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ए ई आइ संगोष्ठी - बिना आसक्ति के प्रचुरता - दिन १ ४/नवम्बर/२०१५

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थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत - ४ नवम्बर २०१५ - आज सुबह अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट, एक वॉशिंगटन डीसी स्थित थिंक टैंक, परम पावन दलाई लामा से मिलने के लिए धर्मशाला में उनके निवास स्थल पर ३८ लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल लेकर आया। यह ए ई आइ द्वारा उनके साथ आयोजित दूसरी संगोष्ठी है। इस बार विषय बिना आसक्ति के प्रचुरता है ।

परम पावन के ए ई आइ के अध्यक्ष आर्थर ब्रूक्स के साथ आने तक कमरे में मौन था। वे अतिथियों की ओर देख मुस्कुराए और टिप्पणी की:

"निस्संदेह, भारत दीर्घ काल से मेरा आध्यात्मिक घर रहा है, परन्तु विगत लगभग ५७ वर्षों से यह मेरा भौतिक घर भी है - आप सभी का स्वागत है। मैं प्रारंभ में कहना चाहता हूँ कि यह हम मित्रों के बीच एक अनौपचारिक बैठक है । "


अपने परिचय में, आर्थर ब्रूक्स ने कहा कि वे आशा करते हैं कि वे अपने कार्य में उद्देश्य के बारे में, उद्यम और गरीबी तथा किस प्रकार लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाया जाए, पर बात करने में सक्षम हो पाएँगे। उन्होंने परम पावन से सीखे तीन स्तंभों का सुझाव दिया - नैतिक जीवन, एकाग्रता और प्रज्ञा। उन्होंने उल्लेख किया कि परम पावन प्रज्ञा को इस रूप में देखते हैं जो सत्य के परीक्षण से उत्पन्न होती है। यह कुछ ऐसा है जिसके विषय में हमें स्वयं अपने निष्कर्ष तक पहुँचना है।

उन्होंने चार कारकों के विषय में सूचना दी, जो कि परम पावन ने अमेरिकी मनोचिकित्सक हावर्ड कटलर को बताया था जो कि एक सुखी जीवन के रहस्य को गठित करता हैः प्रबुद्धता, आध्यात्मिकता, सांसारिक संतुष्टि और सम्पत्ति। उन्होंने अंतिम दो को शामिल किए जाने पर आश्चर्य व्यक्त किया, पर सुझाया कि सांसारिक संतुष्टि का अर्थ है कि हमें अपने जीवन का आनंद उठाना चाहिए, पर ऐसा हमें दूसरों की सेवा करते हुए करना चाहिए। सम्पत्ति की परिभाषा के रूप में, उन्होंने मुंबई की धारावी झुग्गी बस्ती में मिले किसी की गर्व से भरी आत्मप्रशंसा को उद्धृत किया:

"मैंने कुछ निर्मित किया, अपनी जीविका कमाई और अन्य लोगों की सेवा की।"

ब्रूक्स ने अपने प्रथम पैनल के सदस्यों का परिचय दिया। ओडिशा का प्रतिनिधित्व करते हुए भारतीय संसद सदस्य, जय पांडा, परेश शाह, एक गुजराती, जो अब एल ए में रहते हैं तथा एक कार्यकारी और योगी है और रॉबर्ट डोअर, जो कि अब ए ई आइ के फैलो हैं और जो न्यूयॉर्क के मानव संसाधन प्रशासन में आयुक्त थे। उन्होंने उनसे इस पर विचार करने के लिए कहा कि 'गरीबी के बीच में एक सार्थक जीवन क्या है?'

जय पांडा ने कहा कि उन्होंने ऐसे बहुत गरीब लोगों को देखा है जो बड़ी गरिमा के साथ अपनी गरीबी से ऊपर उठते हैं। उन्होंने एक वृद्ध महिला का उल्लेख किया जिसने उन्हें १० रुपये (१५ सेंट) का दान दिया क्योंकि उसे जो वे कर रहे थे वह अच्छा लगा। उन्होंने ओडिशा में आदिवासी परिवारों के साधारण घरों का उदाहरण दिया, जो उतने ही साफ तथा स्वच्छ थे जितने उनके सम किसी मध्यम वर्ग के घर।

परेश शाह ने सुझाया कि यदि हम ऊर्जा को सम्पत्ति के रूप में देखते हैं तो उसे प्रवाहित होना चाहिए। हमें इसे साझा करना चाहिए है और जैसे हम इसे साझा करते हैं तो और अधिक आता है। उन्होंने कहा कि हम सम्पत्ति को साझा करने के पात्र हैं जिससे दूसरों को उठाया, ठीक किया और प्रेरित किया जा सकता है। उन्होंने आगे कहाः

"हम जो सीखते हैं वह यह कि, हमारा आंतरिक विश्व हमारे बाह्य विश्व को आकार देता है। हमारी अपनी भावनात्मक स्वच्छता के माध्यम से हम हर किसी को छू सकते हैं।"

रॉबर्ट डोअर ने एक ऐसे व्यक्ति के विषय में बताया जिससे वे उस समय मिले जब वे न्यूयॉर्क में काम कर रहे थे, एक ऐसा व्यक्ति जो दो बार जेल से रिहा हुआ था और फिर दो बार उसकी वही हालत हुई थी और वह बहुत कठिनाई का सामना कर रहा था। फिर वह सफल हुआ और जब उससे पूछा गया कि वह कैसे हुआ तो उसने उत्तर दियाः कि अंततः मैंने अनुभव किया कि मैं कर सकता था। "गरीबी से निपटने के संबंध में डोअर ने कहा कि एक सुरक्षा तंत्र की आवश्यकता है, परन्तु उत्तरदायित्व और गरिमा पहले आती है। उन्होंने इस आशा की आवश्यकता का सुझाव दिया कि लोग अपनी सहायता स्वयं कर सकते हैं।

जब आर्थर ब्रूक्स ने परम पावन से पूछा कि उन्हें क्या कहना था तो उन्होंने उत्तर दिया:

"हम सभी सुख और पीड़ा की भावनाएँ लिए हुए जीवित प्राणी हैं। सभी प्राणियों को अपने जीवन से प्रेम है, परन्तु दिमाग के विभिन्न आकारों का अर्थ है कि हमारी बुद्धि के स्तर अलग अलग हैं। हम मानव सबसे अधिक बुद्धिमान हैं और इस बुद्धि को काम में लाते हुए ही हम विश्व को एक बेहतर रूप में परिवर्तित कर सकते हैं।

"हम सब एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं, हम दुखी नहीं होना चाहते। पर हमें देखना होगा कि हम उन समस्याओं पर किस प्रकार काबू पाएँ जो हम अपने लिए निर्मित करते हैं। यह समस्याएँ हमारी सौहार्दता के कारण नहीं आती पर इसलिए आती हैं क्योंकि हम क्रोध, घृणा और आत्मकेन्द्रितता के प्रभाव में आ जाते हैं। हमारी बुद्धि हमें वस्तुओं को एक व्यापक दृष्टिकोण से देखने देती है, यह देखने के लिए कि क्रोध और घृणा हमारे चित्त की शांति को भंग करते हैं और हमारे परिवार के भीतर सौहार्दता के वातावरण को चकनाचूर करते हैं। वास्तव में आप कह सकते हैं कि यदि कोई स्थान तनाव और संदेह से भरा हुआ है तो वह वास्तव में घर नहीं है।


"हम सामाजिक प्राणी हैं और हमें समूची मानवता, सभी ७ अरब मनुष्यों के हित के विषय में सोचने की आवश्यकता है। आज हमने उल्लेखनीय भौतिक विकास कर लिया है, पर इस समय जब हम बात कर रहे हैं, अन्य स्थानों पर लोग हैं जो शस्त्रों का प्रयोग कर रहे हैं और एक दूसरे की हत्या कर रहे हैं। कुछ धर्म के नाम पर यह करते हैं। यह अचिन्तनीय है।"

परम पावन ने उल्लेख किया कि वे अमेरिका के कई ऐसे शहरों के बारे में जानते हैं जिन्होंने स्वयं को दया या करुणा के शहरों के रूप में घोषित किया है। उन्होंने सुझाया कि भारत भी उसका अनुसरण करें। उन्होंने टिप्पणी की कि वे सोचते थे कि व्यापारी केवल लाभ और दूसरों का शोषण करने में ही रुचि रखते थे। उन्हें संदेह है कि यह औपनिवेशिक शक्तियों के बारे में सत्य था जिनका एक समय समूचे विश्व में बोलबाला था। पर, उन्होंने कहा कि मनुष्य के रूप में हमें प्रेम की आवश्यकता होती है और मात्र धन वह प्रेम नहीं दे सकता। उन्होंने ध्यानाकर्षित किया कि आप धनवान हों अथवा निर्धन आपके पेट का आकार तो समान है और आप की केवल दस उंगलियाँ हैं।

"हमें अमीर और गरीब के बीच की खाई को पाटने की आवश्यकता है। हमें लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए उपायों को ढूँढने की आवश्यकता है। यहाँ भारत में जहाँ लोग शहरों की ओर टूट पड़ रहे हैं, मुझे लगता है कि हमें ग्रामीण क्षेत्रों में विकास लाने की एक तत्कालिक आवश्यकता है। अमीर जो कर सकते हैं वह सम्मानपूर्वक सुविधाएँ और शिक्षा प्रदान करना है। परन्तु गरीबों को कठोर परिश्रम करना होगा और आत्मविश्वास विकसित करना होगा। क्रोध व आक्रोश में स्वयं को डुबाने से कुछ प्राप्त नहीं होता।

"हम मानवता की एकता की सराहना के आधार पर आधारित एक अधिक खुशहाल और अधिक करुणाशील विश्व का निर्माण कर सकते हैं। यदि हम प्रयास करें तो एक और अधिक समानता वाले अधिक करुणाशील विश्व का निर्माण कर सकते हैं, यद्यपि मैं यह आशा नहीं रखता कि मेरी पीढ़ी यह देखने के लिए जीवित रहेगी।

"लोगों को अपनी गरिमा बनाए रखते हुए उपयोगी होने के लिए एक रास्ता खोजने की आवश्यकता है। यदि वे ऐसा नहीं कर सके तो उनके अपने जीवन को व्यर्थ करने की संभावना है। मेरा विश्वास है कि हममें से प्रत्येक में विश्व को बदलने के लिए कुछ करने की क्षमता है, ऊपर से लेकर नीचे तक नहीं परन्तु वैयक्तिक रूप से प्रारंभ कर। मुझे नहीं लगता कि ईश्वर से प्रार्थना करने से हमारी समस्याओं का समाधान होगा क्योंकि ईश्वर ने हमारी समस्याएँ नहीं बनाईं, हमने बनाई हैं। अतः हमें उनके लिए समाधान खोजने की आवश्यकता है।"

ए ई आइ में विदेश और रक्षा नीति अध्ययन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष, डेनिएल प्लेटका दूसरे सत्र के संचालक थे। विषय था भारत की झुग्गी बस्तियों में व्यापार का निर्माण करना। ए ई आइ ने मुंबई में धारावी नाम की झुग्गी बस्तियों में से एक में विशेष रुचि दिखाई है। यह १३० वर्षों से अधिक पुरानी है और ७००,००० से दस लाख की बीच की संख्या वाले लोगों के लिए घर है। ए ई आइ ने असीम आबिद शेख, एक ट्रैवल एजेंट, मूर्ति रामास्वामी, एक विक्रेता, मोहम्मद अकरन शाह, एक दर्जी और यूसुफ गलवानी एक कुम्हार, जो सभी धारावी के हैं, को दोस्त बनाया है। वे इस पैनल का अंग थे।

असीम शेख ने समझाया कि धारावी में लोग अपनी देखरेख कर शिक्षा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं ताकि वे एक अच्छा जीवन जीने को सुनिश्चित कर सकें। मूर्ति रामस्वामी, जो हिंदुस्तान लीवर के लिए पानी प्यूरिफायर बेचते हैं, ने कहा कि अपनी नौकरी को लेकर जो उन्हें अच्छा लगता है वह यह कि, वे पैसा कमाते हैं पर साथ ही वे संतुष्टि भी दे पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि चूँकि वह एक नियमित राशि कमाते हैं, वे अपनी बेटियों को एक प्राइवेट स्कूल भेज सकते हैं जो वे आशा करते हैं उन्हें आत्मविश्वास देगा। उन्होंने यह कहते हुए अपने को गरीब कहने से इनकार किया कि वे न केवल भीख नहीं माँगते बल्कि एक जीवन बीमा पॉलिसी के लिए योगदान दे रहे हैं।
 
कुम्हार यूसुफ गलवानी ने अपने दादा की कहानी सुनाई, जो जब धारावी आए थे तो उनके पास कुछ न था, वे भूखे थे और करने के लिए कुछ न होने के अभाव में उन्होंने मिट्टी के बर्तनों का काम चुना। उन्होंने धारावी के लोगों के बारे में बताते हुए कहा कि वे अच्छे लोग थे जिनके पास कई कौशल थे। वे भीख माँग कर या सरकारी सहायता से विकास प्राप्त नहीं कर रहे परन्तु अपने स्वयं के प्रयास से कर रहे हैं।

पूर्व सी ई ओ और सार्वजनिक बुद्धिजीवी गुरचरण दास ने ध्यानाकर्षित किया कि जो गलवानी ने वर्णित किया वह इस बात का प्रमाण है कि भारत में विकास निचले स्तर से प्रारंभ होता है जो उसे दीर्घकालीन बनाए रखेगा और जो चीन के ठीक विपरीत है जो ऊपर से नीचे की ओर आता है।


अकरन शाह, जो २५ वर्षों से दर्जी रहे हैं, ने कहा कि जहाँ सरकार सहायता कर सकती है वह बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान कर और डेंगू बुखार जैसी बीमारियों से निपटने की ओर कदम उठाना है। उन्होंने धारावी में मौजूद सामाजिक सद्भाव की सराहना की जहाँ सभी प्रमुख धर्मों के सदस्य सहज भाव से एक साथ रहते हैं।

धारावी के अपने अनुभव पर टिप्पणी करते हुए आर्थर ब्रूक्स ने पांच बातों का उल्लेख कियाः इसकी क्षमता, वहाँ पनपते अवसर। वहाँ चल रहे कार्य। विश्वास, जो एक अच्छे जीवन का अंग है। परिवार और समुदाय की सशक्त भावना। डेनिएल प्लेटका ने पैनल के सदस्यों को निष्पक्षता को लेकर उनकी भावना के बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित किया, पर इस संबंध में उनकी रुचि दिखाई न दी। वे जो नौकरी वे कर रहे हैं, उसके लिए उनके मन में जो प्रेम है और सामुदायिक भावना जहाँ वे रह रहे हैं उसके प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति को लेकर अधिक उत्सुक जान पड़े। असीम शेख ने उल्लेख किया कि पिछले वर्ष जब उसने जर्मनी का दौरा किया तो उसके पड़ोस से ७० लोग हवाई अड्डे पर उसे विदा देने आए थे।

कई स्पष्टीकरणों के बीच, जैसे कि झुग्गी बस्तियों को सरकारी जमीन पर एक अवैध आवास के रूप में परिभाषित किया जाता है, जय पांडा ने दुख जताया कि भारत में सरकारी स्कूलों में प्रायः अच्छी सुविधाएँ होती हैं परन्तु शिक्षा का स्तर बहुत नीचे होता है, जबकि गैर सरकारी संगठन और मिशन स्कूलों में ठीक इसके विपरीत होता है, कम सुविधाएँ और उत्कृष्ट शिक्षा। सिक्योंग लोबसंग ने यह सुझाते हुए करुणा के महत्व पर बल दिया कि शिक्षा में अंग्रेजी सीखना एक बात है, पर करुणा पोषित करना अधिक प्रभावशाली है।


दर्शकों में से एक तिब्बती ने धारावी के विषय में जो उन्होंने सुना उसके और दिल्ली के बाहरी क्षेत्र में मजनू का टीला तिब्बती आवास की तुलना की। उन्होंने स्मरण किया कि वहाँ केवल एक ही व्यापार था जो था शराब पकाना। दूरदर्शी नेतृत्व ने लोगों को अन्य कार्य की ओर प्रोत्साहित किया और अब यह बहुत जीवंत स्थान है जो बहुतों को आकर्षित करती है।

उनकी टिप्पणी पूछे जाने पर परम पावन ने कहा कि चूँकि उनका समूचा ज्ञान भारतीय स्रोतों से लिया गया है और चूँकि उनका शरीर ५० वर्षों से अधिक समय से भारतीय चावल और दाल द्वारा पोषित हुआ है, वे स्वयं को भारत का एक पुत्र मानते हैं। उन्होंने उन पहलुओं को सूचीबद्ध किया जो भारत को महत्वपूर्ण बनाते हैं। यह विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला लोकतांत्रिक देश है। यह अधिकांश रूप से स्थिर और शांतिपूर्ण है। धार्मिक सद्भाव कायम है जैसा कि सदियों से रहा है। कानून का शासन मौजूद है। इसके विपरीत चीन में न तो स्वतंत्र मीडिया और न ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।

"मैं प्रायः ध्यानाकर्षित करता हूँ कि आधुनिक शिक्षा एक सुखी राष्ट्र में सुखी परिवारों में सुखी लोगों को आकार देने के लिए पर्याप्त नहीं है," परम पावन ने कहा, "क्योंकि भौतिकता पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित है। पश्चिम में लोग समृद्ध हैं, पर अब यह अनुभव करने लगे हैं कि चित्त की शांति अधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि कोई एक धार्मिक परंपरा सार्वभौमिक रूप से आकर्षित नहीं हो सकती, हमें एक धर्मनिरपेक्ष नैतिकता अपनानी होगी, सभी आध्यात्मिक परंपराओं के लिए और यहाँ तक कि उन लोगों के विचारों के प्रति भी जो किसी धर्म का पालन नहीं करते।"


अंत में, परम पावन ने समझाया कि करुणा दो रूप ले सकती है, एक जो स्वाभाविक वृत्ति की तरह, मित्र तथा परिवार वालों के प्रति चिंता जिनसे हमारा जुड़ाव है। यह एक सीमित और पक्षपातपूर्ण करुणा है। यद्यपि यह किसी बड़े के लिए एक बीज हो सकती है। तर्क व बुद्धि से हम अपनी करुणा को अन्य लोगों को शामिल करना सीखते हुए उसका विस्तार कर सकते हैं। एक पक्षपात रहित दूसरों के प्रति सच्ची चिंता, फिर चाहे वे जो भी हों। वह वास्तविक करुणा है, और केवल मानव इसे विकसित करने में सक्षम हैं।

सत्र मध्याह्न के भोजन के लिए स्थगित हुआ। कल प्रतिनिधि और परम पावन सभी अंतिम दिन के सत्र के लिए मिलेंगे। 

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      • चित्त् शोधन पद ५ और ६
      • चित्त शोधन पद : ७
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