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ग्यूमे में दीर्घायु समर्पण और सेरा लाची के लिए प्रस्थान १३/दिसम्बर/२०१५

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बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - १३ दिसंबर २०१५ - आज प्रातः जब परम पावन ने ग्यूमे तांत्रिक महाविद्यालय मंदिर में आसन ग्रहण किया तो गणमान्य व्यक्तियों के लिए किताबों के ढेर दिए गए। उनमें दलाई लामाओं के संग्रह शामिल थे जो कि ग्यूमे के दार्शनिक अध्ययन के नए कार्यक्रम बनने वाले हैं। एक महाविहार के प्रतिनिधि ने बताया कि एक भावना है कि इन कार्यों को उपेक्षित कर दिया गया था, कि ग्यूमे का गेदुन डुब का निकट का संबंध था और यह दलाई लामा की उपलब्धियों के लिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि होगी। १३ ग्रंथों के सेट का भी विमोचन किया गया इस कामना के साथ कि परम पावन दीर्घायु हों और जे चोंखापा की शिक्षाएँ विश्व में फलें फूलें।


ग्यूमे के मंत्राचार्य ने दीर्घायु समर्पण का नेतृत्व किया। उपाध्याय ने स्तवन और अनुरोधों का पाठ किया। उन्होंने परम पावन के नेतृत्व के लिए तिब्बती लोगों की ओर से आभार व्यक्त किया तथा उनकी सलाह को सुनने का वचन देते हुए जिस तरह एक बच्चा या बच्ची अपनी माँ को सुनता है, उन्होंने उनसे सदैव बने रहने का अनुरोध किया। स्थानीय लोगों की एक लंबी कतार समर्पण की वस्तुएँ लेकर मंदिर के अंदर आईं। परम पावन ने उत्तर दियाः
 
"आज ग्यूमे तांत्रिक महाविद्यालय ने महान श्रद्धा के मेरे लिए दीर्घायु समर्पण किया है। आप सब ने यहाँ और तिब्बत में लोगों ने अटूट विश्वास व्यक्त किया है। मेरी ओर से मैं भाग्यशाली हूँ कि मैं गुह्यसमाज अभिषेक देने में सक्षम हुआ हूँ और आठ आवश्यक ग्रंथों की शिक्षा दे सका हूँ। उपाध्याय, जो एक अच्छे भिक्षु हैं जिन्हें मैं वर्षों से जानता हूँ, ने अच्छी तरह से स्तवन और अनुरोधों का पाठ किया।

"मैं चाहता हूँ कि आप जानें कि जब मैंने चरी णचोग रङडोल की प्रतिज्ञाओं को जाना कि स्थान स्थान पर घोड़े की सवारी करते हुए न जाना, केवल शाकाहारी खाना और प्रवचन के लिए कोई राशि न लेना तो मैंने भी निश्चय कर लिया कि मैं प्रवचन के लिए कुछ न लूँगा। आज जो समर्पण हुए हैं वे कल लौटा दिए जाएँगे। इन भेंटों से अधिक महत्वपूर्ण हैं कि जो शिक्षा दी गई है उसका अभ्यास कर वज्राचार्य को प्रसन्न किया जाए।

"कई अनुष्ठान करते हुए पर स्वयं कोई अभ्यास न करना बहुत प्रभावी नहीं होगा। जब मिलारेपा की बहन ने उससे शिकायत की कि अन्य शिक्षक धनवान थे पर उसके पास उसे देने के लिए कुछ न था, उन्होंने उत्तर दिया कि वह पहले से ही कि अष्ट लौकिक धर्मों को त्याग चुके हैं। कभी कभी ऐसा होता है कि लोग जो एक साधारण भिक्षु के रूप में प्रारंभ करते हैं, जब शिष्य एकत्रित कर लेते हैं तो अहं से फूल जाते हैं, विशेष रूप से पश्चिम में। अष्ट लौकिक धर्मों से स्वयं को बचाने हेतु सतर्क रहें।


"उपाध्याय ने मुझसे कहा कि वे एक अधिक छोटा आत्म- उत्पाद अनुष्ठान चाहते हैं। आप उसे लगभग आधा कम कर सकते हैं यदि अमूल्य भवन के उत्पाद की स्थिति से न जाएँ। जो भी हो मैंने उनसे कहा कि मैं उस ओर देखूँगा। महत्वपूर्ण बात तीन कायों को मार्ग पर लाना है, यही उत्पाद चरण का मूल है, मंत्र का पाठ नहीं। एक बार आप तीन कायों को मार्ग पर लाने का कौशल जान लें तो आप निष्पन्न चरण के अभ्यासों में संलग्न हो सकते हैं।

"जब आप एकांतवास में हैं तो आम मार्ग के महत्व, गुरु योग का अभ्यास और मार्ग के तीन प्रमुख अंग पर चिंतन का स्मरण करें। एक ही दिन में अनुभूति की प्राप्ति कठिन होगी, परन्तु हफ्तों और महीनों में आपके चित्त में परिवर्तन होगा।

"हमने आज दलाई लामाओं के इन किताबों के सेट का विमोचन किया है। यद्यपि आजकल ६वें दलाई लामा छंगयंग ज्ञाछो के गीत लोकप्रिय हैं, दूसरे और तीसरे के लेखन अद्भुत हैं। और फिर पाँचवें है .....

"मैं आप सबको धन्यवाद देना चाहूँगा, विशेषकर मंत्राचार्य का, जिन्होंने बहुत अच्छी तरह वज्रभैरव का नाद प्रस्तुत किया तथा स्पष्ट रूप से मुद्राएँ प्रदर्शित की हैं। और अब कुछ स्थानीय लोग शास्त्रार्थ करने वाले हैं।"


स्थानीय आम लोगों का एक दल, युवा तथा वयोवृद्ध, पुरुष व महिलाएँ, यद्यपि अधिकांश रूप से महिलाएँ थीं, ने फिर शरणगमन की प्रस्तुति की। जैसे ही कार्यक्रमों का समापन होने को आया दुभाषियों का एक दल, जिन्होंने प्रवचनों को कई विदेशी भाषाओं में प्रस्तुत किया था, सिंहासन के निकट आए। परम पावन ने मध्याह्न का भोजन वरिष्ठ लामाओं के साथ किया और उसके पश्चात तत्काल नया ग्यूमे एकांतवास केन्द्र मियो गोमडुब लिंग देखने गए। भवन को औपचारिक रूप से खोलने के लिए उन्होंने बाहर के द्वार पर फीते को काटा, जो तिब्बत में एकांतवास केन्द्र की तरह ३२ साधकों को समायोजित कर सकता है।

परम पावन हुन्सुर से बाइलाकुप्पे के लिए रवाना हुए और नगर के बाहरी क्षेत्र में करुणा गृह देखने के लिए रुके, जो खुबे रिनपोछे द्वारा विकलांग बच्चों की देखरेख के लिए स्थापित किया गया है। इस समय विभिन्न प्रकार की विकलांगता लिए हुए २८ बच्चों की देख रेख सुन्दर घरों में ३० कर्मचारियों द्वारा की जा रही है। परम पावन ने टिप्पणी की कि हम प्रायः बच्चों को शिक्षा प्रदान करने की तात्कालिकता पर बल देते हैं पर ऐसे विशेष आवश्यकता वाले बच्चों पर भी विचार किया जाना चाहिए। वे यह देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए कि परियोजना इस सुंदर रूप में साकार हुई है और उन्होंने इतालवी प्रायोजकों और इतालवी डिज़ाइनकारों के प्रति अपनी सराहना व्यक्त की।

परम पावन जितने अधिक बाइलाकुप्पे के निकट आए और अधिक संख्या में तिब्बती, उनके जाते समय अभिनन्दन के लिए मार्ग पर पंक्तिबद्ध रूप से खड़े थे। उनमें स्कूल की वर्दी में बच्चे, सैकड़ों भिक्षु और भिक्षुणियाँ, साथ ही साधारण पुरुष व महिलाएँ अपने सर्वश्रेष्ठ वस्त्रों में हाथों में पुष्प और धूप लिए शामिल थे। सेरा लाची महाविहार पहुँचने पर बाहर प्रांगण में एक पारंपरिक स्वागत प्रस्तुत करते वयोवृद्ध तिब्बती थे।

भारतीय पत्रकारों के एक जमघट ने परम पावन को महाविहार की सीढ़ियों पर रोक लिया जो उनसे आईएसआईएस के प्रति उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए इच्छुक थे। उन्होंने अपने लम्बे समय से चली आ रही स्थिति की पुष्टि की कि हिंसक स्थितियाँ अहिंसक समाधानों से बेहतर रूप में संबोधित की जा सकती हैं। उन्होंने उनसे यह भी पूछा कि वह देश में असहिष्णुता के लहर की चिंताओं को लेकर क्या कहना चाहेंगे। उन्होंने उत्तर दिया कि भारत ने अधिकांश रूप में एक हज़ार वर्षों से भी अधिक अहिंसा के आधारभूत सिद्धांत पर रहकर धार्मिक सद्भाव की एक सशक्त भावना को बनाए रखा है। उन्होंने इस ओर भी ध्यानाकर्षित किया कि स्वतंत्रता के बाद से, उसके अधिकांश पड़ोसियों की तुलना में भारत अब तक सबसे अधिक स्थिर, शांतिपूर्ण देश रहा है।

मंदिर के अंदर परम पावन ने भिक्षुओं और आम लोगों के बीच पुराने मित्रों का अभिनन्दन किया। वे माइंड एंड लाइफ संस्था के प्रतिनिधियों से मिल कर स्पष्ट रूप से प्रसन्न जान पड़े जो यहाँ उनकी ३०वीं बैठक के लिए आए हैं। जब औपचारिक चाय और मीठे चावल परोसे गए तो वे बैठे रहे और सभा को संबोधित किया।

"यह लमरिम प्रवचनों का तीसरा तथा अंतिम भाग होगा जो मैंने तीन वर्ष पूर्व प्रारंभ किया था" उन्होंने समझाया। "मैं टाशी ल्हुन्पो महाविहार में एक नए सभागार का उद्घाटन करूँगा। हमने यहाँ सेरा में माइंड एंड लाइफ सम्मेलन आयोजित करने का भी निश्चय किया जैसा हमने डेपुंग में पहले किया था। वैज्ञानिक सहमत हुए और यही हम आने वाले चार दिनों में करने वाले हैं।"

सभी को "शुभ रात्रि" कहते हुए परम पावन ऊपर अपने कक्ष में विश्राम के लिए चले गए। 

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