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त्रिसमयव्यूहराज - बुद्ध शाक्यमुनि से संबंधित अभिषेक २३/मार्च/२०१४

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 नई दिल्ली, भारत - २३ मार्च , २०१४  - फाउंडेशन फॉर युनिवर्सल रेसपॉन्सिबिलिटि के अनुरोध पर परम पावन दलाई लामा द्वारा दिल्ली में दी जा रही प्रवचनों की एक छोटी श्रृंखला के अंतिम दिन के प्रातः उन्होंने त्रिसमयव्यूहराज का अभिषेक दिया। सभागार की सभी सीटें भर गई थी जब ३०० से अधिक लोग मौन रूप से बैठे रहे और परम पावन दलाई लामा ने प्रारंभिक अनुष्ठान प्रारंभ किया। जब वे तैयार हो गए तो उन्होंने समझाना प्रारंभ किया:

"आज का प्रवचन तंत्रयान से है। यदि हम इतिहास की ओर मुड़कर देखें तो महायान और तंत्रयान दोनों की स्थिति के विषय में लंबे समय से कुछ विवाद है। नागार्जुन ने यह कहते हुए कि यह वास्तव में बुद्ध का शिक्षण था, महायान की प्रामाणिकता का बचाव किया। मैत्रेय, भावविवेक और तदुपरांत शांतिदेव, सभी ने महायान के बुद्ध के प्रामाणिक शिक्षण होने की पुष्टि की।"


परम पावन ने समझाया कि विनय में, जो पालि परम्परा में संरक्षित है, भिक्षुओं को सर्वोच्च सम्मान प्रदान किया गया है। संस्कृत परंपरा के महायान में उपासक और स्त्रियों दोनों को भी समान रूप से सम्मान प्रदान किया गया है।

"ताइवान और चीन में आज भी कुछ ऐसे हैं जो महायान की प्रामाणिकता को चुनौती दे रहे हैं और यह उन देशों के लिए भी कुछ हद तक सच है जहाँ पालि परम्परा का पालन किया जा रहा है। चीन, जापान, कोरिया और वियतनाम में क्रिया, चर्या और योग तंत्र का अभ्यास किया गया है, परन्तु इन देशों में परंपराओं का बिखराव हो गया है। उदाहरणार्थ जेन, जापानी तांत्रिक परंपराओं से विभिन्न है। तिब्बत में, विनय आधार है जिस पर बोधिसत्वंों के अभ्यास, तंत्र के अभ्यास के साथ संयोजित कर किए जाते हैं। यह तिब्बती बौद्ध धर्म की विशेषता है कि सभी तीन यानों को एकीकृत कर और एक साथ अभ्यास किया जाता है।"


दिल्ली में एक सम्मेलन में महायान की प्रामाणिकता के बारे में एक पाश्चात्य विद्वान की हिचक का स्मरण करते हुए परम पावन ने सूचित किया, कि उसने सुझाया था कि नागार्जुन जैसे भारतीय विद्वान जो केवल बुद्ध के चार शताब्दियों बाद आए थे, वे निर्णय लेने की एक बेहतर स्थिति में थे। उनके लेखन प्रमाणित रूप से यह स्पष्ट करते हैं कि ऐसे प्रश्नों के संबंध में नागार्जुन का दृष्टिकोण शंकाकुल और वैज्ञानिक था।

परम पावन यह स्वीकार करने के लिए मुख्य बात से हटे, कि उनकी अपने ही वैज्ञानिक परीक्षणों के कारण उन्होंने कुछ परंपरागत बौद्ध सिद्धांतों का परित्याग कर दिया है। यद्यपि जब वे छोटे थे तो उन्होंने वसुबंधु के अभिधर्म कोश को कंठस्थ कर लिया था, पर अब वे ब्रह्माण्ड संबंधी तीसरे अध्याय में दिए गए स्पष्टीकरण, मेरु पर्वत, एक सपाट पृथ्वी तथा सूर्य और चन्द्र के माप के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। ग्रंथ में दिए गए विवरण अनुभवजन्य वैज्ञानिक प्रेक्षण के साथ मेल नहीं खाते। यद्यपि उन्होंने टिप्पणी की, कि चार आर्य सत्य और शून्यता का स्पष्टीकरण कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। और इन विषयों और अंतिम गंतव्य बुद्धत्व के संदर्भ की समझ में महायान और संस्कृत परंपराओं के विद्वान अत्यंत सहायक हैं। उन्होंने कहा कि उनके विवरणों को पढ़ कर लगता है कि बुद्धत्व की प्राप्ति संभव है।

"नकारात्मक भावनाओं पर ऐसे प्रतिकारकों से काबू पाया जा सकता है जिसमें चित्त के अपेक्षाकृत स्थूल पहलू शामिल हैं पर उनके संस्कार मात्र सूक्ष्म चित्त से दूर किए जा सकते हैं। इसको वास्तव में करने की संभावना अनुत्तर योग तंत्र के प्रभास्वर और सूक्ष्म काय, वाक तथा चित्त की व्याख्या में दी गई है।"


परम पावन ने स्पष्ट किया कि 'मंत्र' शब्द का अर्थ 'मन रक्षक' जैसा है, जिसका आधार शून्यता की समझ है, जो चित्त को अज्ञान तथा साधारण दृश्य से सुरक्षित करता है। इस को प्राप्त करना पुनः सूक्ष्म चित्त से संबंधित है। इस सूक्ष्म चित्त को व्यवहृत करने का एक उदाहरण उन्होंने १७वीं शताब्दी के लामा चंक्या रोलपे दोर्जे का दिया, जिनकी दृष्टि ढलती उम्र के साथ इस हद तक क्षीण हो गई थी कि वे पढ़ नहीं पाते थे। इस कठिनाई पर काबू पाने के लिए वे स्वप्नावस्था में अपने स्वप्न काय का उपयोग पढ़ने के लिए करते थे।

इसी लामा की एक अन्य कहानी परम पावन ने बताई, तगफू तेनपे ज्ञलछेन, जो अपनी अतीन्द्रिय दृष्टि के िलए विख्यात थे। चंक्या रोलपे दोर्जे ने उनकी परीक्षा लेने का निश्चय किया, यह पूछते हुए कि उनकी, चंक्या की जेब में क्या था। तगफू रिनपोछे ने विधिवत जप माला का वर्णन किया। जब चंक्या ने प्रश्न किया कि वे कैसे जान गए तो उन्होंने कहा कि सबसे पहले वे जिसके विषय में जानना चाहते थे, उस पर ध्यान केन्द्रित करते थे, तब पहले उनके समक्ष एक घंटी जिसके बाद वे जिस वस्तु को खोज रहे होते, वह प्रकट होती थी।

अभिषेक की प्रारंभिकता के रूप में, परम पावन ने वहाँ इकट्ठे लोगों से उनके द्वारा कर रहे हृदय सूत्र की धारणी - गते गते पारगते पारसंगते बोधि स्वाहा - के जाप में सम्मिलित होने को कहा, जिसकी व्याख्या उन्होंने पहले ही कर दी थी। अभिषेक के दौरान उन्होंने बोधिसत्व संवर भी दिए। अंत में उन्होंने कहा ः

"यह इस वर्ष के लिए है। मैं अगले वर्ष आपको पुनः देखने के लिए उत्सुक हूँ और आशा करता हूँ कि इस बीच आंतरिक शक्ति में निरंतर उत्तरोत्तर वृद्धि होगी।"

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