परम पावन 14 वें दलाई लामा
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चित्त शोधन और आगामी कल के विश्व का उत्तरदायित्व लेते हुए ९/मई/२०१४

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ओस्लो, नार्वे - ८ मई २०१४ - आज नार्वेजियन मुक्ति दिवस है, वह दिन जब ६९ वर्ष पूर्व नॉर्वे, आधिकारिक तौर पर नाजी सेनाओं से मुक्त हुआ था। नागरिक शासन 'नॉर्वे के रैह कमिस्साारियत' द्वारा प्रभावशाली रूप से ग्रहण कर लिया गया था जो एक जर्मन समर्थक कठपुतली सरकार के सहयोग से कार्य कर रहा था, जबकि नार्वेजियन राजा और वैध सरकार ने लंदन से निर्वासन में संचालन जारी रखा।


जैसे ही परम पावन दिन के कार्यक्रम के लिए बाहर आए, नार्वे निजी पुस्तक संग्रहकर्ता मार्टिन शोयेन ने तिब्बती में प्राचीन बौद्ध ग्रंथों का उदाहरण प्रस्तुत किया जिसमें एक पृष्ठ 'अमितायुस सूत्र' भी शामिल था जो उनके अनुसार प्राचीनतम तिब्बती रूप था, जो अस्तित्व में था। ओस्लो विश्वविद्यालय में आते समय उनका स्वागत करने के लिए तिब्बती और नार्वेजियन मित्र एकत्रित हुए थे। अंदर प्रवेश करने के बाद उनकी कई ईसाई बिशपों और पादरियों के साथ संक्षिप्त बैठक हुई। वे बोले:

"धर्म उन कारकों में से एक है जो हमारी भावनाओं को शांत करने में सहायता करता है, अतः यह विशेष रूप से दुःख की बात है जब धर्म संघर्ष का एक स्रोत बन जाता है। मेरे विचार से ऐसा तब होता है, जब हमारे बीच पर्याप्त संपर्क और समझ नहीं होती। हमें एक साथ सद्भाव में रहने वाले कई धर्मों के, भारतीय उदाहरण का अनुकरण करने के लिए अधिक से अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। ११ सितम्बर घटना की पहली वर्षगांठ के अवसर आयोजित एक कार्यक्रम में मैंने कहा था कि कई लोगों ने इस्लाम को एक आतंकवादी विश्वास के रूप होने का दृष्टिकोण अपनाया है। मैंने कहा कि एक सम्पूर्ण सम्प्रदाय को कुछ शरारती तत्वों की कार्रवाई के आधार पर सामान्यीकरण किया जाना गलत था।"


उन्होंने कहा कि जब भी उन्हें अन्य आध्यात्मिक बहनों और भाइयों से मिलने का अवसर मिलता है तो वे खुश होते हैं और ऐसा करते हुए सम्मान का अनुभव करते हैं। नॉर्वे चर्च के पीठासीन बिशप हेल्गा हॉगलैंड बिफुगलेन ने समूह की ओर से बोलते हुए परम पावन को आने के िलए धन्यवाद दिया और कहा कि वे उनके मित्रों में से एक थी। वे उनसे इस बात से सहमत थी कि एकजुट होकर भविष्य को आकार देने में सक्षम होने के िलए धार्मिक लोगों को एक दूसरे को जानना आवश्यक है। परम पावन ने यह बिंदु उठाते हुए और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को बढ़ावा देने के अपने प्रयासों के बारे में समझाया। उन्होंने टिप्पणी की, कि जहाँ नैतिकता सभी धर्मों का आधार है, पर लोगों को नैतिक जीवन जीने के लिए धार्मिक होने की आवश्यकता नहीं है। नैतिकता विश्वास की भावना और एक शांत चित्त लाता है जो स्वास्थ्य और भलाई को बढ़ावा देता है।

शाटो नियुफ थिएटर में, १२२० श्रोताओं के समक्ष परम पावन ने कहा:

"मैं यहाँ पालि और संस्कृत परंपराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले बौद्ध भिक्षुओं, भिक्षुणियों तथा ईसाई भाइयों और बहनों के बीच आकर बहुत प्रसन्न हूँ। धार्मिक सद्भाव केवल राजनयिक संकेत का निर्माण नहीं है, अपितु सम्मान और आपसी प्रशंसा का विकास करना है। ऐसा सोचना कि सभी ७ अरब मनुष्यों को बौद्ध या ईसाई बन जाना चाहिए अवास्तविक है। ये परम्पराएँ सदियों से अस्तित्व में है और भविष्य में भी ऐसी ही बनी रहेगी अतः हमें एक साथ रहना है। चूँकि मैं आज बौद्ध धर्म के बारे में प्रवचन देने जा रहा हूँ, मैं थाई भिक्षुओं और भिक्षुणियों को पालि में 'मंगल सुत्त' और वियतनामी भिक्षुओं को उनकी भाषा में 'हृदय सूत्र' का पाठ करने के लिए आमंत्रित करना चाहँूगा।"

इस अवसर के एक संक्षिप्त परिचय में, कर्मा टाशी लिंग बौद्ध सोसाइटी के प्रतिनिधि ने परम पावन को बताया कि स्कैंडिनेविया का एक मात्र बौद्ध मंदिर पूरा होने वाला है और उन्हें अगले वर्ष इसके उद्घाटन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। परम पावन ने उत्तर दिया कि जैसे जैसे उनकी आयु बढ़ रही है, अामंत्रण अधिक होते हैं, और जहाँ उनका उत्साह भाग लेने के लिए तैयार है उन्हें देखना होगा कि शारीरिक रूप से क्या संभव है।


"पश्चिम गैर बौद्ध क्षेत्र है जबकि बौद्ध धर्म एक बड़े स्तर पर एशियाई परम्परा है।" उन्होंने प्रारंभ िकया। "मैं साधारणतया सलाह देता हूँ कि अपनी ही परम्परा को बनाए रखना बेहतर और सुरक्षित है, बदलते फैशन की तरह अपने धर्म को बदलना नहीं। पर यदि किसी एक व्यक्ति को लगता है कि बौद्ध दृष्टिकोण उसके लिए अधिक उपयोगी है या प्रभावी है तो वह उस पर निर्भर है, पर धार्मिक अभ्यास में समर्पण और ईमानदारी की आवश्यकता है। मैं आपको एक तिब्बती महिला के बारे में बताऊँ जो १९६० के दशक में मुझसे मिलने आई। उसके पति की मृत्यु हो गई थी और उस पर दो बच्चों के पालन पोषण का उत्तरदायित्व था। उस समय ईसाई मिशनरियों ने तिब्बती शरणार्थियों के लिए भोजन और शिक्षा की बहुत व्यवस्था की थी। उसने कहा कि उसने अपने बच्चों के लिए इस तरह की सहायता स्वीकार की थी और परिणामस्वरूप इस जीवन में वह एक ईसाई बन गयी थी, पर अगले जन्म में वह एक बौद्ध होगी - भ्रम का एक स्पष्ट संकेत।"

परम पावन ने ऑस्ट्रेलिया में एक अवसर के बारे में बात की जब बिल क्रूस नाम का एक ईसाई मंत्री जो बेघरों के लिए सहायता और समर्थन प्रदान करता है, ने उनका परिचय एक अच्छे ईसाई के रूप में किया। अपनी बारी में परम पावन ने सभा को बताया कि वे श्रद्धेय क्रूस को एक अच्छे बौद्ध के रूप में देखते हैं और यह टिप्पणी की, कि वह दोनों प्रेम, करुणा, सहिष्णुता, संतोष और आत्मानुशासन का अभ्यास करते हैं।

जब ८वीं शताब्दी में बौद्ध धर्म तिब्बत में लाया गया तो यह एक प्रकटीकरण था। जैसा एक महान तिब्बती गुरु ने कहा:

तिब्बत, हिम के देश में
प्राकृतिक रंग श्वेत है
पर भारत से आलोक आने तक
तिब्बत तिमिराच्छन्न था।

परम पावन ने कहा कि तिब्बत का सभी बौद्ध ज्ञान भारत से आया है और वह आचार्य शांतरक्षित थे जिन्होंने इसे प्रथम बार प्रतिस्थापित किया। वे न केवल एक अच्छे भिक्षु थे पर एक असाधारण दार्शनिक और तर्कशास्त्री भी थे। दर्शन और तर्क का गहन अध्ययन तिब्बती बौद्ध धर्म की विशिष्टता बन गया। और इस संदर्भ में परम पावन ने हँसी में टिप्पणी की, कि लोग विशाल मूर्तियों का निर्माण करते हैं, तो जहाँ वे उसकी सराहना करते हैं, पर ये मूर्तियाँ कभी बोलेंगे नहीं। परंपरा को बनाए रखने का मार्ग चित्त में ज्ञान का विकास है। उन्होंने समझाया कि तिब्बती में बुद्ध शब्द संकेतार्थक है कि उसने सभी नकारात्मक पहलुओं को समाप्त कर दिया है और सभी सकारात्मकता का विकास किया है। चूँकि बुद्ध एक साथ सांवृतिक तथा पारमार्थिक सत्य का अनुभव करने में सक्षम हैं, वे हमारी भांति दृश्य तथा यथार्थ के बीच बड़े अंतर के अधीन नहीं हैं।


यह कहते हुए कि सौहार्दता चित्त को खोलती है और आंतरिक शक्ति लाती है, परम पावन ने इस सुझाव को नकार दिया कि बौद्ध धर्म में इच्छा का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने कहा कि यह एक भ्रांति है। हम एक सुखी जीवन व्यतीत करने की इच्छा करते हैं, हम दुख से उबरने और बुद्धत्व प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं, और हमें इन इच्छाओं को पूरा करने के लिए कार्य करने का अधिकार है।
 
गेशे लंगरी थंगपा के 'चित्त शोधन की अष्ट कारिका' ग्रंथ की ओर मुड़ते हुए वे बोले कि सात पद मार्ग के उपाय से संबंधित हैं जबकि अंतिम पद का संबंध प्रज्ञा से है। उसके पश्चात उन्होंने पूरा ग्रंथ पढ़ा और प्रत्येक पद की संक्षिप्त व्याख्या की।

"मैं सभी सत्वों को अनमोल समझँूगा, मैं उनके प्रति सम्मान दिखाऊँगा। मैं जब भी उनसे मिलूँ, उनके हित को पूरा करने हेतु इच्छा का विकास करूँगा, मैं उनकी सेवा करने के लिए तत्पर रहूँगा। हम ईसाई भाइयों और बहनों को दूसरों की सेवा करने के लिए अपने स्वयं के आराम को त्याग करता हुआ देखते हैं। जब क्रोध, घृणा और ईर्ष्या की तरह अशांत करने वाली भावनाएँ उठने की धमकी दें तो मैं उन्हें रोक दूँगा, उदाहरण के लिए अपने श्वास के प्रति जागरूक होकर। जब मैं रोग ग्रस्त लोगों से मिलूँ, िजनके प्रति भेदभाव किया जा रहा हो जैसे कोढ़ी या एड्स से ग्रस्त रोगी। मैं उनकी ओर सहायता के लिए हाथ बढ़ाऊँगा। यदि कोई मेरी आलोचना करे या भले मुझे डाँटे यद्यपि मैंने उनकी सहायता करने का प्रयास किया, तो मैं उन्हें सफलता देकर स्वयं पराजय स्वीकार करूँगा। जब कोई, जिसकी मैंने सहायता की हो, मेरा अहित करे, मैं प्रतिकार नहीं करूँगा, अपितु उन्हें धैर्य के एक शिक्षक के रूप में देखूँगा। अध्ययन और प्रशिक्षण से मैं स्वयं पर दूसरों के दुख ले लूँगा और उन्हें आनंद दूँगा। अंतत ः, आठ सांसारिक चिंताओं के विषय के संबंध में, मैं सब कुछ मायोपम मानूँगा। यद्यपि वस्तुएँ वस्तुनिष्ठ सी जान पड़ती हैं, पर मैं उन्हें माया सम देखूँगा।"

परम पावन ने मध्याह्न में छात्रों के साथ 'आगामी विश्व का उत्तरदायित्व लेते हुए' विषय पर केंद्रित, एक परिचर्चा में भाग लिया। यह अवसर टेल कोलमैन के एक मनोहर बाँसुरी वादन के साथ प्रारंभ हुआ और ओस्लो विश्वविद्यालय के रेक्टर ओले पैटर ओट्टरसन द्वारा एक परिचय के साथ आगे बढ़ा। उन्होंने टिप्पणी की, कि दशकों से परम पावन तिब्बत का चेहरा हैं और अनुमान लगाया कि यह विश्व एक बेहतर स्थान होगा यदि युद्ध संवाद तथा तर्क पर लड़े जाएँ, जैसा परम पावन सुझाते हैं।


परम पावन ने कहा कि उन्हें सदा युवा छात्रों के साथ बात करते हुए प्रसन्नता होती है। स्वयं को २०वीं सदी की पीढ़ी के सदस्यों में गणना करते हुए, जिसका समय जा चुका है, उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि जो ३० वर्ष से कम आयु के हैं उनका संबंध २१वीं सदी से है।

"एक अधिक सुखी, अधिक शांतिपूर्ण विश्व बनाने के लिए दृष्टि, दृढ़ संकल्प और ज्ञान के साथ कार्य करने का उत्तरदायित्व आपका है। यह मात्र प्रार्थना या इच्छाधारी सोच के माध्यम से प्राप्त नहीं हो पाएगा, अपितु दूसरों का सम्मान करते हुए और उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, आप को कार्य करने की आवश्यकता होगी। हमें आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्यों को एक मानव परिवार से संबंधित रूप में सोचने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन और वैश्विक अर्थव्यवस्था, राष्ट्रीय सीमाओं से परे, हम सभी को प्रभावित करते हैं। हम दुनिया के कई भागों में धनवान और निर्धनों के बीच गहरी खाई जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं।"

"हम सामाजिक प्राणी हैं इसलिए दूसरों के हित का ध्यान रखना हमारे दीर्घकालिक स्वार्थ में है। मधुमक्खियों को देखो, उनका कोई धर्म, कोई संविधान, कोई पुलिस नहीं है, फिर भी मिलजुलकर काम करते हैं, क्योंकि वे सामाजिक प्राणी हैं। मेरा सुझाव है कि २१वीं सदी की पीढ़ी इन बातों का ध्यान रखें।"

डेविड अब्राम ने बड़ी ही वाग्मिता से पृथ्वी के साथ संबंध और हमारे उसके बारे में न समझने को लेकर बात की। हम गुरुत्वाकर्षण के जादुई महत्त्व को नजरअंदाज करते हैं। हम वास्तव में पृश्वी पर रहने की बात करते हैं, जबकि वास्तव में, हम हवा में रहते हैं और हवा हममें रहती है। परम पावन ने स्वीकार किया तथा सुझाया, कि भारत जैसे स्थानों पर विकास केवल शहरों की बजाय ग्रामीण क्षेत्रों और गाँवों में होता है।


चार छात्रों ने भविष्य के विषय में उनके विचारों के विषय में स्पष्ट रूप से बात की ः एक ने कहा कि क्या हमें और अधिक पुनःचक्रण नहीं करना चाहिए, सार्वजनिक परिवहन का उपयोग और हमारी ऊर्जा की खपत को कम नहीं करना चाहिए। एक अन्य ने, एक दूसरे के साथ काम करने तथा और भविष्य के लिए क्या किया जाना चाहिए के बारे में स्कूलों में अधिक शिक्षा देने की आवश्यकता की सराहना की। एक अन्य ने प्रश्न किया कि क्या समस्या यह नहीं है कि मनुष्य अदूरदर्शी निर्णय लेने से ग्रस्त हैं। उनके बीच की एक युवा महिला ने कहा कि उसकी पीढ़ी एक संकटग्रस्त विश्व में बच्चे लाएगी। वह चाहती थी कि, जो नीतियाँ अभी क्रियान्वित हो रही है, जिनके नकारात्मक परिणाम होगें जो उसे और उसके हमउम्र वालों साफ करना होगा, पर युवाओं को निषेधाधिकार मिले। उसने कहा, उदाहरण के लिए, प्रदूषण का कोई साफ रास्ता नहीं है, तो पेट्रोलियम पर केन्द्रित ध्यान को बदलना होगा।

परम पावन ने समापन किया:

"जब हम समस्याओं का सामना करते हैं, तो महत्त्वपूर्ण यह है कि हम आकलन करें कि वास्तव में हम क्या प्राप्त कर सकते हैं। मैं एक वृद्ध व्यक्ति हूँ जिसने अपने जीवन में सभी प्रकार की कठिनाइयाँ झेली है, पर मैंने कभी हार नहीं मानी।"

"अतीत में जब नेतृत्व की आवश्यकता उठ खड़ी हुई, तो शारीरिक शक्ति एक कसौटी थी इसलिए पुरुष चहेते थे। शिक्षा ने क्षमता की अधिक समानता दी है। ऐसे समय में जब हमें पर्यावरण के प्रति अधिक चिंता और दूसरों की चिंताओं के प्रति और संवेदनशीलता की आवश्यकता है, हमें अधिक महिलाओं की ज़रूरत है, जो नेतृत्व करें।"

"धन्यवाद।"

कल, परम पावन नार्वेजियन संसद और नोबेल शांति केंद्र की यात्रा करेंगे। 

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