परम पावन 14 वें दलाई लामा
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दीर्घायु अभिषेक और उत्तरी अमेरिका द्वारा परम पावन दलाई लामा के प्रति आभार में दीर्घायु समर्पण ११/जुलाई/२०१५

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न्यूयार्क, संयुक्त राज्य अमेरिका, १० जुलाई २०१५- परम पावन दलाई लामा जब आज प्रातः जविट्स कन्वेंशन सेंटर के लिए हडसन नदी के बगल से होते गुज़रे तो ऊपर नीले नभ में उनके दीर्घायु की कामना करते हुए पीछे लटके एक बैनर के साथ एक हल्का विमान उड़ रहा था। उन्होंने आसन ग्रहण करने में और दीर्घायु अभिषेक हेतु प्रारंभिक अनुष्ठानों को प्रारंभ करने में किंचित भी विलम्ब न किया।


"आज मैं कल के पाठ का अनुशीलन करूँगा और किस प्रकार अभ्यास किया जाए उस पर बात करूँगा।" उन्होंने कहा। "सबसे प्रथम हम सबको एक अच्छी प्रेरणा रखनी होगी, त्रिरत्न में शरणगमन करना होगा और बोधिचित्तोत्पाद करना होगा। न्यूयॉर्क के इस शहर में मानव सत्व हैं, पर अन्य सत्व भी हैं जो हमारे लिए अदृश्य हैं। वे सब सुख की कामना करते हैं और उनमें बुद्ध प्रकृति होने के कारण, वे सब बराबर हैं। यह शिक्षक की प्रथा है कि वह शिक्षण के क्षेत्र में उन सबको सम्मिलित करे।

"हम यहाँ बुद्ध के शिक्षण का अध्ययन करने में लगे हुए हैं। चाहे हम परम्परागत बौद्ध पृष्ठभूमि से आते हों या बौद्ध धर्म के लिए अपेक्षाकृत नए हों, बुद्ध ने सुख की प्राप्ति में प्रेम और करुणा की भूमिका पर बल दिया। उन्होंने प्रतीत्य समुत्पाद के संदर्भ में प्रेम व करुणा का समर्थन किया। अपनी 'मूलमध्यमकारिका' के २७वें अध्याय में नागार्जुन करुणा और सही मार्ग के शिक्षण के लिए बुद्ध के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं।"

परम पावन ने टिप्पणी की, कि वास्तविकता के कई विकृत विचार हैं और उन्हें सम्यक् दृष्टि द्वारा ही ठीक किया जा सकता है। सभी धर्मों के आंतरिक अस्तित्व की विकृत ग्राह्यता पर काबू पाने के लिए हमें शून्यता की सम्यक् दृष्टि की समझ का उत्पाद करना होगा। नागार्जुन ने सिखाया कि वास्तविकता का सही दृष्टिकोण प्रतीत्य समुत्पाद है। सुख का अनुभव करने में ये कारणों तथा परिस्थितियों में हैं। सभी क्लेशों के मूल में आधारभूत अज्ञान है। परम पावन ने कहा कि ऐसा कोई उदाहरण नहीं जब कि ऐसा न हो। और अज्ञान जो सभी क्लेशों में व्याप्त है, जो आंतरिक अस्तित्व के प्रति ग्राह्यता रखता है, वह नागार्जुन द्वारा 'शून्यता सप्तति' में उल्लेखित है।

परम पावन ने कमलशील के ‘भावना क्रम’ का पाठ जारी रखा। जब उन्होंने उसे समाप्त किया तो उन्होंने अध्ययन तथा बौद्ध दर्शन की चार परम्पराओं से परिचित होकर २१वीं शताब्दी का बौद्ध बनने की आवश्यकता पर बात की।

 
"अपने आपको बौद्ध कहना मात्र इसलिए कि आपके माता-पिता बौद्ध थे, पर्याप्त नहीं है। जिस प्रकार हम एक घोड़े को प्रशिक्षित करने की बात करते हैं, उसी तरह हमें अपने चित्त को भी प्रशिक्षित करना है। निर्वासित तिब्बतियों को मैं यही करने के लिए प्रोत्साहित करता रहा हूँ और मैं आशा करता हूँ कि जब हम तिब्बत लौटेंगे तो हम वहाँ भी यह कर सकेंगे।"

परम पावन ने अध्ययन के महत्व पर जे चोंखापा और डोमतोनपा, दोनों को उद्धृत किया और कहा कि बौद्ध शिक्षाओं के लिए वे यह दृष्टिकोण अपनाते हैं। उन्होंने कहाः

"मैं बहुत कुछ पढ़ता हूँ और अध्ययन करने का प्रयास बनाए रखता हूँ। मैं महान भारतीय आचार्यों को और अधिक पढ़ना चाहता हूँ। जब मैं पढ़ता हूँ तो अपने आपसे प्रश्न करता हूँ कि वह क्या बताने का प्रयास कर रहे हैं? जो वह कह रहे हैं उसका कारण क्या है? जब हम तिब्बत में थे तो वहाँ गोमंग से एक मंगोलियाई विद्वान, काका तेनपा थे, जो इस बात के लिए जाने जाते थे कि कभी कभी वे अच्छी तरह से समझने के लिए एक पृष्ठ को पढ़ने में घंटों लगा देते थे।"

परम पावन ने श्वेत तारा अभिषेक प्रदान करने से पूर्व बोधिचित्तोत्पाद के लिए एक सादे अनुष्ठान हेतु १५,००० सशक्त जनसमुदाय का नेतृत्व किया। उन्होंने उल्लेख किया कि तिब्बत में ल्हेचुन रिनपोछे उनके लिए श्वेत तारा पर आधारित दीर्घायु अनुष्ठान का संचालन कर रहे थे, जब उन्हें तारा की भौंहों से एक प्रकाश किरण निकलने की प्रबल दृष्टि प्राप्त हुई। उन्होंने परम पावन को आनन्द पूर्वक बताया कि यह संकेत था कि वे दीर्घायु होंगे। परम पावन ने यह भी सूचित किया कि हाल ही में एक पारम्परिक चीनी चिकित्सक ने उनकी जांच की थी और घोषित किया कि उनके विचार से वे १०० वर्षों तक जीवित रह सकते हैं।


जब उन्होंने श्वेत तारा अभिषेक प्रदान करना प्रारंभ किया, तब परम पावन ने कहा कि यह उन्हें ल्हेचुन रिनपोछे से प्राप्त हुई थी, साथ ही कई अवसरों पर तगडग रिनपोछे और लिंग रिनपोछे से प्राप्त हुई। उन्होंने कहा कि उन्होंने एकांतवास किया है और प्रतिदिन साधना का पाठ करते हैं। एक बार जब अभिषेक पूर्ण हो गया तो नमज्ञल विहार के भिक्षुओं ने उत्तर अमेरिकी तिब्बती एसोसिएशन और हिमालय बौद्ध, मंगोलियाई और रूसी समुदायों की ओर से दीर्घायु समर्पण का संचालन किया।

अंत में अपने धन्यवाद ज्ञापन के शब्दों में उत्तर अमेरिकी के तिब्बती प्रतिनिधि टाशी नमज्ञल ने परम पावन को समूचे विश्व में सम्मान के केन्द्र के रूप में वर्णित किया।

"आप दूसरों की सहायतार्थ विश्व में प्रकट हुए हैं। निर्वासन में लगभग ६० वर्षों से आपने हमारे स्तर को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया है जिससे आज तिब्बती भाषा और संस्कृति सशक्त बनी हुई है।"

परम पावन ने उत्तर दियाः

"आज आप सभी ने अपने हृदय की गहराइयों से यह दीर्घायु समारोह समर्पित किया है। आपने कठोर परिश्रम करने का वादा किया है और मैं भी अपने निरंतर प्रयास के उद्देश्य को दृढ़ करता हूँ। तिब्बती लोगों के साथ मैं एक प्रबल कार्मिक संबंध का अनुभव करता हूँ और तिब्बतियों का हित बुद्धधर्म की निरंतरता से सम्बद्धित है। हो सकता है कि भारत वह स्थान है जहाँ बौद्ध धर्म का जन्म और पोषण हुआ, पर उससे जुड़े स्थान जैसे नालंदा, अब खंडहर हैं। आज बौद्ध शिक्षाओं का पूरा क्षेत्र केवल तिब्बतियों के पास ही उपलब्ध है और मैं इस परम्परा के संरक्षण और इसे कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध हूँ।

"मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि मेरे समक्ष एक सच्चा चेहरा न रखें और मेरी पीठ पीछे पाखंड भरा व्यवहार न करें। निस्सन्देह लोगों को अपनी राय बनाने की स्वतंत्रता है, पर वह तथ्य पर स्थापित की जानी चाहिए, केवल ऐसे ही नहीं। अतीत में, दुर्भाग्य से तिब्बत राजनीतिक रूप से खंडित हो गया, पर फिर भी लोगों ने हमारी आम भाषा, संस्कृति और परम्पराओं से एकता और एक तिब्बती होने की भावना निकाली।


"आपने मुझसे कुछ करने के लिए कहा है और मैं अब बदले में आपसे कुछ करने के लिए कहता हूँ। आपने शुगदेन समस्या की ओर संकेत किया। यह एक नई कहानी नहीं है। यह ५वें दलाई लामा तक जाती है। उस समय अशुभ घटनाएँ घटी जिस प्रकार १३वें दलाई लामा के समय में पुनः हुई थी। संबंधित आत्मा स्वयं को 'गेलुगपा की दुष्ट आत्मा' के रूप में वर्णित करती है।

"मुझे चिंता नहीं कि ये प्रदर्शनकारी बाहर मेरे विषय में क्या कहते हैं, जैसा मैंने कहीं और कहा है वे अपने बोलने की स्वतंत्रता के अधिकार का अभ्यास कर रहे हैं, पर मैं भी ऐसा कर सकता हूँ।

जब मैंने अभ्यास किया था तब मैं दोलज्ञल को एक विशेष गेलुग रक्षक के रूप में मानता था, यद्यपि लिंग रिनपोछे को इससे कुछ लेना देना न था। यहाँ तक कि ठिजंग रिनपोछे और ज़ेमे रिनपोछे उसे केवल एक लौकिक आत्मा के रूप में मानते रहे। 'जीवन-सौंपने' के समारोह के दौरान आत्मा योगी के प्रति समर्पित होती है न कि इसके विपरीत। गेलुग अंतर्राष्ट्रीय एसोसिएशन ने इस बारे में अनुसंधान की एक पुस्तक निकाली है और आपको इसे पढ़ना चाहिए। इसे शीघ्र ही अंग्रेजी में उपलब्ध कराई जाएगी।

"मैं एक लौकिक गैर सांप्रदायिक दृष्टिकोण का पालन करता हूँ। मैं चर्च, यहूदियों के पूजा स्थल, मस्जिद, गुरुद्वारे और मंदिर जाता हूँ। मैं सभी धार्मिक परंपराओं के बीच सद्भाव को बढ़ावा देता हूँ क्योंकि हम सबको साथ साथ रहना है। यहाँ तक ​​कि बुद्ध ने भी िकसी को अपने विचारों के अनुसार परिवर्तित नहीं किया। हमें अपने बीच सांप्रदायिक भावनाओं को नहीं पालना चाहिए। यदि आप पढ़ें कि १३वें दलाई लामा के देहावसान के बाद क्या हुआ, तो दोलज्ञल से संबंधित बहुत अधिक सांप्रदायिक गतिविधियाँ हुईं, जिसमें गुरु रिनपोछे की मूर्ति को अपवित्र करना भी शामिल था।

"जे चोंखापा की परम्परा वास्तव में विशुद्ध है। इसे एक भूत द्वारा संरक्षित करने की आवश्यकता नहीं है। उनकी रचनाएँ नागार्जुन के समकक्ष हैं और उनके शिष्य और उनका परिपक्व दृष्टिकोण वास्तव में प्रभावशाली है। उनकी परम्परा को एक भूत की सुरक्षा पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं है। उनकी रचनाओं के १८ खंड स्वयं इसका प्रमाण हैं।

"इस बीच ये शुगदेन प्रदर्शनकारी हमारी दया के पात्र हैं। उन्हें पता नहीं कि वे क्या बोल रहे हैं। वे इस प्रकार का क्रोधित चेहरा दिखाते हैं। वे वास्तविक स्थिति को समझ नहीं पाते, पर उनसे परेशान न हों।"


परम पावन और १५,००० की संख्या में दर्शक, जो तिब्बत या भारत के बाहर तिब्बतियों की सबसे बड़ी सभा थी, ने मध्याह्न के भोजन के लिए अंतराल लिया। इसके पश्चात परम पावन के जन्मदिन का भव्य समारोह प्रारंभ हुआ जब हॉल की बगल में एक दूसरे मंच पर तिब्बती बच्चों के वृन्द गान समूह ने अमेरिका, कनाडा और तिब्बती राष्ट्रगीत गाया। परम पावन को एक बड़ा जन्मदिन का केक प्रस्तुत किया गया और सभी ने 'हैप्पी बर्थडे' गाया। अपने परिचय में, उत्तरी अमेरिका के तिब्बती प्रतिनिधि नोरबू छेरिंग, ने परम पावन को मनुष्य रूप में अवलोकितेश्वर कह संबोधित किया तथा घोषणा की, कि सीटीए ने सभी तिब्बतियों की ओर से यह वर्ष उनके प्रति आभार का वर्ष घोषित किया था।

उत्तरी अमेरिका में परम पावन के प्रतिनिधि, केदोर ओकाछंग ने सभी का अभिनन्दन किया और उनके कार्यालय द्वारा आयोजित की गई एक निबंध प्रतियोगिता के विजेता प्रविष्टि के बारे में उन्हें बताया। लेखक टाशी ने तिब्बत से भारत में अपने आगमन और उनके आश्चर्य का वर्णन किया, कि परम पावन वो ईश्वर नहीं थे, जो तिब्बत में उनके परिवार वाले मानते थे, और न ही चीनी अधिकारियों द्वारा चित्रित कोई दानव थे। परन्तु उन्होंने समाप्त करते हुए कहा कि परम पावन और तिब्बती लोगों के बीच के बंधन को कुछ भी तोड़ नहीं सकता।


सिक्योंग लोबसंग सांगे ने तिब्बती लोगों की परम पावन की सलाह का अनुपालन करने की प्रतिज्ञा दोहराई और सबको स्मरण कराया कि ये समारोह आभार का एक चिह्न थे और यह युवा लोगों को इस बात से परिचित करवाना कितना महत्वपूर्ण था कि परम पावन तिब्बतियों के प्रति कितने दयालु रहे हैं।

तिब्बती संसद की ओर से, अध्यक्ष पेनपा छेरिंग ने अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की पूर्व अध्यक्षा, नैन्सी पलोसी, राष्ट्रपति ओबामा की वरिष्ठ सलाहकार वैलेरी जैरेट, रिचर्ड गियर, प्रो मिंग चिया और आईसीटी के अध्यक्ष मटेयो मेकाची का स्वागत किया। उन्होंने कहाः

"हमें त्रासदी से गुज़रना पड़ा, पर बाकी के विश्व का परम पावन से परिचय हुआ। सब जानते हैं कि उन्होंने हमारे िलए क्या किया है, मैं सभी तिब्बतियों की ओर से उन्हें धन्यवाद देना चाहूँगा। हमारा अपनी संस्कृति और अस्मिता को बनाए रखने का एक उत्तरदायित्व है। यदि हम एकजुट होकर रहें तो बाहरी ताकतें हमारा अधिक कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं।"

प्रो मिंग चिया ने यह बताते हुए कि चीनी लोगों के लिए परम पावन क्या मायने रखते हैं और उनकी ओर हाथ बढ़ाने के लिए कृतज्ञता व्यक्त करते हुए, उनके सुखद जन्मदिन की कामना की।


तिब्बत के पुराने मित्र रिचर्ड गियर ने श्रोताओं का अभिनन्दन किया ः

"टाशी देलेक, मेरे तिब्बती भाइयों और बहनों, टाशी देलेक, मेरे अंग्रेज़ भाइयों और बहनों, वैलेरी और नैन्सी के साथ, रिनपोछे और अन्य नेताओं के संघ के साथ यहाँ हम यहाँ १५,००० लोग हैं, हम कभी न भूलें कि परम पावन के साथ यहाँ होना कितना अद्भुत है। क्या महान अवसर है कि हम परम पावन दलाई लामा को सुन पा रहे हैं, उनके चेहरे को देखने में सक्षम हैं। यह सब हमारे िलए कितना असाधारण है। प्रत्येक दिन परम पावन हमारे िलए अपने को समर्पित करते हैं, धन्यवाद।"

गियर ने १९९७ में, परम पावन के जीवन पर बनी मार्टिन स्कोरसेस की फिल्म कुंदुन के एक निजी प्रदर्शन का और उस दृश्य का जिसमें परम पावन के भारतीय सीमा पर पहुँचने पर उनके अंगरक्षक खम्पा योद्धाओं को तिब्बत लौटने के लिए सवारी करते हुए उन्हें उदासी से देखते हैं, का स्मरण किया। परम पावन ने बाद में उन्हें बताया कि जब उन्होंने भारत की ओर देखा, जबकि उनके साथ कोई मित्र नहीं था, उन्हें कुछ पता न था कि अगले क्षण क्या होने वाला है।

"और अब उनके समूचे विश्व में मित्र हैं। चलिए हम उनके ९०वें, उनके १००वें, उनके ११०वें और उनके १२०वें जन्मदिन पर उनके साथ होने की तारीखें तय कर लें।" दर्शकों ने हर्ष प्रकट किया।

सिक्योंग लोबसंग सांगे ने अपने भाई रिचर्ड गियर को धन्यवाद दिया और अपनी बहनों राष्ट्रपति ओबामा के वरिष्ठ सलाहकार वैलेरी जैरेट और हाउस डेमोक्रेटिक नेता नैन्सी पलोसी का परिचय कराया। सुश्री जैरेट पहले बोली।

"परम पावन दलाई लामा, भिक्षुओं, तिब्बत के लोगों, गणमान्य व्यक्तियों और अतिथियों, गुड आफटरनून। इतने सारे मित्रों के बीच होना कितने सम्मान की बात है। मैं राष्ट्रपति बराक ओबामा की ओर से परम पावन को अमेरिकी लोगों की सौहार्दता प्रेषित करने आई हूँ। बहुत कम लोग हुए हैं जिन्होंने मानवता के लिए इतना सकारात्मक योगदान दिया है, जितना परम पावन ने अपने दृढ़ करुणा के संदेश से किया है। हम आज एक असाधारण नेता, एक अच्छे व्यक्ति, एक अद्भुत चरित्र वाले व्यक्ति के प्रति सम्मान व्यक्त कर रहें हैं। मैं आपके १२० वर्षों तक के जीवन के लिए स्वास्थ्य और शक्ति की कामना करती हूँ" उनके कथन पर तालियाँ गूँज उठीं।


संयुक्त राज्य अमेरिका प्रतिनिधि सदन की अल्पसंख्यक नेता, नैन्सी पलोसी, सदन की पहली महिला अध्यक्ष थीं और जिन्होंने २८ वर्षों से कैलिफोर्निया का प्रतिनिधित्व करते हुए विगत १० वर्षों से सदन डेमोक्रेट का नेतृत्व किया है।
 
"गुड आफटरनून" उन्होंने प्रारंभ किया। "मुझे बताया गया था कि भाषण होंगे जिनके बीच कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। पर ये कितने अद्भुत रहे हैं।"

सुश्री पलोसी, कनाडा तिब्बतियों सहित कई समूहों की प्रशंसा अभिव्यक्त कर रहीं थीं, मंगोलियाई और बुर्याशिया के मंगोलियाई, तुवा और कलमिकिआ, मिनेसोटा से तिब्बती अमेरिकी, न्यूयॉर्क का भूटानी समुदाय, नेपाल के हिमालयी समुदाय, न्यूयॉर्क और न्यू जर्सी से तिब्बती और राजधानी क्षेत्र से तिब्बती जिन्होंने सुंदर, उत्साहपूर्ण और आकर्षक गीत और नृत्य का शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने आगे कहा ः

"परम पावन हम गहन आभार और विनम्रता के साथ आपके ८०वें जन्मदिन का समारोह मना रहे हैं। इस वर्ष के प्रारंभ में राष्ट्रपति ओबामा थे जिन्होंने नेशनल प्रेयर ब्रेकफॉस्ट में कहा कि आप इतने प्रबल उदाहरण हैं, जो करुणा और सभी मानवों की गरिमा के लिए बोलते हैं, जिस पर अच्छी प्रतिक्रया हुई। इसी तरह राष्ट्रपति बुश ने परम पावन की सराहना की थी जब परम पावन को कांग्रेस के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था।"

सुश्री पलोसी ने टिप्पणी की, कि परम पावन के अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ एक दीर्घकालीन संबंध रहे हैं, जो फ्रेंकलिन रूजवेल्ट तक जाता है जिन्होंने अमेरिका और तिब्बत के बीच दोस्ती की निशानी के रूप में उन्हें एक घड़ी भेजी थी जब वे छोटे बालक थे। डेमोक्रेट और रिपब्लिकन हाल ही में सर्वसम्मति से उनके ८०वें जन्मदिन का समारोह मनाने के लिए मतदान किया। उन्होंने आगे कहा ः

"२८ वर्ष पूर्व सितंबर में, परम पावन ने कांग्रेस को अपनी पांच सूत्रीय शांति योजना प्रस्तुत की। जब उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया तो वह प्रथम शांति पुरस्कार विजेता थे जिनके पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूकता की आवश्यकता के लिए किए गए उनके कार्य को मान्यता दी गई। जब हमने उन्हें कांग्रेस स्वर्ण पदक से सम्मानित किया तो हमारे पास उन तमाम लोगों के लिए जगह न थी जो इस समारोह में भाग लेना चाहते थे।

"उनके ८०वें जन्मदिवस के अवसर पर उनके साथ खड़े रहने के लिए इससे बेहतर कोई रास्ता नहीं है कि हम तिब्बती लोगों के साथ खड़े हों।"

उन सभी का धन्यवाद करते हुए, जिन्होंने समारोह में भाग लिया था और उसमें अपना योगदान दिया था, उत्तरी अमेरिका से तिब्बती सांसद टाशी नमज्ञल ने परम पावन को बोलने के िलए आमंत्रित किया।

"उन्होंने कहा कि बहुत पहले, ल्हामो दोनडुब कहलाया जाने वाला एक छोटा बच्चा ८० वर्ष की आयु तक पहुँच गया है। जब मैं अपने जीवन की ओर पलट कर देखता हूँ तो मुझे अनुभव होता है कि बुद्धधर्म के लिए मैं जो कुछ कर सकता था, वह मैंने किया है। १३ या १४ वर्ष की आयु में, मैं दूसरों को शिक्षा देने लगा था और उस समय से अब तक, मैं जो जानता हूँ, उसके आधार पर स्वयं को परिवर्तित करने का प्रयास करता रहा हूँ और मैंने उसे दूसरों के साथ साझा करने का प्रयास किया है। मेरा पालन पोषण बौद्ध परम्परा में हुआ है, पर सभी ७ अरब मनुष्य, मेरे ही समान सुख की कामना करते हैं और दुःख नहीं चाहते। हमें अपने अंदर रूपांतरण करना है। लोगों में धार्मिक आस्था हो या न हो, प्रेम और करुणा हमारे जीवन का सार है।


"आप में से कई मेरे जन्मदिन का समारोह मनाने के लिए यहाँ एकत्रित हुए हैं। आप यहाँ पर भय और आशंका के कारण एकत्रित नहीं हुए, अपितु आनन्द के कारण, एक दूसरे के प्रति प्रेम और करुणा व्यक्त करने हेतु। प्रेम व करुणा मेरे जीवन में सबसे प्रभावी बल रहा है, वे आपकी भी सहायता कर सकते हैं। कई लोगों ने सौहार्दपूर्ण रूप से तिब्बत के उचित समस्या में सहायता की है और समर्थन किया है और अब मैं उन सभी को धन्यवाद देना चाहूँगा। जो धर्म हमने हिमप्रदेश में बनाए रखा है, वह नालंदा की विशाल और गहन परम्परा है, एक ऐसी निधि जो हम पूरे विश्व के साथ साझा कर सकते हैं। उसका और तिब्बत के नाजुक प्राकृतिक वातावरण का संरक्षण अब मेरी चिंता है। और मैं प्रतिदिन दूसरों की सेवा में अपने आपको समर्पित करने हेतु सक्षम होने की प्रार्थना करता हूँ।"

राष्ट्रपति रूजवेल्ट द्वारा उनके लिए भेजी गई घड़ी की, नैन्सी पलोसी की स्मृति का उत्तर देते हुए परम पावन ने कहानी सुनाई। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने तोहफे के िवषय में सुना तो वह उसे प्राप्त करने के लिए बड़े उत्सुक थे। उनकी रुचि राष्ट्रपति के पत्र, जिसकी प्रति राष्ट्रपति ओबामा द्वारा उन्हें दी गई, में नहीं अपितु घड़ी में थी। उन्होंने समझाया कि वह घड़ी, जो तारीख और सूर्य और चंद्रमा की गति बताती है, ने काम करना बंद कर दिया जब उसे एक चुंबक के बहुत निकट रख दिया गया। १९५६ में जब वे भारत आए तो वे उसे अपने साथ लाए और उसे मरम्मत के लिए स्विट्जरलैंड भेजने के लिए कहा। १९५९ में तिब्बत से भारत में निर्वासन में आते हुए रास्ते में सिलीगुड़ी में वही अधिकारी जिन्हें वह घड़ी दी गई थी, उसे उनके पास लेकर आए मानों वह घड़ी उनके लौटने की प्रतीक्षा कर रही थी। आज, वे उसे जहाँ वे अपनी प्रार्थना करने के लिए बैठते हैं, उस मेज की दराज में रखते हैं।

परम पावन ने सभी उपस्थित लोगों को उनकी प्रार्थना और शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद दिया।

एक वित्तीय बयान पढ़ा गया जिससे पता चला कि जहाँ कार्यक्रम के लिए टिकटों की बिक्री और दान आदि से $१.६ अरब डॉलर से भी अधिक जमा किया गया था। $१.३ अरब के खर्च के कारण $२५०,००० का अधिशेष था जो धर्मार्थ कारणों के लिए वितरित किया जाएगा। टाशी नमज्ञल ने उल्लेख किया कि परम पावन को $१५५,००० की राशि एक उपहार के रूप में प्रस्तुत की गई जिसे उन्होंने लेने से अस्वीकार कर दिया, पर अनुरोध किया कि उसका उपयोग छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिए किया जाए। नमज्ञल दोरजी ने निम्नलिखित कामना के साथ कार्यक्रम का समापन किया ः

"परम पावन की सभी कामनाएँ फलित हों, हम आपकी शिक्षा के लिए कृतज्ञता से अपना सर झुकाते हैं।"

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