परम पावन 14 वें दलाई लामा
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करुणा तथा जुडाव द्वारा शक्ति (स्ट्रेंग्थ थ्रू कम्पेशन एंड कनेक्शन) १२/फरवरी/२०१५

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कोपेनहेगन, डेनमार्क - ११ फरवरी २०१५-  कोपेनहेगन में परम पावन दलाई लामा का पहला कार्यक्रम प्रेस के साथ एक बैठक थी। पत्रकारों ने सम्मान के साथ उनका कक्ष में स्वागत किया और उन्होंने अपनी तीन प्रतिबद्धताओं की रूपरेखा देते हुए प्रारंभ किया।


"मैं यहाँ आकर बहुत प्रसन्न हूँ, एक बार पुनः अपने डेनिश मित्रों के साथ मिलकर। हम सभी मानव हैं तथा शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से समान हैं। हम सभी एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं और हमारे शारीरिक और मानसिक कल्याण हेतु चित्त की शांति आवश्यक है।"
"हम सामाजिक प्राणी हैं, अपनी माँओं से जन्मे हैं और बचपन से ही उनका ध्यान और प्रेम पाते आ रहे हैं। जो इस प्रकार के स्नेह की सराहना करते हैं उनमें दूसरों के प्रति स्नेह दिखानी की क्षमता होती है। स्नेह, विश्वास और चित्त की शांति सभी परस्पर जुड़े हुए हैं।"

"एक बौद्ध भिक्षु के रूप में, विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के बीच सद्भाव के लिए कार्य करने का मेरा अपना एक उत्तरदायित्व है। हम आम लक्ष्य और आम अभ्यासों का साझा करते हैं। पर जहाँ राष्ट्रीय हित या राजनीतिक सत्ता के लिए संघर्ष कुछ सीमा तक समझ आती है, पर धर्म के नाम पर हत्या अकल्पनीय है। आप मीडिया के लोग चित्त की शांति के मूल्य और अंतर्धार्मिक सद्भाव के लिए आवश्यकता के विषय में दूसरों को शिक्षित करने में सहायता कर सकते हैं।"

"तिब्बत के संबंध में, जब से हमने एक निर्वाचित नेतृत्व प्राप्त किया है मैं राजनीतिक उत्तरदायित्व से पूर्ण रूप से सेवानिवृत्त हो चुका हूँ। मैं तिब्बत की नाजुक पारिस्थितिकी को संरक्षित करने और हमारी संस्कृति, जो शांति तथा करुणा की है, की सुरक्षा के लिए भी एक प्रतिबद्धता का अनुभव करता हूँ।"

"अंत में, आप मीडिया के लोगों की हाथी के समान लम्बी नाक होनी चाहिए कि सूंघ सके कि क्या हो रहा है और फिर जनता को सूचित करें। पर यह भी आवश्यक है कि आप इसके प्रति सच्चे व ईमानदार हों।"

पहला प्रश्न परम पावन से पूछा गया कि क्या प्रभावित करने के द्वार बंद हो रहे हैं कि राजनीतिक नेता उनसे भेंट करने की अस्वीकृति दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह ऐसा नहीं सोचते क्योंकि उनकी प्राथमिकता जनता से मिलने की है। उनसे पूछा गया कि क्या राजनेताओं द्वारा चीन के साथ संबंध बनाए रखना सबके सर्वोत्तम हित में है। उन्होंने उत्तर दिया कि चीन विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है, एक प्राचीन और महत्वपूर्ण देश है। चीन अंतर्राष्ट्रीय मुख्य धारा में शामिल होना चाहता है और यह मुक्त विश्व पर निर्भर है कि उसे लोकतंत्र की ओर ले जाए।


सम्प्रति, चीन एक बंद और नियंत्रित समाज बना हुआ है, पर १.३ अरब लोगों को वास्तविकता जानने का अधिकार है। उनमें सही और गलत के बीच गलत अंतर करने की क्षमता है। वैसे भी, सेंसरशिप, लोगों को धोखा देने के प्रयास, गलत हैं। परम पावन ने कहा कि चीन के साथ संबंधों के विषय में महत्वपूर्ण बात यह है कि संदेह पर काबू पाया जाए तथा और मैत्री की स्थापना की जाए। यह पूछे जाने पर कि क्या चीन के साथ उसके संबंधों में कोई अवसर छूटा जान पड़ता है, परम पावन ने १९५० में पीएलए सैनिकों द्वारा तिब्बती सीमा पार करने, मई १९५१ में यातुंग से पलायन करने, १७ सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने, और १९५४-५५ में उनके अपने पेकिंग की यात्रा का सर्वेक्षण किया। उस दौरान उन्होंने सभी चीनी नेताओं से भेंट की, जिनमें अध्यक्ष माओ, जिनके साथ उनके सौहार्दपूर्ण संबंध थे, के साथ ३० बैठकें भी शामिल थी। पर १९५९ में उनके समक्ष पलायन करने के अतिरिक्त कोई और विकल्प न था।

१९७४ में निर्वासन में तिब्बतियों ने संयुक्त राष्ट्र में तिब्बत के प्रश्न को आगे और न उठाने का निश्चय किया, अपितु चीन से संवाद करने की तैयारी की, जिसका अर्थ था स्वतंत्रता की माँग न करना। १९७८ में देंग जियाओपिंग ने बात करने की इच्छा का संकेत दिया और १९७९ में एक दूत ऐसा करने के लिए भेजा गया। १९८० के दशक के दौरान, हू याओबंग के समय में बातचीत की आशा उठी। पर जैसे ही छात्रों के बीच लोकतंत्र समर्थक आंदोलन उभरा हू याओबंग को पदच्युत कर दिया गया और कट्टरपंथी, ली पेंग को उस पद पर ला दिया। इसके बाद त्यानआनमेन नरसंहार हुआ।

१९९२ में जियांग जेमिन के मातहत बैठक पुनः प्रारंभ हुई, पर कट्टरपंथियों ने दमनकारी नीतियों को आगे बढ़ाना बनाए रखा और तिब्बत में जो भी मुसीबत उठी उसके लिए परम पावन पर दोषारोपण करना सुविधाजनक पाया। तब से कई संकेत मिले हैं कि जो चीनी बुद्धिजीवी, एक पारस्परिक रूप से सहमत समाधान के लिए प्रस्तावित मध्यम मार्ग दृष्टिकोण के प्रति जागरूक हुए हैं, वे उसके समर्थक हैं और उनकी सरकार की नीतियों के आलोचक हैं।

परम पावन ने धर्म के नाम पर हो रहे हिंसा के विषय में यह सुझाव देते हुए कि यह प्रायः अज्ञानी धार्मिक उग्रवादियों द्वारा दूसरों को जोड़ तोड़ने का मामला है, एक प्रश्न का उत्तर दिया। उन्होंने ११ सितंबर की त्रासदी के पश्चात राष्ट्रपति बुश को संवेदना भेजने का स्मरण किया और आशा व्यक्त की थी कि परिणाम एक अहिंसक रूप से निपटाए जाएँगे।

 
परम पावन की डेनिश प्रतिनिधियों के ईसाई, यहूदी, इस्लाम और हिंदू धर्म के साथ एक सौहार्दपूर्ण अंतर्धार्मिक बैठक हुई। उन्होंने कहा कि एक मनुष्य के स्तर पर हम सब एक ही हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने कहा कि हमारी सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराएँ क्षमा, सहनशीलता और सादगी द्वारा समर्थित प्रेम और करुणा के अभ्यास पर केन्द्रित हैं। उन्होंने हिंदू अभ्यासियों और ईसाई भिक्षुओं और भिक्षुणियों के प्रति अत्यधिक प्रशंसा व्यक्त की, जिनसे वे िमले हैं, जो वास्तव में आत्मानुशासन द्वारा शासित सादा जीवन जीते हैं। समूह ने २०१७/१८ में एक अंतर्धार्मिक सम्मेलन की अपनी योजनाओं के बारे में बताया और परम पावन के सहयोग की प्रार्थना की।

टीवी२ टी वी चैनल की मेट्ट होल्म के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने डेनमार्क के नेताओं के साथ उनकी संभावित बैठक के विषय में पूछा। परम पावन ने उन्हें बताया कि वे चाहेंगे कि विशेषज्ञों का एक प्रतिनिधिमंडल पर्यावरण स्थिति की जाँच करने तिब्बत जाए। वे आशा करते हैं कि वे आकलन करेंगे कि कितनी क्षति पहले ही हो चुकी है और आगे की क्षति को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं। उन्होंने पूछा कि जब चीनी बौद्ध उनसे मिलने आते हैं तो उनकी कैसी प्रतिक्रिया होती है और परम पावन ने कहा कि प्रायः उनकी आँखे अश्रुमय हो उठती हैं। इस संबंध में कि क्या तिब्बत में बौद्ध धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता है उन्होंने बताया कि १९५९ में जब उन्होंने अंतिम परीक्षा दी तो डेपुंग विहार में ७००० और ८००० के बीच भिक्षु अध्ययन कर रहे थे। आज सूचना यह है कि १०० से भी कम की संख्या है और न उचित शिक्षक हैं और न कोई गंभीर अध्ययन।

मध्याह्न भोजनोपरांत डीआर १ टेलिविज़न के मेट्ट हाइबल के साथ दूसरे साक्षात्कार में उन्होंने पूछा कि क्या उन्हें अनुभव होता है कि उनका प्रभाव कम हो रहा है जब राजनेता उनसे मिलने से मना कर देते हैं। उन्होंने उत्तर दिया कहा कि उनकी प्राथमिकता जनता के सदस्यों के साथ मिलने की है। उन्होंने यह भी पूछा कि तिब्बत में स्थिति कैसी है और परम पावन ने उनसे कहा स्थानीय चीनी अधिकारियों की सनक पर निर्भर होते हुए कुछ स्थानों में वे अच्छी हैं तथा कुछ स्थानों पर और भी बुरी। पर उन्होंने कहा कि वे आशावादी बने हुए हैं कि चीजों में सुधार होगा।


बेला सम्मेलन केंद्र की क्षमता वाले जनसमुदाय के समक्ष, लाखा लामा रिनपोछे, जो सात संगठनों के संघ के अध्यक्ष जिन्होंने उन्हें आमंत्रित किया और यात्रा की व्यवस्था की, ने परम पावन का स्वागत किया गया। उन्होंने अंग्रेज़ी में बोला जिसका फिर डेनिश में अनुवाद किया गया। परम पावन ने श्रोताओं का अभिनन्दन किया।
 
"प्रिय भाइयों और बहनों, हम सब एक समान है, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से। हम सभी एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं और हमें ऐसा करने का अधिकार है। मुझ में कुछ विशिष्ट नहीं है, पर संभव है कि आप मेरे अनुभवों से कुछ सीख सकें और मैं आपके अनुभवों से कुछ सीख सकता हूँ। हमारे जीवन का उद्देश्य सुखी होने के लिए है। हम आशा में जीते हैं जिसका अर्थ है कुछ अच्छे की उम्मीद रखना। और अब बढ़ते वैज्ञानिक निष्कर्ष हैं कि हमारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य हमारी चित्त की शांति पर निर्भर है। स्पष्ट रूप से तनाव हमारे स्वास्थ्य के लिए बुरा है।"

"वैज्ञानिक यह प्रमाण भी ढूँढ रहे हैं कि छोटे बच्चे बाधित करने की अपेक्षा सहायता की ओर अधिक प्रतिक्रिया देते हैं जो यह प्रकट करता है कि मूलभूत रूप से मानव स्वभाव स्नेही और सहायक होने का है। प्रेम हमें साथ लाता है क्रोध हमें अलग धकेलता है।"

परम पावन ने समझाया कि हम आज विश्व में जिन कई समस्याओं का सामना हम कर रहे हैं वे मूल्यों, नैतिक सिद्धांतों के अभाव के कारण हैं। उन्होंने भारतीय उदाहरण का अनुसरण करते हुए बिना किसी पक्षपात के सभी धार्मिक परंपराओं का सम्मान करते हुए इस प्रकार के मूल्यों को शिक्षा प्रणाली में निहित करने और एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण लेने की बात की। उन्होंने कहा कि अपने साथ साथ दूसरों का ध्यान रखते हुए अपने हितों को पूरा करने में ही बुद्धिमानी है। उन्होंने कहा कि अतीत में डेनिश लोग आत्मनिर्भर रहे होंगे, पर आज सम्पूर्ण विश्व अन्योन्याश्रित है। हम मात्र स्वयं के विषय में सोच नहीं सकते अपितु सभी ७ अरब मानव जाति के कल्याण पर विचार करना होगा।


"यदि हम २०वीं शताब्दी की ओर मुड़कर देखें ता कई अद्भुत विकास था, पर यह अभूतपूर्व रक्तपात का भी समय था। ऐसा अनुमान है कि २०० अरब लोग हिंसा में मारे गए। विश्व को बेहतर करने के लिए शिकायत पर्याप्त नहीं है, प्रार्थना पर्याप्त नहीं है, हमें एक व्यवस्थित रूप से क्रियान्वित करने की एक दीर्घकालिक दृष्टि की आवश्यकता है। यह उन पर निर्भर होगा जो अभी तक ३१ वर्ष की आयु तक के नहीं हैं। इसमें समय लगेगा, पर यदि हम अभी प्रयास करना प्रारंभ कर दें तो इस शताब्दी के अंत तक एक बेहतर विश्व बनाना संभव हो सकता है। मेरा मानना है कि यह करना सामान्य ज्ञान, सामान्य अनुभव और वैज्ञानिक समझ के आधार लोगों की समझ को बदलना संभव है।"

परम पावन ने अपना व्याख्यान इस आशा के साथ समाप्त िकया कि उनके श्रोता इस विषय पर सोचेगें और यदि उन्हें इस में कोई सार्थकता दिखाई दे तो उस पर आचरण करने का प्रयास करेंगे। दूसरी ओर यदि उन्हें लगा कि यह अवास्तविक था तो वे इसे भूल जाएँ। श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते समय वे निरंतर आ रही ब्रोशर और पुस्तकें, जो मंच के समक्ष उन्हें दी जा रही थीं, उन पर हस्ताक्षर किए। सराहना की करतल ध्वनि से विदा लेते हुए परम पावन ने कहा कि वे कल पुनः मिलने की आशा करते हैं जब वे 'चित्त शोधन के अष्ट पद' की व्याख्या करेंगे।

 

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