परम पावन 14 वें दलाई लामा
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३३ वें कालचक्र के समापन के िलए दीर्घायु अभिषेक और दीर्घायु समर्पण १४/जुलाई/२०१४

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लेह, लद्दाख, जम्मू एवं कश्मीर, भारत - १४ जुलाई २०१४ -  कल रात का पूर्ण चन्द्रमा लेह घाटी के आसपास के पहाड़ों पर आज प्रातः अभी अस्त हो ही रहा था, जब हज़ारों की संख्या में लोग शिवाछेल के प्रवचन स्थल में एक अंतिम बार जमा हुए। लगभग प्रातः ७ बजे परम पावन दलाई लामा ने प्रवचन मंडप के लिए चलने के लिए अपने निवास से बाहर कदम रखा और रास्ते में एक पुराने परिचित से मिलते हुए या एक वृद्ध या दुर्बल व्यक्ति को सांत्वना देने के लिए यहाँ वहाँ रुकते हुए वे मंडप पहुँचे। सिंहासन से उन्होंने घोषणा की:


"मैं श्वेत तारा दीर्घायु अभिषेक देने जा रहा हूँ। मेरी तैयारी में पन्द्रह मिनट का समय लगेगा। उस अंतराल में मैं चाहूँगा कि आप सभी 'ओम मणि पद्म हुँ' का पाठ करें। जैसे कि यहाँ लगभग १५०,००० लोग हैं, यदि आप में से प्रत्येक १००० मणि का जाप करे तो उसका कुल १५० लाख, सभी सत्वों के लाभ के लिए होगा। अतीत में तिब्बती आचार्य मंत्रों के सस्वर पाठ की सराहना करते थे क्योंकि ऐसा करते हुए आप दीर्घायु, धन इत्यादि के विषय में नहीं सोचते।"

"अवलोकितेश्वर करुणा के देव हैं जिनके साथ तिब्बतियों का एक विशेष संबंध है। वे तिब्बत के संरक्षक देवता हैं। विगत ६० वर्षों में तिब्बत में तिब्बतियों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। अपने स्वयं का एक लंबा इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर होने के बावजूद तिब्बत विलुप्त होने के संकट में है। हमें तिब्बती धर्म और संस्कृति के संरक्षण के लिए हर संभव प्रयास करने की एक तत्काल आवश्यकता है । अहिंसा के रास्ते अपनाते हुए हम वही कर रहे हैं जो सभी बुद्धों को प्रसन्न करता है, जिसमें अवलोकितेश्वर भी शािमल हैं। चाहे सत्य की शक्ति के माध्यम से और त्रिरत्न में शरण लेते हुए, हम इस अल्पावधि में अपने उद्देश्य को प्राप्त करें अथवा नहीं, पर हम कम से कम यह लक्ष्य तो रख सकते हैं । "

"अच्छा होगा यदि आप समझ के आधार पर मणि मंत्रों का पाठ करें। ह्री की तरह ओम के तीन पहलू हैं जिनमें काय, वाक् तथा चित्त के अर्थ निहित हैं और काय, वाक् तथा चित्त के भी स्थूल, सूक्ष्म और सूक्ष्मतम पहलू हैं। जब तक हम नकारात्मक भावनाओं के प्रभाव में हैं, हम भव चक्र में फँसे हुए हैं। और जब तक हम ज्ञान के अवरोधों के अधीन हैं, हम सत्व बने रहते हैं। एक बार हमने उन पर काबू पा लिया तो बुद्धत्व तक पहुँचते हैं जिस बिंदु पर काय, वाक् तथा चित्त का एक स्वाद हो जाता है। नकारात्मक भावनाएँ और अवरोध आकस्मिक हैं और उन्हें समाप्त किया जा सकता है।"

"'मणि' शब्द का अर्थ है रत्न और इस का तात्पर्य है हमारी इच्छाओं को पूरा करना और इस संदर्भ में बोधिचित्त जो स्वयं की और दूसरों की सहायता करने का विचार है।  'पद्म' का अर्थ कमल है जिसका तात्पर्य है शून्यता को समझने वाली प्रज्ञा। 'हुँ' का अर्थ है कि इन दोनों को अलग नहीं करना; प्रज्ञा और बोधिचित्त का संयोजन सुनिश्चित करना।"

परम पावन ने मंत्र का प्रसरण दिया और सस्वर पाठ प्रारंभ करने से पहले एक स्तुति छंद के समर्पण का सुझाव दिया:

आपके १००० हाथ करते प्रतिनिधित्व १००० सार्वभौमिक सम्राटों का
आपके १००० चक्षु इस भाग्यशाली कल्प के १००० बुद्धों का प्रतिनिधित्व करते हैं
आप सत्वों की उपयुक्तता के अनुकूल देशना देते हैं
आर्य अवलोिकतेश्वर मैं आप को श्रद्धार्पण करता हूँ।

सभी बुद्ध और बोधिसत्वों की प्रार्थनाएँ पूरी हों,
मैं अवलोिकतेश्वर की स्थिति प्राप्त करूँ
और सभी सत्व भी इसे प्राप्त करें
सभी सत्व भव के इस चक्र से मुक्त हों।


परम पावन ने कहा कि वह एक दीर्घायु अभिषेक देने वाले हैं और दीर्घायु से जुड़े कई देवताओं में, चिन्तामणि चक्र तारा, वायु ऊर्जा का विशुद्ध पहलू है। उदाहरणार्थ हमारे चित्त की गति उस ऊर्जा के कारण है। उनमें बाधाओं, जैसे कि जीवन के लिए बाधा को दूर कर दूसरों की सहायता करने का विशिष्ट गुण है।

परम पावन ने सलाह दी कि "आइए जो यहाँ शारीरिक रूप से एकत्रित हुए हैं हम उनके कल्याण के लिए प्रार्थना करें और तिब्बत के अंदर रहने वाले उन लोगों के लिए भी जो विभिन्न कारणों से रोगी हुए हों।"

उन्होंने चीन के ४-५०० लाख बौद्धों, विश्व के सबसे बड़ी बौद्ध आबादी वाले और संपूर्ण विश्व में दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित लोगों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि वह उन सबकी ओर से वे चिन्तामणि चक्र तारा का अभिषेक करेंगे। उन्होंने टिप्पणी की कि विश्व के विभिन्न भागों में कई लोग संकटों का सामना कर रहे हैं और केवल कुछ उत्पीड़क उन्हें नुकसान नहीं पहुँचाते। उन्होंने कामना की: "जिनका दमन हुआ है उन्हें आराम मिले।" उन्होंने सुझाव दिया कि त्रिरत्न की शरण में जाने के िलए पाठ करते हुए, उनके श्रोताओं को यह स्मरण रखना चाहिए कि विश्व के सभी ७ अरब लोग प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से उन से संबंधित हैं। उनकी तरह वे सभी सुख चाहते हैं, दुख नहीं।

परम पावन अभिषेक की बाधाओं को दूर करने के लिए विभिन्न उपायों के साथ आगे बढ़े। मंडल और प्रबुद्ध काय, वाक् तथा चित्त के तीन प्रतीकों का समर्पण कथोग-गे-चे रिनपोछे द्वारा किया गया जिनकी सराहना करते हुए परम पावन ने कहा कि उनके वंश का संबंध ७वें और ८वें दलाई लामाओं के समय से रहा है।

तंत्र अभ्यास तथा बौद्ध और हिंदू अभ्यासों के बीच अंतर के संदर्भ में, परम पावन ने उल्लेख किया कि एक सिद्ध हिन्दू योगी के साथ बातचीत ने स्पष्ट किया कि दोनों परम्पराओं में आंतरिक ताप, श्वास प्रश्वास, चित्त का शरीर के बाहर प्रक्षेपण और नाड़ी तथा बिन्दुओं के साथ काम करना समान है। परन्तु खुनु लामा रिनपोछे के साथ विचार विमर्श के बाद उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि परम्पराओं के बीच भेद, बौद्ध तंत्र के शून्यता की समझ और प्रबुद्धता के ३७ अभ्यास का प्रतिनिधित्व करते ध्यान देवता के महल पर आधारित है। बौद्ध तंत्र का अभ्यास, बोधिचित्त की भावना और नैरात्म्य के किंचित समझ के बिना नहीं किया जा सकता। उन्होंने पुनः एक बार समुदाय का बोधिचित्त संवर लेने में नेतृत्व किया।

दीर्घायु अभिषेक के समापन और आशीर्वचित वस्तुओं को लोगों के बीच वितरण के बाद ध्यान परम पावन के लिए दीर्घायु समर्पण की ओर मुड़ा, जिसका संचालन गदेन ठिपा रिज़ोंग रिनपोछे कर रहे थे और जो श्वेत तारा अनुष्ठान पर आधारित था। प्रारंभ में एक वंशावली प्रार्थना का पाठ था, जिनमें भारत और तिब्बत के अतीत के आचार्य़ों के साथ चौदह दलाई लामा भी शामिल थे।
 


अनुष्ठान के दौरान छेरिंग छेङा या पाँच दीर्घायु बहनों भविष्यवाणी कर्ता का आह्वान किया गया। उन्होंने गदेन ठि रिनपोछे, शरपा छोजे, ड़िगुङ क्यबगोन, सक्या दुंगसे, समदोंग रिनपोछे तथा सिक्योंग को परम पावन के चारों ओर घेर लिया। राज्य के भविष्यवाणी कर्ता नेछुंग का भी पुराने फोड़ंग में आह्वान किया गया जो वशीभूत भीड़ के बीच दौड़ते हुए मंडप की ओर आ रहे थे। वे परम पावन की ओर एक प्रबल और विश्वास भरा सम्मान प्रदर्शित करते हुए आए। इसी समय श्रोताओं के बीच शायद आधा दर्जन सहज समाधि की स्थिति देखने को मिली। ये ऊर्जा प्रेरित व्यक्तियों को परम पावन के समक्ष लाने में सहायता दी गई, जहाँ उन्होंने अपना सम्मान व्यक्त किया, जिसके बाद उनकी वह अवस्था समाप्त हो गई।

गदेन ठि रिनपोछे ने अपना औपचारिक मंडल भाष्य प्रारंभ किया और ७वें दलाई लामा के अवलोकितेश्वर की स्तुति के एक छंद से परम पावन से दीर्घायु तक बने रहने को कहा।

आर्य लोकेश्वर को प्रणाम

दस दिशाओं के सभी जिनों की करुणा,
अनगिनत विश्व के परमाणुओं की संख्या,
सागर सम गहरा और संलग्न, सत्वों के प्रति पूर्ण रूप से संलग्न
जहाँ से जन्मा था उन अद्भुत गुणों का पूर्ण वैभव
अवलोकितेश्वर नाम से प्रख्यात वह महान मार्गदर्शक
रत्नगिरि जिस पर हम सभी हों निर्भर
आप को नमन है।

जब जोनंगपा परंपरा के सदस्य परम पावन को एक िवशाल मंडल भेंट कर रहे थे और समर्पणों का एक विशाल जुलूस प्रारंभ हो रहा था उसी समय जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पहुंचे। उन्होंने परम पावन का अभिनन्दन स्नेह से किया जो स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था और उनके सिंहासन के बगल में अपनी जगह ली। जैसे दीर्घायु समर्पण सम्पन्न हुआ लद्दाखी पुरुष और महिलाएँ मंडप के नृत्य व गीत का प्रदर्शन कर रही थी।

उसके पश्चात कई समापन भाषण हुए। कालचक्र आयोजन समिति के सह अध्यक्ष, गेशे कोनछोग नमज्ञल ने एक अस्थायी वित्तीय रिपोर्ट प्रस्तुत की इस आश्वासन के साथ कि समय पर अंतिम रिपोर्ट दी जाएगी। डॉ तों़डुप छेवांग ने कार्यक्रम के सफल समापन पर उसे समिति की बड़ी खुशी और आनन्द की बात बताई, उनके अनुसार अनुमानतः लगभग लोगों १५०,००० ने इस कार्यक्रम में भाग लिया जिसमें ८६,००० स्थानीय और तिब्बती भक्त, ९००० भिक्षु, १२,००० अंतर्हिमालय क्षेत्र के लोग, ७३ देशों से ६,१०० विदेशी, १५ वर्ष के नीचे के २५,००० से अधिक पंजीकृत बच्चे और १०,००० स्वयंसेवक शामिल थे। उन्होंने संतोष के साथ टिप्पणी की कि कार्यक्रम के संसाधन लद्दाख के भीतर ही जुटाए गए, बाहर से लाए नहीं गए।


स्थानीय सांसद थुपस्तन छेवांग, लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल के मुख्य कार्यकारी पार्षद रिगज़िन स्पलबर और शहरी विकास मंत्री नवांग रिगज़िन जोरा, सभी ने कार्यक्रम के सफल समापन पर प्रशंसा के शब्द कहे, जिस दौरान न कोई दुर्घटना हुई और न कोई दुर्भाग्यपूर्ण घटना।

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सबसे पहले परम पावन और अन्य उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों का अभिनन्दन किया। उन्होंने बड़ी ही ईमानदारी से २०१० में हुई बौछाड़ के कारण एक अत्यंत विनाशकारी फैली बाढ़ में स्थानीय लोगों के साथ होने की बात की। अब २०१४ में लद्दाख में ३३वें कालचक्र अभिषेक के आयोजन की महान सफलता पर उनके साथ होते हुए वे बहुत खुश थे, जिसका आशीर्वाद उन्होंने कहा कि लोंगों में शांति और विश्वास वापस लाने में बहुत सहायक होगा। उन्होंने परम पावन के प्रति अपने निजी सम्मान की भावना और स्नेह का उल्लेख किया और कहा कि यह उनके लिए निजी संतोष की बात थी कि वे उनसे लद्दाख में १९७६ में हुए प्रथम कालचक्र के अवसर पर मिले थे जब उनके दादा मुख्य मंत्री थे, १९८८ में जाँस्कर में हुए द्वितीय कालचक्र में जब उनके पिता मुख्यमंत्री थे और अब तीसरा अवसर पर जब वे स्वयं मुख्य मंत्री हैं। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से और जम्मू एवं कश्मीर राज्य की ओर से परम पावन की उपस्थिति के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।

प्रवचन सिंहासन से उतर परम पावन अपने समापन भाषण के लिए मंच के समक्ष खड़े हुए।

"कालचक्र अभिषेक बहुत अच्छी तरह से सम्पन्न हुआ प्रारंभ, मध्य और अंत में। मैं आयोजकों को उनके अच्छे कार्य के लिए धन्यवाद देता हूँ। आज हमने श्वेत तारा दीर्घायु अभिषेक और दीर्घायु समर्पण किया है, जिससे जुड़ी निष्पन्नता का अनुष्ठान पिछले सप्ताह से गदेन ठि रिनपोछे कर रहे हैं। मैं प्रार्थना करता हूँ कि मैं लंबे समय तक रह सकूँ और रहूँगा।"

"आज मनुष्य के साथ साथ कई देवता, देवी और संरक्षक आगे आए। मैं हमारे साथ उनके समर्थन और एकजुटता दिखाने के लिए उन्हें धन्यवाद देना चाहूँगा। विश्व के बौद्ध विवरण के अनुसार सत्वों के कई अलग अलग प्रकार हैं, कुछ को हम देख सकते हैं और कुछ को नहीं। एक विद्वान मित्र ने मुझे एक बार बताया कि उसे आश्चर्य है कि जहाँ मैं एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण लिए हुए लगता हूँ, मैं सत्वों के कई अन्य प्रकार के अस्तित्व को स्वीकार करता हूँ। मैंने उसे बताया कि यह अंधविश्वास की बात नहीं है अपितु वास्तविकता की एक सरल स्वीकृति है। पर जैसा कि मनुष्यों के लिए हानिकारक गतिविधि में संलग्न होना अच्छा नहीं है, मैं इन आत्माओं और अन्य सत्वों को सलाह देता हूँ कि वे शरारत में संलग्न न हों।"

"आज हमारे साथ जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री है, उनके परिवार की तीसरी पीढ़ी जिन्होंने इस पद को संभाला है। शेख अब्दुल्ला, एक मित्र और पंडित नेहरू के समकालीन ने तिब्बत के लिए महान स्नेह दिखाया। फारूख अब्दुल्ला, उनके बेटे, मेरे मित्र हैं। उमर अब्दुल्ला, युवा पोते जो यहाँ हमारे साथ हैं वे भी तिब्बतियों के मित्र हैं। मैं आज यहाँ आने के लिए उनका बहुत धन्यवाद करना चाहूँगा।"

मुख्यमंत्री की ओर देखते हुए उन्होंने हँसते हुए कहा:

"मुझे ज्ञात हुआ है कि हाल के चुनावों में आपके दल को हार का सामना करना पड़ा, ये तो समय- समय पर होता रहता है। जब विश्व के विभिन्न भागों के नेता जिन्हें मैं जानता हूँ, चुनावी हार का अनुभव करते हैं तो मैं प्रायः उन्हें लिखता हूँ कि यह लोकतंत्र का सिर्फ एक हिस्सा जो एक अच्छी बात है। भारत विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला लोकतंत्र है, जहाँ लोकतंत्र की जड़ें बहुत गहरी हैं, जो कि उसकी महानताओं में से एक है।"

"अन्य नेता जो अभी बोले, मैं उन्हें एक लंबे समय से जानता हूँ। मुझे थुपस्तन का स्मरण है जब उसके बाल काले थे और अब वे पूरी तरह से सफेद हैं। मैं रिगज़िंग जोरा को कई वर्षों से जानता हूँ। हम केवल एक दूसरे के परिचित नहीं हैं हम एक दूसरे के चित्त को जानते हैं, हम विश्वासी मित्र हैं।"

"अंत में मैं यह कहना चाहता हूँ कि जो प्रवचन मैं देता हूँ उसके लिए भेंट के रूप में मैं कोई शुल्क नहीं लेता। मैं ऐसा अनुभव करने में नछोग रंगडोल का अनुपालन करता हूँ, कि ऐसा करना धर्म को बेचने की तरह होगा। आप जोनंगपा ने जो यह महान मंडल मुझे दिया है, मैं आपको धन्यवाद देता हूँ और आप से अनुरोध करता हूँ कि इसे वापस ले जाकर शिमला में अपने विहार में इसका उपयोग करें।"

"मेरे पास आप सभी को धर्म की ओर अपने चित्त को प्रोत्साहित करने के अतिरिक्त कहने के लिए और कुछ नहीं है। धन्यवाद।"

लोगों को सार्वजनिक रेत मंडल देखने के लिए जब घोषणाएँ की जा रही थी तब परम पावन ने कुछ मेहमानों के साथ एक निजी बैठक की। उसके बाद भी उन्होंने समय निकाल, शुभचिंतकों का मुस्कुराहट के साथ अभिनन्दन कर, और उनकी प्रतीक्षा करते वृद्ध और दुर्बल व्यक्तियों को सांत्वना देकर गाड़ी में चढ़े जो उन्हें उनके निवास पर ले गई।

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