परम पावन 14 वें दलाई लामा
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वाशिंगटन डी सी में सुख , स्वतंत्र उपक्रम तथा मानव सम्पन्नता १९/फरवरी/२०१४

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वॉशिंगटन डी सी , अमरीका १९ फ़रवरी २०१४   -   सोमवार को हाल के दिनों के धर्मशाला के अत्यधिक शीत के मौसम में आई   राहत के   कारण परम पावन दलाई लामा  का  हवाई  उड़ान  द्वारा  दिल्ली  जाना  संभव  हो  सका  ।  स्वच्छ  नीले  आकाश  के परिपृष्ठ  में  धौलाधार पर्वत चमकीले  दिखाई  दे रहे थे ।  उनकी यात्रा फ्रैंकफर्ट   होती  हुई  संयुक्त राज्य अमेरिका की थी  ।  अंतिम चरण  में  पूर्वी समुद्र तट बर्फ से ढँका  था  और  गाड़ी  से जाते  हुए   वाशिंगटन डी सी के  मार्ग  अभी भी बर्फ   से   सजे  थे  ।   होटल में उनका स्वागत  सिक्योंग लोबसाग सांगे के नेतृत्व में  खिले चेहरे  लिए  तिब्बतियों ने   पारंपरिक तिब्बती संगीतकारों की संगत के साथ  किया  ।

मंगलवार की सुबह, कई निजी बैठकों के बाद उन्होंने टाइम पत्रिका की एलिजाबेथ डायस को एक साक्षात्कार दिया ।   इस प्रश्न  के  उत्तर  में , कि क्या चीन  के  साथ  अपने  व्यवहार  में  अमरीका मानव अधिकारों के मुद्दों  से पीछे  हट रहा है परम पावन ने  कहा कि लोकतंत्र , स्वतंत्रता और न्याय  अमेरिका के सिद्धांत  तथा क्षेत्र हैं जिसमें अमरीका निरंतर  नेतृत्व  कर रहा  है । उन्होंने  सुझाव  दिया  कि  स्वतंत्र विश्व  चीन  के  साथ संलग्न  रहें पर अपने नैतिक सिद्धातों पर दृढ़ हों   । उन्होंने कहा कि नैतिक सिद्धांतों या सच्चाई की भावना  के संकल्प को शिथिल करने से बहुत   हानि  होगी । उन्होंने आगे  कहा कि सभी देशों को जलवायु परिवर्तन को  सम्बोधित  करने की  आवश्यकता  है । जलवायु का अति  रूप पहले से ही लाखों  किसानों को प्रभावित कर रहा है ।उन्होंने इंगित किया  कि  जलवायु  परिवर्तन पर पिछला कोपेनहेगन शिखर सम्मेलन  विफल  हुआ  क्योंकि  कई देशों ने  वैश्विक हितों  के समक्ष अपने अल्पकालिक राष्ट्रीय हित पहले रखे । उन्होंने सचेत किया कि हमें  वैज्ञानिकों के पूर्वानुमानों  को गंभीरता से लेना   चाहिए ।  

 
सामान्य कल्याण के िलए सामाजिक मीडिया के योगदान के बारे में परम पावन ने कहा कि यह निर्भर करता है कि हम उनका  कैसे  उपयोग करते हैं । उनके इस सुझाव के विषय में कि अगली दलाई लामा एक महिला हो सकती  हैं और नेतृत्व की भूमिका निभाने में महिलाओं की  संभावना पर उन्होंने कहा कि अतीत में नेतृत्व शारीरिक बल पर निर्भर करता था जिसने पुरुष के प्रभुत्व को  जन्म दिया  । आज शिक्षा समानता की एक बड़ी भावना पुनः लेकर आई है , परन्तु मात्र शिक्षा पर्याप्त नहीं है । आवश्यकता है नैतिक सिद्धांतों और यथार्थवादी दृष्टिकोण युक्त शिक्षा की ।
" समय  आ गया है कि महिलाएँ मानव  प्रेम  को बढ़ावा देने में िजसमें वे पहले ही अधिक  कुशल हैं एक और  बड़ी भूमिका  निभाएँ । "
 
तिब्बत में हो रहे आत्म दाह से संबंधित एक प्रश्न के उत्तर में परम पावन ने अपनी  बात दोहराई  जो वह पहले ही कह चुके हैं ,कि ये अत्यंत  दुखदायी हैं और यह  कि हमें जीवन का ख्याल रखना चाहिए और वियतनाम युद्ध तथा  सांस्कृतिक क्रांति  के दौरान  हुए ऐसे व्यवहार के  पूर्व  उदाहरण हैं । उन्होंने दोहराया कि चूँकि ये प्रश्न अत्यंत संवेदनशील हैं और वे जो भी कहेंगे , उन्हें दूसरे तोड़ मरोड़ सकते हैं ,वे इस पर अधिक बोलना नहीं चाहेंगे । उन्होंने भारत और चीन के बीच संबंधों में सुधार की सराहना की जिससे दोनों  ही देशों के लोगों  को लाभ होगा ।  उन्होंने कहा कि वे तिब्बती समस्या के िलए भी एक अधिक प्रबल समर्थन की अपेक्षा रखते हैं  ।  

"हम अलग होने की माँग नहीं कर रहे । ७ वीं , ८ वीं और ९ वीं शताब्दी में तीन महान साम्राज्यों ,चीन,मंगोलियाऔर तिब्बत में से तिब्बत  एक था । पर यह अतीत में था और अतीत   पीछे जा चुका है । बीते कल का स्वादिष्ट भोजन आज की क्षुधा को शांत  नहीं  कर सकता  ।  आज तिब्बत  को  विकास की आवश्यकता है इसलिए वह चीन की पीपुल्स रिपब्लिक से लाभ  उठा सकता है । चीनी संविधान में तथाकथित अल्पसंख्यकों के अधिकारों की ओर ध्यान देने की  बात है, और ५० के दशक में माओत्से तुंग ने मुझसे  बार बार यह कहा था कि  चीन तिब्बत   को उसी रूप में नहीं देखता जैसे वह अन्य अल्पसंख्यक क्षेत्रों को  देखता  है ।  "

नई चीनी राष्ट्रपति क्सी जिनपिंग के बारे में परम  पावन ने कहा कि कई जानकार चीनी मित्रों ने उन्हें बताया था कि वे अधिक यथार्थवादी प्रतीत होते हैं । जिस साहस से वे भ्रष्टाचार से निपट रहे हैं वह इस बात से मेल खाता है । क्सी जिनपिंग के पिता ,क्सी  जो़नगुन जिनसे वे  चीन में मिले  , एक भले  आदमी थे । क्सी जिनपिंग की हू यायोबांग के प्रति भी सम्मान के  संकेत मिलते  हैं , जिन्होंने एक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाया  ,अपनी जानकारी के लिए विश्वसनीय स्रोत पर भरोसा किया और ल्हासा की  यात्रा के दौरान यह स्वीकार किया कि त्रुटियाँ हुई थीं ।

वैनिटी फेयर के लिए परम पावन का साक्षात्कार करते हुए डेविड रोज़ ने  पूछा कि उनके आगमन का क्या कारण था जिसका उत्तर देते हुए परम पावन ने कहा:


" मैं एक मनुष्य हूँ , एक ऐसे  विश्व का नागरिक जहाँ हम सब एक दूसरे पर निर्भर हैं , एक ऐसा विश्व  जिसमें हमें दूसरों के कल्याण की चिंता की अधिक आवश्यकता है । दूसरों के  साथ  यह विचार साझा करना मेरी प्रतिबद्धताओं में से एक है । दूसरा कारण  अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देना है । अतः मैं जहाँ भी जाता हूँ लोगों  से मिलना पसंद करता हूँ । यदि मैं नेताओं से   मिलूँ तो बहुत अच्छी बात है , पर  आम जनता से संबंध जोड़ना और अधिक  महत्वपूर्ण है ।  "

यह पूछे जाने पर कि वह अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट  के अध्यक्ष आर्थर ब्रूक्स से कैसे  मिले ,परम  पावन ने स्मरण किया कि वह उनसे मिलने और उन्हें इंस्टिटयूट आने हेतु आमंत्रित  करने के लिए धर्मशाला आए थे । उन्होंने कहा :

"मैं   उनसे  प्रभावित  हुआ  और मैंने उनके निमंत्रण को  स्वीकार कर लिया । कुछ लोगों ने यह  शिकायत की है कि  अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टिट्यूट एक दक्षिणपंथी संगठन है, पर जहाँ तक मेरा संबंध है ,   दक्षिणपंथी और वामपंथी सबसे पहले मनुष्य हैं । समाज में परिवर्तन लाने हेतु हमें शिक्षा की आवश्यकता है और हमें मानवता की एकता पर विचार करने की जरूरत है । अतः एक स्वतंत्र विश्व के नेता के रूप में अमेरिका को संपूर्ण  विश्व के कल्याण पर विचार करना चाहिए । "

रोज़ ने सुख में राजनीति की भूमिका के बारे में पूछा और परम पावन ने कहा  कि  राजनीति सुख की परिस्थितियांँ बनाने के विषय में है । उन्होंने कहा कि रोबोट के विपरीत हममें सुख और पीड़ा की अनुभूतियाँ हैं जिन्हें मानवीय ढंग से संबोधित करने की आवश्यकता है । उन्होंने कहा कि इच्छा के बिना कोई विकास नहीं होगा पर कहा कि लालच अलग है । जहाँ  पूंजीवाद धन के निर्माण पर केंद्रित है, वहीं मार्क्स का दृष्टिकोण समान वितरण पर बल देता  है । किसी भी तरह हो , कोई नहीं चाहता कि सब निर्धन बने रहें ।  

परम पावन को अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टिट्यूट के सदस्यों और अतिथियों के  साथ मध्याह्न   भोजन के लिए आमंत्रित किया गया था जहाँ उनका स्वागत बड़े उत्साह के साथ किया गया  ।    इसके  पश्चात ' सुख , स्वतंत्र  उपक्रम तथा  मानव सम्पन्नता ' पर चर्चा हुई । आर्थर ब्रूक्स ने परम  पावन से यह पूछते हुए प्रारंभ किया कि वह सुख किस तरह परिभाषित करते हैं । उन्होंने   उत्तर  दिया   :

" यदि आप सुख मात्र आनंद के रूप में  देखें तो यह बहुत ही सीमित है । उदाहरण के लिए कभी कभी भी दुख भी संतोष दे सकता है । वह संतोष आंतरिक शांति की ओर ले जाता है और आंतरिक शांति एक शांत चित्त  को जन्म देती है । हम न केवल शारीरिक स्तर पर  अपितु एक भावनात्मक और मानसिक स्तर पर भी सुख की अनुभूति करते हैं और एक सुखी जीवन जीते हैं । जब एक डॉक्टर आराम करने की सलाह  देता है तो  वह मात्र शारीरिक रूप से हमें आराम करने  के   लिए नहीं कहता पर हमें मानसिक स्तर पर भी  विश्राम करना चाहिए , इसका अर्थ है कि हमें एक शांत चित्त की आवश्यकता  है ।    

 
"हमारी आधुनिक शिक्षा एक भौतिकवादी प्रणाली की  ओर प्रवृत्त  है ।  हमें  एक ऐसी  आधुनिक शिक्षा की आवश्यकता  है जिसमें  नैतिकता की भावना शामिल हो । और जैसे भारत  का उदाहरण है  कि  एक बहु - धार्मिक , बहु - सांस्कृतिक समाज में   चूँकि  नैतिकता  इस अथवा   उस  धर्म  पर आधारित   हो पक्षपाती हो जाती  है इसिलए  आज नैतिकता का  आधार  धर्म   निरपेक्षता  होना   चाहिए  ।  और धर्मनिरपेक्ष से मेरा अर्थ  धर्म  को अनदेखा करना नहीं है  ,   अपितु सभी धर्मों  के   प्रति  और उनके  प्रति  भी   जो किसी  धर्म  को  नहीं   मानते   , पक्षपात  रहित सम्मान व्यक्त करना है । ऐसी   धर्मनिरपेक्षता वैज्ञानिक खोजों के द्वारा भी  समर्थित है ।   ये बताते  हैं   कि  आत्मकेन्द्रित  भाव  जो   सीमित   करता    और  बाँधता   है   ,  कुछ   अच्छा  नहीं  करता जबकि  सौहार्दता , दूसरों  की  चिंता करना , हमें  उन्मुक्त   करता  तथा  व्यापकता  देता   है  , जो  कि   आंतरिक  शांति    और  सामान्य   अच्छे  स्वास्थ्य  के  अनुकूल  है । मनुष्य के रूप में हमें   अपनी  समानता पर विचार करने की आवश्यकता है   ।   "श्रोताओं   से  पूछे   प्रश्नंो  में   परम  पावन किसे  अपना   आदर्श   मानते   हैं , भी  शामिल  था  ।  उन्होंने अहिंसा के   माध्यम   से   उपलब्धियों   के   लिए   महात्मा  गांधी  और   मार्टिन   लूथर   किंग  का   और  जिन  से  वे   वास्तव में  मिले    हैं   , में   वक्लाव  हेवल   तथा  पोप जॉन पॉल द्वितीय  का उल्लेख किया ।  यह पूछे  जाने  पर  कि  कौन  सी  पुस्तकों ने   उनके   मर्म  को  छुआ   है  ,  परम पावन  ने   अपनी बौद्ध शिक्षा और उनके   उद्गम    नालंदा विश्वविद्यालय की    परम्परा    के    बौद्ध धर्म ग्रंथों और भाष्यों    जो  उत्तर भारत में विकसित हुई, के बारे में विस्तार से बताया ।  उन्होंने मूल ग्रंथों को  कंठस्थ   करने  ,   व्याख्यात्मक भाष्यों का अध्ययन करने और  सीखे गए   विषयों    पर   दूसरों   के साथ   शास्त्रार्थ   करने  की भी  बात की ।

बाद में हुई   एक बैठक में छात्रों और संभावित भविष्य के नेताओं के   प्रश्नों   के  उत्तर  देते हुए  परम पावन  ने  पुनः संतोष  के संबंध   में सुख   का  संदर्भ    दिया  ।   

"  संतोष आंतरिक शक्ति और विश्वास को जन्म देता है ।   हम सामाजिक प्राणी  हैं , हमें   मित्रों की  आवश्यकता  है  ।  मैत्री विश्वास पर निर्भर करती है और  विश्वास    स्वयं  सच्चाई   और   ईमानदारी   का   आचरण    का   पालन    करते   हुए    एक   दूसरे    के   प्रति    सच्चे    सम्मान  और   स्नेह  से   आता   है । "

क्रोध के   संबंध   में   और उससे   कैसे निपटा   जाए   के विषय   में, परम पावन   ने कहा  कि   यह   निर्भर   करता  है   कि  आप का  चित्त  किस   स्तर  तक  शांत है ।   क्रोध जैसे विनाशकारी भावनाओं के    लिए   यह   संभव   है    कि   वह  आपके   आधारभूत   शांत चित्त  को   व्याकुल   किए बिना आ  कर   चला   जाए   ।    उन्होंने यह भी सुझाव दिया  कि  अपने चित्त  के एक कोने से अपने क्रोध   का निरीक्षण कर    यह  आकलन   लगाना   कि   क्या    इसका   कोई    मूल्य है, भी   संभव   है   ।   


यह   पूछे    जाने    पर   कि   क्या   वैश्विक आर्थिक संकट  एक   अधिक  उत्तरदायित्व   की  भावना   लेकर   आया   है   परम   पावन   ने कहा  कि वास्तविकता यह   है   कि  अब   हमारी वैश्विक अर्थव्यवस्था है ।  हमें  अच्छा   लगे   या  न लगे  हमें   उसे  एक  वैश्विक उत्तरदायित्व   की भावना के  दृष्टिकोण से   देखना   होगा  ।   उन्होंने  दोहराया  कि इसी   तरह   पर्यावरण सुरक्षा और वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने के   लिए  हमें  स्थानीय या राष्ट्रीय हितों  से पहले वैश्विक हितों   को  रखना  होगा  । आर्थर ब्रूक्स ने    धन्यवाद ज्ञापन    और  परम  पावन   ने   जो  कहा    श्रोताओं    के   लिए   उसका  सारांश देते  हुए     बैठक   का   अंत  किया   :

"  आज   जीवित   ७ अरब मनुष्यों   के  सदस्यों के रूप में हम   समान हैं ।   हमें   एक   उन्मुक्त   ह्रदय  रखना  चाहए  ,  दूसरों    के    प्रति    उन्मुक्त    जो   हम    से अलग  हैं ।  वैश्विक भाईचारे और भगिनीचारे  का    सिद्धांत आपके अपने हाथ में  है । "

 

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