परम पावन 14 वें दलाई लामा
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परम पावन दलाई लामा लवली प्रोफेशनल विश्वविद्यालय के पांचवें दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि १४/नवम्बर/२०१५

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फगवाड़ा, पंजाब, भारत - १४ नवंबर २०१५- परम पावन दलाई लामा आज तड़के ही दिल्ली से अमृतसर के लिए वायुयान द्वारा रवाना हुए। वहाँ से वह ग्रांड ट्रंक रोड से मोटर गाड़ी से फगवाड़ा गए, जो जालंधर से अधिक दूर नहीं है, जहाँ वे लवली प्रोफेशनल विद्यालय के ५वें दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि थे। स्थापना के बाद अपेक्षाकृत कम समय में, लवली प्रोफेशनल विश्वविद्यालय भारत का सबसे बड़ा निजी विश्वविद्यालय बन गया है जो २०० से अधिक पाठ्यक्रमों के साथ २८ देशों से २५००० छात्रों को आकर्षित करता है और जो विदेशों के कई अन्य विश्वविद्यालयों के साथ जुड़ा है।


परम पावन के आगमन पर कुलाधिपति और प्रति कुलाधिपति अशोक मित्तल और उनकी पत्नी श्रीमती रश्मि मित्तल ने उनका स्वागत किया। तिब्बती और भूटानी छात्रों की बड़ी संख्या विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे हैं और उन्होंने पारम्परिक तिब्बती रूप से उनका स्वागत किया, जिसमें मुखौटे टाशी शोपा और याक नर्तकों के प्रदर्शन शामिल थे। कुलाधिपति के कार्यालय में उन्होंने कर्मचारियों से भेंट की। उन्हें विशेष सलामी भी दी गई जिसका नेतृत्व एक तलवार धारी सिख अधिकारी ने किया जिसके समक्ष उन्होंने सलामी भी ली। उन्होंने कुलाधिपति और आमंत्रित अतिथियों के साथ मध्याह्न का भोजन भी किया।

मीडिया के साथ एक संक्षिप्त बैठक में उन्होंने अपनी तीन प्रतिबद्धताओं को रेखांकित किया: आधारभूत मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देना और मनुष्यों के सुख के विकास के लिए मानवता की एकता की समझ; अंतर-धार्मिक सद्भाव को को पोषित करने, तिब्बती संस्कृति का संरक्षण और तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा। कई प्रश्नों के बीच उनसे पूछा गया कि पेरिस में कल हुए इस तरह के आतंकवादी हमले क्यों होते हैं। उन्होंने उत्तर दिया:

"इसमें हुए कई अनोखे विकासों के बावजूद, २०वीं सदी अभूतपूर्व हिंसा का दौर भी था जो इस विचार से उत्पन्न था कि समस्या सबसे अच्छी तरह बल से निपटाई जा सकती है। २१वीं सदी के पूर्वार्ध की अधिकांश समस्याएँ उसी से छलकी जान पड़ती हैं। परन्तु कोई भी समस्याएँ नहीं चाहता। हम केवल एक शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं, परन्तु इसे साकार करने के लिए हमें बालवाड़ी से विश्वविद्यालय तक शिक्षा के एक व्यवस्थित कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। यदि हम यह ऐसा कर पाएँ तो २१वीं सदी शांति और संवाद की अवधि बन सकती है।"

तिब्बती और भूटानी छात्रों से संक्षेप में बात करते हुए उन्होंने पुनः उल्लेख किया कि हम सभी मनुष्य हैं जो सुख चाहते हैं, दुःख नहीं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हमें अपने बीच जो समानताएँ हैं उन पर ज़ोर देना चाहिए न कि अपने बीच के गौण अंतर पर।

"छोटे बच्चों के रूप में हम जाति, धर्म या पद के अंतरों की परवाह नहीं करते, हम सहजता से एक दूसरे के साथ हो जाते हैं। इसी कारण मैं सदा अपने को स्मरण कराता हूँ कि मैं मात्र एक और मानव हूँ।"

उन्होंने उल्लेख किया कि किस प्रकार जब वे १६ वर्ष की आयु के थे तो उन्होंने तिब्बती मामलों का उत्तरदायित्व ग्रहण किया था और २०११ में सेवानिवृत्त होने पर राजनैतिक उत्तरदायित्व को त्याग दिया था। उन्होंने छात्रों का ध्यान चल रहे संवाद की ओर आकर्षित किया जो उन्होंने वैज्ञानिकों के साथ ३० वर्षों से भी अधिक पहले प्रारंभ किया था, जो कि पारस्परिक रूप से लाभदायी रहा है। उन्होंने उन्हें हाल में हुए क्वांटम भौतिकी और माध्यमक दर्शन पर केन्द्रित सम्मेलन के विषय में और उनके प्रस्ताव कि अगले वर्ष इसी प्रकार का सम्मेलन आयोजित किया जाए जिसमें आधुनिक वैज्ञानिक और बौद्ध विद्वानों द्वारा चित्त पर केन्द्रित हो, के विषय में बताया। उन्होंने उन्हें तैयार की गई पुस्तकों के विषय में बताया जो कांग्यूर और तेंग्यूर ग्रंथों से निकाले पूर्ण दो संग्रह के सेट में और बौद्ध विज्ञान का सारांश एक ग्रंथ में है।

परम पावन ने सलाह दी कि इन सामग्रियों का अध्ययन करने के लिए एक भिक्षु या भिक्षुणी बनने की आवश्यकता नहीं है और उन्हें तर्क तथा ज्ञान-मीमांसा में रुचि लेने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने आगे छात्रों को सौहार्दता का विकास करने तथा एक नैतिक जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित किया।

दीक्षांत समारोह की टोपी और चोला पहने, परम पावन पंजाब, हरियाणा एवं चंडीगढ़ के राज्यपाल, कप्तान सिंह सोलंकी के साथ विशाल शांति देवी मित्तल सभागार में शैक्षणिक शोभा यात्रा में भाग लेने हेतु सम्मिलित हुए।

अपने संबोधन को "नमस्कार और टाशी देलेक", के साथ प्रारंभ कर कुलाधिपति अशोक मित्तल ने परम पावन और राज्यपाल दोनों का स्वागत किया और दर्शकों को उनका परिचय दिया। उन्होंने कहा कि आज स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जन्म की १२५वीं वर्षगांठ थी।


विश्वविद्यालय की ओर से कुलाधिपति ने मानव मूल्यों, अंतर-धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने और तिब्बत की संस्कृति और पर्यावरण के संरक्षण के लिए उनके अथक प्रयासों के एवज में परम पावन को मानद, धर्मशास्त्र के डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया। तत्पश्चात परम पावन से अनुरोध किया गया कि वे उन तीन छात्रों को स्वर्ण पदक प्रदान करें जिन्होंने अध्ययन के अपने-अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था।

सभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर परम पावन ने प्रारंभ किया:
 
"आदरणीय बड़े और छोटे भाइयों और बहनों, हम सभी मनुष्य रूप में भावनात्मक और शारीरिक, मानसिक रूप से समान हैं, इसी कारण यह महत्वपूर्ण है कि हम मानवता की एकता को स्वीकार करें। हम सभी आनन्द व पीड़ा का अनुभव करते हैं। हम सभी एक सुखी जीवन व्यतीत करना चाहते हैं और निश्चित रूप से हम सभी को ऐसा करने का अधिकार है। हमें ऐसा विचार करना होगा कि सब एक ही मानव परिवार के हैं। उस आधार पर हमारे बीच वैर का कोई आधार नहीं है, हत्या, धौंस या शोषण का कोई स्थान नहीं है। दूसरों को हीन रूप से देखने का कोई आधार नहीं है क्योंकि मनुष्य रूप में हम सब समान हैं।

"यदि हम अपनी विनाशकारी भावनाओं के आधीन हो जाएँ, तो हम मात्र अपने बारे में सोचते हैं। हमें अपने चारों ओर हो रही हिंसा और हत्या से तंग होने की भावना का अनुभव करना चाहिए। यदि कोई मानव किसी जानवर द्वारा मार दिया जाता है, तो यह दुख की बात है पर यदि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य द्वारा मार दिया जाता है, तो यह अचिन्तनीय है। हमें एक दूसरे को साथी मनुष्यों के रूप में अपने भाइयों और बहनों के रूप में सोचने के लिए एक विशेष प्रयास करना होगा।

"यहाँ मुझे आमंत्रित करने के लिए और मुझे इस मानद डॉक्टरेट पदवी से सम्मानित करने के लिए, विशेषकर जब मैंने इसे अर्जित करने के लिए अध्ययन नहीं किया है, जबकि आपने अपने स्वयं के प्रयासों से इसे प्राप्त किया है, मैं धन्यवाद देना चाहूँगा। निश्चित रूप से मैंने अपने ढंग से अध्ययन किया है। मैंने ८ वर्ष की आयु से ग्रंथों को कंठस्थ करना प्रारंभ किया, पर मैं एक आलसी छात्र जैसा हूँ और मैंने केवल इसलिए अध्ययन किया क्योंकि मेरे शिक्षक मुझे प्रभावित करने के लिए एक कोड़ा रखते थे। मैंने भय के कारण अध्ययन करना प्रारंभ किया, पर जैसे जैसे मैंने और अधिक अध्ययन किया, अंततः उसके प्रति मेरी सच्ची रूचि विकसित हुई । हमारे पास यह अद्भुत मस्तिष्क है और यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हम इसे पूरी तरह से उपयोग में लाना सीख लें।


"आपने अब तक जो प्राप्त किया है उसके लिए मैं आपको बधाई देता हूँ। मैं आपके शिक्षकों और उन सभी दूसरों को भी, उदाहरण के लिए उन लोगों को जिन्होंने आपका भोजन तैयार किया है, जिन्होंने आपको आपकी डिग्री प्राप्त करने में योगदान दिया है, धन्यवाद ज्ञापित करना चाहूँगा।"

परम पावन ने विभिन्न युद्धों की श्रृंखला की चर्चा की जिसने २०वीं सदी को चिह्नित किया था। हिंसा २१वीं सदी में भी छलकी है। उन्होंने सुझाव दिया कि मात्र शिक्षा के प्रति अपने दृष्टिकोण को अपना कर हम परिवर्तन लाने में सक्षम हो पाएँगे। विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग हत्या के लिए किया जा रहा है, क्या यह उन्हें गलत बनाता है? नहीं, उन्होंने कहा कि समस्या हमारी शिक्षा प्रणाली की अपर्याप्तता में निहित है जो हमारे मस्तिष्क को प्रशिक्षित करती है परन्तु सौहार्दता को पोषित करने में अपर्याप्त ध्यान देती है। उन्होंने टिप्पणी की कि हमारी सभी प्रमुख धार्मिक परंपराएँ प्रेम, करुणा, सहनशीलता, क्षमा और संतोष का समान संदेश देती हैं। परन्तु फिर भी इनमें से कोई भी परम्परा अपने आप में सभी मनुष्यों के लिए एक सार्वभौमिक आकर्षण नहीं रखती। आज जीवित ७ अरब मनुष्यों में १ अरब किसी भी परम्परा में कोई विश्वास न रखने का दावा करते हैं और ६ अरब विश्वास रखने वालों में कई वास्तविक रूप से गंभीर नहीं हैं।

परम पावन ने घोषित किया "जिसकी हमें आवश्यकता है वह है धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की भावना। धर्मनिरपेक्ष इस अर्थ में जैसा कि भारत में समझा जाता है, जो सभी धार्मिक परम्पराओं के लिए और यहाँ तक ​​कि उनके लिए भी जिनकी किसी में आस्था नहीं है, के प्रति सम्मान की भावना है। यहाँ भारत में और संयुक्त राज्य अमेरिका में मित्रों ने आगामी पीढ़ियों के छात्रों के लिए बालवाड़ी से विश्वविद्यालय तक धर्मनिरपेक्ष नैतिकता, आधारभूत मानवीय मूल्य विकसित करने के लिए एक संभावित पाठ्यक्रम तैयार किया है।


"हमें यह सीखने की आवश्यकता है कि किस प्रकार अपनी विनाशकारी भावनाओं को नियंत्रित करें और उन भावनाओं का पोषण करें जो रचनात्मक हैं। सौहार्दता सुख का परम स्रोत है। हममें से जो २०वीं सदी के हैं, हमारा समय समाप्त हो गया है और हम "अलविदा" कहने के लिए तैयार हैं। परन्तु आपमें से जो २१वीं सदी के हैं यदि अभी प्रयास करना प्रारंभ करते हैं तो आप शताब्दी के उत्तरार्ध के लिए एक बेहतर, शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण कर सकते हैं। भारत जिसने १००० वर्षों से अहिंसा, धार्मिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता का पालन किया है, उसे बाकी के विश्व के लिए एक प्रारूप बनना चाहिए।

"समस्याओं के समक्ष आशा न छोड़ें। अपना आत्मविश्वास बनाए रखें और शीघ्र परिणाम प्राप्त करने के लिए बहुत अधीर न हों। यदि जो मैंने कहा है उससे आप सहमत हैं तो उसका पालन अपने दैनिक जीवन में करें। धन्यवाद।"

अजीत समूह प्रकाशन के मुख्य संपादक एस बरजिंदर सिंह हमदर्द ने औपचारिक धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया और लवली प्रोफेशनल विश्वविद्यालय के ५वें दीक्षांत समारोह के समापन की घोषणा की गई।

कल तड़के ही परम पावन धर्मशाला लौटने के लिए रवाना होंगे। 

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