परम पावन 14 वें दलाई लामा
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ग्यूमे में वास्तविक गुह्यसमाज अभिषेक का प्रदत्त किया जाना १२/दिसम्बर/२०१५

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हुन्सुर, कर्नाटक, भारत - १२ दिसंबर २०१५ - परम पावन दलाई लामा का दिन आज और भी शीघ्र प्रारंभ हुआ। वे ग्यूमें मंदिर में प्रातः ६ बजे उतरे और पुनः ग्यूमे भिक्षुओं और अन्य वरिष्ठ लामाओं के साथ गुह्यसमाज अभिषेक के उपक्रमात्मक अनुष्ठानों करने हेतु रेत मंडल के समक्ष बैठे। ग्यूमे भिक्षु ऊर्जावान दृढ़ता के साथ सस्वर पाठ करते हैं जिसमें नियमित रूप ध्यान के लिए स्वर मद्धम होता है और अनुष्ठान प्रातः ९:३० तक समाप्त हुआ।


परम पावन ने एक लघु अंतराल लिया। जब वह लौटे तो उन्होंने सिंहासन पर आसन ग्रहण किया और भिक्षुओं ने सामूहिक रूप से 'जेचुन शेरब सेंगे की स्तुति' का पाठ प्रारंभ किया। मंडल मंडप के पीछे दीवार पर चार शिष्यों से घिरे उन्हें दर्शाने वाला एक विशाल थंका दीवार पर लटका हुआ है। प्रस्तावना के पूर्ण होते हुए परम पावन ने प्रवचन प्रारंभ किया।

"'सामान्य गुह्य तंत्र' के एक पद में कहा गया है कि कोई जो तंत्र में प्रवेश करना चाहता वह ऐसा हो जिसने बुद्धधर्म में प्रवेश किया हो। उसे संघ का सदस्य होना चाहिए। उनकी गणना करने के विविध रूप हैं पर मुझे लगता है कि अभ्याकर ने लिखा है कि भिक्षु तथा भिक्षुणियाँ हैं और आम पुरुष तथा आम महिलाएँ हैं जिन्होंने संवर धारण किया है। भिक्षुओं के उपासक और पूर्ण प्रव्रज्या के संवर हैं और अच्छा होगा यदि साधारण लोग भी संवर धारण करें। आम लोगों के बीच जिन्होंने संवर धारण किया है उनमें से कुछ ने एक और कुछ ने पाँचों धारण किए हैं। ज्ञलवा डोमतोनपा ने ब्रह्मचर्य का एक अतिरिक्त व्रत लिया जो यदि आप कर सकें तो उत्कृष्ट है। एक आम व्रत-धारक के लिए तिब्बती शब्द में, पहले भाग का संदर्भ पुण्य से है जो वास्तविक निरोध की ओर ले जाता है। दूसरे शब्दों में गलत कार्य से रोकना मुक्ति का मार्ग है। यह करने के लिए कुछ अच्छा है, पर यह अनिवार्य नहीं है।

"हाल ही में नासिक में कुंभ मेले में भाग लेने के लिए, मैं एक स्वामी से मिला जिन्हें मैं जानता हूँ, एक विद्वान व्यक्ति जो नागार्जुन के 'मूलमध्यमकारिका' से परिचित है। उन्होंने हिंदू परंपरा में व्रत के बारे में बताया कि जो व्यक्ति उनके आश्रम में प्रवेश करते हैं वे व्रतों को लेने के बाद ऐसा करते हैं।

"यहाँ हम हत्या, चोरी, झूठ या काम मिथ्याचार, जो किसी अन्य के साथी के साथ यौन संबंध रखना जो कि कठिनाइयों की ओर ले जा सकता है, के बारे में बात कर रहे है। यदि आप नशे में हों तो ये व्रत संकट में पड़ सकते हैं अतः शराब से भी बचना बेहतर है।


"'सामान्य गुह्य तंत्र' में आता है कि एक शिष्य को बुद्धिमान तथा महायान का एक अनुयायी होना चाहिए। तुम जो भी व्रत लो उन्हें त्रिरत्न में शरण लेने के आधार पर होना चाहिए। धर्म के अभ्यास के कारण परिवर्तन अचानक नहीं होता अपितु धैर्य व दृढ़ता के साथ बुद्ध को एक शिक्षक के रूप में और संघ को मार्ग पर सहायक साथियों के रूप में देखने से होता है। आप जितने व्रतों को धारण करने का निश्चय करें कृपया आश्वासित हों कि आपने उन्हें लिया है और संघ के एक सदस्य बन गए हैं।"

इसमें से अधिकांश सुझाव तिब्बत से आए तिब्बतियों की ओर प्रेरित थे जिनके लिए यह सुनने का अवसर दुर्लभ हो सकता है। परम पावन ने समझाया कि जब अधिक समय होता तो यह भी प्रथागत है कि अभिषेक देने के पूर्व 'गुरु पर पचास पद,' का पाठ किया जाए क्योंकि गुरु पर निर्भर रहना मार्ग का मूल है 'बोधिसत्व संवर पर बीस पद' और एक ग्रंथ जिसमें मूल और माध्यमिक तंत्र की रूपरेखा है।

उन्होंने अतीश के 'बोधि पथ प्रदीप' के ग्रंथ का उल्लेख किया जो स्पष्ट रूप से जंगछुब ओ के आग्रह पर तिब्बतियों के लिए लिखा गया था। इसमें अतीश मार्ग के निम्नलिखित चरणों का पालन करने और तंत्र में प्रवेश करने के विषय में लिखते हैं। यह एक ऐसा रूप है जो सभी चार तिब्बती बौद्ध परंपराओं में परिलक्षित होता है। यह लोंगछेनपा के ‘चित्त विश्रान्त’ और काग्यू में 'मुक्तिरत्नलंकार' है। सक्या परंपरा में इसी प्रकार के रूपक पालन करते हैं जब वे 'मार्ग और निष्पत्ति' के संदर्भ में तीन दृष्टियों की व्याख्या करते हैं।

उन्होंने कहा कि आप शून्यता की कुछ समझ के बिना तांत्रिक अभ्यास में प्रवेश नहीं कर सकते। निश्चित रूप से क्लेशों और संज्ञानात्मक आवरणों पर काबू पाने के लिए शून्यता और बोधिचित्त की समझ की आवश्यकता है। चन्द्रकीर्ति ने इस संदर्भ में अपने 'चतुःशतक' में लिखा और चन्द्रकीर्ति ने भी अपने 'मध्यमकावतार और ‘प्रसन्नपद’ में लिखा है। ये पढ़ने के लिए आवश्यक ग्रंथ हैं।


परम पावन ने टिप्पणी की कि यद्यपि भिक्षुणियाँ दर्शन का अध्ययन नहीं करती थीं पर अब २० वे वर्षों से अध्ययन कर रही हैं। उन्होंने कहा कि यह निर्णय लिया गया है कि आगामी वर्ष जिन्होंने उन्हें अर्जित किया है उन्हें गेशे मा की उपाधि से सम्मानित किया जाएगा। वे आशा रखते हैं कि और अधिक साधारण महिलाएँ तर्क और दर्शन का अध्ययन करें और प्रोफेसर भी बनें। उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म तिब्बत के कोने-कोने में फैला है पर इसके बावजूद अधिकांश लोग शिक्षित नहीं थे। उन्होंने कहा कि उन्हें यह सुनकर संतोष होता है कि तिब्बत में अधिक से अधिक साधारण लोग अध्ययन में रुचि ले रहे हैं।

"हमें धर्म की वास्तविक समझ के साथ २१वीं सदी का बौद्ध होना है। एक बार आपकी समझ इस तरह की हो जाए तो आप भी दूसरों को सुधारने की स्थिति में हो जाएँगे। सीखने की प्रक्रिया चिंतन और विश्वास विकसित करने और उसके बाद जो आपने समझा है उससे चित्त को भली भाँति परिचित करना महत्वपूर्ण है। जहाँ तक बोधिचित्त का संबंध है, वहाँ शांतिदेव के 'बोधिसत्वचर्यावतार' से बेहतर कोई ग्रंथ नहीं और अध्याय ८ तथा ६ से प्रारंभ करना अच्छा है। इसी तरह नागार्जुन का 'मूलप्रज्ञा’ का २६वां अध्याय समझाता है कि किस प्रकार अज्ञान के कारण आप पुनर्भव की स्थिति में आते हैं, जबकि अध्याय १८ स्पष्ट करता है कि किस तरह प्रतीत्य समुत्पाद की समझ उस अज्ञान का प्रतिकार करती है।"

परम पावन ने फिर अभिषेक देने की प्रक्रिया प्रारंभ की और मध्याह्न भोजन से पहले प्रारंभिक चरणों को सम्पन्न किया।

 
जब सब पुनः लौटे तो परम पावन ने टिप्पणी की , कि शांतिदेव कहते हैं कि प्रबुद्धता में अनगिनत कल्पों तक प्रशिक्षित होने के पश्चात सभी बुद्धों ने देखा है और सहमति जताई है कि सबसे अधिक लाभकारी चित्त बोधिचित्त है। उन्होंने कहा कि एक आम सांसारिक दृष्टिकोण से भी यह स्पष्ट है कि वे लोग जिनके मन में दूसरों के लिए एक परोपकारी चिंता है वे अधिक सुखी जीवन जीते हैं। दूसरी ओर, आधुनिक शिक्षा हमें घृणा, संदेह और लोभ का मुकाबला करने में अधिक सहायक नहीं है। जो कमी दिखाई पड़ रही है वह सौहार्दता तथा परोपकारी चित्त है। उन्होंने अपने श्रोताओं से बोधिचित्त, जो स्वभाव सत्ता न रखने वाली शून्यता से समर्थित है, के लाभ पर चिंतन करने के लिए कहा।

तत्पश्चात परम पावन ने पूर्ण वास्तविक गुह्यसमाज का अभिषेक देना प्रारंभ किया। जब उन्होंने समाप्त किया तो उन्होंने घोषित किया कि एक समापन भेंट समर्पण होगा और उल्लेख किया कि आज १०वें महीने के ३०वें दिन १३वें दलाई लामा देहान्त की पुण्य तिथि है।

जब परम पावन वहाँ से चलने वाले थे तो उन्होंने वहाँ उपस्थित सभी लोगों को सलाह दी कि वे रेत मंडल को देखें। सैकड़ों भिक्षु मैत्री भाव से सबसे पहले मंदिर के कोने में मंडल मंडप में पहुँचने के लिए एक साथ आगे आए और हँसी तथा खिलखिलाहट से बाहर तितर बितर हो गए।

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