परम पावन 14 वें दलाई लामा
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टोक्यो के लिए रवाना होने से पूर्व कोयासन में सार्वजनिक व्याख्यान १५/अप्रैल/२०१४

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कोयासन, जापान - १५ अप्रैल २०१४  -  कोयासन पुनः एक बार खिलती धूप में सिंचित हो उठा जब परम पावन दलाई लामा दाइतो स्तूप की यात्रा पर थे। यह कोयासन के क्षेत्र दंजो गरन में स्थित है, जो गुह्य बौद्ध धर्म के अभ्यास में प्रशिक्षण के लिए कोबो दाइशी द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। वे पास के एक सभागार में गए जहाँ वैरोचन से संबंधित विशालकाय मूर्तियाँहैं और उच्च दीवारों पर कोबो दाइशी और नागार्जुन के चित्रों की प्रशंसा की।


कोयासन विश्वविद्यालय सभागार में ८०० लोगों का जनसमूह पुनः उनकी प्रतीक्षा कर रहा था और उन्होंने उनके साथ बातचीत करने के लिए बैठने में कोई समय व्यर्थ नहीं िकया।

"सम्मानित विहाराध्यक्ष, आध्यात्मिक भाइयों और बहनों, आप के साथ बातचीत करने का अवसर पाकर मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। शिक्षाओं और इस अवसर के आयोजन के लिए मैं कोयासन विहार का आभारी हूँ। मुझे यहाँ रहने में आनंद आता है। यह शांत और शांतिपूर्ण है। समस्या मात्र ठंड की है, चूँकि परंपरागत जापानी इमारतें गर्म मौसम के अनुकूल निर्मित की जाती है। अब, उस दिन किसी भी प्रश्न के लिए समय नहीं था, तो संभवतः आप प्रारंभ में कुछ प्रश्न पूछना चाहेंगे।"

विश्वविद्यालय के सदस्यों से पहला तैयार प्रश्न था, 'आप के लिए प्रार्थना का क्या अर्थ है?' और परम पावन ने उत्तर दिया कि प्रार्थना सभी धार्मिक परंपराओं के लिए आम है। परन्तु बौद्ध, जैन और सांख्य के पास एक सृष्टिकर्ता परमेश्वर की धारणा नहीं है। बुद्ध ने अपने अनुयायियों से कहा, आप स्वयं अपने स्वामी हैं; आपकी पीड़ा और आनंद स्वयं आपके हाथों में है।' उन्होंने आगे कहा:

बुद्ध पाप को जल से धोते नहीं,
न ही जगत् का दुःखों को हाथों से हटाते हैं;
न ही अपनी अधिगम को दूसरों में स्थान्तरण करते;
वे धर्मता सत्य देशना से मुक्ति कराते हैं।

जब बौद्ध बुद्ध, धर्म और संघ में शरण लेते हैं, यह अपने ही चित्त में धर्म को विकसित करना है, वही वास्तविक शरण है; बुद्ध शिक्षक हैं और संघ मार्ग के साथी रहे हैं। हमें अध्ययन की आवश्यकता है, जिसमें श्रवण, पठन, चिंतन और मनन शामिल हैं। बुद्ध एक चिकित्सक की तरह, धर्म उपचार की तरह जबकि संघ सहायक परिचारिकाओं की तरह हैं। जब हम बीमार होते हैं तो हमें एक चिकित्सक से परामर्श करने की आवश्यकता होती है पर यह उनके लिए पर्याप्त नहीं है कि वे उपचार निर्धारित करते हैं, हमें उनकी सलाह का पालन कर औषधि लेनी पड़ती है।


दूसरा प्रश्न था कि एक बौद्ध भिक्षु के रूप में परम पावन सबसे महत्त्वपूर्ण क्या मानते हैं। उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा:

"तीन प्रशिक्षण: विनय, सूत्र और अभिधर्म में प्रस्तुत शील, समाधि और प्रज्ञा। शील में प्रतिमोक्ष विनय शािमल है, जो सभी बौद्ध यानों में समान है और इसके अतिरिक्त इसमें बोधिसत्व संवर और तंत्र भी शामिल है। तंत्र का अभ्यास शमथ को प्रज्ञा से संयुक्त करता है।"

"मैं प्रतिदिन प्रातः ३:०० बजे उठता हूँ और प्रार्थना करता हूँ और विपश्यना ध्यान करता हूँ। एक भिक्षु के रूप में मैं मध्याह्न भोजन के बाद खाता नहीं और मैं रात को ८:०० बजे बिस्तर पर लेटता हूँ और अच्छी तरह से सोता हूँ। जब मैं स्वप्न देखता हूँ तो दिन भर जो मैं सोच रहा हूँ उसके स्वप्न होते हैं जो अधिकांश रूप से बोधिचित्त तथा शून्यता को प्रतिबिम्बित करते हैं, और इस तरह स्वप्न में भी मेरा विश्लेषण चलता रहता है। निस्संदेह, तंत्र में स्वप्नावस्था, प्रभास्वरता पर ध्यान करने का एक अवसर भी है।"

कोयासन के प्रभाव के विषय में पूछे जाने पर परम पावन ने उसकी शांति और उसके ध्यान करने के एक स्थान के रूप में सराहना की। इसके पश्चात उन्होंने साधारण तौर पर बात करने का निश्चय किया और कहा कि यदि समय रहा तो वे और प्रश्नों के उत्तर देंगे।

"मैं जहाँ भी जाता हूँ, मेरी बैठकों के आयोजक एक सार्वजनिक व्याख्यान की व्यवस्था करते हैं क्योंकि मेरी आम लोगों से मिलने में बहुत रुचि है। क्यों? क्योंकि हर कोई एक सुखी जीवन जीना चाहता है, यहाँ तक ​​कि पशु और पक्षी भी। कोई भी दुख और पीड़ा नहीं चाहता। हमें इसे प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है। परन्तु हम मनुष्य इस अद्भुत बुद्धि होने के कारण अन्य संवेदनशील प्राणियों से भिन्न हैं; हममें अधिक क्षमता है। हम मात्र मनुष्य हैं, मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से हम समान हैं। हम सब एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं।"

"इन दिनों कई आधुनिक विकास हैं और जापानी भी आंतरिक मूल्यों की तुलना में भौतिक वस्तुओं के मूल्य के प्रति अधिक ध्यान देते हैं। परिणाम स्वरूप हमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिनमें से कइयों को हमने स्वयं बनाया है। आधुनिक लोग ऐन्द्रिक स्तर पर संतुष्टि की ओर अधिक ध्यान देते हैं। हमें वे वस्तुएँ अच्छी लगती हैं जो सुन्दर हैं। हम सुंदर, मनमोहक वस्तुओं को देखने, सुनने में संतोष ढूँढते हैं। इसी तरह, हम सेक्स सहित, उन वस्तुओं में आनंद लेते हैं जिनमें अच्छी गंध, स्वाद और जो अच्छी लगती हों। पशुओं में भी इस तरह के संवेदी अनुभव होते हैं, पर चूँकि हममें यह अद्भुत मस्तिष्क और बुद्धि भी, मानसिक स्तर पर हमारे पास बहुत अधिक अनुभव हैं।"


परम पावन ने समझाया कि हमारे मानसिक अनुभव विविध हैं; हममें तनाव, चिंता और पीड़ा है। मानसिक स्तर पर िजस तीव्र पीड़ा अथवा आनंद का अनुभव हम करते हैं, संवेदी अनुभव उसका प्रतिसंतुलन नहीं करता, यह हमें अन्यमनस्क कर सकता है, पर उसे काबू में नहीं कर सकता। दूसरी ओर यदि हममें चित्त की शांति के लिए एक स्थिर भावना है, तो नकारात्मक अनुभव भी हमें बहुत परेशान नहीं करेंगे। उन्होंने आगे कहा, कि चित्त की शांति भी हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हितकारी है और चिकित्सा विशेषज्ञों ने पाया है कि क्रोध, घृणा और भय हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को खा जाते हैं। शांत और तनाव मुक्त रहना हमारे शारीरिक कल्याण के लिए बेहतर है। हँसते हुए उन्होंने उल्लेख किया कि वे प्रायः युवाओं को उनके शारीरिक सौन्दर्य पर बल देने के लिए छेड़ते हैं, जबकि अधिक महत्त्वपूर्ण है आंतरिक सौंदर्य - करुणा, स्नेह और सम्मान। उन्होंने कहा कि बाहरी सौन्दर्य पर आधारित न होकर आंतरिक सौंदर्य पर आधारित विवाह के सुखी और लंबे समय तक बने रहने की संभावना कहीं अधिक है।

"आधुनिक जीवन, यहाँ तक ​​कि शिक्षा प्रणाली, भौतिक वस्तुओं के मूल्य और भौतिकवाद की संस्कृति पर आधारित है। विचारकों और शिक्षाविदों के साथ चर्चा सुझाते हैं कि चाहे किसी प्रकार का विश्वास हो अथवा न हो, पर हमारी शिक्षा प्रणाली को और अधिक नैतिकता से संबद्धित होने की आवश्यकता है। मनुष्य होने के नाते हमें नैतिक मूल्यों की आवश्यकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में विशेष रूप से हम शिक्षा में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को लागू करने के लिए एक परियोजना विकसित कर रहे हैं। अब तक के परिणाम उत्साहजनक हैं। हमें ७ अरब मानव जाति के हितार्थ सोचना है क्योंकि हम उन्हीं का एक भाग हैं। इस अन्योन्याश्रितता का एक उदाहरण जापानी अर्थव्यवस्था का विश्व के अन्य भागों के साथ संबंध है।"

"पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के प्रश्न भी वैश्विक मुद्दे हैं, ये न केवल यूरोप, एशिया, अफ्रीका या अमेरिका के लिए चिंता का विषय हैं। हमें सब के विषय में सोचना चाहिए न केवल मैं अथवा हम के िवषय में। इस एक नीले ग्रह पर, जहाँ हम रहते हैं, जो होता है वह हम सब को प्रभावित करता है। हमें 'हम' और 'उन' के संदर्भ में न सोचकर, जो फिर लोगों के िमत्र और शत्रु रूप में विभाजित करने का आधार बनता है और युद्ध की संभावना लाता है, सम्पूर्ण मानवता के कल्याण की बात ध्यान में रखनी है। हमें विश्व में अन्याय के साथ निपटने की आवश्यकता है; धनवान और निर्धनों के बीच की खाई जो निर्धन को लगभग महत्वहीन कहकर खारिज कर देती है। और उत्तरदायित्व हम ७ अरब मनुष्यों पर है, बुद्ध, ईसा, मोहम्मद या कृष्ण के कंधों पर नहीं। कुछ वर्ष पूर्व जब मैंने हिरोशिमा में विश्व शांति के लिए प्रार्थना करने हेतु एक सभा में भाग लिया तो मैंने कहा कि विश्व शांति केवल इसके लिए प्रार्थना करने से नहीं आएगी, हमें कार्रवाई करना होगा। और मेरा विश्वास है कि जापानी कार्रवाई करना समझते हैं। तो, मुझे यही कहना है, धन्यवाद।"


उसके बाद परम पावन ने दर्शकों के कई प्रश्नों के उत्तर दिए। यह पूछे जाने पर कि लोग झूठ क्यों बोलते हैं, उन्होंने कहा कि झूठ बोलना अदूरदर्शिता और मस्तिष्क की संकीर्णता है। हम सब को मैत्री की आवश्यकता है जो विश्वास, ईमानदारी और सच्चाई पर निर्मित है, जो एक सुखी समुदाय का आधार है। जब एक महिला ने तंत्र में यौन ऊर्जा के उपयोग के बारे में पूछा तो परम पावन ने चेतावनी दी कि हमें युगनद्धता के चित्रों के संबंध में गलतफहमी नहीं होना चाहिए। उन्होंने उल्लेख किया कि उन्होंने भी लामाओं द्वारा सेक्स के लिए ऐसी गलतफहमियों के उपयोग के विषय में सुना है जो कि बिलकुल गलत है।

एक प्रश्नकर्ता जानना चाह रहे थे कि आप उस समय क्या करें जब आप कुछ प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हों और अन्य लोग उसमें बाधा डालें। परम पावन ने उन्हें सलाह दी कि वह एक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाएँ; जाँच करें कि क्या संभव है। इच्छाधारी सोच निराशा की ओर जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि जो आपको बाधित कर रहा है उसे क्षमा करने का यह अर्थ नहीं कि आप उनके कार्य को प्रतिसंतुलित करने के लिए कदम नहीं उठा सकते।

जब एक महिला ने बुद्ध प्रकृति (तथागतगर्भता) के विषय में यह कहते हुए पूछा कि यदि हम पहले से ही बुद्ध हैं तो ऐसा क्यों है कि हम क्लेशों के अधीन हैं, परम पावन ने कहा कि इससे बुद्ध प्रकृति की समझ की गलतफहमी का पता चलता है। इसका मतलब यह नहीं कि हम पहले से ही प्रबुद्ध हैं, अपितु हम सब में बुद्धत्व को प्राप्त करने की क्षमता है।

अंत में, यह पूछे जाने पर कि उनके लिए कौन सी पुस्तक बहुत महत्त्वपूर्ण है, परम पावन ने उत्तर दिया:

"हृदय सूत्र जैसे शास्त्र; पूजा की वस्तु के रूप में नहीं, अपितु अध्ययन की एक वस्तु के रूप में। आप जो युवा हैं, आपको अध्ययन में प्रयास करना चाहिए। हमने यहाँ जो चर्चा की है उसकी प्रतियां उपलब्ध हैं। उनका अध्ययन करें। मैं यहाँ पुनः आ सकता हूँ और अगर मैं आया तो मैं आपकी परीक्षा लूँगा। धन्यवाद, मुझे वास्तव में आप के साथ बातें कर आनन्द आया।"

जैसे ही परम पावन ने विदा ली, सभागार तालियों की गड़गड़ाहट और मुस्कुराते चेहरों से भर उठा। कोयासन से टोक्यो उड़ान भरने के लिए उन्हें गाड़ी से ओसाका जाना था।

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