परम पावन 14 वें दलाई लामा
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कालचक्र अभिषेक की प्रारंभिक प्रक्रियाएँ १०/जुलाई/२०१४

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लेह, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, भारत - १० जुलाई २०१४  - परम पावन दलाई लामा आज प्रातः शीघ्र ही प्रवचन मंडप गए और चार घंटे आत्म - उत्पाद अनुष्ठान में बिताए। जब वे दिन की गर्मी में मध्याह्न के भोजन से लौटे, तो अनुमानतः १४४,००० लोग कालचक्र अभिषेक की तैयारी की प्रक्रिया में भाग लेने के लिए एकत्र हुए थे। वह भीड़ में लोगों को देखने तथा मुस्कुराते और अभिनन्दन में हाथ लहराते मंडप के सामने मंच पर आए और श्रोताओं ने उनका अभिनन्दन का प्रत्युत्तर दिया। मंडप के अंदर उन्होंने लामाओं और गणमान्य व्यक्तियों का अभिनन्दन किया, जिनमें गदेन ठि रिनपोछे, सक्या दुंगसे रिनपोछे, डिगुङ छेछंग रिनपोछे और सिक्योंग लोबसंग सांगे थे।



बुद्ध स्तव, हृदय सूत्र और नागार्जुन की 'मूलमध्यमकारिका' से छंदों के पाठ के पश्चात परम पावन ने प्रारंभ किया:

"हम एक रेत मंडल के आधार पर कालचक्र अभिषेक का संचालन करने जा रहे हैं और आज हम प्रारंभिक प्रक्रियाओं को करेंगे। विश्व में कई धर्म हैं। सभी प्रेम, करुणा और सहिष्णुता सिखाते हैं और अपने अनुयायियों को, क्रोध को अपने पर हावी न होने देने या पूर्वाग्रह न बनाए रखने का परामर्श देते हैं। चूँकि लोभ, हानि का एक स्रोत है, वे संतोष और आत्म अनुशासन भी सिखाते हैं। कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है कि ईसाई अभ्यासी वास्तव में दूसरों की सहायता करने में अधिक सक्रिय हैं। ईसाई भिक्षु और भिक्षुणियाँ भी स्वाभाविक रूप से एक सरल, विनम्र जीवन जीते हैं।"

उन्होंने यह बात दोहराई कि सभी धार्मिक परंपराओं में प्रेम, करुणा, सहिष्णुता और आत्म अनुशासन की शिक्षाएँ आम हैं, पर जब उनके दार्शनिक दृष्टिकोणों की बात आती है तो उनमें अंतर है। उनमें से अधिकाँश एक सृजनकर्ता ईश्वर पर बल देते हैं जिसका अपना महत्व है। इस विश्वास से वे सब कुछ ईश्वर की इच्छा के रूप में देखते हैं और उस के अनुसार जीने का प्रयास करते हैं। कई धार्मिक परंपराएँ अतीत और भविष्य के जीवन का विचार स्वीकार करती हैं, उदाहरण के लिए ईसाइयों, के साथ, जिनका यह विश्वास है कि आत्मा स्वर्ग में जाती है या नरक में। पर बौद्ध इस तरह की एक आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते। बौद्ध धर्म नालंदा परंपरा पर आधारित है, जो तर्क पर आधारित है। आज जब शिक्षा के स्तर ऊँचे हैं तो उसके तर्क तथा ज्ञान पर बल देने के कारण नालंदा परम्परा को आकर्षक पा सकते हैं।

परम पावन ने जन समूह को बताया कि चूँकि प्रक्रिया के दौरान एक बिंदु पर कि शिष्यों को कुश घास और एक सुरक्षा धागा िदया जाए, उस समय संभावित हड़बड़ी को रोकने के लिए उन्होंने सुझाया था कि वितरण शीघ्र ही प्रारंभ किया जाए।

उन्होंने टिप्पणी की कि "हम एक बौद्ध शिक्षण के लिए एकत्रित हुए हैं, एक ऐसी धरा पर जहाँ बौद्ध धर्म तिब्बत से आ कर बहुत समय से फल फूल रहा है। जहाँ आप में से कई लद्दाख और हिमालय क्षेत्र पार से आए हैं, लगभग ५००० बड़ी लागत और कठिनाई से विदेश से आए हैं जिनमें चीनी और अन्य बौद्ध देशों के लोग भी शामिल हैं। मैं आयोजकों को इस कार्यक्रम को संभव बनाने के लिए उनके अच्छे कार्य के लिए धन्यवाद देना चाहूँगा।


"हम चाहें जिस धार्मिक परम्परा का पालन करें, जो भी विभिन्न रीति रिवाज़ों अथवा भाषा का हम प्रयोग करें, हम सभी सुख चाहते हैं। बौद्ध धर्म में हम चित्त की प्रभास्वरता की बात करते हैं। सभी सत्वों में स्पष्टता और सजगता का ऐसा चित्त है। कालचक्र हमें सिखाता है कि चित्त की प्रभास्वरता को किस प्रकार अपने अंदर यथार्य रूप दें।"


परम पावन ने कहा कि उनके समक्ष एकत्रित हुए लोगों को जिसकी आवश्यकता है, वह है ,एक अच्छा हृदय, सहृदयता और एक कम स्वार्थी व्यवहार। उन्होंने कहा कि कोई भी पीड़ा नहीं चाहता, तो सबसे अच्छा हम जो कर सकते हैं वह यह कि लोगों की सहायता का प्रयास करें और कम से कम उनका अहित न करें।

"प्रारंभिक शिक्षण के तीन दिनों में आपने बहुत सी बातें सुनी, पर सबसे महत्वपूर्ण, एक अच्छा व्यक्ति होने और दूसरों के प्रति दयालु होने की सलाह थी।"

परम पावन ने समझाया कि वे अभिषेक की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की बाधा को दूर करने हेतु वह एक अनुष्ठानिक रोटी का समर्पण कर रहे हैं। बाधा डालने वाली शक्तियों से कहा गया था कि वह समर्पण से संतुष्ट हो जाएँ और कार्यवाही में बाधा न डालें। उन्होंने कहा कि उन्होंने एक सुरक्षात्मक वज्र बाड़ के निर्माण की भी परिकल्पना कर ली थी।

"प्रवचन के विगत तीन दिनों के दौरान मुझे अपना लामा या आध्यात्मिक गुरु के रूप में देखने की कोई आवश्यकता नहीं थी, लेकिन इस प्रवचन कालचक्र अभिषेक के संदर्भ में, आप को मुझ पर विश्वास होना चाहिए। मैंने स्वयं को कालचक्र के रूप में परिकल्पित कर लिया है अतः हम एक गुरु शिष्य के संबंध में संलग्न होने वाले हैं।

"दोलज्ञल या शुगदेन के संबंध में, मैं उसकी उपासना करता था पर एक बार मुझे दस्तावेज़ मिले, जिनमें बताया गया था कि वह ५वें दलाई लामा के काल में उत्पन्न हुआ था और ५वें दलाई लामा ने उसे एक दुष्ट आत्मा के रूप मे देखा, जो धर्म और सत्वों दोनों को हानि पहुँचाता है, तो मैंने रोक दिया। दोलज्ञल अधिकाँशतः सक्यापा तथा गेलुगपा द्वारा पूजे जाते थे। ऐसा कहा जाता था कि एक गेलुगपा होने के नाते यदि आपने अपने घर में िञंगमापा के ग्रंथ या प्रतिमाएँ रखीं तो दोलज्ञल आपको दंडित करेगा। जिस समय मैं उस की पूजा करता था, मैं किसी अन्य परम्परा का न तो अध्ययन या अभ्यास कर सकता था। एक बार मैंने इसे बंद कर दिया तो मैं ऐसा करने के लिए स्वतंत्र था।"



"यदि आप में से कोई दोलज्ञल की उपासना करते हैं तो आपके िलए इस अभिषेक में इस स्थान पर रहना अच्छा न होगा, क्योंकि ऐसा करना गुरु-शिष्य के संबंध में दरार डालेगा। आप इस अभ्यास को बनाए रखना चाहते हैं अथवा नहीं यह आप पर निर्भर है।"

परम पावन ने समझाया कि उनके पूर्व ५वें और १३वें दोनों दलाई लामाओं ने दोलज्ञल के अभ्यास पर प्रतिबंध लगाया था क्योंकि यह गुरु और शिष्य के बीच आध्यात्मिक बंधन को नष्ट कर देता है। उन्होंने टिप्पणी की कि गैर सांप्रदायिक होना बहुत महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए ईसाई, हिंदू, यहूदी और इस्लाम धर्म एक लंबे समय से उनके अनुयायियों के लिए लाभकारी रहे हैं, अतः हमें उनका सम्मान करना चाहिए। यह अच्छा है कि वे लाभकारी हैं। उन्होंने लोगों को सच्चाई से अपनी आस्था का पालन करने की आवश्यकता पर बल दिया। धार्मिक सद्भाव और आपसी सम्मान बहुत महत्वपूर्ण है। तिब्बती बौद्ध परंपरा के भीतर विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि हम चाहें ञिंगमा, सक्या, काग्यु, गेलुग या बोन से संबंधित हों, हम एक दूसरे का सम्मान करें।

उन्होंने बताया कि बोनपो लोगों ने मूल रूप से अन्य अभ्यास िकए थे पर समय के साथ साथ शास्त्रीय बौद्ध जैसे चन्द्रकीर्ति के 'मध्यमाकवतार' को अपना लिया। उन्होंने कहा कि यह देखते हुए कि तिब्बती बौद्ध परम्पराओं के बीच नालंदा परंपरा की शक्ति एक समान थी इसलिए छोटे मोटे मतभेदों पर ध्यान केंद्रित करना अनुचित है। जो इस समय आवश्यक है, वह है विश्वास और मैत्री।

उन्होंने चोंखापा के शिष्य खेडुप जे से जो प्रश्न पूछे गए थे, उनमें से एक उस आचार्य की ओर से था जिन्होंने उन्हें सक्या का 'मार्ग तथा फल' का शिक्षण दिया था, का स्मरण किया, कि क्या जोगछेन को एक प्रामणिक शिक्षण माना जा सकता है। उन्होंने उत्तर दिया कि जो़गछेन का अभ्यास उन लोगों के लिए था जिनमें धर्म की उच्च अनुभूति थी और उसका तिरस्कार करना नरक का कारण होगा। उन्होंने कहा कि लोगों ने अभ्यास के नाम पर दुर्व्यवहार करने के कारण ज़ोगछेन की आलोचना की है।

"धर्मसभा, गैर सांप्रदायिकता महत्वपूर्ण है और महान तिब्बती आचार्यों ने इनका अभ्यास किया है", परम पावन ने कहा। "इन दिनों मैं पाश्चात्य देशों के लोगों से मिलता हूँ जो इस या उस परम्पराओं से विशेष रूप से जुड़े लगते हैं और गेलुग या काग्यु परम्पराओं से विशेष रूप सम्बद्धित होने का दावा करते हैं। लामाओं को अपने शिष्यों को इस प्रकार के दृष्टिकोण अपनाने की शिक्षा नहीं देनी चाहिए, अपितु हमारी परंपराओं के बीच आपसी सम्मान को बढ़ावा देना चाहिए।"


कालचक्र परम्परा के संबंध में, परम पावन ने इंगित किया कि ये ७वें दलाई लामा केलसंग ज्ञाछो का मुख्य अभ्यास था और वह नमज्ञल विहार के भिक्षुओं के प्रशिक्षण के लिए उत्तरदायी थे और उन्होंने कई ग्रंथों तथा निर्देशों की रचना की थी।

परम पावन ने गुह्य मंत्र वज्र यान के अर्थ को समझाते हुए कहा कि यह अभ्यास सार्वजनिक रूप के स्थान पर गुप्त रूप से आयोजित की जाती है, मंत्र का अर्थ मन की सुरक्षा है और इस संदर्भ में साधारण दृश्य से।

प्रारंभिक प्रक्रियाओं के भाग के रूप में, परम पावन ने पहले व्यक्ति उपासक प्रतिज्ञाएँ दीं और उसके बाद यह कामना करते हुए कि सत्वों को दुखों से मुक्ति मिले, सभा का शरण गमन और बोधिचित्तोत्पाद में नेतृत्व किया। अंततः उन्होंने बोधिसत्व संवर भी दिए। उन्होंने उल्लेख किया कि बुद्ध, धर्म और संघ में शरण लेते हुए हम गैर बौद्ध परंपराओं से हमारे अभ्यास में अंतर करते हैं और बोधिचित्तोत्पाद करते हुए हम महायान परम्परा से जुड़े हैं। आंतरिक अभिषेक को पूरा कर और शिष्यों को अपने स्वप्नों का परीक्षण करने की सलाह दे कर परम पावन ने प्रारंभिक प्रक्रियाओं के समापन की घोषणा की। वे मोटर गाड़ी से अपने निवास स्थल लौटे और वह विशाल जन मानस शिवाछेल मैदान से बिखरने लगा।

कालचक्र अभिषेक कल जारी रहेगा। 

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