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क्वांटम भौतिकी और माध्यमक दार्शनिक दृष्टिकोण पर सम्मेलन - दिन २ १३/नवम्बर/२०१५

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जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली, भारत - १३ नवंबर २०१५ - जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय कन्वेंशन सेंटर में क्वांटम भौतिकी और माध्यमक दार्शनिक दृष्टिकोण पर सम्मेलन के दूसरे दिन की तैयारी करते हुए आज प्रातः परम पावन दलाई लामा से दो पुस्तकों के विमोचन करने का अनुरोध किया गया। पहली पुस्तक पिछले वर्ष दिवंगत हुए पूर्व विदेश सचिव ए पी वेंकटेश्वरन के प्रति श्रद्धांजलि और अनुस्मरण का एक संकलन था। अपने वक्तव्य में परम पावन ने कहा:


"मुझे उनके नाम के उच्चारण में कठिनाई होती है पर वेंकटेश्वरन एक अच्छे मित्र थे। वे ऐसे व्यक्ति थे जो मेरा बोझ हल्का कर सकते थे और वे मुझे इस तरह से समझाते कि मुझे प्रोत्साहन मिलता। वे एक कुशाग्र बुद्धि वाले अनोखे व्यक्ति थे। हाल के वर्षों में जब भी मैं बैंगलोर जाता, जहाँ वे रहते थे, हम मिलने का प्रयास करते। जैसा कि मैंने कुछ दिनों पूर्व पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम के बारे में कहा था, कि यद्यपि व्यक्ति हमारे साथ अब नहीं है, पर हमें उनकी भावना को बनाए रखने के लिए जो बन पड़े, करना चाहिए। यह पुस्तक पाठकों को वेंकटेश्वरन के बारे में और जीवन में उन्होंने जो उपलब्ध किया उसे और अधिक जानने में सहायक होगी।"

श्रीमती वेंकटेश्वरन ने परम पावन द्वारा पुस्तक के विमोचन किए जाने पर उनकी तथा उनकी बेटी द्वारा अनुभूत प्रसन्नता अभिव्यक्त की। उन्होंने कहा कि उनके दिवंगत पति परम पावन के साथ हुई उनकी प्रथम भेंट की एक कहानी सुनाया करते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि उनके भेंट के प्रारंभ से ही उनकी आपस में बनती थी और परम पावन की उस टिप्पणी ने उन्हें विशेष रूप से प्रभावित किया था जब उन्होंने कहाः

"मैं आपसे पहले मिला हूँ।"

दूसरी पुस्तक जिसके विमोचन हेतु परम पावन से अनुरोध किया गया था वह थी, 'चेंजस ऑन द रूफ ऑफ द वर्ल्ड - रिफ्लेक्शन्स ऑन टिब्बेट' जो कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पी एच डी तिब्बती छात्रों द्वारा अनुसंधान का एक संकलन था। अपने परिचय में पूर्व विदेश सचिव ललित मानसिंह ने कहा कि यह पुस्तक विश्व को यह जानकारी प्राप्त करने में सक्षम करेगी, कि तिब्बतियों ने क्या सहा है और सह रहे हैं। यह और स्पष्ट करेगा कि तिब्बत में चीनी अधिकारियों द्वारा किस प्रकार मानवाधिकारों की उपेक्षा हो रही है। उन्होंने कहा कि भारत तिब्बत के मुद्दे के समर्थन में और अधिक कर सकता था पर इस बात पर बल दिया कि पुस्तक स्पष्ट करती है कि आगामी पीढ़ियाँ इस झंडे को फहराती रहेंगी, जो इस मुद्दे को उस समय तक जीवित रखेंगी जब तक एक संतोषजनक समाधान नहीं मिल जाता।

अपने उत्तर में परम पावन ने उल्लेख किया कि अतीत के तिब्बत के दीर्घकालीन अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता और न ही उस अस्तित्व की सार्थक प्रकृति को।

"हमारी संस्कृति अहिंसक शांतिपूर्ण और करुणा पर आधारित है, वे सभी गुण जिनकी आवश्यकता आज विश्व को है। इन दिनों समूचे विश्व में तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रति रुचि है। तिब्बत में नालंदा परम्परा इस प्रकार फली फूली जैसी कहीं और न हुई थी। और तो और यह हमारी अपनी भोटी भाषा में फली फूली। आज, भोटी ऐसी भाषा है जिसमें नालंदा परम्परा सबसे सटीक रूप में व्यक्त की जा सकती है। यह सदियों से तिब्बत में स्थापित अध्ययन के परिश्रमसाध्य रूप से भी संबंधित है। उद्देश्य नैतिकता की स्थापना तथा चित्त में परिवर्तन लाना है।

"१९६० के दशक में हमने संयुक्त राष्ट्र से तिब्बत में जो हो रहा था उस पर एक पक्ष लेने की गुहार लगाई। पर जैसा कि नेहरू ने मुझसे कहा था हमारी गुहार का कोई प्रभाव न हुआ। उन्होंने सलाह दी कि तिब्बत के मुद्दे को सुरक्षित रखने के लिए अपने बच्चों को शिक्षित करना होगा। यह एक विवेकपूर्ण सलाह थी।

"९वीं शताब्दी में तिब्बत स्वतंत्र था और मंगोलियाई और चीनी साम्राज्य के साथ साथ उसकी अपनी स्वयं की सत्ता थी। आज भी हमारा संघर्ष विश्व भर में समर्थन को आकर्षित करता है। मैं ८० वर्ष का हूँ और मैं यह विचार रखना चाहूँगा कि जब मैं विदा लूँ तो मैं ऐसा इस विश्वास के साथ कर सकता हूँ कि युवा पीढ़ी हमारे मुद्दे को जीवित रखेगी।"


सम्मेलन पुनः प्रोफेसर सुंदर सारूकाई की प्रस्तुति से प्रारंभ हुआ जो नागार्जुन की 'मूलमध्यमकारिका ग्रंथ' के वेव पार्टिकल द्वैत से संबंध को लेकर था। उन्होंने उल्लेख किया कि परम पावन ने क्वांटम भौतिकी और नागार्जुन के विचारों में साम्यता के संबंध में उन्हें सूचित किया था, नागार्जुन उनके भी मार्गदर्शक थे। उन्होंने यह प्रश्न करते हुए कि "क्या यह एक कण है? क्या यह एक कण नहीं है? क्या यह एक कण हैं और एक कण नहीं भी हैं? अथवा यह एक कण नहीं भी हैं और न ही कण हीन भी हैं?" तर्क के शास्त्रीय चतुष्कोटि का भी उल्लेख किया। उन्होंने सुझाव दिया कि वेव- पार्टिकल विषय के दो भाग हैं: एक ज्ञान मीमांसा है जो माप की समस्याओं से संबंधित है, जबकि दूसरा तात्विक मीमांसा है जो ऐसा संदर्भ है जो उनके अनुसार नागार्जुन के विचारों से संबंधित है।

गदेन महाविहारीय विश्वविद्यालय के गेशे जंगछुब संज्ञे ने प्रतीत्य समुत्पाद पर अपनी प्रस्तुति रखी और उन्होंने कहा कि सभी वस्तुओं का यथार्थ है। उन्होंने धर्मों के हेतु, उसके अंगों और उसके मात्र ज्ञापित रूप के आधार पर प्रतीत्य समुत्पाद को व्याख्यायित किया। उन्होंने समाप्त करते हुए कहा कि प्रासंगिक माध्यमक मुख्य रूप से इस बात पर बल देता है कि वस्तुओं का लेश मात्र भी वस्तुनिष्ठ अस्तित्व नहीं होता तथा कर्म और उनके कर्ता केवल ज्ञापित रूप में मान्य होते हैं।


मध्याह्न के भोजन के पूर्व महन महाराज, जो एक गणितज्ञ और स्वामी हैं, ने बीजगणित ज्यामिति द्वैत पर एक गहन और उत्साहजनक विवरण दिया। उन्होंने ज़ोर दिया कि ज्यामिति, जिसका संबंध रिक्त स्थान से है और बीजगणित जो प्रकार्य तथा रिक्त स्थानों के कर्ताओं से संबंधित है, के बीच एक आधारभूत द्वैत है। उन्होंने बताया कि यह किस तरह समय की समस्या से संबंधित है। इसका संबंध जीव विज्ञान की समस्या और किस प्रकार हम मानव हमारे दृश्य क्षेत्र में जो है उसका समेकित विचार प्राप्त करते हैं, से भी है। उदाहरणार्थ उन्होंने सुझाया कि किस प्रकार एक कंप्यूटर इसे समय निर्धारित रूप से संभालता है, जबकि मनुष्य की आँख इसे स्थान निर्धारित रूप से संभालती है।

मध्याह्न भोजनोपरांत प्रोफेसर आर्थर ज़ाजोंक ने क्वांटम भौतिकी की प्रायोगिक मूलाधार के बारे में चर्चा की। उन्होंने कहा कि गेथे को उद्धृत करते हुए कहा कि 'भली प्रकार चिंतन की गई हर वस्तु हममें एक नया अंग खोलती है।' उन्होंने कहा कि शास्त्रीय भौतिकी में पर्यवेक्षक एक दर्शक है जिसे उपेक्षित किया जा सकता है। यद्यपि प्राथमिक क्वांटम प्रयोग जैसे ई पी आर, प्रसंगाधीन और क्वांटम आँकड़ों ने शास्त्रीय भौतिकी को अपदस्थ कर एक बुनियादी स्तर पर विश्व को एक अलग ढंग से समझने के लिए मार्ग प्रशस्त किया है। उन्होंने कहा डिलेड चोइस और क्वांटम इरेजडर प्रयोगों का वर्णन किया और समझाया कि वे किस प्रकार 'माप समस्या' और क्वांटम भौतिकी में पर्यवेक्षक की भूमिका के बदलती सराहना से संबंधित हैं।


सम्मेलन के अंत में, डॉ ब्रजेश कुमार ने मिशेल बिटबोल, ​सुंदर सारुकाई, मैथ्यू चन्द्रकुन्नेल, महन महाराज और आर्थर ज़ाजोंक ने विज्ञान के पक्ष में योगदान की समीक्षा की। गेशे ल्हकदोर ने बौद्ध विद्वानों के कथनों की समीक्षा की। उन्होंने उल्लेख किया कि विज्ञान और बौद्ध दर्शन दोनों में जो बात आम है वह यह कि, हम जो हम जानते हैं उसे बेहतर कर समस्याओं से बेहतर रूप से निपटने में सक्षम हो सकेंगे।

अपने समापन टिप्पणी में परम पावन ने बुद्ध की सलाह दोहराई कि उन्होंने जो कहा है उसे उसी रूप में न लें अपितु उसका परीक्षण करें। उन्होंने कहा कि प्रश्नों और जो समाधान वे देते हैं, उनके लिए शंका और संशय की आवश्यकता है। उन्होंने टिप्पणी की:

"२१वीं सदी में हमने जो तकनीकी प्रगति की है उससे हमारी भौतिक आराम में सुधार हो सकता है, पर इसकी कोई गारंटी नहीं है कि इससे हमें चित्त की शांति प्राप्त होगी। हमें सावधान रहना होगा कि ज्ञान के नए रूप हमारे क्रोध और भय का उपकरण नहीं बनते, और वे केवल हमारे विनाशकारी शक्ति में वृद्धि नहीं करते। हमें स्वयं को स्मरण दिलाने की आवश्यकता है कि हमारा भविष्य समूची मानवता पर निर्भर करता है।

"हमें प्राप्त हुए स्नेह के कारण हम जीवित रहते हैं। और वही हमें दूसरों प्रति स्नेह अभिव्यक्त करने में सक्षम करता है। क्रोध तथा भय हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है जबकि प्रमाण दिखाते हैं कि एक शांत चित्त हमारे स्वास्थ्य में योगदान देता है। यह सामान्य ज्ञान है कि सौहार्दता और विश्वास के बिना एक परिवार सुखी न होगा। यद्यपि यह भावना कि हमारी आधारभूत प्रकृति सकारात्मक है, आशा का एक स्रोत है।


"यदि हम वास्तव में प्रयास करें तो हम बेहतर विश्व के लिए परिवर्तन ला सकते हैं। इसको करने का उचित तरीका शिक्षा के माध्यम से है। और वह न केवल हमारे शारीरिक आराम की आवश्यकता को पहचानेगा, पर यह कि हमें धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की भावना, सार्वभौमिक मानवीय मूल्य और जिसे मैं भावनात्मक स्वास्थ्य कहता हूँ, की आवश्यकता होती है।

"क्या मैं सुझा सकता हूँ कि आप अगले वर्ष चित्त और भावनाओं पर केन्द्रित एक सम्मेलन बुलाएँ जिसमें तंत्रिका जीव वैज्ञानिक और मस्तिष्क विशेषज्ञों को शामिल किया जाए?

"इस समय जब हम विश्व में हो रही दुखभरी घटनाओं को देखते हैं तो रोने और प्रार्थना से कुछ बहुत अधिक प्राप्त न होगा। इन समस्याओं में से अधिकांश मानव निर्मित थीं इसलिए स्वाभाविक रूप से उन्हें मानव समाधान की आवश्यकता है। विश्वविद्यालय, उनके अधिकारियों और कर्मचारियों आयोजकों और स्वयंसेवकों को हमें यह महान अवसर देने के लिए धन्यवाद देने के अतिरिक्त बस मुझे इतना ही कहना है। धन्यवाद।"

प्रोफेसर रेणुका सिंह ने धन्यवाद के औपचारिक शब्द प्रस्तुत किए। भोट भाषा में संबोधित करते हुए परम पावन ने प्रतिभागी तिब्बती विद्वानों के प्रति प्रोत्साहन और प्रशंसा के शब्द अभिव्यक्त किए।

कल परम पावन फगवाड़ा में लवली प्रोफेशनल विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाग लेने के लिए पंजाब की यात्रा करेंगे।
 

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