परम पावन 14 वें दलाई लामा
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फोटोग्राफी, साक्षात्कार, बैठक और कैम्ब्रिज की यात्रा १६/सितम्बर/२०१५

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कैम्ब्रिज, इंग्लैंड, १५ सितम्बर २०१५ - परम पावन दलाई लामा के दूसरे दिन के प्रारंभ में ऑक्सफोर्ड के मेगडालेन महाविद्यालय के अध्यक्ष, प्रोफेसर डेविड क्लेरी ने पुस्तकालय होते हुए अध्यक्ष के निवास में उनका अनुरक्षण किया। चमड़े से बाध्य पुराने पुस्तकों से भरे शेल्फों के बीच, वे सबसे पुरानी पुस्तकों और अन्य कलाकृतियों को देखने के लिए रुके ।


पुस्तकालय के पीछे के एक कक्ष में, प्रोफेसर क्लेयर हैरिस ने तिब्बत में प्रारंभिक फोटोग्राफी पर एक प्रस्तुति रखी जिसमें परम पावन ने गहरी रुचि ली। ऐसी मान्यता थी कि तिब्बत में सबसे पहला चित्र १८८९ में खींचा गया था। प्रोफेसर हैरिस ने चट्टान के गठन का एक चित्र दिखाया संभवतः सिंधु के समीप, जो कि भारत के वायसराय लार्ड एल्गिन के अनुरोध पर किए गए फिलिप एगर्टन के १८६३ अभियान से जोड़ा जा सकता है, एगर्टन को निष्कासित करने से पूर्व वे तिब्बत के अंदर १० मील तक पहुँचने में सफल रहे।


लगभग ४० वर्ष बाद, एक बुर्यत गोम्बोजाब सिबिकोव ने १९०० में पोताला महल का प्रथम चित्र लिया, जिसका फिर व्यापक रूप से पुनर्मुद्रण किया गया। प्रोफेसर हैरिस ने सुझाया कि तीन वर्ष बाद लिया गया ज्ञंगचे ज़ोंग का चित्र लॉर्ड कर्जन के असंतोष से प्रेरित हुआ होगा कि रूसी ल्हासा पहले पहुँच गए।

तिब्बत में विदेशियों द्वारा चित्र खींचे जाने के अतिरिक्त कुछ तिब्बती भी थे जिन्होंने यह कौशल सीखा। उनमें जिगमे ठरिंग और छरोंग ज़सा जाने माने हैं। अन्य पूर्व के मान्यता प्राप्त फोटो खींचने वालों में ९वें पंचेन लामा और १३वें दलाई लामा शामिल हैं। प्रोफेसर हैरिस ने ३-४ वर्षीय परम पावन दलाई लामा के १९३९ के कुमबुम विहार में तथा एक अन्य १९५१ में डोमो/यातुंग के आकर्षक चित्र दिखाए। उन्होंने समदिंग दोर्जे फगमो का भी एक स्पष्ट चित्र दिखाया, जिनको परम पावन तिब्बत का परम स्री अवतार मानते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका चित्र, जो टाइम पत्रिका के कवर पर छपा था जब वे १९५९ में तिब्बत से निकले थे वह १९५६ में लिया गया था।



प्रोफेसर हैरिस की पहेलीनुमा प्रस्तुति में कुछ भावुक छवियाँ भी शामिल थीं। एक देमो रिनपोछे से संबंधित था जिनको १९६६ के सांस्कृतिक क्रांति के दौरान संघर्ष का सामना करना पड़ा, जब उन पर अपने धर्म, परम पावन दलाई लामा के प्रति उनकी निष्ठा और उनका फोटोग्राफी का शौक, जिसे चीनी साम्यवादी धनवानों का मनोरंजन मानते थे, को त्यागने पर दबाव डाला गया। अंतिम चित्र का शीर्षक ‘रोड टु तिब्बत’ था जो जिगमे नाम के एक समकालीन तिब्बती फोटोग्राफर द्वारा खींचा गया था, जो २०१२ में अपने देश पैदल लौटने के लिए दृढ़संकल्प था। अपने गंतव्य से १० मील की दूरी पर मुस्तंग में उसने चित्र खींचा जब नेपाली अधिकारियों ने उसे वापस लौटा दिया।

इवनिंग स्टैंडर्ड के रिचर्ड गॉडविन के साथ एक साक्षात्कार के दौरान, परम पावन ने स्पष्ट किया कि जब वे इंग्लैंड जैसे देशों में आते हैं तो उनका मुख्य उद्देश्य सुख के उचित स्रोत आधारभूत मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देना है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वह इस या उस धार्मिक परंपरा को अधिक या कम दुःखदायी रूप में नहीं मानते।

"बल्कि," वे कहते हैं कि "यदि आप सोचते हैं कि धर्म आपकी अस्मिता का एक अंग है, पर आप निष्ठा से उसका अभ्यास नहीं करते, तो वह बहुत प्रभावी नहीं होगा।"


यूरोप में शरणार्थी संकट के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने सहमति जताई कि जो करने की स्थिति में हैं, उन्हें सहायता करनी चाहिए, पर इस पर बल दिया कि दीर्घ काल में उद्देश्य स्वदेश में शांति लाने का होना चाहिए जहाँ से इन लोगों ने पलायन किया है। केवल शरणार्थियों को स्वीकार करना समस्या का समाधान करना नहीं है।
इस संबंध में कि तिब्बत में हिंसा रोकने में उनका अपना प्रभाव कैसा है, उन्होंने १० वर्ष पूर्व तिब्बत से आए एक तिब्बती से हुए वार्तालाप का स्मरण किया जिसने उन्हें बताया कि उनके जीवित रहते हुए कुछ तिब्बती अहिंसा का पालन करने के लिए बाध्य प्रतीत होते हैं। परम पावन ने कहा कि उन्होंने उसे बताया कि चीनी लोगों के साथ संबंध जोड़े रखने के लिए अहिंसा का व्यवहार बनाए रखना महत्वपूर्ण होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जहाँ तक उनका संबंध है, दूसरों की सेवा करना, और न केवल उनके हित को सुरक्षित करना, बल्कि उन्हें किसी प्रकार के नुकसान से बचाना एक सार्थक जीवन का मानक है।

एक दूसरे साक्षात्कार में, सन के ओलिवर हार्वे ने सीरियाई शरणार्थियों की सहायतार्थ सन के पाठकों द्वारा दिए गए योगदान की बड़ी राशि के संबंध में परम पावन की प्रतिक्रिया माँगी। उन्होंने उसे बताया:

"यह बहुत अच्छा है, हमारे पास जिस रूप में भी हम कर सकें, इन हताश लोगों की सहायता करने के अतिरिक्त कुछ और नहीं है, परन्तु दीर्घ काल में जो महत्वपूर्ण है वह उस भूमि पर शांति लाना है जहाँ से ये पलायन कर रहे हैं। उन्हें वहाँ होना चाहिए। हम तिब्बती भी शरणार्थी हैं और हमारा लक्ष्य अंततः लौटकर हमारे देश में जो नष्ट कर दिया गया है उसका पुनर्निर्माण है।"


जहाँ तक आईएसआईएस के साथ बातचीत में संलग्न होने का प्रश्न है, परम पावन ने कहा कि उन्होंने कई बार भारतीय मुसलमानों से हस्तक्षेप करने और विरोधी पक्षों के बीच संवाद प्रारंभ करने की अपील की है।

हार्वे ने परम पावन से इस वर्ष के प्रारंभ में ग्लास्टनबरी समारोह के बारे में पूछा कि क्या उन्हें संगीत में आनन्द आया। उन्होंने उत्तर देते हुए कहा कि उनकी संगीत को लेकर रुचि कम थी परन्तु उन्हें लोगों के साथ साथ होकर संगीत का आनन्द उठाते एक सुंदर वातावरण अच्छा लगा। यह स्मरण दिलाने पर कि महारानी सबसे लंबे समय तक की रानी बन गई हैं, परम पावन ने उल्लेख किया कि वे अपने सम्पूर्ण जीवन में उनके तथा उनकी बहन राजकुमारी मारग्रेट के चित्रों से परिचित रहे हैं और उन्होंने बड़ी प्रसन्नता के साथ उन्हें "बधाई" दी। अंत में, यह पूछे जाने पर कि उन्हें इंग्लैंड के बारे में क्या अच्छा लगता है, उन्होंने कहा कि तिब्बत में ब्रिटिश राज के हस्तक्षेप के बाद से दोनों देशों के बीच एक मजबूत भावनात्मक संबंध अस्तित्व में है।

सेंट एनी महाविद्यालय में परम पावन ने ५० से अधिक चीनी छात्रों की एक सभा को संबोधित किया। उन्होंने अपनी तीन प्रतिबद्धताओं को रेखांकित किया, सभी मनुष्यों के सुख को बढ़ावा देना, अंतर्धार्मिक सद्भाव को प्रोत्साहन और एक तिब्बती के रूप में तिब्बती भाषा और तिब्बत की समृद्ध बौद्ध ज्ञान का संरक्षण। उन्होंने नालंदा परंपरा में निहित चित्त तथा भावनाओं की गहरी समझ पर बल दिया।

"चीन पारंपरिक रूप से एक बौद्ध देश है, जब मैंने १९५४-५५ में यात्रा की तो मैंने वहाँ कई बौद्ध मंदिरों और पवित्र स्थानों को देखा। आज, कहा जाता है कि ४०० अरब चीनी बौद्ध हैं जिनमें से कई तिब्बती बौद्ध धर्म के संरक्षण के इच्छुक हैं। मैं प्रायः कहता हूँ कि ऐतिहासिक रूप से हान और तिब्बती लोग मित्र हो सकते हैं और उन्हें होना चाहिए।"

एक बार पुनः पूछे जाने पर कि तिब्बती बौद्ध धर्म कैसे बच पाएगा यदि दलाई लामा का कोई भविष्य पुनर्जन्म नहीं है, परम पावन ने इंगित किया कि बुद्ध के किसी भी पुनर्जन्म के बिना बुद्ध की शिक्षाएँ ढाई हजार वर्षों से फली फूली हैं। इसी तरह, बिना किसी पुनर्जन्म के नागार्जुन की शिक्षाओं का अभी भी व्यापक रूप अनुपालन हो रहा है। उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म ७वीं शताब्दी में तिब्बत पहुँचा और दलाई लामा की उपस्थिति के बिना दृढ़ता से स्थापित हुआ।

परम पावन ने हान लोगों के कठोर परिश्रम और वे विश्व में जहाँ कहीं भी हों अपनी उनकी भाषा और संस्कृति को बनाए रखने की दृढ़ता के प्रति अपनी प्रशंसा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि चूँकि वर्तमान समय में तिब्बती बौद्ध विचारों को समझाने के लिए सबसे उचित भाषा है, तो इसके संरक्षण को विभाजनकारी मानना संकीर्ण चित्त को दर्शाता है। उन्होंने अपने श्रोताओं को २१वीं सदी का बौद्ध बनने के लिए प्रोत्साहित किया, जो लोग यह जानते कि बुद्ध, धर्म और संघ क्या हैं।


"बुद्ध की सलाह हृदय में धारण कर लो। उनकी शिक्षाओं को केवल इसलिए ग्रहण न करो क्योंकि उन्होंने यह सिखाया। जांच और परीक्षण करो। एक वैज्ञानिक भावना से इसका परीक्षण करो।"

मध्याह्न के भोजन के लिए मेगडालेन महाविद्यालय लौटने के बाद, परम पावन ने सोफिया स्ट्रिल - स्ट्राइवर को जलवायु परिवर्तन के बारे में एक वृत्तचित्र के लिए एक संक्षिप्त साक्षात्कार दिया। उसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज के लिए हेलीकाप्टर से यात्रा की। मेगडालेन महाविद्यालय के मास्टर लॉज में आने पर उनके मेजबान लार्ड रोवन विलियम्स ने उनका स्वागत किया। इसके पहले कि परम पावन रात के विश्राम के लिए जाएँ, उन्होंने आगामी दिनों के विचार-विमर्श के बारे में चर्चा करने के लिए संक्षिप्त भेंट की।

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