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सांता क्लारा विश्वविद्यालय में बिज़नेस, एथिक्स एंड कम्पेशन (व्यापार, नैतिकता और करुणा) २४/फरवरी/२०१४

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सैन ह्यूस, सी ए, संयुक्त राज्य अमेरिका - २४ फरवरी २०१४  - परम पावन दलाई लामा ने आज अपना दिन सांता क्लारा यूनिवर्सिटी (एस सी यू) में बिताया। सांता क्लारा यूनिवर्सिटी एक जेसुइट विश्वविद्यालय है, जो नये अन्वेषणों के केन्द्र सिलिकॉन वैली में है और एक अधिक मानवीय, न्यायपूर्ण और सतत दुनिया के लिए प्रतिबद्ध है। वे सांता क्लारा यूनिवर्सिटी के मरक्कुला सेंटर फॉर एप्लाइड एथिक्स तथा स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर कम्पेशन एंड एलट्रुइज़्म रिसर्च एंड एजुकेशन के अतिथि थे। कैलिफोर्निया की प्रातः खिली हुई थी जब सांता क्लारा यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष रेवरेंड माइकल एंग और डॉ. जेम्स डोटी, निदेशक सीकेयर ने उनका स्वागत किया।


ज्ञूतो भिक्षुओं के मंत्र जाप के बाद, रेवरेंड एंग ने लीवे केंद्र में बिज़नेस, एथिक्स एंड कम्पेशन (व्यापार,नैतिकता और करुणा) पर संवाद प्रारंभ किया और डॉ.डोटी ने परम पावन का परिचय दिया, यह कहते हुए कि कई लोग उनकी तंत्रिका विज्ञान के सबसे अग्रिम अनुसंधान में रुचि और डिगनिटी हेल्थ के सी ई ओ लॉयड डीन के साथ उनकी भागीदारी की सराहना संभवतः न करें। उनके बोलने के पूर्व लिविंग विज़डम स्कूल, पालो आल्टो के बच्चों ने गीतों के मिश्रण से पूरी सभा का मन मोह लिया।
"भाइयों और बहनों, मैं यहाँ आकर बहुत प्रसन्न हूँ", परम पावन की उद्घाटन टिप्पणी थी। "जो मैं हमेशा कहता हूँ वह यह कि, किस प्रकार सुखी रहा जाए एक व्यक्ति के रूप में, परिवारों में, समुदायों और मानवता में बड़े स्तर पर। आज जीवित ७ अरब लोगों में प्रत्येक को सुखी होने का अधिकार है। परन्तु हम अपने आंतरिक मूल्यों की उपेक्षा करते हुए भौतिक सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करते से जान पड़ते हैं।"

"मैं इन सुंदर युवा बच्चों को उनके गायन के लिए धन्यवाद देना चाहूँगा। उन्होंने मुझे अपने बाल्यकाल का स्मरण करा दिया। मेरा जन्म एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। हम बहुत सम्पन्न न थे और हमारी सच्ची सम्पत्ति हमारी माँ का हमारे प्रति ममत्व था। उसकी वजह से हमारा घर सुख से भरा था। जब मैं सबसे कम उम्र का था तब स्वाभाविक रूप से वे मेरा अधिक ध्यान रखती थी। जब वह अपने काम में लगी रहती तो मैं उनके कंधों पर सवार होता। मेरे भाइयों और बहनों और मैंने उनका क्रोध से खिंचा चेहरा कभी नहीं देखा। अब मुझे लगता है कि यह एक सच्चा आशीर्वाद था जिसकी छाँह में बड़ा हुआ। बाद में, मैं अपनी बुद्धि के उपयोग से करुणा के विकास में अपने को प्रशिक्षित करने में सक्षम हो सका पर उसका बीजारोपण मेरी माँ ने किया था।"

परम पावन ने बल दिया कि स्नेह का मूल्य बहुत बड़ा है, यह पूछते हुए कि मनुष्य ऐसी आंतरिक मूल्यों की उपेक्षा क्यों करता है और इसके स्थान पर अधिक बुद्धि, आत्म केन्द्रित व्यवहार और एक भौतिकवादी जीवन पर ध्यान केन्द्रित करता है? क्या करने के िलए कुछ है? उन्होंने पूछा और सुझाया कि मानव प्रकृति वास्तव में अधिक उदार है। उन्होंने कहा कि हम सामाजिक प्राणी हैं जिनमें साथ आने की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है। व्यक्तिगत अस्तित्व सहयोग पर निर्भर करता है और यदि हम घृणा और अविश्वास से भरे हों तो उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। हमारे भीतर करुणा का बीज है और जब हम छोटे होते हैं तो यह नूतन और विकास के लिए परिपक्व होती है।"

 
बहुत बार आर्थिक क्षेत्र में हम भ्रष्टाचार, धनवान तथा िनर्धन के बीच की खाई और दूसरों के जीवन के प्रति और स्नेह और सम्मान की कमी देखते हैं। इसलिए सौहार्दता बहुत महत्त्वपूर्ण है। हमें बालवाड़ी से लेकर विश्वविद्यालय तक शिक्षा के क्षेत्र में करुणा और सौाहर्दता का प्रशिक्षण शामिल करना होगा। यह कुछ ऐसा है जो सभी के िलए महत्त्वपूर्ण है।

चिकित्सा के शोधकर्ताओं ने पाया है कि एक अधिक करुणाशील व्यवहार एक शांत चित्त लाता है जो आत्मविश्वास और आंतरिक शक्ति की ओर ले जाता है, और जो बेहतर स्वास्थ्य का समर्थन करता है। आंतरिक शक्ति से करुणा बढ़ती है तथा चिंता, तनाव और दबाव कम हो जाते हैं। चिंता और क्रोध हमारे स्वास्थ्य को नष्ट कर हमारे परिवारों को तोड़ते हैं, इसलिए हम जो भी करें करुणा का उस पर एक गहरा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

"आधुनिक चिकित्सा देखभाल एक व्यवसाय की तरह चलाया जा रहा है, पर व्यवसाय के लिए भी एक नैतिकता की भावना की आवश्यकता है। चूँकि हमारा एक शरीर और चित्त है, हमें उस मानसिक शांति और शारीरिक सुविधा की आवश्यकता है जो करुणा को जन्म देता है। हमें लोगों में दूसरों के प्रति और अधिक िचंता को बढ़ावा देने के िलए उन्हें शिक्षित करना होगा। यह स्वाभाविक है कि हम स्वयं को लेकर चिंतित हैं, हमारे हृदयों में निजी हित है, पर केवल मूर्खता भरे स्वार्थ के बजाय हमें उन्हें दूसरों के प्रति चिंता का विकास करते हुए बुद्धिमानी से पूरा करना होगा। धन्यवाद।"

डिगनिटी हेल्थ के सी ई ओ लॉयड डीन ने उसे एक ऐसे संगठन के रूप में वर्णित किया जो करुणा का निर्माण करने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने समझाया कि उसकी जड़े ८ बहनों के परोपकारी कार्यों में निहित है जो १९वीं शताब्दी में गरीबों की चिकित्सा और देखभाल प्रदान करने सैन फ्रांसिस्को आईं थी। उन्होंने तीन आधारभूत सिद्धांतों की बात की जिनका पालन वे डिगनिटी में करते हैं: सबसे पहले, जब उन्हें बड़े निर्णय लेने होते हैं तो उन लोगों की आवश्यकता को सुनने का प्रयास करते हैं जो उन निर्णयों से प्रभावित होंगे। दूसरा वे यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई अकेले रहते हुए नहीं मरेगा। तीसरा, करुणा एक दायित्व है, मात्र एक सामाजिक अच्छा व्यवहार नहीं है। उन्होंने कहा:

"करुणा और दया की लागत कम है पर पुनः चुकताई बहुत अधिक है" परम पावन का सरल उत्तर था:   "बहुत अच्छा।"

दया और करुणा की तरह आंतरिक मूल्यों का पोषण करने हेतु लोगों को प्रेरित करने के उपायों की बात करते हुए परम पावन ने टिप्पणी की, कि उन १ अरब लोगों को भी शामिल करने की आवश्यकता है जो यह घोषणा करते हैं कि उनकी धर्म में कोई रुचि नहीं है। इसी कारणवश वह नैतिकता में एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाने, भारतीय प्रारूप का दृष्टिकोण जो सभी धर्मों के प्रति सराहना और निष्पक्ष सम्मान व्यक्त करता है और उनके प्रति भी जो किसी भी धर्म को नहीं मानते, के पक्षधर हैं।

ऐसी किसी एक वस्तु के विषय में पूछे जाने पर जिससे फर्क पड़ता है लॉयड डीन ने कहा:

"मैं चाहूँगा कि मेरे स्वास्थ्य पेशेवर सीधे मेरी आँखों में देखें और मुझे मेरे नाम से सम्बोधित करें" परम पावन उनकी बात से सहमत थे, यह कहते हुए कि केवल जब डॉक्टर और नर्स एक मुस्कान के साथ उनके पास जाते हैं, कि वह सुरक्षित और संरक्षित अनुभव करते हैं। उन्होंने कहा:

"यदि आप खुले, ईमानदार और सच्चे हैं तो आप सफल होंगे। अपने स्वयं के हित में, दूसरों की उपेक्षा करने या उनका अहित करने से बेहतर उनकी सहायता करना है।"

परम पावन को अन्य गणमान्य अतिथियों के बीच मध्याह्न के अध्यक्षीय भोज के अवसर पर सम्मानित किया गया जिसके पश्चात उन्होंने कुछ टिप्पणियाँ की। दोपहर में वे 'इनकॉर्पोरेटिंग एथिक्स एंड कम्पेशन इंटु बिज़नेस लाइफ' (व्यावसायिक जीवन में नैतिकता तथा करुणा को सम्मिलित करना) पर एक चर्चा के लिए लीवे केन्द्र लौट आए। ४५० श्रोताओं के समक्ष मरक्कुला सेंटर फॉर एप्पलाइड एथिक्स के निदेशक किर्क हैन्सन ने अन्य पैनल सदस्यों का परिचय कराया जिनमें एडोबी के सह संस्थापक चार्ल्स गेश्के, इंटेल बोर्ड के अध्यक्ष जेन शॉ, (सेवानिवृत्त) और मिशिगन विश्वविद्यालय की कम्पेशन लाब की रिसर्च फेलो, मोनिका वर्लाइन थी।

चक गेश्के ने उन सिद्धांतों का वर्णन किया जो एडोब की स्थापना में व्यवहृत िकए गए थे। सबसे पहले तो श्रेष्ठ योग्य व्यक्तियों का चयन किया जाए, और यदि आप और आगे बढ़ना चाहते हैं तो अपने से अधिक योग्य व्यक्ति को भर्ती करें। दूसरा कंपनी कर्मचारियों के व्यक्तिगत जीवन के अधिकार को पहचानती है और उस का समर्थन करती है। जब परम पावन ने पूछा कि क्या चतुर पर चालाक लोग पहले सिद्धांत में शामिल किए जा सकते हैं, तो गेश्के ने उत्तर दिया कि वे ऐसे लोगों को नहीं लेना चाहेंगे। तीसरे, चूँकि एक कम्पनी में कई क्षेत्र होते हैं जैसे ग्राहक, कर्मचारी और शेयरधारक, आप को उन सब की निष्ठा सुनिश्चित करने हेतु काम करने की आवश्यकता है। परम पावन ने टिप्पणी की, कि वे इन सिद्धांतों में निहित विचारों से प्रभावित थे ।

 
अपनी ओर से जेन शॉ ने कहा उसके भाग लेने की तैयारी ने उसे उसके जीवन की समीक्षा करने तक पहुँचाया। परम पावन के अपनी माँ के बारे में की गई टिप्पणी ने उन्हें अपनी परवरिश की याद दिला दी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, वे वॉर्सेस्टर, इंग्लैंड में एक गाँव में पली बढ़ी, ऐसे घर में जहाँ सशक्त पारिवारिक मूल्य थे जैसे ः आपस में बाँटना, निष्पक्ष व्यवहार, दूसरों को न मारना, बड़ों का सम्मान करना तथा सहानुभूति या करुणा का विकास करना। उन्होंने २४ वर्ष एक ऐसी कम्पनी में कार्य किया जिसके संस्थापक ने व्यवहार रूप में करुणा का अभ्यास किया। जब वह स्वयं अपनी कम्पनी का नेतृत्व करने लगी, उन्होंने कर्मचारियों पर अपना िवश्वास रखा जिसके परिणाम स्वरूप उन्होंने उनकी निष्ठा तथा वफादारी अर्जित की। अंत में इंटल में एक अवसर आया जब वे वियतनाम में, एकत्रित करने वाला एक संयंत्र स्थापित करना चाहते थे जहाँ रिश्वतखोरी एक मानक था। वे तभी आगे बढ़े जब यह सहमति हुई कि रिश्वतखोरी की कोई भूमिका नहीं होगी। इसके अतिरिक्त जब इंटेल को यह ज्ञात हुआ कि कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में तीव्र हिंसक संघर्ष के परिणामस्वरूप कुछ खनिज उपलब्ध कराए जा रहे थे तो यह सुनिश्चत करने हेतु कदम उठाए गए कि कम्पनी और इस कारण उसके उत्पाद ऐसे 'संघर्ष खनिज' उपयोग में न लाएँ। उन्हें लगा कि यह व्यवसाय में करुणा का कार्य था तथा कर्मचारियों और ग्राहकों को यह अच्छा लगा।

मोनिका वर्लाइन ने उल्लेख किया कि अपने शोध में उसने पाया था कि लोगों को संगठनों में करुणा की आवश्यकता को समझ पाना जितना हम समझते हैं उससे अधिक कठिन है।

परम पावन ने करुणा में दो प्रकार के अंतर बताए, एक वह स्वाभाविक िचंता जो हम दूसरों के लिए अनुभव करते हैं जैसे मित्रों तथा सगे सम्बधिंयों के लिए, और एक अधिक व्यापक करुणा, जो कि विश्लेषणात्मक सोच का परिणाम है। फिर दूसरों के प्रति िचंता के अतिरिक्त, उस से संबंधित कुछ करने का उत्तरदायित्व लेने की इच्छा है। प्रतिस्पर्धा के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वे दो प्रकार के हैं, प्रतिस्पर्धा जो सफलता पर और शीर्ष स्थान तक पहुँचने पर केंद्रित है और प्रतिस्पर्धा जो दूसरों को नीचे लाना चाहती है।

यह पूछे जाने पर कि लोग अपने जीवन में आध्यात्मिक अभ्यास के लिए किस प्रकार समय निकाल सकते हैं परम पावन ने टिप्पणी की, कि भविष्य की विशेषताओं में से एक यह है कि वह खुला है। परन्तु, जेन शॉ ने सुझाया कि समय निकालने का एक उपाय प्राथमिकता देना है। महिलाओं की भूमिका के संबंध में, परम पावन ने समझाया कि प्रारंभिक मानव समाज को नेताओं की बहुत कम आवश्यकता थी। कृषि तथा संपत्ति की भावना की स्थापना के बाद नेताओं की आवश्यकता उभरी जिसके लिए शारीरिक कौशल आवश्यक था। इससे पुरुषों को समर्थन मिला। उसके बाद से शिक्षा ने शारीरिक शक्ति की प्रबलता को समाप्त कर दिया है। अब जब करुणा को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। महिला नेतृत्व की आवश्यकता है क्योेंकि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें वे और अधिक कुशल हैं। परम पावन ने टिप्पणी की, कि यदि अधिक महिला नेताएँ हो तो हिंसा पूर्ण संघर्ष होने की संभावना कम हो जाएगी।

परम पावन ने समाप्त किया:

"हममें करुणा की आधारभूत प्रवृत्ति है पर हमें इसे विकसित करने की आवश्यकता है। दूसरों के प्रति चिंता मानव अधिकारों से संबंधित है और प्रत्येक को उनके मानव अधिकारों के प्रति आश्वस्त किया जाना चाहिए क्योंकि हर कोई चाहता है कि वह सुखी हो और यह उसका अधिकार है।

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