परम पावन 14 वें दलाई लामा
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परम पावन दलाई लामा की ओस्लो से रॉटरडैम की यात्रा ११/मई/२०१४

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रॉटरडैम, हॉलैंड - १० मई २०१४  - ओस्लो की सड़कें शांत थी और सूरज चमक रहा था जब दलाई लामा रॉटरडैम उड़ान भरने के लिए गाड़ी से हवाई अड्डे के लिए निकले। इसके विपरीत रॉटरडैम का मौसम ठंडा और गीला था जब वे वहाँ पहुँचे। पर उनके तिब्बती और डच मेजबान ने उत्साह से उनका स्वागत किया और मीडिया के साथ एक छोटी बैठक के लिए उनके साथ गए।

परम पावन ने एकत्रित पत्रकारों को बताया कि वह हॉलैंड, जो सुन्दर लोगों और ट्यूलिप पुष्पों का देश है, में फिर से आकर कितने प्रसन्न थे। उन्होंने प्रेम और स्नेह के आधार पर मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने, अंतर - धार्मिक सद्भाव के विकास में अपनी रुचि और तिब्बत की शांति और करुणा की संस्कृति के संरक्षण, साथ ही विश्व के छत के नाजुक पर्यावरण के प्रति अपने प्रयासों को बताते हुए अपनी तीन प्रतिबद्धताओं का एक संक्षिप्त विवरण दिया।

पहला प्रश्न था कि परम पावन के पिछले हॉलैंड की यात्रा के बाद तिब्बत की स्थिति कैसी थी। उन्होंने उत्तर दिया कि कट्टरपंथी अधिकारियों द्वारा अलगाववाद के एक खतरे के रूप में बताकर तिब्बती भाषा और धर्म को लक्ष्य बनाकर उसे प्रतिबंधित करने का प्रयास जारी है। दूसरा प्रश्न था कि तिब्बतियों के अहिंसक बने रहने की आशा कितने समय तक की जा सकती है, परम पावन ने उत्तर दिया कि यदि तिब्बत में तिब्बती बौद्ध संस्कृति क्षतिग्रस्त होगी, तो कौन जानता है कि क्या होगा।



एक पत्रकार जो धार्मिक विषयों पर लिखते हैं, ने कहा कि शुगदेन के समर्थकों द्वारा प्रदर्शन प्रत्याशित है और पूछा कि परम पावन उसके अभ्यास के बारे में क्या बुरा समझते हैं। उन्होंने उत्तर दिया:

"हम बौद्ध हैं और बुद्ध ने हमें साधारण देवताओं और आत्माओं में शरण न लेने की सलाह दी है। यह एक बुनियादी बौद्ध सिद्धांत है। शुगदेन अनुयायी उसे अच्छा मानते हुए उसमें शरण लेते हैं। यह आत्मा १७वीं शताब्दी में ५वें दलाई लामा के काल में जन्मी। उन्होंने लिखा कि यह एक हानिकारक, दुष्ट आत्मा है। इसका एक हानिकारक अंग, तीखी सांप्रदायिकता है, जबकि मैं एक समावेशी गैर संप्रदायवाद के लिए प्रतिबद्ध हूँ। इस आत्मा के कारण लोगों ने अन्य परंपराओं की छवियों और ग्रंथों को नष्ट कर दिया है, विशेष रूप से ञिङ्मापा का।"

"अज्ञानता के कारण १९५१ में मैंने इसे तुष्ट करना प्रारंभ किया और १९७० तक करता रहा, जब मैंने अनुभव किया कि इसमें उलझनें थी, जिसने मुझे इसका जाँच करने के लिए प्रेरित किया। विभिन्न परंपराओं के २० शिक्षकों में से सभी ने, केवल एक को छोड़कर इसके अभ्यास का विरोध किया। मेरे द्वारा ७० के प्रारंभ में इसे बंद करने के बाद लोगों को क्रमशः इसका पता चला और मैंने इसका कारण समझाया।"

"साधारणतया हम आशा करते हैं कि आत्मा लोगों की रक्षा करेगी, पर इस मामले में लोग आत्मा की रक्षा के प्रयास में हैं। वे चिल्लाते हैं, "झूठ बोलना बंद करो", पर मैं नहीं जानता कि वे क्या सोच रहे हैं कि कोई किसके बारे में झूठ बोल रहे हैं। इसके विषय में लोगों को बताना मेरा कर्तव्य है। प्रदर्शनकारी कहते हैं कि मैंने इस अभ्यास पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, पर ऐसा नहीं है, मैंने नहीं किया है और दक्षिण भारत में शुगदेन से जुड़े विहार इस बात का प्रमाण हैं।"

रॉटरडैम में मध्याह्न के भोजनोपरांत परम पावन ने वेरेल्ड संग्रहालय का दौरा किया जहाँ उनसे वेरहोवेन परिवार द्वारा प्रतिस्थापित, बोधिमंड फाउंडेशन द्वारा तिब्बती कलाकृतियों के उल्लेखनीय संग्रह को एक मंदिर के रूप को अभिषिक्त करने का अनुरोध किया गया था। परम पावन ने सलाह दी कि बुद्ध की छवि को प्रमुख स्थान पर स्थापित करना अधिक उपयुक्त होगा, क्योंकि बौद्ध, बुद्ध, धर्म और संघ में शरण लेते हैं। चाहे दलाई लामा कितने ही महत्त्वपूर्ण क्यों न हों फिर भी वे संघ के एक सदस्य ही हैं। एक अनुरोध पर परम पावन ने मन्दिर का नाम छोखोरलिंग रखा।

लाउरनस्कर्क के चर्च में परम पावन ने नॉर्डिक देशों में रहने वाले लगभग २००० तिब्बतियों को संबोधित किया। तिब्बती चेहरों के एक समुद्र को देखते हुए उन्होंने प्रारंभ किया:


"हममें से जो विश्व की छत से हैं और जिनका अवलोकितेश्वर के साथ निकट का संबंध है, वे कठिन समय से गुजर रहे हैं। आप सब मुझे देखने के लिए यूरोप के कई भागों से आए हैं और मैं आप सब का अभिनन्दन करता हूँ। हम सभी ने उतार चढ़ाव का सामना किया है। २५ वर्ष की आयु से अब तक, जब मैं लगभग ७९ वर्ष का हूँ मैं एक शरणार्थी के रूप में रहा हूँ। हम तिब्बतियों में ऐसा कुछ है कि, हम जितनी अधिक कठिनाइयों का सामना करते हैं, हमारा संकल्प उतना ही अधिक दृढ़ होता जाता है। तिब्बत के लोगों की भावना बहुत प्रबल है; उनका साहस अद्भुत है। और वे अहिंसक बने रहते हैं। हम अपने धर्म और संस्कृति के लिए एक प्रबल समर्पण बनाए रखते हैं और अतीत में बनाए गए हमारे उद्देश्यों के कारण हमने अपनी धरोहर को नीचा नहीं िकया है। ६० वर्षों के बाद भी तिब्बत का प्रश्न अभी जीवित है। तिब्बत के प्रति जागरूकता अभी भी बढ़ रही है।"

उन्होंने कहा कि करीब चार वर्ष पूर्व, चीन में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, चीन में ३०० करोड़ बौद्ध थे जिनमें से अधिकाश शिक्षित लोग थे। परम पावन १०, ००० चीनी बुद्धिजीवियों से मिले हैं और तिब्बती बौद्ध धर्म में उनकी रुचि को जाना है। जापान में भी तिब्बती बौद्ध धर्म में रुचि बढ़ रही है। एक जापानी विहाराध्यक्ष ने उन्हें बताया कि यद्यपि 'हृदय सूत्र' का सस्वर पाठ जापान में व्यापक है, पर कुछ ही लोग इसका अर्थ समझते हैं और वे तिब्बती परंपरा द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण को मूल्यवान मानते हैं।

परम पावन ने टिप्पणी की, कि आधुनिक विज्ञान में तिब्बतियों को शिक्षा देने के लिए बहुत कुछ है, पर आधुनिक वैज्ञानिक भी भारतीय परंपरा से तिब्बती बौद्ध धर्म में संर्रक्षित चित्त और भावनाओं के ज्ञान में रुचि दिखा रहे हैं।

"यदि हम तिब्बत में ही रहते तो हमने जो सीखा है वह सीख नहीं पाते, और न ही हम जो जानते हैं उसे दूसरों के साथ साझा करने का अवसर मिलता।"

उन्होंने टिप्पणी की, कि अधिक से अधिक साधारण लोग अध्ययन कर रहे हैं और यहाँ तक ​​कि पहले जो विहार केवल कर्म कांड के लिए थी, वहाँ अध्ययन कार्यक्रम प्रारंभ हो गए हैं। साथ ही साथ गेलुग संस्थानों में, सक्यापा और ञिङ्मापा बौद्ध धर्म के शास्त्रीय दार्शनिक ग्रंथों के अध्ययन के लिए एक बढ़ता समर्पण है और इसका प्रभाव तिब्बत के विहारों पर भी पड़ रहा है। भिक्षुणियों को भी अध्ययन के अवसर और प्रोत्साहन दिए गए हैं और उनमें से कुछ एक गेशे मा की डिग्री के लिए परीक्षा लेने की प्रक्रिया में हैं।


"जब मैंने महाराष्ट्र के भंडारा आवास की यात्रा की, तो तिब्बती स्कूल के छात्रों ने शास्त्रार्थ के कौशल का प्रदर्शन किया। उनकी शिक्षिका एक भिक्षुणी थी जो १९९० में तिब्बत से आई थी और जिन्होंने डोलमा लिंग भिक्षुणी विहार में कड़ा अध्ययन तथा प्रशिक्षण प्राप्त किया था। अब वह दूसरों को शिक्षा दे रही है और मैंने उसकी उपलब्धियों की सराहना की। लद्दाख और हिमालय क्षेत्र के अन्य भागों में साधारण लोग अध्ययन समूह की स्थापना कर रहे हैं।"

तिब्बती शिक्षा के विकास पर पीछे मुड़कर देखें, तो परम पावन ने कहा कि वे तथा अन्य, अप्रैल १९५९ में भारत आए थे और मार्च १९६० तक पहले स्कूलों का प्रारंभ हो चुका था। उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू से इन स्कूलों की स्थापना करने में सहायता माँगी और अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए उनकी सलाह ली। उन्होंने हाल ही में नार्वे में मिले एक तिब्बती का उल्लेख किया, जिसका जन्म तिब्बत में हुआ था, पर अब वह विश्वविद्यालय में है और अपनी पी एच डी पूरी करने वाला है। उन्होंने इस तरह के विशेषज्ञता की सराहना की जो अन्य तिब्बतियों के लिए भी लक्ष्य बन सकता है।

यह सुनकर और आश्चर्य व्यक्त करते हुए कि पश्चिम में कुछ तिब्बती परिवार घर पर केवल अंग्रेजी में बोलते हैं, परम पावन ने श्रीनगर, कश्मीर में हाल ही में मिले तिब्बती मुसलमानों का उल्लेख किया जिनके बच्चे अच्छी तिब्बती बोलते हैं। वहाँ स्कूल में कोई तिब्बती शिक्षा नहीं दी जाती पर उनके माता - पिता और दादा - दादी ने उन्हें सिखाया है।

बौद्ध तर्क और ज्ञान - मीमांसा के ग्रंथों के संस्कृत से अनुवाद अब केवल तिब्बती में उपलब्ध हैं। इन कौशलों में प्रशिक्षण के कारण तिब्बतियों के लिए आधुनिक विज्ञान के अध्ययन में इतनी आसानी से संलग्न होना संभव किया है।

परम पावन ने स्मरण किया कि "मैंने न्यूयॉर्क में पिछले वर्ष चीनी लेखकों के एक समूह से भेंट की जिनमें से दो बीजिंग से आए थे। उन्होंने मुझसे कहा कि जहाँ तक नैतिकता का संबंध है, ५००० वर्ष के इतिहास में इस समय चीन सबसे कम बिन्दु पर है। उन्होंने कहा कि केवल बौद्ध धर्म इसे सुधार सकता है। शी जिनपिंग ने भी हाल ही पेरिस में टिप्पणी की कि चीनी संस्कृति के पुनरुद्धार और नवशक्ति संचार में बौद्ध धर्म की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।"

परम पावन ने एक तिब्बती और उसकी पत्नी की कहानी सुनाई, जो अमरीका के एक रसोई घर में सब्जियों की सफाई का काम करते हैं। वे इल्लियों, कीड़े और अन्य कीटों को बचाने के लिए उन्हें एक बर्तन में डाल दिया करते थे और बाद में उन्हें बाहर ले जाते थे। उनके जिज्ञासु सहयोगियों ने पूछा कि वे क्या कर रहे थे और उन्होंने समझाया कि उन्हें इन प्राणियों को मारने की कोई आवश्यकता नहीं थी, इन्हें भी जीने का अधिकार था। समय रहते उन्होंने उनके उदाहरण का अनुसरण दूसरों द्वारा करते देखा, तिब्बतियों का दूसरों पर सकारात्मक प्रभाव का एक उदाहरण।

परम पावन ने यह भी उल्लेख किया कि कुछ वर्ष पूर्व शुगदेन के अभ्यास के समर्थकों ने वे जहाँ जहाँ गए उनके विरोध में प्रदर्शन किए। बाद में, कुछ चीनियों ने भी कुछ समय के लिए ऐसा किया। शुगदेन अनुयायियों ने अपने प्रदर्शन पुनः प्रारंभ कर िदए हैं। वे दलाई लामा को झूठ बोलने से रुकने के लिए कह रहे हैं, पर उन्होंने कहा कि वास्तव वे सच नहीं बोल रहे हैं।

"जब उनमें से एक ने मेरी सार्वजनिक व्याख्यान के दौरान एक प्रश्न उठाया, मैंने उसे बताया कि यह कोई नया मुद्दा नहीं है। यह ५वें दलाई लामा के समय में शुरू हुआ था। शुगदेन को टुल्कु डगपा ज्ञलछेन का प्रकटीकृत रूप माना जाता है, पर ५वें दलाई लामा ने िलखा था कि विकृत प्रार्थना के परिणामस्वरूप उसका जन्म एक विश्वासघाती आत्मा के रूप में हुआ। उन्होंने एक सक्या गुरु से इतना कहा था जिनसे उन्होंने सहायता माँगी थी।"

"लिंग रिनपोछे ने इस अभ्यास पर आपत्ति की पर ठिजंग रिनपोछे शुगदेन तुष्टि किया करते थे। मैंने भी १९७० तक ऐसा किया था, जब मुझे इसके विषय में शंका होने लगी। मैंने इस पर शोध किया और जिसके परिणाम स्वरूप मैंने इसे बंद कर दिया। जब गदेन जंगचे महाविहार को एक के बाद एक कई असामान्य बाधाओं का सामना करना पड़ा, तो उन्होंने ठिजंग रिनपोछे की सलाह ली, जिन्होंने बताया कि इसका कारण रक्षकों की नाराज़गी थी। उन्होंने मुझसे पूछा कि यह कैसे हो सकता है और मैंने जाँच कर स्थापना की, कि समस्याएँ शुगदेन से संबंधित थी। मैंने नमज्ञल विहार के विहाराध्यक्ष को बताया, जो जंगचे से थे।"

" शुगदेन समर्थक अपने ही समूह की स्थापना की।"

"१३वें दलाई लामा ने फबोंगखा रिनपोछे से कहा कि अत्यंत व्यग्रता से शुगदेन की तुष्टि करना, त्रिरत्न शरण गमन उपदेशों के उल्लंघन करने जैसा खतरा है। यह फबोंगखा रिनपोछे की जीवनी में बताया गया है। मुझे लगता है कि मुझ पर भी लोगों को इस बारे में सूचित करने का एक उत्तरदायित्व है, पर वे उस पर ध्यान दें अथवा नहीं यह उन पर निर्भर है। मैंने यह कभी नहीं कहा है, कि मैंने इस अभ्यास पर प्रतिबंध लगा दिया है, मैंने कहा है कि यह सहायक नहीं है।"

"बस इतना ही। मैं ठीक हूँ; सुखी रहें।"

परम पावन के व्याख्यान के समापन पर, छेरिंग जमपा और छेयंग ल्हज़ोम ने नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित होने की २५वीं वर्षगांठ के स्मृति समारोह पर उन्हें एक पदक अर्पित की।

तिब्बतियों के साथ अपनी बैठक के बाद उट्रेच के सहायक बिशप मनसेइनयूर हरमन वूर्ट्स के तत्वावधान में अपने पुराने मित्र रबई सोएटेनडोर्प और अन्य दूसरों के साथ परम पावन को नीदरलैंड के विदेश मंत्री, फ्रेन्स टिम्मरमेन्स से मिलने का अवसर मिला और उनके बीच एक मैत्रीपूर्ण चर्चा हुई।

कल परम पावन प्रातः 'मार्ग के तीन सिद्धांतों' पर प्रवचन देंगे और दोपहर को धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के बारे में एक व्य़ाख्यान देंगे।

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