिनन्दन करने के लिए समय निकाला।

यह अंतिम सत्र, जिसमें वह बालक समा तथा चार उच्चतर अभिषेकों के अनुसार सात अभिषेक देगें, का प्रारंभ सब प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए आनुष्ठानिक रोटी के समर्पण से प्रारंभ हुआ।

"आप सब जो अभिषेक को बाधित कर सकते हैं, मैं आप सब से एक शांतिपूर्ण ढंग से यहाँ से जाने का आग्रह करता हूँ।"


"जैसा कि सूत्र में कहा है, हम सभी सुख चाहते हैं और न ही किसी को इस पर तर्क करने की और न ही इस संंबध में कारण देने की आवश्यकता है। हम सभी स्वाभाविक तौर पर सुख चाहते हैं, यहाँ तक स्वप्न में भी। पर हमें अल्पकालिक और दीर्घकालिक सुख के बीच अंतर करने की आवश्यकता है।"
 
परम पावन ने टिप्पणी की कि जानवर भी अल्पकालिक सुख प्राप्त कर लेते हैं, जो उन्होंने किया है और हज़ारों वर्षों से सफलता पूर्वक जनन किया है, जैसा कि डार्विन सिद्धांत स्पष्ट करता है। उन्होंने भौतिक सुख खोजा है और पाया है। जहाँ तक ​​मनुष्यों का संबंध है, हमारा लक्ष्य लम्बे समय में दुखों पर काबू पाकर स्थायी सुख प्राप्त करना है। जहाँ ईसाई और अन्य, अपने ईश्वर में शरण लेते हैं, वहीं गैर आस्तिक जैसे बौद्ध, कार्य कारण में विश्वास रखते हैं। वे उच्च पुनर्जन्म और अंततः प्रबुद्धता की खोज करतेे हैं। यहाँ तक ​​कि इस जीवन में भी जीवन को सार्थक बनाने का एक प्रयास है। बौद्धों को यह शिक्षा दी जाती है कि सर्वोच्च मुक्ति की स्थिति, सर्वज्ञता तक किस प्रकार पहुँचा जाए।

"सुख का एक स्रोत", परम पावन ने कहा,"संघ के बीच सद्भाव है। संघ में पुरुष और महिला सदस्य होते हैं। हमारे पास पालि परम्परा है और वे देश जो संस्कृत परंपरा का समर्थन करते हैं। अतीत में हमारे िलए एक दूसरे के साथ संपर्क करना कठिन था, पर अब संचार सरल हो गए हैं और आपस की दूरियों पर काबू पा सकते हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हम मित्रवत और सौहार्दपूर्ण संबंध विकसित करें। ऐतिहासिक दृष्टि से पालि और संस्कृत परंपरा एक दूसरे के प्रति चौकन्ने रहे हैं; अब समय आ गया है कि हम उसे पीछे छोड़ दें।"

"तिब्बती बौद्ध धर्म, सूत्र और तंत्र का एक संयोजन है, पर हमें स्वयं को पक्षपाती और पक्षपातपूर्ण बनने से बचाना होगा। एक काफी अलग संदर्भ में मैंने तवांग और अरुणाचल प्रदेश के अन्य भागों में भिक्षुओं को चेतावनी दी है कि राजनीतिक मामलों में पक्षपाती या पक्षपातपूर्ण बनने से बचें। उदाहरण के लिए उन्होंने सलाह दी कि चुनाव के दौरान किसी भी पार्टी के लिए चुनाव प्रचार न करें। उन्हें तटस्थ और निष्पक्ष होना चाहिए। फिर ऐसे भिक्षु और उनके संरक्षक हैं जो उस परम्परा से चिपके हुए होते हैं, जिनसे उनका संबंध है। यदि हम अपने बीच सद्भाव को बढ़ावा देना चाह रहे हैं तो बेहतर होगा कि हम प्राथमिक तौर पर स्वयं को बुद्ध के अनुयायियों के रूप में मानें।"

"मैंने लंबे समय से भिक्षुओं से अध्ययन का और प्रमुख रूप से बौद्ध शास्त्रीय ग्रंथों का अध्ययन करने का आग्रह किया है। मैंने इसे भिक्षुणी विहारों और भिक्षु विहारों में प्रोत्साहित किया है। बार बार अनुष्ठान करना ही पर्याप्त नहीं है। अध्ययन करना महत्वपूर्ण है। मैंने हाल ही में लिकिर विहार में प्रज्ञापारमिता की शिक्षाओं पर एक संगोष्ठी और एक शास्त्रार्थ देखा, जो मुझे लगा कि एक अच्छा उदाहरण स्थापित किया गया है। यहाँ के विहारों को अपने भिक्षुओं को, महान विहारों में, जो भारत में पुनर्स्थापित किए गए हैं, शामिल होने के लिए अधिक प्रोत्साहित करना चाहिए।"
 


"यहाँ गदेन ठि रिनपोछे, शर्पा छोजे और बड़ी संख्या में गेशे और रिनपोछे हैं और मैं उनके सामने यह कहना चाहता हूँ। यहाँ टाशी लुनपो और डेपुंग महाविहारों में शास्त्रीय ग्रंथों का अध्ययन हो रहा है। वे वहाँ जो कर रहे हैं, वह अच्छा है पर हम यह मान कर बैठ नहीं सकते कि जैसा सब कुछ है, वह ठीक है। हमें समय समय पर जांच करते रहना चाहिए। शिक्षकों को यह चर्चा करने के लिए कि और क्या किया जा सकता है, एक साथ बैठना चाहिए। ५५ वर्ष बीत चुके हैं, जब हम ने हम बक्सा द्वार पर शिविर स्थापित किया था; हमें जाँच करना है कि हमने जो मानक स्थापित किए थे क्या वे बने हुए हैं।"

परम पावन ने आधुनिक विश्व के विकर्षणों का संदर्भ दिया और इस बात को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर कि भिक्षु उनके द्वारा अभिभूत न हो जाएँ। उन्होंने कहा कि इस बात को देखने की आवश्यकता है कि तीन शिक्षाओं का ठीक से पालन हो रहा है। उन्होंने स्तरों में गिरावट और उसे दूर करने में इतना विलंब न हो कि तब तक बहुत देर हो जाए के संभावित संकटों के प्रति चेताया। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में तिब्बत के विहार संस्थाएँ, कम्युनिस्ट पार्टी सरकार के नियंत्रण में हैं, इसलिए यह और भी अधिक महत्वपूर्ण बन जाता है कि हम जैसे स्वतंत्र देशों में रहने वाले लोग इस स्वतंत्रता का लाभ उठाएँ।

यह टिप्पणी करते हुए कि गदेन ठि रिनपोछे ने पहले तिब्बती भाषा पर एक व्याख्यान दिया था, परम पावन ने कहा कि वे तिब्बती भाषा सीखने का समर्थन मात्र इसलिए नहीं करते वह एक वफादार तिब्बती हैं। अपितु उनका मानना यह है कि विशाल नालंदा परंपरा सबसे पर्याप्त रूप से तिब्बती भाषा के माध्यम से व्यक्त की जा सकती है। यह अन्य देश के लोगों जैसे मंगोलिया और रूसी मंगोलियाई गणराज्यों को भी प्रभावित करती है। उन्होंने कहा कि जब वह युवा थे और तिब्बत में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तो अपने समकालीनों के बीच मंगोलिया से सैकड़ों महान विद्वान थे। उन्होंने स्मरण किया कि उन्होंने जब पहली बार १९७९ में मंगोलिया की यात्रा की तो वे और मंगोलिया के लोग एक दूसरे से बात करने में असमर्थ थे, पर लिख कर विचारों का संप्रेषण कर पाए थे। यहाँ तक ​​कि तिब्बत में विभिन्न बोलियाँ है पर जो लिखित भाषा है वह सभी के लिए समान है।

"कुछ लोगों का कहना है कि सार्वजनिक रूप से तिब्बती भाषा के अध्ययन का समर्थन कर मैंने एक राजनीतिक पक्ष लिया है, पर मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि वर्तमान समय में यदि आप कांग्युर तथा तेंग्युर की विषय सामग्री को समझना चाहते हैं तो आप को तिब्बती भाषा का ज्ञान होना चाहिए। आज जब इतने सारे लोग यहाँ एक साथ इकट्ठा हुए हैं, मैं आपके साथ इन विचारों को साझा करना चाहता था।"

परम पावन ने कहा,

"अब, मैं अभिषेक प्रारंभ करूँगा। मैं सब कुछ एक एक छंद के रूप में समझाने में सक्षम नहीं होऊँगा और जब हम अभिषेक पर पहुँचेंगे तो हम एक रॉकेट की तरह जाएँगे।"


उन्होंने बालक समा सात अभिषेक प्रदत्त करने प्रारंभ किए जल, मुकुट, पट्टांक, वज्र और घंटा, वज्रव्रत, नाम तथा अनुज्ञा अभिषेक और उपांग, जिसके पश्चात चार उच्चतर अभिषेक।

परम पावन ने उल्लेख किया कि इस को लेकर अलग अलग दृष्टिकोण हैं कि बुद्ध ने कालचक्र अभिषेक प्रथम बार कब दिया था। बुतोन रिनछेन डुब ने कहा कि उन्होंने प्रबुद्धता प्राप्त होने के बारह महीनों बाद, वर्ष के तीसरे महीने में दिया था। दूसरी ओर तगछंग लोचावा और खेडुब नोरसंग ज्ञाछो, जो महान कालचक्र विद्वान थे, ने यह कहा कि उन्होंने अपने परिनिर्वाण के एक वर्ष पूर्व दिया था।

समापन में परम पावन ने टिप्पणी की:

"हमने बालक समा सात अभिषेक समाप्त कर िलए हैं जिनका संबंध उत्पत्ति क्रम से है और चार उच्चतर अभिषेक जिनका संबंध निष्पन्न क्रम से है। दूसरे शब्दों में हमने कालचक्र के ग्यारह अभिषेक पूरे कर लिए हैं और अभी केवल ३ः०० बजे हैं। जो बिलकुल बुरा नहीं है। मैंने कल आपको कालचक्र छह सत्रीय गुरू योग का प्रसरण दिया था।

"तांत्रिक अभ्यास का मुख्य लक्ष्य निष्पन्नता की अवस्था है, पर हमें वास्तव में जिस पर ध्यान केंद्रित करना है, वह बोधिचित्त तथा शून्यता की हमारी समझ है। उच्च स्तरों की अनुभूति के लिए, हमें एक दृढ़ आधार पर निर्माण करना है।"

कल परम पावन श्वेत तारा से संबंधित एक दीर्घायु अभिषेक देंगे और फिर उसके बाद उन्हें एक दीर्घायु समर्पण दिया जाएगा। 

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