परम पावन 14 वें दलाई लामा
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नई दिल्ली में युवा चित्त के लिए नैतिकता तथा करुणा और प्रवचन जारी २२/मार्च/२०१४

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नई दिल्ली, भारत - २२ मार्च २०१४  -  भारत की राजधानी में आज एक उज्ज्वल वसंत की प्रातः परम पावन दलाई लामा ने १३ स्कूलों से, जिनमें स्टेप बाय स्टेप स्कूल, माउंट आबू स्कूल, सलवान पब्लिक स्कूल, स्प्रिंगडेल्स स्कूल - धौला कुआँ, स्प्रिंगडेल्स स्कूल - पूसा रोड, इंडिया हैबिटेट लर्निंग सेंटर, बाल भारती स्कूल - पीतमपुरा, अमन बिरादरी गृह, वसंत वैली स्कूल, जी.डी. गोयनका स्कूल, पाथवेस इंटरनेशनल स्कूल और ब्लूबेल्स इंटरनेशनल स्कूल के लगभग २६० छात्रों, ४० शिक्षकों और प्रधानाचार्यों के साथ भेंट की। चर्चा का विषय था 'युवा चित्त के लिए नैतिकता और करुणा' और कार्यक्रम का प्रारंभ एक युवा महिला के परम पावन दलाई लामा के स्वागत और उनके परिचय तथा एक युवक द्वारा उन्हें एक श्वेत दुपट्टे की भेंट से हुआ। परम पावन ने उत्तर दिया ः


"मैं यहाँ आकर तुम युवा भाइयों और बहनों से मिलकर बहुत प्रसन्न हूँ। विश्व मानवता की है। मानव बुद्धि के परिणाम स्वरूप हमने बहुत प्रगति की है, पर फिर भी मनुष्य परेशानी का स्रोत हो सकता है। उदाहरणार्थ युद्ध, जो वैध हिंसा से अधिक कुछ नहीं, में केवल मनुष्य संलग्न होते हैं। २०वीं शताब्दी में अत्यधिक युद्धों के दौरान कुछ इतिहासकारों का कहना है कि २०० लाख लोग मारे गए जिनमें कई निर्दोष लोग, स्त्रियाँ, बच्चे और वृद्ध शामिल थे। परमाणु हथियारों का प्रयोग किया गया। हिरोशिमा में मैंने उन आक्रमणों में कुछ बचे जीवित लोगों से भेंट की और उनके भयानक अनुभवों के विषय में सुना, ऐसा कुछ जिसकी पुनरावृत्ति कभी नहीं होनी चाहिए।"

उन्होंने कहा कि उनकी आयु के लोग ऐसी शताब्दी के हैं जो अब जा चुका है पर इस नई पीढ़ी की उपलब्धि जानने की तत्परता रहेगी। यही कारण है कि परम पावन युवा लोगों से मिलने के लिए उत्सुक रहते हैं, क्योंकि जहाँ अतीत, अतीत है और परिवर्तित नहीं जा सकता, पर भविष्य अंतरिक्ष की तरह खुला रहता है जहाँ बढ़ने के लिए अभी भी स्थान है। उन्होंने कहा कि उनके समक्ष जैसे युवा के पास एक और अधिक शांतिपूर्ण विश्व बनाने का अवसर है, एक ऐसा विश्व जो भय पर नहीं अपितु करुणा पर निर्मित है। उन्होंने समझाया कि यदि वे ईमानदारी से सच्चाई से और पारदर्शिता से काम करें तो वे विश्वास और मैत्री प्राप्त करेंगे।

परम पावन ने टिप्पणी की, कि भारत विश्व के प्राचीनतम देशों में से एक है जिसने हजारों वर्षों से अहिंसा का विचार पोषित किया है, जो सहिष्णुता और अंतर्धार्मिक सद्भाव में अभिव्यक्ति पाता है।


"जो समाज को जोड़े रखती है, वह दूसरों के प्रति सोच है जबकि क्रोध और विद्वेष उसे विलग करते हैं। व्यक्तिगत स्तर पर, विज्ञान ने दर्शाया है कि सौहार्दता शारीरिक कल्याण में योगदान देता है। खोजों ने यह भी दिखाया है कि करुणापूर्ण व्यवहार का प्रारंभिक प्रशिक्षण भी रक्तचाप और तनाव कम कर सकता है, ताकि व्यक्ति अधिक प्रसन्न रह सके और बेहतर अंतर्व्यक्तिगत संबंधों का आनंद उठा सके। अब, चलिए कुछ प्रश्न और एक अधिक गरमा गरम चर्चा हो जाए।"

एक युवा ने बौद्ध धर्म में महिलाओं की स्थिति के बारे में पूछते हुए प्रश्न प्रारंभ किए। अपने उत्तर में परम पावन ने विश्वास के स्थान पर एक दृढ़ नैतिकता की भावना की आवश्यकता का उल्लेख किया। उन्होंने समझाया कि बुद्ध ने पुरुषों और स्त्रियों को सम भाव से देखा था और उनके समान अधिकार और समान विनय थे। पर जब, भिक्षु और भिक्षुणियाँ इकट्ठा होते हैं तो बुद्ध कालीन सामयिक परिस्थिति के कारण भिक्षु प्राथमिकता ले लेते हैं। महायान परंपराओं में, पुरुषों और स्त्रियाँ बराबर हैं और तांत्रिक परंपरा में स्त्रियों को सम्मानित किया जाता है और अभ्यासियों को उन्हे हेय दृष्टि से देखना वर्जित है। उन्होंने उस धार्मिक नेताओं की बैठक का उल्लेख किया जो वे सितम्बर में आयोजित कर रहे हैं जिसमें प्राचीन समय से चली आ रही दहेज और जाति भेद की तरह, महिलाओं की स्थिति भी चर्चा का विषय होगी।

अर्थव्यवस्था के बारे में पूछे जाने पर, परम पावन ने कहा धनवानों और निर्धनों के बीच की खाई को कम किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जहाँ भारत को अपने हितों को आगे रखना है, उसे विश्व की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखना चाहिए। इससे संबंधित जो भी समस्याएँ या संघर्ष उत्पन्न हों उसके िलए शक्ति और शस्त्रों का सहारा न लेकर बातचीत द्वारा सुलझाया जाना चाहिए। इस प्रश्न पर कि क्या वे कभी उदास या एकाकी अुनभव करते हैं, उन्होंने अँधियारे पोताला भवन में एकांत में अपने सख्त शिक्षक का स्मरण किया। उन्हें चूहों को पानी के कटोरों से पानी पीने और बाहर भेड़ंों को घर वापिस लाते हुए लड़कों और लड़कियों की आवाज़ सुनने में राहत मिलती थी। उन्हें कुछ समय उनकी तरह उन्मुक्त होने की प्रबल इच्छा हुई, पर अंततः उन्होंने अनुभव किया कि वे अपना नाम तथा पद का उपयोग दूसरों की भलाई के िलए कर सकते हैं।

प्रौद्योगिकी के संबंध में जिसके कारण इतने सारे लोग विचलित हो रहे हैं, परम पावन ने कहा कि यह याद रखना आवश्यक है कि तकनीक को मानवता की सेवा करना चाहिए न कि इसके विपरीत हो। यदि हम अपने आप को उसका दास बना लें तो हमें कोई चैन न मिलेगा।
एक युवती का प्रश्न था कि क्या ऐसा नहीं होता कि करुणा में प्रायः मोह शामिल होता है और परम पावन ने उसके प्रश्न की सराहना करते हुए कहा कि वह करुणा जो जैविक वृत्ति के रूप में जन्म लेती है कुछ अंशों में वैसी होती है। परन्तु एक मनुष्य होने के नाते हम अपनी बुद्धि से उसे और व्यापक बना सकते हैं, यह चिंतन करते हुए कि यदि अन्य सुखी हैं तो हम भी सुखी होंगे। उन्होंने हिंसा के प्रयोग के संबंध में एक बढ़ते विरोध और विश्व में शांति के लिए एक बढ़ती इच्छा का उल्लेख किया। उन्होंने टिप्पणी की, कि प्रार्थना की तुलना में कार्य करना अधिक प्रभावी है। चूँकि मनुष्य हिंसा के लिए उत्तरदायी हैं, उन्हें उसे बंद करना होगा और शांति निर्मित करना होगा।

मध्याह्न का सत्र निर्धारित समय से पूर्व प्रारंभ हुआ, जब पहले परम पावन ने पहले एक पुस्तक 'गेशे जम्पा की तिब्बत यात्रा' का विमोचन किया, जो नीरजा माधव के उपन्यासों की श्रृंखला में दूसरा उपन्यास है।

" अगला  पाठ ' एक बोधिसत्व के ३७ अभ्यास' जो मैं पढ़ने जा रहा हूँ, वह एक तिब्बती आचार्य थोगमे संगपो (१२८५- १३६९) द्वारा लिखा गया था।" परम पावन ने समझाया। "वह बोधिचित्त के महान अभ्यासी थे और एक अच्छे विद्वान भी थे। विषय करुणा और असीम परोपकार है। हम सब एक सुखी जीवन जीना और दुख से छुटकारा चाहते हैं। और जहाँ हमने प्रभावशाली तकनीक विकसित की है पर हमने अभी तक उस के अनुकूल अपने चित्त का विकास नहीं किया है। ऐंन्द्रिक संतोष अल्प कालीन होता है, परन्तु मानसिक विकास से उपजी शांति, दीर्घ काल तक बनी रहती है तथा अधिक प्रबल है। यह हमें शारीरिक समस्याओं का सामना करने में भी सहायक होती है।"


परम पावन ने बुद्ध को एक रक्षक के रूप में नहीं अपितु एक शिक्षक के रूप में सोचने की आवश्यकता का सुझाव दिया, एक ऐसा जिसने कहा ः कि आप स्वयं अपने स्वामी हैं, बुद्ध केवल मार्ग प्रशस्त करते हैं। वे यह नहीं कहते कि तुम्हारा भविष्य मेरे हाथ में है, वह कहते हैं कि यह आपके अभ्यास पर निर्भर करता है। चूँकि आप निज स्वामी हैं, तो आप के स्वामी और कौन होंगे? परम पावन ने बताया कि तीन पिटकों में ग्रंथीय शिक्षाएँ हैं, जबकि जिन शिक्षाओं को अनुभूत करना है वे तीन शिक्षाओं में हैं। ये कई भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं के लिए आम हैं और जब केवल उन्हें नैरात्म्य के संदर्भ में समझा जाता है, तब वे तीन अधिशिक्षा हो जाते हैं। ग्रंथ में निहित शिक्षाएँ एक डॉक्टर के पर्चे की तरह हैं जिनकी हमें अनुभूति करनी है जैसे हम औषधि लेते हैं।

बुद्ध के इस कथन को पुष्ट करते हुए कि सुख और दुख बिना हेतु के नहीं होते, पर साथ ही वे किसी स्थायी हेतु का परिणाम भी नहीं होते, परम पावन ने हेतु और प्रत्यय के बीच संबंध पर एक जटिल व्याख्या प्रारंभ की। उन्होंने बताया कि किस प्रकार हेतु उस समय तक हेतु नहीं होता जब तक कि वह किसी फल को जन्म नहीं देता, और जिस क्षण प्रत्यय का उत्पाद होता है, हेतु की समाप्ति हो जाती है। पुरुष तब तक पिता नहीं होता, जब तक उसकी संतान गर्भ में नहीं आ जाती। इसी प्रकार के संबंध कार्य, कर्ता तथा कार्य की वस्तु के बीच होते हैं। इस प्रकार के अन्योन्याश्रित संबंध यह स्पष्ट करते हैं कि वस्तुओं की कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं होती।

परम पावन ने इन चर्चाओं में अभिसमयालंकार और मध्यमकावतार के द्वारा िकए गए योगदान पर, यह कि भिक्षुओं के लिए इन्हें कंठस्थ करना कितना कठिन है, पर टिप्पणी की। उनमें जिन दार्शनिक स्थितियों को वर्णित किया गया है वे सच्चे अस्तित्व की भ्रांति के सीधे मारक हैं। वे बुद्ध द्वारा सत्वों को दुख से बाहर निकालने के विभिन्न उपायों के अंग हैं। अततः वस्तुएँ, प्रतीत्य समुत्पाद के कारण अस्तित्व में आती हैं, उनका अस्तित्व मात्र ज्ञापित है। प्रज्ञा पारिमता सूत्रानुसार सब कुछ केवल ज्ञापित है।


३७ अभ्यास के प्रारंभ में दिए गए वन्दना को पढ़ते हुए परम पावन ने उल्लेख किया कि वह प्रतिदिन जागने पर बुद्ध की वन्दना के एक पद का पाठ करते हैं। वह उनके द्वारा प्रतीत्य समुत्पाद की देशना के लिए कृतज्ञता अभिव्यक्त करता है। उन्होंने इस बात को दोहराया कि बौद्ध शिक्षाओं का उद्देश्य विमुक्ति और बुद्धत्व प्राप्ति है और उसे प्राप्त करने हेतु हमें शून्यता को समझना होगा, यह ऐसा है, जो केवल मनुष्यों द्वारा संभव है।

जैसे जैसे वे पाठ के पदों को पढ़ते गए, उन्होंने अनित्यता, परा जन्मों के संकटों की चिन्ता, परात्मपरिवर्तन की शक्ति, सम्यक संबुद्धत्व के आकाश सम तन्मयता और मायोपम दृश्य की ओर संकेत किया। उसके पश्चात छह पारमिताओं से संबंधित छंद आए। अंततः उन्होंने अंत से पूर्व के छंद की चेतावनी की ओर ध्यानाकर्षित किया ः "आप जो भी कर रहे हैं स्वयं से पूछें कि मेरे चित्त की स्थिति क्या है ? "


चित्त शोधन की कारिकाओं का शीघ्रता से पाठ करते हुए परम पावन ने उल्लेख किया कि उन्होंने यह पाठ बहुत पहले कंठस्थ कर लिया था और वह पाते हैं कि मन में इसका पाठ करना प्रार्थना की तुलना में कहीं अधिक सहायक है क्योंकि इसमें सलाह दी गई है कि आपका आचरण कैसा हो।

मध्याह्न का सत्र समाप्त होने पर, एक कलाकार, अशोक चोपड़ा ने परम पावन को उनके द्वारा चित्रित एक चित्र भेंट किया जिसे उन्होंने दर्शकों के समक्ष रखा और पूछा कि:

"कौन सा बेहतर है, मेरा असली चेहरा या यह चित्र?"

कल प्रातः परम पावन अभिषेक देंगे जो बुद्ध शाक्यमुनि और त्रिसमयव्यूह से संबंधित होगा।

 

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