परम पावन 14 वें दलाई लामा
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परम पावन दलाई लामा की ऑस्ट्रेलिया यात्रा की समाप्ति १५/जून/२०१५

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सिंगापुर, सिंगापुर - १५ जून २०१५- परम पावन दलाई लामा ने ऑस्ट्रेलिया के अपने वर्तमान दौरे के अंतिम दिन का प्रारंभ पर्थ में सेवन वेस्ट मीडिया की मोनिका कोस को दिए गए एक साक्षात्कार से किया।


उनके द्वारा पूछे गए व्यापक प्रश्नों में बच्चों पर इंटरनेट के नकारात्मक प्रभावों पर भी प्रश्न थे। परम पावन ने कहा कि जब तक बच्चों में कुछ समझ है, कि आंतरिक मूल्य सुख के सबसे श्रेष्ठ स्रोत हैं वे अपने स्वयं के निर्णय का प्रयोग करने में सक्षम होंगे। उन्होंने टिप्पणी की, कि वे प्रायः मीडिया के सदस्यों को एक व्यापक उत्तरदायित्व अपनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे मात्र नकारात्मक कहानियाँ रिपोर्ट करते हैं और सकारात्मक रिपोर्ट जैसे प्रेम आदि की घटनाओं पर ध्यान नहीं देते।उन्होंने यह विचार व्यक्त किया कि मीडिया यह दिखाने के लिए, कि मूल रूप से मानवीय स्वभाव सकारात्मक है, और अधिक प्रयास कर सकता है।

उन्होंने उनसे यह भी कहा ः

"आज मानवता द्वारा सामना किए जा रहे कई कठिनाइयों का कारण यह है क्योंकि हम अन्य लोगों को 'हम' और 'उन' के संदर्भ में देखते हैं, ऐसा विभाजन जिसमें संघर्ष के बीज निहित हैं, ऐसी संभावना कि शस्त्रों का प्रयोग किया जाएगा। इसके बजाय मानवता की एकता के बारे में सोचना, ऐसा आधार है जिस पर हम शांति के लिए कार्य कर सकते हैं।"


लगभग ५० तिब्बतियों के साथ भेंट कर उन्होंने उनका अभिनन्दन किया और उन्हें प्रोत्साहित किया।

"बौद्ध धर्म चित्त शोधन के विषय में है," उन्होंने कहा, "केवल प्रार्थना करने के बारे में नहीं है। आपको इसके विषय में सीखने की आवश्यकता है। आपको पता होना चाहिए कि उचित रूप में बौद्ध विचारों को समझाने के लिए तिब्बती भाषा सर्वश्रेष्ठ भाषा है। यह बात गर्व करने योग्य है। सदा स्मरण रखें कि आप तिब्बती हैं। कृपया यह न भूलें कि हमारे युवाओं को तिब्बती में बात करने के लिए सक्षम करना कितना महत्वपूर्ण है। यदि वे इसे खो बैठें तो वे अपने समुदाय से एक प्रकार की दूरी का अनुभव करेंगे। इस बीच यह भी याद रखें कि तिब्बत में तिब्बती, ६० वर्षों से उत्पीड़न के आधीन रह रहे हैं और उसके बाद भी उनकी आत्मा आश्चर्यजनक रूप से प्रबल बनी हुई है।"

पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालय में परम पावन को शिक्षा और सेवा के विषय पर कुछ विश्वविद्यालय से और कुछ स्थानीय उच्च विद्यालय से ७०० छात्रों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था। चर्चा के साथ आगे बढ़ने से पूर्व डॉ वल्ली ने देश पर एक स्वागत प्रदर्शन किया जिसमें मंत्र और डिडजेरिडू वादन शामिल था। उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि "अच्छी भावना हमारे साथ हो। हम यहाँ ज्ञान अर्जित करें और जिनको आवश्यकता हो उन तक पहुँचाएँ।"

परम पावन का परिचय कराया गया और उन्हें बोलने के लिए आमंत्रित किया गया और उन्होंने ज्ञानपीठ पर अपना स्थान ग्रहण किया।

"सभी को सुप्रभात। मैं आम तौर पर सभी को 'भाइयों और बहनों' के रूप में सम्बोधित कर प्रारंभ करता हूँ, क्योंकि आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्य भाई और बहनें हैं। हमारे बीच राष्ट्रीयता, रंग, जाति, सामाजिक पृष्ठभूमि इत्यादि के गौण अंतरों के बावजूद, अपने मन में सभी मनुष्यों की एकता की भावना बनाए रखना अच्छा है। मैं सदा अन्य लोगों से, विशेष रूप से नेताओं से जब मिलता हूँ, तो उन्हें साथी मनुष्यों के रूप में देखता हूँ ।


कई समस्याएँ जिनका हम सामना करते हैं, जिसमें सीधी सादी लज्जा तक शाामिल है, का कारण यह है कि हम हमारे बीच के अंतर पर बहुत अधिक ज़ोर देते हैं। वास्तव में एक मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्तर पर हम समान हैं। जिस रूप में हम जन्म लेते हैं और जिस तरह हम मरते हैं, समान है और इस बीच हम एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं। एक सामाजिक प्राणी के रूप में, जब हमें दूसरों से स्नेह प्राप्त होता है तो हम खुश होते हैं।"

उन्होंने उल्लेख किया कि ७०० सशक्त दर्शकों में अधिकांश छात्र थे और उन्हे बताया कि वे जैसे युवा लोग भविष्य की आशा थे।

"मुझे आपसे, जो २१वीं सदी के हैं, मिल कर बहुत खुशी है। मुझ जैसे वयोवृद्ध लोग २०वीं सदी के हैं, समय जो जा चुका है। हमने बहुत सारी समस्याएँ खड़ी की हैं जिनसे आपको निपटना है। आज कुछ स्थानों में जो भ्रष्टाचार और हत्याएँ हो रही हैं, उनको कम करने के आपको कुछ उपाय ढूँढने होंगे। कंप्यूटर आपके लिए यह नहीं कर सकता, आपको अपने स्वयं के दिमाग का उपयोग करना होगा। याद रखें, हमारी गहनतम भावनाएँ प्रेम और करुणा हैं तथा क्षमा और सहिष्णुता उनसे सहज रूप से उत्पन्न होते हैं।

"मुझे लगता है कि आप जैसे छात्रों को सम्बोधित करना मेरे लिए एक अत्यधिक सम्मान की बात है। जब मेरा समवय लोगों के साथ सामना होता है तो मैं सोचता हूँ, "कौन पहले जाएगा, मैं अथवा आप?", पर जब मैं आप जैसे युवा चेहरों को देखता हूँ, तो मैं भी युवा अनुभव करता हूँ। मैं जो आपसे कहना चाहता हूँ कि सौहार्दता बेहतर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का आधार है। यह लोगों को अधिक संतुलित बनाने, अधिक स्वस्थ व्यक्ति, परिवार और समुदाय बनाने का आधार है। सौहार्दता को किस प्रकार विकसित किया जाए इस को लेकर अधिक से अधिक लोग रुचि दिखा रहे हैं, क्योंकि यदि हम ऐसा कर पाए तो हम एक अधिक सुखी, अधिक शांतिपूर्ण मानवता सुनिश्चित कर सकते हैं।"

एक मूल लोगों के समुदाय के ऑस्ट्रेलियाई छात्र ने कहा कि मूल लोगों के मूल्यों का संरक्षण करने के प्रयास के साथ वह आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर रहा था और परम पावन ने उसे बताया कि वे एक दिन पहले वह उलुरू गए थे। उन्होंने वहाँ जो मूल लोगों की संस्कृति, फिर वे कहीं भी हों, के प्रति सम्मान की जो बात कही थी, उसे दोहराया। जिस प्रकार के वातावरण में उनका विकास हुआ है उस के अनुसार उनमें विभिन्नता है। सभी मूल निवासियों से जिनसे उनकी भेंट हुई है, अपनी संस्कृति और भाषा के संरक्षण को लेकर चिंतित हैं, पर कुछ अन्य जैसे सामी और माओरी आधुनिक विश्व को गले लगाते हुए ऐसा करते हैं, जबकि अन्य और अधिक अलगाव तलाशते हैं। उन्होंने कहा कि जहाँ तक ​​हमारे मस्तिष्क का संबंध है, हम सब समान हैं।

इराक और सीरिया में युद्ध हेतु तत्पर युवाओं के संबंध में, परम पावन ने सुझाया कि कुछ लोगों को सरलता से परिचालित किया जा सकता है। वे 'हम' और 'उन' की एक प्रबल भावना विकसित कर लेते हैं और सोचते हैं कि उनके शत्रुओं का विनाश उनकी विजय है। सोचने का यह तरीका तारीख के बाहर है। परम पावन ने बताया कि भारत और मलेशिया में मुसलमान, जो एक बहु-धार्मिक, बहु-जातीय पृष्ठभूमि में बड़े हुए हैं, ऐसा विभाजनकारी व्यवहार नहीं रखते।

परम पावन ने टिप्पणी की, कि विश्व भर में शिक्षा प्रणाली अपर्याप्त लगती है। शिक्षकों को अपने छात्रों को करुणा का मूल्य दिखाना है, न केवल उस पर बात कर, पर स्वयं उसे एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर। जब वे प्रेम और करुणा से प्रेरित होते हैं तो शिक्षक और अधिक प्रभावी होते हैं।

एक छात्र नेता ने निर्णय लेने के संबंध में सलाह माँगी और परम पावन ने उससे सर्वप्रथम नैतिक सिद्धांतों के संदर्भ में सोचने के लिए कहा, फिर परीक्षण करने के लिए, कि जो भी है क्या वह व्यावहारिक है और अंत में अपने मित्र के विचार जानने के लिए कहा। उनके द्वारा कई बार हँसाए जाने पर छात्रों ने तालियों की गड़गड़ाहट से परम पावन से भेंट के लिए अपनी सराहना व्यक्त की।

ऑस्ट्रेलिया-इसराइल चैंबर ऑफ कामर्स द्वारा मध्याह्न के भोज के लिए आमंत्रित, स्यू क्लौ ने परम पावन का परिचय विश्व में शांति और सुख के स्रोत के रूप में कराया। उसने प्रार्थना की कि एक दिन वह अपने देश लौटने में सक्षम होंगे।


उन्होंने ६५० की सभा का अभिनन्दन भाइयों और बहनों कहते हुए किया और कहा कि यह लगभग उनकी यात्रा का अंतिम कार्यक्रम था। उन्होंने कहा कि वे उन्हें उनकी तीन प्रतिबद्धताओं, मानव सुख का विकास करने, अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने और करुणा और अहिंसा की तिब्बत की संस्कृति के संरक्षण के विषय में सूचित करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि एक सुखी व्यक्ति होना अंततः सौहार्दता से संबंधित है। उन्होंने इसराइल और उसके परिश्रमी लोगों के लिए भी अपनी प्रशंसा व्यक्त की। पर फिलीस्तीनियों और इजरायिलों के समूह से हुई भेंट का भी उल्लेख किया जो अपने समुदायों के बीच सामंजस्य बनाने के लिए एकजुट हो रहे हैं। इस प्रकार का कार्य भविष्य का बीज है, उन्होंने कहा।

एक अतिरिक्त अप्रत्याशित अतिथि थे, स्कॉटिश-ऑस्ट्रेलियाई परोपकारी स्कॉट नीसन। उन्होंने हॉलीवुड में काम किया था और २०वीं सेंचुरी फॉक्स इंटरनेशनल के अध्यक्ष के पद तक पहुँचे। फिर वे कंबोडिया गए और वहाँ नोम पेन्ह के सामने कचरे के ढेर पर गंदगी ढोने वालों के बीच यह निश्चय किया कि वे अपना समय वहाँ देंगे, विशेष रूप से बच्चों की सहायता के लिए समर्पित करना चाहेंगे। उन्होंने अपना घर और माल बेच दिया और कंबोडिया की बाल कोष की स्थापना की। अब वे अपना समय कंबोडिया के अनाथ बच्चों को बचाने, पुनर्वास और शिक्षित करने में लगाते हैं।

परम पावन के समक्ष यह रखा गया कि वे अरबों लोगों के लिए प्रेरणा हैं, पर प्रश्नकर्ता जानना चाहते थे कि उन्हें किस ने प्रेरित किया। अपने उत्तर में उन्होंने नालंदा के सिद्ध आचार्य जैसे नागार्जुन और शांतिदेव का उल्लेख किया। आधुनिक समय में उन्होंने महात्मा गांधी और अहिंसा को काम में लाने के उनके संघर्ष का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि किस प्रकार गांधी ने इंग्लैंड में एक वकील के रूप में अच्छी शिक्षा प्राप्त की पर एक साधारण भारतीय का सादा जीवन जीने के लिए अपने देश लौट आए। उन्होंने भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की सच्ची विनम्रता का भी स्मरण किया।

बैठक की समाप्ति कम्बोड़िया में बच्चों और एक दो महिलाओं द्वारा परम पावन के लिए "जन्मदिन मुबारक" के गीत के एक वीडियो के साथ, भावुक रूप में समाप्त हुई।


अंत में, पहली बार, परम पावन कई मंगोलिया के लोगों के साथ साथ ७०० भूटानियों के एक समूह से मिले।

"हम सभी बुद्धधर्म के अनुयायी हैं," उन्होंने कहा, "वह परम्परा जो नालंदा में फली-फूली। आज यहाँ २१वीं सदी में, एक दृढ़ समझ के साथ कि बुद्ध ने क्या देशना दी, हमें २१वीं सदी का बौद्ध होना चाहिए। ग्रंथ को पढ़ें। मात्र बुद्ध या गुरु रिनपोछे से प्रार्थना करना पुरानी बात है और अब पर्याप्त नहीं है। एक बार आपके पास बेहतर ज्ञान हो तो आपका विश्वास तर्क पर आधारित होगा। आपके पास अध्ययन केंद्र हैं, उन्हें साधारण लोगों के लिए भी खोल दें।"

यह कहते हुए कि उन्होंने उनसे कुछ शिक्षा देने की प्रार्थना की थी, उन्होंने पारम्परिक श्लोक समझाए, जो त्रिरत्न शरण गमन और सभी सत्वों के लिए प्रबुद्धता प्राप्त करने के प्रणिधान का उत्पाद अभिव्यक्त करते हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने बुद्ध मंत्र, चेनेरेज़िंग मंत्र, मंजुश्री मंत्र, जिसमें एक ही सांस में १०० 'धी' अक्षर की गिनती, और तारा और गुरु रिनपोछे के मंत्र के साथ समाप्त करने का संचरण दिया। उन्होंने हवाई अड्डे के लिए रवाना होने से पहले उनके कई प्रश्नों के उत्तर दिए।

सूर्यास्त से कुछ समय पूर्व, परम पावन के वायुयान ने उड़ान भरी और पाँच घंटे से अधिक समय के बाद वह सिंगापुर में उतरा, जहाँ वे रात बिता सके। कल प्रातः वे भारत के लिए उड़ान भरेंगे और सीधे धर्मशाला वापस लौटेंगे।
 

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