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परम पावन दलाई लामा का ब्रिटेन आगमन २७/जून/२०१५

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लंदन, ब्रिटेन - २७ जून २०१५- परम पावन दलाई लामा ने कल धर्मशाला से दिल्ली के लिए मध्याह्न में उड़ान भरी। आज प्रातः ब्रिटेन रवाना होने के पूर्व पहले उन्होंने इंडिया टुड़े की सुश्री ज्योति मल्होत्रा ​​को एक साक्षात्कार दिया। जब उनका विमान भूमि पर उतरा तो छितरे बादल के कारण लंदन का दृश्य स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था। विमान द्वार पर भारतीय उच्चायोग के श्री एम पी सिंह, प्रथम सचिव (प्रोटोकॉल) और बौद्ध सामुदायिक केंद्र के अध्यक्ष श्री काजी शेरपा ने उनसे भेंट की।


बौद्ध सामुदायिक केंद्र के नेपाली सदस्य हवाई अड्डे से गाड़ी से एक छोटी ड्राइव की दूरी पर परम पावन का अभिनन्दन करने और उनका पारम्परिक रूप से स्वागत करने के लिए उपस्थित थे। रात में अपने कक्ष में जाने से पहले एप के एक पत्रकार ने उनसे कई प्रश्न पूछे। सबसे प्रथम तो वह यह जानना चाहता था कि परम पावन ग्लास्टनबरी समारोह में क्यों आ रहे थे।

"यदि कोई निमंत्रण मिलता है तो उसे स्वीकार करने में मुझे प्रसन्नता होती है। आज जीवित ७ अरबों मनुष्यों में मैं एक हूँ। और मैं मानता हूँ कि हमें अपने मानव भाइयों के हित को अपनी चिंता बनानी है। हम सामाजिक प्राणी हैं, हम सब एक दूसरे पर निर्भर हैं। जब भी मुझे अवसर मिलता है, मैं इसी को लोगों के साथ साझा करने का प्रयास करता हूँ। और चूँकि हम अनिवार्य रूप से एक समान हैं, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से एक जैसे हैं, मुझे लगता है कि यह संभव है कि लोग मेरे अनुभवों को उपयोगी पाएँ।"

यह पूछे जाने पर कि क्या वह संगीत के प्रदर्शन को देखने के लिए रुकेंगे, उन्होंने कहा कि एक बौद्ध भिक्षु होने के रूप में उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं है, यद्यपि निश्चित रूप से वह इसे सुन पाएँगे।

उनसे पूछा गया कि अंतर्राष्ट्रीय शुगदेन समुदाय द्वारा उनकी यात्रा के विरुद्ध प्रदर्शन और चीनी अधिकारियों द्वारा इसकी भयंकर आलोचना के बारे में उनकी क्या प्रतिक्रिया है। उन्होंने उत्तर दिया कि चीनी शिकायत दिनचर्या बन गई है। उन्होंने कहा कि चूँकि वे उन्हें एक दानव के रूप में चित्रित करते हैं, चीनी अधिकारियों के बीच के कट्टरपंथी अनुभव करते हैं कि उन्हें उनका विरोध करना चाहिए, यद्यपि वे तिब्बत की स्वतंत्रता की बात नहीं कर रहे। परन्तु वे तिब्बत की अनूठे धर्म, संस्कृति और भाषा को संरक्षित करने के प्रयास के अधिकार पर बल देते हैं।

जहाँ तक दोलज्ञल/शुगदेन मुद्दे का प्रश्न है, यह लगभग ४०० वर्षों से चल रहा है।


"५० दशक के पूर्वार्ध से ७०वें दशक के पूर्वार्ध तक, अज्ञानवश मैंने स्वयं इस आत्मा की तुष्टि की, पर फिर मैंने देखा कि इसके साथ जुड़ी कुछ समस्याएँ थीं और मैंने इस पर कुछ शोध किया। मैंने पाया कि यह ५वें दलाई लामा के समय में प्रारंभ हुई थी और उन्होंने इसे एक दुष्ट और हानिकारक आत्मा माना। लोग जो मानना चाहें, यह उनकी इच्छा है, पर यह स्पष्ट करना मेरा कर्तव्य है कि हानि का स्रोत क्या है। इस समूह के सदस्य मुझसे नाराज हैं, पर वे केवल अपने बोलने की स्वतंत्रता का उपयोग कर रहे हैं।"

परम पावन से कल हुई आतंकवादी घटनाओं के विषय में भी पूछा गया। उन्होंने नेपाल के भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं और इन आतंकवादी हमलों की तरह मानव निर्मित त्रासदियों के बीच अंतर किया, जिन्हें रोकने में हमें सक्षम होना चाहिए। परन्तु उन्होंने संकेत किया कि एक बार लोगों के चित्त क्रोध और घृणा जैसी प्रबल उद्विग्न करने वाली भावनाओं से उद्वेलित हो जाएँ तो पुनः उन्हें शांत करना बहुत कठिन है। उन्होंने कहा कि ऐसे अवसर कल्पनातीत हैं, जब लोग धर्म के नाम पर हिंसा फैलाते हैं। उन्होंने अपने विचार दोहराए कि यह और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है ,कि आज जो युवा हैं उन्हें बल प्रयोग के स्थान पर संवाद और सहयोग द्वारा संघर्ष को सुलझाने के लिए प्रशिक्षित किया जाए।

कल, परम पावन ग्लास्टनबरी समारोह में भाग लेने वाले लोगों को संबोधित करने के लिए देश के पश्चिम भाग की यात्रा करेंगे।

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