परम पावन 14 वें दलाई लामा
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तिब्बतियों, मंगोलियाई और चीनियों के साथ भेंट के साथ जापान यात्रा की समाप्ति १८/अप्रैल/२०१४

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टोक्यो, जापान - अप्रैल १८, २०१४  - आज प्रातः भारत लौटने के लिए हवाई अड्डे से अपनी उड़ान भरने के लिए रवाना होने से पूर्व परम पावन दलाई लामा ने चीनी, मंगोलियाई और तिब्बतियों के समूहों के साथ अलग अलग भेंट करने के लिए समय निकाला।

सर्वप्रथम ताइवान, हांगकांग और चीन के १०० से अधिक लोगों के साथ पहली बैठक में उन्होंने कहा:

"मैं जहाँ भी जाता हूँ चीनी मित्रों के साथ मिलने का प्रयास करता हूँ। तिब्बतियों और चीनियों के बीच सोंगचेन गमपो के काल से एक दूसरे के साथ संबंध रहे हैं। कभी कभी हम लड़े हैं, परन्तु एक हजार से अधिक वर्षों से हमारी बौद्ध धर्म में एक साझी रुचि है। यह तब से प्रारंभ हुआ जब सोंगचेन गमपो की एक चीनी और एक नेपाली पत्नी आई। इसलिए मैं प्रायः चीनी बौद्धों से कहता हूँ कि मैं वरिष्ठ छात्रों के रूप में आपका सम्मान करता हूँ। इसी प्रकार जब मैं भारतीयों से बात कर रहा होता हूँ तो मैं कहता हूँ कि जहाँ तक हमारा संबंध है भारतीय हमारे गुरु हैं और हम शिष्य हैं। और मैं उल्लेख करता हूँ कि संकट के समय हम गुरु और वरिष्ठ छात्रों की ओर उन्मुख हुए। मैं कई बार ताइवान गया हूँ और कई चीनी धर्मशाला आए हैं, इसलिए हमारे लोगों के बीच के आपसी संबंधों में सुधार हुआ है।"


उन्होंने कहा कि जब हम यह नहीं जानते कि वास्तविक स्थिति क्या है तो यह शंका को जन्म देता है जो व्यर्थ और अनावश्यक है। यदि हम मिलकर यह जानने का प्रयास करें कि वास्तव में क्या हो रहा है तो उससे सुखद संबंध बनते हैं। उन्होंने कहा कि थियाननमेन घटना से पूर्व ही उन्होंने सलाह दी थी कि तिब्बती, चीनियों के साथ संपर्क बढ़ाएँ, पर उस समय तक चीन की मुख्य भूमि के लोग तिब्बतियों के साथ संपर्क करने से बचते थे। उस घटना के बाद उन्होंने बात मानी और संबंध सशक्त हुए। उन्होंने आगे कहा कि आज भी लगता है कि कई चीनी वास्तविकता के संपर्क से बाहर हैं, इसलिए उन्होंने सलाह दी कि ताइवान और हांगकांग के लोग जो बेहतर रूप से जानते हैं कि क्या हो रहा है, उन्हेंं चीन के लोगों को समझाने में आगे आना चाहिए।

"उदाहरण के लिए, यद्यपि यह कहना अनुचित सा लग सकता है, पर तिब्बत के वे लोग जिनमें आत्मदाह करने का साहस है, वे स्पष्टतः दूसरों को हानि पहुँचाने में सक्षम हैं, परन्तु उन्होंने ऐसा न करने का दृढ़ निश्चय किया है। जिन कठिनाइयों का वे सामना कर रहे हैं उसके बावजूद वे अभी भी बुद्ध की अहिंसा शिक्षाओं का पालन कर रहे हैं। इसे संभवतः स्पष्ट रूप से समझा नहीं जा सकेगा।"

उन्होंने कहा कि उन्होंने सुना है कि हाल ही में तिब्बत में, जहाँ तिब्बती टूर गाइड के रूप में कार्य करते थे, उन्हें चीनियों द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है जो तिब्बती लोगों को चीनियों और अन्य पर्यटकों के समक्ष नीचा दिखाते हैं। जब तिब्बती ऐसे दलों के पास वस्तुएँ बेचने जाते हैं तो वे भी उन्हें दूर भगाते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि तिब्बत और चीन के बीच की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है, परन्तु कट्टरपंथी तिब्बतियों पर अलगाववादी होने का आरोप लगाते हैं।

"१९७३ के बाद से हमने उस विचारधारा को न बनाए रखने का निश्चय किया। चीन के साथ सीधा संपर्क १९७९ में प्रारंभ हुआ और हमने पहले से ही अपनी स्थिति के विषय में निर्णय ले लिया था। हमारी माँग चीनी संविधान में मान्यता प्राप्त प्रावधानों के कार्यान्वयन को लेकर है। कट्टरपंथी वाक्यांश 'महा तिब्बत' का उपयोग करते हैं, परन्तु पहले से ही तिब्बती क्षेत्रों, प्रशासकीय क्षेत्रों, एक साझी संस्कृति और भाषा के क्षेत्रों की मान्यता है। हम एक समान आधार पर इन प्रावधानों की पूर्ति चाहते हैं।



"चूँकि तिब्बती भाषा हमारी पहचान का केन्द्र है, इसके उपयोग को हतोत्साहित किया जाता है। किन्तु जैसा कि आप जानते हैं आज तिब्बती भाषा बौद्ध दर्शन और विज्ञान को समझाने का श्रेष्ठ माध्यम है। संस्कृत अब एक जीवंत भाषा नहीं है और यद्यपि चीनी भाषा में पर्याप्त बौद्ध साहित्य उपलब्ध है, तिब्बती अनुवाद अधिक सटीक हैं। अतः यह प्रश्न मात्र तिब्बती लोगों की चिंता का विषय नहीं है, यह विश्व में बौद्ध धर्म की अभिव्यक्ति के बारे में है, जिसका सबसे विशद शिक्षण तिब्बती में संरक्षित है।"

"विभिन्न भाषाओं का अस्तित्व कोई खतरा नहीं है। भारत को देखिए, वहाँ कई लोग अलग अलग भाषाएँ बोलते व लिखते हैं, इसमें देश के लिए कोई खतरा नहीं है। जब वे कानून के अंतर्गत समानाधिकार पाते हैं तो लोग स्वतंत्रता और समानता में एक साथ रह सकते हैं। तिब्बतियों की अपनी एक भाषा होना अपने आप में एक खतरा नहीं है।"

उन्होंने आगे कहा कि एक सामंजस्यपूर्ण समाज को बढ़ावा देने के हू जिंताओ के विचार सराहनीय थे परन्तु यह बल प्रयोग से पूरा नहीं किया जा सकता। मैत्री और सद्भाव को विश्वास पर आधारित करने की आवश्यकता है, भय पर नहीं। इस बीच चीन में आंतरिक सुरक्षा बजट, रक्षा बजट से अधिक है। परम पावन की शंका थी कि विश्व के २०० देशों में से, यह मात्र चीन के लिए सत्य है। उन्होंने यह कहते हुए समाप्त किया कि यदि तिब्बतियों और चीनी के बीच सद्भाव और सम्मान बना रहे तो वे एक साथ रह पाएँगे।

उन्होंने अपने श्रोताओं से प्रश्न आमंत्रित किए और पहला ताइवान में आने का एक निमंत्रण था। परम पावन ने उत्तर दिया कि अपनी पहली यात्रा के बाद उन्होंने हर दूसरे साल ताइवान आने के विषय में सोचा था, पर ऐसा करने के िलए उन्हें सरकार की स्वीकृति प्राप्त नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि उन्होंने ओकिनावा से लौटते समय ताइवान में एक पारगमन ठहराव के विषय पर भी सोचा था, पर उसके लिए भी स्वीकृति नहीं मिली। एक महिला, जिसने कहा कि हांगकांग और चीन के बीच के संबंध हाल ही में खराब हो गए हैं, ने पूछा कि अहिंसा के मार्ग पर किस तरह बना रहा जा सकता है। परम पावन ने उत्तर दिया कि तिब्बतियों ने ५० वर्षों से अधिक समय से कड़े रूप में अहिंसक दृष्टिकोण बनाए रखा है, पर उससे भी अब तक समस्या का समाधान नहीं निकला है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक देशों में पारदर्शिता है और पारदर्शिता स्पष्ट रूप से गोपनीयता और शंका से बेहतर है। शी जिनपिंग के आगमन के बाद से वहाँ कुछ सुधार होता प्रतीत हो रहा है और वह कम से कम तथ्यों से सच्चाई की खोज करने के इच्छुक जान पड़ते हैं ।

"निराश मत हो," उन्होंने कहा।

एक अन्य प्रश्नकर्ता जानना चाहता था कि क्या परम पावन का चीन आने का कोई अवसर था और उसे याद दिलाया कि उनके प्रतिनिधियों की चीन के साथ हुई बैठकों के चौथे दौर में, उन्होंने वू ताइशन की तीर्थ यात्रा में रुचि व्यक्त की थी, पर उनकी ताइवान में आने की योजना के समान उसे अनुमोदित नहीं किया गया।



५० मंगोलिया के एक समूह की बैठक में परम पावन ने तिब्बतियों और मंगोलिया की लंबी साझी मैत्री और सांस्कृतिक संबंधों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा:

"२०वीं सदी में आप को बड़ी त्रासदी का सामना करना पड़ा और मंगोलिया में बौद्ध धर्म का ह्रास हुआ। तिब्बतियों को अब इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पर तिब्बतियों और मंगोलिया के बीच सैकड़ों वर्षों से संबंध रहे हैं जब हम खानाबदोशों के रूप में घूमा करते थे। अब जब आप को स्वतंत्रता वापस मिल गई है तो आप को इस अवसर का उपयोग अच्छी तरह करना चाहिए। अफ्रीका में भी कई उदाहरण हैं कि जब स्वतंत्रता और लोकतंत्र का दुरुपयोग होता है तो उसके क्या गलत परिणाम हो सकते हैंं। लोकतंत्र के साथ उत्तरदायित्व आता है। आज, मंगोलियाई धर्म में महान निष्ठा रखते हैं, पर तर्क पर आधारित विश्वास और अधिक सुदृढ़ तथा अधिक स्थिर होता है, इसलिए अध्ययन महत्त्वपूर्ण है। अतीत में कई महान विद्वान थे जो मंगोलिया से आए थे। परन्तु बौद्ध धर्म की समझ को बुनियादी आधुनिक शिक्षा के साथ जोड़ने की आवश्यकता है। तिब्बत आधुनिक शिक्षा और तकनीकी विकास के मामले में पिछड़ा था और हमने अपना देश खो दिया।"

परम पावन ने मंगोलियाइयों को चंगेज खान के समय से उन लोगों द्वारा दिखाए गए दृढ़ संकल्प के उदाहरण का अनुकरण करने की सलाह दी। पर आज उन्हें उस प्रकार के साहस को बुद्धि के साथ संयुक्त करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि उन्होंने भारतीयों को भी केवल शहरों में ही नहीं, अपितु गांवों में विकास के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ वे रहते हैं लोगों को स्कूलों, अस्पतालों और अन्य सुविधाएँ प्रदान करने की आवश्यकता है।

उन्होंने स्मरण किया कि इस समय दक्षिण भारत के मुख्य तिब्बती विहारों में ३०० मंगोलियाई भिक्षु शिक्षण पा रहे हैं जो भविष्य में धर्म के फलने फूलने में अपना योगदान करेंगे।



जब वे जापान में रह रहे तिब्बतियों से मिले तो परम पावन ने कहा कि उनके पास कहने को बहुत कुछ नहीं था क्योंकि वे उनसे प्रायः भेंट कर पाते हैं।

"वैज्ञानिकों के साथ मेरी भेंट और उनके साथ हो रहे मेरे निरंतर संवाद ने यह समझाने के लिए, कि चित्त और भावनाओं को किस प्रकार समझा जाए मेरी तिब्बती भाषा की अद्भुत गुणों की सराहना को सुदृढ़ कर दिया है। अंग्रेज़ी अभी तक पर्याप्त नहीं है, इस क्षेत्र में श्रेष्ठ भाषा तिब्बती है। यही कुछ ऐसा है जिस पर हमें गर्व हो सकता है। अंततः बौद्ध धर्म विश्व के महान धर्मों में से एक महत्त्वपूर्ण है।"

"जैसा मैंने पहले कहा, जब मैंंने कुछ चीनियों के साथ भेंट की, कि तिब्बत में अभी भी आत्मदाह हो रहे हैं। वो जो ऐसा कर रहे हैं स्पष्ट रूप से चाहें तो दूसरों को हानि पहँुचाने में समर्थ हैं, पर ऐसा नहीं करते। सब कुछ होने के बावजूद, वे दूसरों को हानि न पहुँचाने के बुनियादी बौद्ध व्रत को तोड़ना नहीं चाहते। यहाँ तक कि तिब्बत जा रहे चीनी पर्यटकों का कहना है कि तिब्बती एक दयालु और करुणाशील लोग हैं। यह एक ऐसा कारण है कि हमारी समस्या का सम्मान बना हुआ है। यह नैतिक मानक बनाए रखें, धोखेबाज न बनें। चीन में परिस्थितियाँ बदल रही है। तिब्बत के भीतर के लोगों में अभी भी एक अदम्य प्रबल भावना है। हम सब को इसे बनाए रखना है। संयुक्त राज्य अमरीका में हमारा प्रतिनिधि कार्यालय वाशिंगटन डीसी ले जाया गया है, पर मैंने सुझाव दिया है कि एक शाखा कार्यालय न्यूयॉर्क में बनी रहे जो तिब्बतियों को एक दूसरे के साथ संपर्क रखने पर ध्यान केंद्रित करे। हमें एकजुट रहना होगा। टाशी देलेग।"

इसके पश्चात परम पावन भारत के लिए उड़ान भरने हेतु सीधे गाड़ी द्वारा नरीता हवाई अड्डे गए। प्रतिनिधि ल्हगपा छोको, जिनका स्थानातंरण शीघ्र ही ऑस्ट्रेलिया होना है, लुंगतोग, जो जापान और पूर्वी एशिया में उनके उत्तराधिकारी होंगे और प्रतिनिधि कार्यालय के छेरिंग दोर्जे, सभी उनके दो सप्ताह की सफल यात्रा के अंत में उन्हें विदा देने आए। 

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