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एईआइ संगोष्ठी - बिना आसक्ति के प्रचुरता - दिन २ ५/नवम्बर/२०१५

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थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., ५ नवम्बर २०१५ - अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के परम पावन दलाई लामा के साथ की संगोष्ठी के दूसरे दिन के पहले पैनल का विषय था 'मुक्त उद्यम की शक्ति'। पैनल के सदस्य थे इंस्टिट्यूट ऑफ लिबर्टी एंड डेमोक्रेसी के हरनेन्डो डे सोटो, ग्लोबल एजुकेशन एंड लीडरशिप फाउंडेशन के शिव खेमका और अशोक इन्नोवेटर्स फॉर द पब्लिक के अशोक स्वामीनाथन। सदानंद धुमे संचालक थे। उन्होंने हरनेन्डो डे सोटो से उस पर कुछ और विस्तृत रूप से बोलने के लिए कहा, जो उन्होंने कहीं और कहा था कि कई विकासशील देशों में समस्या बहुत अधिक पूंजीवाद नहीं, पर पर्याप्त नहीं है।


डी सोटो ने इस सुझाव से प्रारंभ किया कि ऐसा क्यों है कि इतने कई लोगों के पास इतना कम है और इतने कम लोगों के पास इतना अधिक है। उन्होंने बल देते हुए कहा कि बर्लिन की दीवार के गिरने के पश्चात ही यह स्पष्ट हो गया है मुक्त बाजार पूंजीवाद की जीत हुई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि विकास के लिए पूंजी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अतिरिक्त मूल्य उत्पन्न करने का अवसर प्रदान करती है। उन्होंने यह विचार प्रस्तुत किया कि पूंजीवाद समझौतों, संपत्ति दस्तावेजों पर निर्भर करता है और कहा कि विश्व की आबादी का ७०% कागज तथा कानून के शासन के द्वारा कुछ भी नियंत्रित नहीं करता। परिस्थिति ने उन्हें विटजेनस्टाइन के उत्तर का स्मरण कराया जब उनसे पूछा गया कि, "ब्रह्मांड क्या है?" - "वस्तुएँ एक दूसरे के संबंध में।"

जब विष्णु स्वामीनाथन से पूछा गया कि मुक्त उद्यम ने भारत की किस तरह सहायता की है, उन्होंने जो सोटो डे ने संपत्ति के बारे में कहा था को जारी रखा तथा यह ध्यान दिलाया कि ९७% भारतीय कोई आय कर का भुगतान नहीं करते। और चूँकि वे व्यवस्था से बाहर हैं, वे एक बंधक प्राप्त नहीं कर सकते और इस कारण साधारण रूप में संपत्ति नहीं खरीद सकते। वे और उनके साथियों ने अनुभव किया कि उन्हें लोगों को उनके साथ जोड़ने की आवश्यकता है जो घरों का निर्माण करते हैं। फिर उन्होंने स्त्रियों की भूमिका के महत्व को पहचाना। स्त्रियाँ ही यह सुनिश्चित करती हैं कि मासिक भुगतान किया जाए और स्त्रियाँ ही समुदाय को जोड़ती हैं। उन्होंने यह भी पाया कि गरीब होने पर भी लोगों में आकांक्षा है। स्त्रियों ने स्पष्ट किया कि भले ही उनके पास फ्रिज न था, पर अपने नए घर में वे उसके लिए एक स्थान चाहती थीं।

शिव खेमका ने कहा कि चाहे विश्व का आर्थिक रूप लगातार बढ़ रहा हो, पर उसका विभाजन अभी भी असमान है। उन्होंने सम्पत्ति के असमान बंटवारे की स्थिति का वर्णन एक जलती मंच के रूप में किया। गुरचरण दास ने इसके प्रत्युत्तर में कहा कि उनका ड्राइवर इस तरह नहीं सोचता।


"वह परवाह नहीं करता कि अंबानी समृद्ध है, उसे केवल अपनी बेटी को स्कूल में डालने की चिंता है। हम भारत में समानता की तुलना में लोगों को गरीबी से बाहर निकालने को लेकर अधिक चिंतित हैं। यह ईर्ष्या के बारे में नहीं है।"
 
शिव खेमका बोले:

"मैं अवसर की समानता, नीचे से ऊपर सम्पत्ति पैदा करने की संभावना के बारे में बात करना चाहता हूँ। मुझे लगता है कि व्यवस्था काम नहीं कर रही है। इसमें हेरा फेरी हुई है। नैतिकता की अंतर्निहित गुणवत्ता का अभाव है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा 'प्रत्येक व्यक्ति को एक बिंदु पर निश्चय करना होगा कि वे रचनात्मक परोपकारिता के प्रकाश में चलेंगे अथवा विनाशकारी स्वार्थ के अंधेरे में। यह एक शक्तिशाली विचार है।"

सदानंद धुमे ने यह बताने के लिए कि उनके विचार में उनके प्रदेश वाले क्या कहेंगे जय पांडा को आमंत्रित किया। उन्होंने उत्तर दिया कि वे भी सामान्य रूप से अपने बच्चों के लिए शिक्षा में सुधार, अस्पताल सुविधाओं में और अधिक सुधार, इत्यादि को लेकर चिंतित थे। परन्तु उन्होंने स्वीकार किया कि एक ऐसा मोड़ आता है जब प्रणाली की हेराफेरी देख लोग क्रोधित होते हैं। उन्होंने सुझाया कि भारत में पिछले वर्ष के आम चुनाव का परिणाम सिर्फ मोदी के समर्थन में नहीं था पर भ्रष्टाचार विरोधी और मुद्रास्फीति था।

जब परम पावन से टिप्पणी करने को कहा गया तो उन्होंने उत्तर दिया:

"मुझे नहीं पता। ये समस्याएँ काफी जटिल हैं। सब कुछ परस्पर निर्भर है। एक बात जिसका हमने उल्लेख नहीं किया वह यह कि किस प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका की सफलता शस्त्रों के निर्माण और बिक्री के मामले में युद्ध से संबंधित है। वहाँ कोई रीसाइक्लिंग नहीं है।

"मुझे लगता है कि पूंजीवाद मुख्य रूप से लाभ से प्रेरित है, जबकि समाजवाद कम से कम समाज के बारे में चिंतित है। मार्क्स के कथन में मुझे जो आकर्षित लगा वह इससे संबंधित था कि किस प्रकार श्रमिकों का शोषण किया जा रहा था और इसके लिए उन्होंने धन के एक और अधिक समान वितरण की वकालत की। यह दोनों प्रणालियाँ उनमें भाग लेने वाले व्यक्तियों पर निर्भर करती हैं।


"करुणा नैतिक सिद्धांतों का आधार है। एक कार्य की अच्छाई मात्र उस कार्य से संबंधित नहीं है, पर यह कि क्या यह दूसरों के प्रति चिंता और उनके अधिकारों को लेकर उत्पन्न हुई है। यही नैतिक सोच का आधार है। यदि हम अपने युवाओं में दूसरों के प्रति चिंता का विचार पैदा कर सकें, यदि हम लोगों को इस तरह प्रशिक्षित कर सकें तो हम एक बेहतर विश्व का निर्माण कर सकते हैं। मेरे पास इन जटिल समस्याओं के लिए कोई उत्तर नहीं है। लोगों के हृदयों में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।"

धुमे ने पूछा कि परम पावन के भारत में रहते हुए लगभग ५७ वर्षों में क्या कुछ बेहतरी हुई है।

"हाँ," उन्होंने उत्तर दिया। "अहिंसा अथवा अहित न करने की यह प्राचीन भावना है। इसका अर्थ है कि यदि आपके पास किसी का शोषण करने का अवसर है, पर आप अपने आपको नियंत्रित करते हैं, यह अहिंसा है और यह करुणा से उत्पन्न होती है जो दूसरों के प्रति सम्मान है। यदि आपकी बुरी प्रेरणा है तो अच्छे कार्यों से भी कुछ अच्छा न होगा। लोकतंत्र अच्छा है, पर यह उस रूप में कार्य नहीं करेगा जैसा होना चाहिए यदि उससे संबंधित लोग स्वार्थी होंगे। जब कोई स्वतंत्रता नहीं होती, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न हो तो यह हमारी रचनात्मकता को सीमित करता है। इसी कारण जिन चीनियों से मैं मिलता हूँ, उनसे कहता हूँ कि १.३ अरब चीनी लोगों को वास्तविकता के बारे में सूचित किया जाना चाहिए। यदि उन्हें सूचित किया गया होता तो वे गलत तथा सही के बीच निणर्य लेने की क्षमता रखते। इसलिए सेंसरशिप गलत है। इस संबंध में भारत बहुत मुक्त है। यदि हम यथार्थवादी होना चाहते हैं तो हमें वर्तमान यथार्थ के अनुसार कार्य करना होगा।

"इस प्रश्न के संबंध में कि पूंजीवाद या समाजवाद का पक्ष लिया जाय। पूर्वी यूरोप के देशों पर इसके प्रभाव के साथ सोवियत संघ के पतन के बाद राष्ट्रपति हावेल चेकोस्लोवाकिया के लिए मुझे आमंत्रित किया। मैंने सुझाव दिया कि उस मोड़ पर अच्छा यह होगा कि दोनों में जो अच्छा है उसे लिया जाए।"

चाय के एक लघु अंतराल के बाद दूसरा सत्र प्रारंभ हुआ जिसमें रॉबर्ट डोअर ने गुरचरण दास, आर्थर ब्रूक्स, टुली फ्राइडमैन, फ्राइडमैन के अध्यक्ष और सीईओ लेशर और लोव एलएलसी और परम पावन के बीच की चर्चा का संचालन किया। प्रश्न था: 'क्या बाज़ार नैतिक हैं?'


गुरचरण दास ने यह कहते हुए प्रारंभ किया कि बाजार न नैतिक और न ही अनैतिक व्यवहार के बारे में संकेत देते हैं। उन्होंने अपने घर के पास एक औरत द्वारा फल बेचने का और उनके द्वारा की जा रही शिकायत, कि उसके आम महंगे थे, का उदाहरण दिया। औरत ने उत्तर दिया था "पर वे बहुत अच्छे हैं," अतः उन्होंने कुछ खरीदा। वे बुरे निकले। उन्होंने अपने मित्रों और पड़ोसियों को बताया और उन्होंने उसके बजाय उसके प्रतिद्वंद्वी से खरीदा। उन्होंने इसे चुनाव और बुरे व्यवहार के लिए दंडित करने की क्षमता का एक रूप बताया। उन्होंने कहा कि जब कोई इस तरह बेईमान होता है तो वे आपके विश्वास को धोखा देते हैं, पर बाजार तंत्र स्वीकार्य व्यवहार को पुष्ट करता है।

उन्होंने दो और उदाहरण दिए। एक नकारात्मक उदाहरण उस समय का जब वे प्रॉक्टर एंड गैंबल में थे, जब क्रय प्रबंधक ने एक सप्लायर की कीमत इस सीमा तक गिरा दी कि उसने एक हीन आपूर्ति की। एक और अधिक सकारात्मक एक छोटी सी कंपनी थी जो नियमित रूप से सबसे अच्छे लोगों को भर्ती करने में सक्षम थी। उसके लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करने की ख्याति के कारण वह ऐसा करने में सक्षम थी।

"बाजार विश्वास पर आधारित हैं," दास ने कहा। "जब मैं एक टैक्सी में बैठता हूँ तो ड्राइवर यह नहीं देखता कि मेरे पास किराया भुगतान करने के लिए पर्याप्त पैसा है, वह मुझ पर भरोसा करता है। बाजार संकेत देते हैं और फलस्वरूप आत्म नियमन अर्थव्यवस्था का अंग है।"

आर्थर ब्रूक्स ने तर्क दिया कि अच्छे पूंजीवाद के मौलिक मूल्य हैं: सेवा, वैराग्य और आशावाद। उन्होंने सेवा को करुणा के संदर्भ में परिभाषित किया और सुझाया कि मुक्त उद्यम दान के माध्यम से नहीं अपितु अवसर का निर्माण कर अंतर लाता है। उन्होंने वैराग्य को भौतिकवाद के संकट और शक्ति के संदर्भ में स्पष्ट किया। उन्होंने एक तिब्बती भिक्षु के साथ हुई बातचीत को उद्धृत किया जिन्होंने स्पष्ट किया था कि माओत्से तुंग ने एक अच्छे विचार के साथ प्रारंभ किया पर सत्ता के कारण भ्रष्ट हो गया। ब्रूक्स ने बल देते हुए कहा कि हम दूसरों की सहायतार्थ संसाधनों के मार्गदर्शक हैं, कि निजी संपत्ति दूसरों के साथ साझा करने की चीजों की रक्षा करने के लिए एक तंत्र है। उन्होंने अपने सहयोगियों को कृतज्ञता का स्मरण रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि तीसरा मूल्य, आशावाद लोगों में विश्वास बनाए रखना है। यह अधिक निर्धन लोगों को एक समस्या के रूप में न देखते हुए एक सम्पदा के रूप में देखने का अंतर है, यह देखना कि उनमें भी निर्माण की क्षमता है।


रेडियो फ्री एशिया की अध्यक्षा लिब्बी लियू ने नैतिक पूंजीवाद में अमेरिका की रुचि और चीन में स्थिति के बीच तुलना प्रस्तुत की। उन्होंने चीन के भारी प्रभाव को स्वीकार किया, परन्तु एक नैतिक केन्द्र के अभाव, एक आध्यात्मिक जीवन या समुदाय की भावना के बारे में गलतफहमी व्यक्त की। उन्होंने कहा कि ऊपर से केवल एक कुलीन है जो पूँजी की व्यवस्था कर रहा है। उन्होंने बल देते हुए कहा कि यदि कोई चीन में अच्छा करना चाहता है तो वे भ्रष्टाचार से बाधित होते हैं। एक उत्साहित टिप्पणी के साथ समाप्त करते हुए उन्होंने आशा व्यक्त की कि अंततः एक सकारात्मक मानवीय भावना बनी रहेगी।

टुली फ्राइडमैन ने चर्चा में सतर्कता की एक टिप्पणी जोड़ी। जहाँ आदर्श आर्थिक प्रारूप काफी हद तक अमरीका में फीके पड़ गए हैं, पूंजीवाद कभी कभी विफल रहता है जैसा कि 'क्रोनी कैपिटलिज्म' के संबंध में हुआ है। परन्तु उन्होंने ज़ोर दिया कि विज्ञान उदार पूंजीवाद की सफलता के बारे में सुनिश्चित है, जिसका अच्छे व्यवहार के लिए पुरस्कार के साथ अधिकतम सकारात्मक प्रभाव हो सकता है।

गुरचरण दास ने टिप्पणी की, कि आत्म - हित वैध है, यह मात्र लोभ के विषय में नहीं है। हरनेन्डो डे सोटो ने टिप्पणी की, कि अरब स्प्रिंग ने हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था क्योंकि यह सही अर्थों में नीचे से ऊपर का एक आंदोलन था। लोग प्रत्येक मूल्य की वस्तु को सरकार द्वारा जब्त किए जाने पर थक गए थे। डेनिएल प्लेटका ने घोषित किया कि अमेरिका सबसे सफल अर्थव्यवस्था वाला विश्व में सबसे शक्तिशाली देश है। उन्होंने कहा कि चुनौती उस समय आती है जब अमेरिकी सरकार अपने नैतिक अधिकार का प्रयोग करने के लिए अनिच्छुक होती है।

जब रॉबर्ट डोअर ने परम पावन से पूंजीवाद के बारे में उनके विचारों के बारे में पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया:


"मैंने सदा कहा है कि भारत में अहिंसा और धार्मिक सद्भाव की परंपरा के आधारभूत प्राचीन मूल्य हैं। इन मूल्यों को संरक्षित रखा गया है। और प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान है जो कि ज्ञान का एक अत्यधिक विकसित रूप है। ये भारत की सम्पदा का अंग हैं। तो जब समकालीन भारतीय एक आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर तकनीकी विकास को आगे बढ़ाते हैं उनके लिए अच्छा होगा कि वे इन विचारों को अनदेखा न करें जो परीक्षित हैं और जिन पर प्रयास हुआ है।

"मैं एक प्रश्न पूछना चाहूँगा। स्वीडन वास्तव में एक समाजवादी देश प्रतीत होता है जहाँ अमीर और गरीब के बीच कम अंतर है। ऑस्ट्रिया भी इसी तरह ऐसा देश है जहाँ बहुत कम करोड़पति हैं, पर फिर से अमीर और गरीब के बीच की खाई बहुत बड़ी नहीं है। आपको क्या लगता है ऐसा क्यों है?"

आर्थर ब्रूक्स ने उत्तर दिया कि ये टिप्पणियाँ डेनमार्क के बारे में और भी सच्ची थी, पर यह कहा कि डेनमार्क एक छोटी सी जनसंख्या वाला देश है जिनके बीच एक आम सहमति बनाना अपेक्षाकृत आसान है। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या डेनमार्क के एक प्रारूप को भारत में लागू किया जा सकता है। हरनेन्डो डे सोटो ने यह बात दोहराई और कहा कि जिस तरह अमेरिका इसे लागू करता है वह यह कि एक राजनीतिक दल लोगों की बड़े व्यापार से रक्षा करता है और एक अन्य उन्हें बड़ी सरकारों से बचाता है।


"मैं यहाँ जिस कारक पर बल देता हूँ वह धार्मिक आस्था नहीं अपितु आधारभूत मानव कल्याण है," परम पावन ने उत्तर दिया। हम करुणा और बुनियादी मानव स्नेह के कारण जीवित रहते हैं। जब बच्चे स्नेह से घिरे हुए बड़े होते हैं तो वे एक स्वस्थ रूप से विकसित होते हैं। अलग-अलग समय, स्थानों और स्थितियों में जन्म लीं सभी धार्मिक परंपराओं द्वारा प्रेम की आवश्यकता पर बल देने का कारण यह है कि इसी पर मानव अस्तित्व पर निर्भर करता है। सच्चा स्नेह ही अंततः सकारात्मक रूप से हमारे सब संबंधों को प्रभावित करता है। वैज्ञानिक हमें बताते हैं कि तनाव और डर हमारे स्वास्थ्य के लिए खराब है जबकि एक शांत चित्त उसका पक्षधारी होता है।

"करुणा की मेरी भावना का मेरे घुटनों के दर्द पर बहुत कम प्रभाव होता है, पर यह निश्चित रूप से मेरे सामान्य स्वास्थ्य में योगदान देता है। सौहार्दता मानवता के अस्तित्व की कुंजी है। यदि अर्थव्यवस्था दया से प्रेरित होती तो स्थिति अलग होती। हमें काम करने की आवश्यकता है। और इस संदर्भ में अमेरिकी अर्थव्यवस्था विश्व के लिए महत्वपूर्ण है।"

गोष्ठी का संक्षेपीकरण करते हुए आर्थर ब्रूक्स ने पूछा:

"चार बातें क्यों नहीं करते? प्रचुरता के लिए आभारी हों, लालच छोड़ दें, अवसर सुनिश्चित करने के लिए अपने जीवन को समर्पित करें और कृपया हमने यहाँ जो सहा है और किया है उसके विषय में सबको बताएँ। मैं परम पावन का धन्यवाद करना चाहूँगा - आपके साथ होना एक सम्मान की बात है।"

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      • चित्त् शोधन पद ५ और ६
      • चित्त शोधन पद : ७
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