परम पावन 14 वें दलाई लामा
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टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशियल साइंन्सस) - दीक्षांत समारोह १७/सितम्बर/२०१४

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टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (टी आई एसएस), जिसका आदर्श वाक्य है "भविष्यों की पुनर्परिकल्पना", भारत की सबसे प्रतिष्ठित स्नातकोत्तर सामाजिक विज्ञान संस्थानों में से एक है। आज टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान ने परम पावन दलाई लामा को मुख्य अतिथि के रूप में एक विशेष दीक्षांत समारोह के लिए देवनार, मुंबई के अपने मुख्य परिसर में आमंत्रित किया। मुख्य द्वार पर निदेशक, प्रोफेसर एस परशुरामन ने उनका स्वागत किया और उन्हें सभागार ले गए। सभी लोग संस्थान गीत के लिए खड़े हो गए।


अपने प्रारंभिक संबोधन में प्रो परशुरामन् ने समझाया कि एक उत्कृष्ट संस्था होने की अपनी दृष्टि के एक अंग के रूप में, टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान ने कई नूतन और असाधारण पाठ्यक्रमंों को विकसित किया था। आज आयोजित विशेष दीक्षांत समारोह में इनमें से कई प्रथम बार प्रारंभ किए गए पाठ्यक्रमों के छात्रों के स्नातको के अभिनन्दन के लिए है। इनमें स्कूल ऑफ लॉ, राइट्स एंड कॉन्स्टिट्यूशनल गर्वनन्स (अधिकार और संवैधानिक शासन) ने एक तीन सेमेस्टर का एल एल एम कार्यक्रम, एक्सस टु जस्टिस, विकसित किया है।

यह स्वीकारते हुए कि पानी और स्वच्छता मानव कल्याण और समग्र सामाजिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान ने यूनिसेफ की जल स्वच्छता और स्वच्छता खंड के सहयोग से भारत में प्रथम बार जल स्वच्छता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्नातकोत्तर डिप्लोमा के लिए एक अग्रणी पाठ्यक्रम का विकास किया है। इस बीच, केंद्र आजीवन शिक्षा केन्द्र ने वयस्क कार्यरत् जनसंख्या की सहायता के लिए काउंसिलिंग में एक साल का अंशकालिक सप्ताहांत डिप्लोमा कार्यक्रम तैयार किया है। इसके साथ साथ युवा विकास और सामाजिक परिवर्तन में एक वर्ष का अंशकालिक डिप्लोमा भी उपलब्ध है।

पूरी तरह से डिजिटल, सर दोराबजी टाटा मेमोरियल लाइब्रेरी, आधुनिक डिजिटल पुस्तकालयों में तकनीकी पेशेवरों की बढ़ती आवश्यकता को पूरा करने के लिए डिजिटल पुस्तकालय और सूचना प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा भी उपलब्ध करा रही है। मीडिया और सांस्कृतिक अध्ययन के विभागों ने सामुदायिक मीडिया में एक डिप्लोमा कार्यक्रम विकसित किया है।


प्रोफेसर लक्ष्मी लिंगम् ने परम पावन को उपाधि प्रदान करने के िलए आमंत्रित किया, जिन्होंने, एक्सेस टु जस्टिस में, मास्टर ऑफ लॉ (एल एल एम) में १३ सफल छात्रों को प्रमाण पत्र दिया, जिन्हें ग्रहण करने वे मंच पर आए। शेष ७६ स्नातक एक साथ अपनी उपाधि प्राप्त करने के लिए उत्साहजनक तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सभागार के प्रांगण में खड़े हुए। जब प्रोफेसर लिंगम ने उन्हें सर्वोत्तम जीवन के लिए शुभकामना दी, तब परम पावन ने अनुमोदन में सिर हिलाया। इसके बाद उनसे एल एल एम पाठ्यक्रम के सर्वोत्तम छात्र को स्वर्ण पदक और डिप्लोमा कार्यक्रमों में सर्वश्रेष्ठ छात्रों को शील्ड देने का अनुरोध किया गया।

परम पावन का परिचय देते हुए प्रोफेसर लक्ष्मी लिंगम् ने उन्हें प्राप्त हुए कुछ पुरस्कारों का उल्लेख किया, जैसे नोबेल शांति पुरस्कार, कांग्रेसनल स्वर्ण पदक और टेंपलटन पुरस्कार, और साथ ही परमाणु हथियारों को समाप्त करने के अंतर्राष्ट्रीय अभियान में उनकी भागीदारी का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि आज के स्नातकों के लिए उनसे अपनी उपाधि प्राप्त करना एक विशेष सम्मान की बात थी और टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान अत्यंत प्रसन्न है कि उनका आना संभव हो सका। इसके पश्चात उन्होंने उन्हें सभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया।

"सम्माननीय, ज्ञानपूर्ण, अनुभवी विद्वानों तथा भाइयों और बहनों," उन्होंने प्रारंभ किया, "मैं सदा इस बात पर बल देता हूँ कि मानव रूप में हम सब एक ही जैसे हैं। मैं विभिन्न सामाजिक स्थितियों अथवा वर्गों की परवाह नहीं करता जो कि महत्वपूर्ण नहीं है। हमारे बीच जाति, आस्था और संस्कृति के अंतर हैं, पर इसकी तुलना में, कि हम ७ अरब मानव मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से एक जैसे हैं, यह सब गौण हैं। हम सब में एक मानव मस्तिष्क है और अन्य सत्वों की तरह हम भी शांति और सुख की इच्छा रखते हैं। एक सुखी जीवन प्राप्त करना और दुख से बचना हमारे बुनियादी अधिकारों में से एक है।"


उन्होंने ध्यान आकर्षित किया कि अपनी बुद्धि के कारण मनुष्य समस्याएँ उत्पन्न करने की अनूठी विशिष्टता रखते हैं, और हम एक बड़े पैमाने पर ऐसा कर रहे हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपनी बुद्धि का उपयोग रचनात्मक ढंग से करें। ऐसा करने के लिए हमें दूसरों प्रति सौहार्द की भावना तथा चिंता की जरूरत है।

स्नातकों की ओर देख मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा:

"मैं आप सभी को बधाई देता हूँ। मेरा ऐसा विचार है कि जब आप अपनी परीक्षा देने बैठे थे तो आपमें चिंता और उत्साह का मिला जुला अनुभव था। मुझे अपनी स्वयं की अंतिम परीक्षा का स्मरण है, जब इस बात की अनिश्चितता लिए कि शास्त्रार्थ में मुझसे क्या प्रश्न किए जाएँगे, मैं आशंकित और उत्साहित दोनों था। अब जब आज आप के पास डिग्री और डिप्लोमा है तो महत्वपूर्ण बात यह है कि आप अपने ज्ञान का उपयोग दूसरों की सहायता करने के लिए करते हैं अथवा नहीं। वह आपकी प्रेरणा पर निर्भर करेगा। आप के द्वारा अर्जित ज्ञान और कौशल बहुत उपयोगी हो सकता है। उदाहरण के लिए विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश भारत में न्याय और कानून की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।"

उन्होंने स्वतंत्रता के पश्चात अपने कई पड़ोसियों की तुलना में भारत द्वारा प्रदर्शित स्थिरता की प्रशंसा की। उन्होंने यह भी टिप्पणी की, कि विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में, जिनमें मिस्र और चीन शामिल हैं, भारत में कहीं अधिक महान विचारकों का जन्म हुआ है। स्वयं को नालंदा परंपरा से जन्मे होने का दावा करते हुए उन्होंने उल्लेख किया कि प्राचीन भारतीय ज्ञान में बहुत कुछ निहित है, जैसे कि उसकी चित्त और भावनाओं के कार्यकलापों की समझ, जो आधुनिक विज्ञान से मेल खाता है। उन्होंने कहा कि एक बौद्ध के रूप में वह प्रार्थना में संलग्न रहते हैं, पर उनका विश्वास है कि समय के चलते हम अपनी समस्याओं को केवल प्रार्थना द्वारा नहीं अपितु कुछ कार्य द्वारा ही सुलझा सकते हैं। यदि हमें कुछ कार्यवाही करनी है, तो हमें दृष्टि की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत में विकास को प्रभावी होने के लिए उसे ग्रामीण क्षेत्रों में होना चाहिए, जिसका अर्थ यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाओं में सुधार होना चाहिए।


अपनी बौद्ध शिक्षा का स्मरण करते हुए, जो सात साल की उम्र में ग्रंथों को कंठस्थ करने से प्रारंभ हुआ, वह कभी कभी सोचते थे कि यह सब किस िलए था, जब तक वे यह समझ सके कि यह चित्त और भावनाओं को परिवर्तित करने के विषय में था। क्रोध और घृणा जैसी विनाशकारी भावनाओं से निपटने के लिए प्रेम और करुणा जैसी सकारात्मक भावनाओं को विकसित करने की आवश्यकता है। यह विषय आधुनिक मनोवैज्ञानिकों और तंत्रिका वैज्ञानिकों के िलए रुचि रखता है।

परम पावन ने भारत की दीर्घकाल से चली आ रही सभी धार्मिक परंपराओं और उनके द्वारा दिए नैतिक मूल्य के प्रति निष्पक्ष सम्मान के लिए भी अपनी प्रशंसा व्यक्त की। यह ऐसा प्रारूप है जिसके आधार पर भारत िवश्व का नेतृत्व कर सकता है। उन्होंने अपना यह विश्वास भी व्यक्त किया कि आधुनिक शिक्षा आंतरिक मूल्यों को बढ़ावा देने के स्थान पर भौतिक सफलता की ओर उन्मुख है। उन्होंने विनाशकारी भावनाओं को सीमित करने और सभी मनुष्यों के कल्याण के लिए चिंता की भावना को विकसित करते हुए सकारात्मक भावनाओं का पोषण करने की बात दोहराई।

"क्या इससे आपके लिए कोई अर्थ निकलता है?" उन्होंने पूछा। "यदि ऐसा है तो, इसके विषय में दूसरों को बताएँ, और यदि ऐसा नहीं है, तो बस उसे छोड़ दें।"

परम पावन को इस अवसर के लिए एक स्मृति चिह्न प्रस्तुत किया गया तथा प्रोफेसर नीला दबीर ने आभार व्यक्त किया। उन्होंने सभी स्नातकों को बधाई दी और परम पावन को मुख्य अतिथि के रूप में उनकी उपस्थिति के लिए और इस अवसर पर अपने साथ लाए उनकी प्रेरणा के लिए हार्दिक धन्यवाद प्रस्तुत किया।

टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो परशुरामन् और अन्य संकाय सदस्यों के साथ मध्याह्न के भोजन के पश्चात परम पावन पास ही स्थित लीलावती अस्पताल गए, जहाँ पहले उनका उपचार और देख रेख हुई थी। डॉ त्रिवेदी, डॉ छुलानी और अस्पताल के कर्मचारियों के अन्य सदस्यों ने उनसे बोर्ड रूम में भेंट की और परम पावन के अपने होटल लौटने से पूर्व चाय के साथ मैत्रीपूर्ण बातचीत का आनंद उठाया। कल वह भारतीय मर्चेंट्स एसोसिएशन (आई एम ए) और आई एम ए के महिला वर्ग के १०८वें स्थापना दिवस में भाग लेंगे।
 

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