परम पावन 14 वें दलाई लामा
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तुमकुर विश्वविद्यालय में नई सहस्राब्दी में नैतिकता पर सम्मेलन का उद्घाटन २१/दिसम्बर/२०१४

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तुमकुर, कर्नाटक, भारत - २१ दिसंबर २०१४ - जब परम पावन दलाई लामा दिल्ली से एक आरामदायक उड़ान के बाद कल बेंगलूर आए तो उनके होटल तक का मार्ग अपने आध्यात्मिक नेता की एक झलक पाने के लिए उत्सुक तिब्बतियों से पंक्तिबद्ध था। आज प्रातः भी वे गर्म धूप में अपने हाथों में खाता, फूल और धूप िलए मुस्कुराते चेहरों से उन्हें विदा देने के िलए सड़क पर पंक्ति में खड़े थे। ७० किलोमीटर मोटर गाड़ी की यात्रा के उपरांत वे अपनी तीसरी यात्रा पर तुमकुर विश्वविद्यालय पहुँचे। इस बार उन्हें 'नई सहस्राब्दी में नैतिकता - एक बौद्ध परिप्रेक्ष्य' विषय पर एक सम्मेलन के उद्घाटन का नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित किया गया था, जो तुमकुर विश्वविद्यालय और सेरा जे महाविहार विश्वविद्यालय के बीच एक सार्थक सहयोग के भाग के रूप में आयोजित किया जा रहा है।

परम पावन के आगमन पर, तुमकुर विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो ए एच राजासाब, कुलसचिव और तिब्बती महाविहारों के िवहाराध्यक्षों ने उनका स्वागत किया। उन्होंने विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार के समक्ष एक आनुष्ठानिक बोधि पौधारोपण के लिए परम पावन को आमंत्रित किया। सौ वर्षीय श्री शिवकुमार महास्वामीजी की सहायता के साथ उन्होंने उसे विधिवत लगाया और पानी से सिंचित िकया।



विश्वविद्यालय के भीतर मंच पर, सेरा जे के भिक्षुओं ने एक मंगलाचरण का पाठ किया। कुलपति ने सभी अतिथियों का स्वागत किया तथा परम पावन और श्री शिवकुमार महास्वामीजी को गुलदस्ते और मालाएँ भेंट की। संचालक ने तुमकुर विश्वविद्यालय और सेरा जे महाविहार विश्वविद्यालय के बीच के समझौता ज्ञापन का और एक दूसरे के साथ प्राकृत, पालि और बौद्ध अध्ययन पर केंद्रित कई कार्यक्रमों का स्मरण कराया। 'एक नई सहस्राब्दी में नैतिकता' का यह सम्मेलन इस श्रृंखला का अंग है। उन्होंने परम पावन को अन्य अतिथियों के साथ औपचारिक दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन करने के िलए आमंत्रित किया। इसके पश्चात सम्मेलन की कार्यवाही से युक्त एक पुस्तक का विमोचन किया गया।

कर्नाटक सरकार के दो मंत्री, टी बी जयचंद्र और एच आंजेनय ने सभा को कन्नड़ में संबोधित किया। तत्पश्चात संचालक ने परम पावन को अध्यक्षीय व्याख्यान के िलए संबोधित किया।

"भाइयों और बहनों," उन्होंने प्रारंभ किया। "मैं यहाँ पुनः आकर अत्यंत प्रसन्न हूँ। और मैं यहाँ पुनः स्वामी जी से भेंट करने का अवसर पाकर बहुत खुश हूँ। वह पहले से ही १०० वर्ष अधिक आयु के हैं और उनसे मिलते हुए मेरा अपना १०० वर्षों तक का दृढ़ संकल्प प्रेरित हुआ है। यह बहुत अच्छा है कि आपने इस सम्मेलन का आयोजन किया है।"

"मेरी औपचारिकता में कम रुचि है, मैं स्वयं को ७ अरब मनुष्यों में मात्र एक मानता हूँ। हम सामाजिक प्राणी हैं और एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों के कारण यह अत्यावश्यक हो गया है कि हम मानवता के कल्याण के बारे में सोचें।"


"भौतिक विकास महत्वपूर्ण है, पर यह केवल भौतिक आराम प्रदान करता है। वैज्ञानिक और अधिक प्रमाण पा रहे हैं कि अच्छे स्वास्थ्य के िलए चित्त की शांति की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। वे परिवार, जो दया से प्रेरित होते हैं, फिर चाहे धनवान हों अथवा निर्धन सुखी हैं, जबकि वे परिवार जो धनवान हैं पर जिनमें दया और स्नेह का अभाव है सुखी नहीं हैं।"

उन्होंने दोहराया कि भौतिक विकास सब अच्छा है पर वह अपने आप में हमें सुखी नहीं बना सकता। वास्तव में यह लोभ, ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा और तनाव को भड़का सकता है। यह हिंसा का एक स्रोत हो सकता है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि हमें लोगों को आंतरिक मूल्यों के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है। कोई भी धर्म चाहे कितना ही अद्भुत क्यों न हो सभी ७ अरब मनुष्यों को संतुष्ट नहीं कर सकता। उनमें से एक अरब अविश्वासी होने का दावा करते हैं, जबकि विश्वास करने वालों में कई ऐसे हैं जो निष्ठाहीन हैं, जो सच्ची आस्था न होने के कारण अपने धर्म के िवषय में केवल सतही बात करते हैं।

"समूचे विश्व में हर स्थान पर हम भ्रष्टाचार को एक कैंसर की तरह बढ़ता देख रहे हैं। उसके साथ धनवानों और निर्धनों के बीच खाई है, अधिकांश लोग मात्र अपने िवषय में सोचते हैं, दूसरों के संबंध में पर्याप्त सोच नहीं है। हमारे सभी धार्मिक परंपराएँ नैतिक सिद्धांतों की, नैतिकता की भावना व्यक्त करती हैं। परन्तु इस देश ने लंबे समय से एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाया है, धर्मनिरपेक्ष इस अर्थ में कि सभी धर्मों के प्रति सम्मान और उनके प्रति भी जो िकसी धर्म का पालन नहीं करते।"
 


यह आज बहुत ही प्रासंगिक दृष्टिकोण है। हमें इस पर कार्य करना है कि हमारी आधुनिक धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रणाली में नैतिकता िकस प्रकार लागू किया जाए।

"एक गौण स्तर पर, मैं एक बौद्ध हूँ, पर मैं इस बात को लेकर सुनिश्चित हूँ कि सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराएँ प्रेम, सहनशीलता, क्षमा, संतोष और आत्म अनुशासन का एक साझा संदेश देना चाहती हैं। हाँ, हमारे अपने दार्शनिक मतभेद हैं, पर मूल रूप से उनके ध्यान एक ही लक्ष्य पर केंद्रित हैं। हमें धार्मिक परंपराओं की विविधताओं की आवश्यकता है और यह देश भारत, यह प्रदर्शित करने में अनोखा है कि इन सभी परम्पराओं का सद्भाव पूर्ण सहअस्तित्व सम्भव है।"

परम पावन ने उल्लेख किया कि वे एक तिब्बती भी हैं जो विशुद्ध नालंदा परंपरा के प्रति उत्साहपूर्ण सजगता रखते हैं, जो ८वीं शताब्दी में शांतरक्षित द्वारा ितब्बत लाई गई और वहाँ संरक्षित की गई। उन्होंने स्मरण किया कि वे प्रायः टिप्पणी करते हैं कि तिब्बती भारतीयों को अपना गुरु मानते हैं और स्वयं को शिष्य। पर, उन्होंने कहा कि वे विश्वसनीय छात्र प्रमाणित हुए हैं क्योंकि जहाँ भारत में नालंदा विश्वविद्यालय की परंपरा को उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा है, वहीं तिब्बत में उसे जीवंत रखा गया है। नालंदा के आचार्यों ने हमारे िलए चित्त और भावनाओं के क्रिया कलापों के संबंध में गहन व्याख्या छोड़ी है, एक उन्नत मनोविज्ञान, जो यदि आज उपलब्ध कराया जाए तो बहुत उपयोगी हो सकता है। इसी तरह ऐसा प्रतीत होता है कि मध्यमक दर्शन और क्वांटम भौतिकी की सोच के बीच घनिष्ठ सामंजस्य है।

परम पावन ने श्रोताओं से प्रश्न आमंत्रित किए और पहले ने बौद्ध परंपरा में धर्मांतरण के विषय में पूछा। परम पावन ने उत्तर दिया कि चूँकि विनय में स्पष्ट है कि, जब तक अनुरोध न किया जाए जब तक शिक्षक को शिक्षा नहीं देना चािहए, तो लोगों को अपना धर्म बदलने के िलए कहने का प्रश्न नहीं उठता। परन्तु डॉ अम्बेडकर ने जातीय भेदभाव के विरोध में काम किया है और बौद्ध धर्म में उनका धर्मांतरण उसके अनुरूप था। परम पावन ने कहा कि एक बौद्ध के रूप में उनके मन में डॉ आंबेडकर की दृढ़ता को लेकर गहरी प्रशंसा के भाव थे।


एक दूसरे प्रश्न का संबंध जलवायु परिवर्तन से था और परम पावन ने कहा कि जैसे जैसे इसमें बढ़ोतरी होती है और जनसंख्या बढ़ती है, हम और अधिक अनुभव करने लगे हैं कि यह ग्रह हमारा एकमात्र घर है और यह कि हमें इस की देखभाल करनी है। उनकी महत्वाकांक्षा के बारे में, परम पावन ने कहा कि वे विश्व को एक अधिक खुशहाल और अधिक शांतिपूर्ण स्थान होने की आशा रखते हैं, पर ऐसी आशा नहीं रखते कि वे इसे देखने के िलए जीवित रहेंगे। यद्यपि वे आशा करते हैं कि वे पीढ़ियाँ, जो २१वीं सदी की हैं अभी प्रारंभ करते हुए समय रहते विश्व को एक बेहतर स्थान बना पाएँगी।

यह पूछे जाने पर कि हम जब विश्व में इतनी अधिक हिंसा है तो हम आंतरिक शांति किस प्रकार बनाए रख सकते हैं, परम पावन ने अपने श्रोताओं को उस महान स्नेह का स्मरण कराया जो हम एक शिशु के रूप में अुनभव करते हैं जो हम बाद में विस्मरित कर देते हैं। उन्होंने सुझाया कि हम उस स्नेह की भावना को जीवित रखने के लिए अधिक प्रयास करें। अंत में आज के युवाओं को एक संदेश देने के लिए आमंत्रित किए जाने पर उन्होंने कहा:

"दूसरों की सहायता करो। अन्य लोगों के लिए सुख लाओ। यदि यह कठिन है, तो कम से कम उनका अहित न करो।"


मध्याह्न भोजनोपरांत, मदन मोहन मालवीय गेस्ट हाउस में तुमकुर विश्वविद्यालय के अतिथि के रूप में, तिब्बती विज्ञान संस्था से संबंधित छात्र, जिन्होंने हाल ही में अपनी द्विवार्षिक बैठक का आयोजन किया था, उनसे भेंट करने आए। उन्होंने कहा कि उनकी संस्था महत्वपूर्ण थी और उन्हें प्रत्येक वर्ष बैठक करने का प्रयास करना चािहए। उन्होंने बल दिया कि आज शिक्षा के आधुनिक और परंपरागत साधनों के अच्छे गुणों के संयोजन की बड़ी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आधुनिक विज्ञान, अनुसंधान और प्रयोग पर आधारित है और यह बुद्ध द्वारा अपने अनुयायियों के लिए दिए गए परामर्श से मेल खाता है कि जो कुछ उन्होंने कहा वह मात्र अंधा विश्वास के आधार पर स्वीकार न किया जाए। उन्होंने उनके शब्दों का परीक्षण और विश्लेषण करने के लिए प्रोत्साहित किया और एक निष्कर्ष पर आने के िलए तर्क और कारणों का उपयोग करने के लिए कहा। परम पावन ने छात्रों को बताया कि जब भी उन्हें आवश्कता हो, वे विज्ञान संस्था की सहायता और समर्थन करने के लिए तैयार हैं।

तुमकुर छोड़ते हुए परम पावन देवनगिरि मोटर गाड़ी से गए, जहाँ वे रात के लिए ठहरेंगे। कल प्रातः वे मुंडगोड की अपनी यात्रा पूरी करेंगे, जहाँ वे गदेन शरचे महाविहार में महान १८ पथक्रम (लमरिम) की टीकाओं पर अपना प्रवचन जारी रखेंगे। 

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