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वियतनामी मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के साथ बैठक १५/मई/२०१५

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थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, १५ मई २०१५ - परम पावन दलाई लामा ने आज अपने निवास पर वियतनाम के सीईओ क्लब के ११२ वियतनामी के एक दल के साथ भेंट की। दल ६०% महिलाओं और ४०% पुरुषों का था। अधिकांश लोग पहली बार धर्मशाला आए थे। आगंतुकों ने प्रथमतः परम पावन को शांतिदेव के 'बोधिसत्वचर्यावतार' की दो विशाल प्रतियाँ, एक अंग्रेजी में और एक वियतनामी में भेंट की। वे ६०० योगदानकर्ताओं के काम थे। उसे स्वीकार करते हुए परम पावन ने कहा:


"मैंने १९६७ में खुनु लामा रिनपोछे से इस ग्रंथ 'बोधिसत्वचर्यावतार' की व्याख्या प्राप्त की जब उन्होंने मुझसे कहा कि मुझसे जितनी बार बन पड़ेगा उतनी बार मैं इसकी शिक्षा दूँ और मैंने ऐसा करने का प्रयास किया है। मैंने इसे चित्त परिवर्तन के लिए बहुत सहायक पाया है। जब भी संभव होता है मैं इसका पठन और अध्ययन करता हूँ।
 
"यह ग्रंथ जो शिक्षा देता है, वह आत्म - पोषण व्यवहार के लिए और उन वस्तुओं के प्रति मोह, जिसे हम स्वभाव गत सत्ता लिए हुए देखते हैं, को कम करने में अत्यंत सहायक है। हम सबमें नकारात्मक भावनाएँ हैं और चूँकि हम सुख की कामना करते हैं, यह उन्हें कम करने में सहायता करता है। चाहे हम औपचारिक रूप से किसी धार्मिक परम्परा का पालन करें अथवा नहीं, हमें आंतरिक मूल्यों की ओर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।"

उन्होंने आगे कहा कि जब हम सुख के विषय में बात करते हैं, तो हम आम तौर पर ऐन्द्रिय सुख, सुंदर दृश्य और शांति प्रदान करने वाली ध्वनि के साथ इसका संबंध जोड़ते हैं। हम अपने चित्त की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं देते जो हमारे अंदर सुख का स्रोत है। उन्होंने उल्लेख किया कि आज प्रातः बीबीसी समाचार पर पहला समाचार प्रवासियों के बारे में था जो टूटी फूटी नावों में उत्तरी अफ्रीका से यूरोप पहुँचने का प्रयास कर रहे थे और उनमें से कई रास्ते में ही मर रहे थे। यह मानव निर्मित समस्या का एक उदाहरण है। इनमें से कई हमारे द्वारा अनुभव की हुई 'हमारे' और 'उन' के बीच उत्पन्न विभाजन के कारण और हमारी मात्र 'अपने पक्ष' के लिए कार्य करने की प्रवृत्ति से उत्पन्न होती हैं। 'बोधिसत्वचर्यावतार' हमें इस प्रवृत्ति का प्रतिकार करने की शिक्षा देता है।

श्रोताओं में से पूछे गए कई प्रश्नों में पहला था कि परिवर्तन करने हेतु हम अपने चित्त को किस प्रकार देख सकते हैं। परम पावन ने समझायाः

"प्रारंभ में आप अपनी आँखें तथा चित्त को किसी वस्तु पर केंद्रित कर सकते हैं। जब आप अपनी आँखें बंद करते हैं तो वस्तु की छवि बनी रहती है। यह एक सामान्य छवि है और इसे बनाए रखने के लिए आप इस पर अपना ध्यान केन्द्रित करना सीख सकते हैं। बाद में आप अपना केन्द्र चित्त पर परिवर्तित कर सकते हैं।

"'बोधिसत्वचर्यावतार' का अध्याय ६ क्षांति (धैर्य) की बात करता है। हममें नकारात्मक भावनाओं पर निर्भर होने और उन पर विश्वास करने की प्रवृत्ति होती है, पर यदि हम यह अध्याय पढ़ें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वे कितने हानिकारक हैं और हमें किस प्रकार उन्हें नियंत्रित करने की आवश्यकता है। अध्याय ८ मोह और आत्म पोषण के व्यवहार के नुकसान और साथ ही इसके स्थान पर दूसरे का पोषण करने के लाभ को समझाता है ः

"चाहे हम औपचारिक रूप से एक आध्यात्मिक मार्ग का अनुसरण करें अथवा नहीं दुख के कारणों का परीक्षण जो कि नकारात्मक भावनाएँ हैं और उनका प्रतिकार करने के उपाय महत्वपूर्ण हैं। हमें सुख के कारणों जैसे कि प्रेम और करुणा, और उन्हें विकसित करने के तरीके पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।"

परम पावन ने वियतनाम में आत्महत्या की दर के बारे में दल से पूछा और उन्हें बताया गया कि वे काफी कम थी। उन्होंने आगे पूछा कि अधिकांश मामले शहरों में होते हैं या ग्रामीण इलाकों में। यह सुनकर कि अधिकांश घटनाएँ शहरों में होती हैं, उन्होंने सुझाव दिया कि शहरों में लोग अधिक एकाकी और अकेलेपन का अनुभव करते हैं, जबकि गांवों में अधिक सामाजिक सहयोग और समुदाय की भावना होती है। उन्होंने टिप्पणी की कि इस प्रेम तथा स्नेह की एक भूमिका है। सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य के लिए मैत्री बहुत महत्वपूर्ण है और मैत्री विश्वास पर आधारित है जो उस समय बढ़ती है जब हम दूसरों के प्रति चिंता और सम्मान दिखाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि सौहार्दता के मूल्य के विषय में हर जगह लोगों को शिक्षित करने की आवश्यकता है।

उन्होंने वियतनाम में भ्रष्टाचार और अमीर और गरीब के बीच की खाई के बारे में पूछा और दोनों प्रश्नों के उत्तर "बड़ा" था। उन्होंने टिप्पणी की, कि स्पष्ट रूप से भौतिक विकास आवश्यक है, परन्तु उतना ही महत्वपूर्ण आंतरिक विकास है। हम सबकी समस्याएँ हैं, उन्होंने कहा, पर हमें उनसे निपटने के लिए मार्ग खोजने होंगे।

आत्महत्या का प्रश्न पुनः उठा और उन्होंने आमदो के टाशी खील के एक भिक्षु के विषय में सुनने का स्मरण किया जिसे बंदी बना लिया गया था और १९५८ या ५९ में वह 'वर्ग संघर्ष' का शिकार हुआ। जब उस भिक्षु को एक अन्य स्थान पर स्थानांतरित किया जा रहा था और समूह विश्राम करने के लिए रुका तो वह चेतना के स्थानांतरण के अभ्यास में रत हो गया और उसके प्रभाव में अपने स्वयं के प्राण ले लिए। परम पावन ने कहा कि हमें आत्महत्या के मामलों को परिस्थिति के अनुसार लेना चाहिए ।

चित्त शोधन के ५वें और ६वें पद पर एक प्रश्न पूछा गया जो पराजय को स्वयं पर लेकर दूसरों को विजय देने से और उनसे निभाने का है जो आप का अहित करते हैं इसके बावजूद कि आपने उनका भला किया है। परम पावन ने उन लोगों पर जो आप का अहित करते हैं, क्रोधित न होने पर साथ ही उनके गलत कार्यों के प्रति ढीला न होने के महत्व पर बल दिया। आप हस्तक्षेप कर सकते हैं और आपको करना चाहिए।
 
जब श्रोताओं में से एक ने शून्यता की एक सरल व्याख्या का अनुरोध किया तो परम पावन ने कहा वस्तुएं जैसी दिखाई देती हैं, उस रूप में अस्तित्व नहीं रखती।

कोई और यह जानना चाहता था कि नकारात्मक भावनाओं के साथ कैसे निपटा जाए जो व्यापार करने के दौरान उठती हैं। परम पावन ने उसे सलाह दी कि वह अपने व्यापार को अपने लाभ के लिए कम करे न कि धोखा, शोषण या दूसरों को धोखा देने के लिए करे अपितु बड़े पैमाने पर समाज में योगदान करने के लिए।

"नकारात्मक भावनाओं के विषय में और उनका प्रतिकार कैसे करें, इस विषय के बारे में जानें। इस विषय में व्यावहारिक बनें। केवल व्यापारी ही नकारात्मक भावनाओं के अधीन नहीं होते, पहाड़ों के सन्यासी भी ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा के अधीन हो सकते हैं। पर यदि आप उनकी पहचान करने से परिचित हो जाएँ तब आप उनसे निपटना सीख सकते हैं।"

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