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धर्मशाला में विदेशियों के लिए सार्वजनिक दर्शन २८/मई/२०१४

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धर्मशाला, भारत - २८ मई, २०१४ - परम पावन दलाई लामा ने हाल के सप्ताहों में जब दूसरी बार सार्वजनिक दर्शन दिया जिसमें ३०० भारतीयों सहित ६२ देशों से लगभग १५०० लोगों ने भाग लिया, तो मेक्लोडगंज में आरामदायी गर्मी थी। परम पावन अपने कार्यालय से चुगलाखंग के दालान में उतर कर आए, जहाँ लोगों को राष्ट्रीय या क्षेत्रीय समूहों के रूप में एकत्रित किया गया था। उन्होंने तस्वीरों के िलए पोज़ किया, कई शुभचिंतकों के साथ हाथ मिलाया और आपस में एक दूसरे का अभिनन्दन किया।


एक बार जब तस्वीरें खिंच गई और वे अपनी श्रद्धा अर्पित करने के लिए ऊपर चुगलाखंग गए, तो उन्हें सुनने के िलए वहाँ एकत्रित लोगों ने स्वयं को पुन: व्यवस्थित किया। परम पावन ने यह कहते हुए प्रारंभ किया कि उन्होंने हाल ही में, समय - समय पर जनता और धर्मशाला में आए पर्यटकों से मिलने के अपने कार्यक्रम को पुनर्जीवित करने का निश्चय किया था।

उन्होंने कहा कि "हम सभी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से समान हैं। हम सब एक सुखी जीवन व्यतीत करना चाहते हैं और हमें ऐसा करने का अधिकार है।"

उन्होंने कहा कि किस प्रकार एक भौतिकवादी विश्व में कई लोग सुखी होने के लिए ऐंन्द्रिक अनुभूतियों पर निर्भर रहते हैं, पर ऐसी अनुभूतियाँ अल्पकालीन होती हैं। उन्होंने कहा कि चित्त की शांति का विकास अधिक प्रभावशाली है। यह स्वीकार करते हुए कि हम सभी स्वार्थ से प्रेरित हैं, वे बोले

"कुंजी, दूसरों के प्रति सोच के विकास को लेकर स्वार्थी होना है, बजाय इसके कि मूढता से केवल स्वयं के विषय में सोचना।"


तिब्बती बौद्ध परंपरा में, इस तरह के मानसिक प्रशिक्षण में निहित ज्ञान ऐसी परम्पराओं से आया है जो भारत के नालंदा विश्वविद्यालय में समृद्ध थी। उन्होंने प्राचीन भारतीयों के प्रति आभार व्यक्त किया, जिनको वे तिब्बत का गुरु मानते हैं, और साथ ही समकालीन भारतीयों से आग्रह किया कि, वे अपनी दीर्घकालीन अहिंसा और अनूठी अंतर्धार्मिक सामंजस्य की परम्परा, जो आध्यात्मिक परंपराओं के प्रति एक आदरपूर्ण, धर्मनिरपेक्ष नैतिकता से आती है, को बनाएँ रखें।

श्रोताओं के कई प्रश्नों के उत्तर देते हुए उन्होंने पुष्टि की, कि चाहे हमारे चारों ओर का विश्व कितना ही परेशान करने वाला क्य़ों न हो, पर समझदारी सदा इसी में है कि अहिंसा और संवाद के माध्यम से संघर्ष का समाधान किया जाए। यह पूछे जाने पर कि मित्र, तिब्बतियों का समर्थन किस तरह कर सकते हैं, उन्होंने कहा कि तिब्बती प्रश्न एक न्यायपूर्ण प्रश्न है, अतः इसका समर्थन करना न्याय का समर्थन करना है। उन्होंने कहा कि वह कभी कभी परिस्थिति को, बंदूक की शक्ति और सत्य की शक्ति के बीच एक संघर्ष के रूप विशिष्ट करते हैं। अल्पावधि में, बंदूक अधिक शक्तिशाली तथा अधिक प्रभावशाली प्रतीत होता है, पर दीर्घ काल में सत्य की शक्ति ही बनी रहती है। उन्होंने यह आशा जताई कि वर्तमान युवा पीढ़ी जो २१वीं सदी से संबंध रखती है, वे एक अधिक सुखी, अधिक शांतिपूर्ण विश्व को आकार देने में सक्षम होंगे।
 

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