परम पावन 14 वें दलाई लामा
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बेसल में अवलोकितेश्वर दीक्षा तथा धर्मनिरपेक्ष नैतिकता पर व्याख्यान ९/फरवरी/२०१५

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बेसल, स्विट्जरलैंड - ८ फरवरी २०१५- उस समय ठंड अंधेरा था तथा सड़कें खाली थीं जब परम पावन दलाई लामा अपने होटल से प्रवचन स्थल के लिए गाड़ी से रवाना हुए। पर जब वे पहुँचे तो सेंट जेकबशैले के बाहर युवा तिब्बती नर्तकों और संगीतकारों का एक दल उनके स्वागत में गा तथा बजा रहा था। उन्होंने उनके साथ तस्वीर के िलए थोड़े समय के लिए पोज़ किया और तत्पश्चात अवलोकितेश्वर की दीक्षा, जो वे बाद में देने वाले थे, के प्रारंभिक अनुष्ठान हेतु सीधे अंदर गए।


सभागार लगभग खाली था जब वे एक छोटे से मंडप के समक्ष बैठे, जिसमें एक छोटा मंडल और विश्व के करुणाशील नाथ, महाकारुणिक लोकेश्वर से संबंधित देवंों को चित्रित करते हुए एक विशाल थंका सज्जित था।


जब उन्होंने प्रवचन आसन पर अपना स्थान ग्रहण किया तो श्रोतागणों का अभिनन्दन करते हुए परम पावन हँसे ः

"गुड मॉर्निंग, आशा करता हूँ कि आप सब भली प्रकार सोए होंगे ताकि आज आप उनींदे न हों।"

उन्होंने नागार्जुन की ''प्रज्ञानाममूलमध्यमकारिका' से छंद उद्धृत िकए जो ऐसे विचार को चुनौती देता जो पुदगलों की आत्मा को उन धातुओं तथा अंगों से विभिन्न मानता है जिसपर वह आधारित है।

पुरुष न पृथ्वी, न ही जल है,
न अग्नि, न वायु, न अंतरिक्ष है
न विज्ञान, और न ही सब कुछ है
तो इनसे परे पुरुष कहाँ?

जिस प्रकार पुरुष छह धातुओं से
समायोग होने के कारण सम्यक् नहीं
उसी प्रकार प्रत्येक धातु भी
समायोग होने के कारण सम्यक् नहीं।


'बोधिचित्तविवरण' के पाठ की समाप्ति करते हुए उन्होंने उन छंदों को उद्धृत िकया जो बोधिचित्तोत्पाद तथा अन्य सत्वों के कल्याणार्थ करुणाजनक भावना की स्तुति करते हैंः

७६
इष्ट व अनिष्ट रूपी जितने भी फल
लोक में सुगति तथा दुर्गति के रूप में हैं
वे सत्वों के प्रति उपकार
या अपकार से उत्पादित होते हैं
७७-७८
यदि सत्वों पर आश्रित होकर
अनुत्तर बुद्धत्व प्राप्त हो जाता है
तो इस तथ्य में क्या आश्चर्य है
कि देव और मनुष्यों में जो समृद्धि है
जैसा कि ब्रह्मा, इंद्र और रुद्र
और लोकपालों द्वारा उपभोग किया जाता है
इस त्रिलोक प्रणाली में कुछ भी नहीं है
जो सत्व मात्र की सहायता से प्राप्त नहीं होता?


फिर परम पावन ने अवलोकितेश्वर दीक्षा प्रारंभ की। उन्होंने समझाया कि यह ५वें दलाई लामा की गुह्य दृष्टि के संग्रह में आता है। उन्होंने पुष्टि की कि यह संग्रह उन्होंने अपने शिक्षक तगडग रिनपोछे से प्राप्त की थी और इसके लिए अपेक्षित निष्पन्नता एकांतवास किया था। दीक्षा प्रक्रिया के दौरान उन्होंने सभा की बोधिचित्तोत्पाद तथा बोधिसत्व व्रत लेने में अगुआई की। समापन पर उन्होंने उल्लेख किया कि जहाँ साधना के लिए जमयंग खेनचे वंगपो द्वारा रचित अभ्यास है, साथ ही अधिक प्रभावी यह होगा कि बोधिचित्तोत्पाद तथा शून्यता की समझ को नित्य प्रति का विकास बनाया जाए।



मध्याह्न भोजनोपरांत सभागार में लौटने पर परम पावन युवा गायकों और संगीतकारों के एक समूह द्वारा तिब्बती ओपेरा से एक भाग के प्रदर्शन को देख प्रसन्न प्रतीत हुए। अपने परिचय में सिटी-कैंटन के अध्यक्ष गाय मोरिन ने उल्लेख किया कि, पहले पहल तिब्बती निर्वासन में आने के शीघ्र बाद बेसल में ५५ वर्ष पूर्व बस गए थे। उन्होंने श्रोताओं में यह कहते हुए गुदगुदाया कि अपने गूगल खोजों के आधार पर वे सूचित कर रहे हैं कि स्विट्जरलैंड में बेसल के लोग जाहिर तौर पर बहुत कम खुश हैं। उन्होंने परम पावन से पूछा कि - "हम अधिक सुखी कैसे हो सकते हैं?"

"भाइयों और बहनों," परम पावन ने उत्तर दिया, "मैं यहाँ आकर आप सब लोगों से मिल कर बहुत प्रसन्न हूँ। मैं जब बेसल के लोगों के चेहरों को देखता हूँ जो यहाँ आए हैं, वे सभी काफी सुखी दिखाई पड़ते हैं। मुझे लगता है कि आपके प्रश्न को और जाँचने की आवश्यकता है।"

"आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। कोई भी समस्याओं के बिना नहीं है, पर जब हमें उनका सामना करना पड़ता है तो हमारे मानसिक व्यवहार के कारण हमारी प्रतिक्रिया पर बहुत अंतर पड़ता है। निस्संदेह भौतिक सुविधाएँ और आराम महत्वपूर्ण हैं और उनका अपना स्थान है। पर मैं ऐसे लोगों से मिला हूँ जिनके पास वे सभी सुविधाएँ तथा आराम है, जो वे चाहते हैं पर फिर भी वे सुखी नहीं हैं। दूसरी ओर मैं प्रायः उस कैथोलिक भिक्षु का स्मरण करता हूँ जिनसे मैं मोंटेसेराट, स्पेन में िमला जिन्होंने पहाड़ों में ५ वर्ष बिताए थे और मात्र डबल रोटी व पानी पर एक सन्यासी का जीवन जिया था। मैंने उनसे पूछा कि वह क्या अभ्यास कर रहे थे और उन्होंने मुझे बताया कि वे प्रेम पर साधना कर रहे थे। और जब उन्होंने मुझसे यह कहा तो उनकी आँखें खुशी से चमक उठीं। उनके साक्षी के आधार पर हमारे मानसिक अनुभव हमारी शारीरिक अनुभव की तुलना में बेहतर हैं। हमें जिसकी आवश्यकता है, वह चित्त की शांति है, ऐसी शांति जो कठिनाइयों के मध्य उद्वेलित नहीं होती।"

परम पावन ने उल्लेख किया कि वैज्ञानिकों ने पाया है कि चित्त की शांति और वे गुण जो उसे जन्म देते हैं, जैसे धैर्य, सहनशीलता और क्षमा हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छे होने के साथ साथ हमारी मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अच्छे हैं। उन्होंने कहा कि प्रश्न यह है कि चित्त की शांति को जन्म देने के लिए हम आंतरिक मूल्यों को किस प्रकार बढ़ावा दे सकते हैं तथा कारण, सामान्य ज्ञान और वैज्ञानिक निष्कर्ष की तुलना में धार्मिक परंपरा पर कम निर्भर होने के लिए सुझाव दिया।
 


आंतरिक मूल्यों के विषय में लोगों को शिक्षित करने के लिए एक अलग दृष्टिकोण के रूप में उन्होंने धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण दिया जैसा कि वह भारत में देखा जा सकता है, एक धर्मनिरपेक्ष का संविधान वाला राष्ट्र। सभी धार्मिक परम्पराओं के दृष्टिकोणों तथा उनकी भी जिनकी किसी में आस्था नहीं है, को समान भाव से उच्च सम्मान देने का भारतीय दृष्टिकोण आज के विश्व मे विशेष रूप से प्रासंगिक जान पड़ता है। परम पावन ने सुझाया कि जिसे वे धर्मनिरपेक्ष नैतिकता कहते हैं उसे वर्णित करने के लिए हम चाहे किन्हीं शब्दों का प्रयोग क्यों न करें, यह मानवीय मूल्यों के प्रति एक ऐसे रूप का प्रतिनिधित्व करता है जो इस या उस धार्मिक विश्वास तक सीमित नहीं है। उन्होंने कहा कि जहाँ कल और आज प्रातः उन्होंने एक बौद्ध भिक्षु के रूप में बात की थी, पर इस समय वह मात्र एक मानव के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने पूछा:

"आपकी समस्याएँ हैं और मेरी भी। आप अपने आपको क्रोध और ईर्ष्या जैसी भावनाओं से निपटता पाते हैं, मैं भी। और जिस प्रकार मैं चित्त की शांति पर ध्यान देता हूँ तथा आंतरिक शांति उत्पाद करने का प्रयास करता हूँ, आप भी अपने परिवार और समुदाय में स्वयं को सुखी बनाने के लिए वैसा कर सकते हैं। मनुष्य के रूप में हम सभी आधारभूत रूप में एक समान हैं।"

उन्होंने श्रोताओं में उनके जैसे जो ३० वर्ष से अधिक आयु के हैं और २०वीं शताब्दी के हैं, और जो ३० वर्ष की आयु से कम के हैं और २१वीं शताब्दी के हैं, के बीच के अंतर को स्पष्ट किया। उन्होंने सुझाव दिया कि जहाँ हम अतीत को परिवर्तित नहीं कर सकते, हम उससे सीख सकते हैं। यदि युवा आज आवश्यक कदम उठाएँ तो २१वीं शताब्दी को एक बेहतर सुखी िवश्व में संवाद का युग बनाना बहुत संभव है।

श्रोताओं से प्रश्न आमंत्रित करते हुए उनसे पूछा गया कि बिना स्वतंत्रता के वह कैसे सुखी रह सकते हैं। उन्होंने उत्तर दिया कि जब वे भारत पहुँचे तो उन्होंने वास्तव में मुक्ति का अनुभव किया। और यह पूछे जाने पर कि क्या १५वें दलाई लामा होंगे, उन्होंने जो पहले कहा था उसे दोहराया कि १९६९ में ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि यह प्रश्न अंततः तिब्बती लोग निश्चित करेंगे। परन्तु २०११ में तिब्बती धार्मिक नेताओं की एक बैठक ने तब तक उस निर्णय को स्थगित करने का निश्चय किया था, जब तक वे ९० वर्ष के नहीं हो जाते। इसलिए वे हँसे और कहा, "१० वर्ष और प्रतीक्षा करें।"

इस प्रश्न पर कि क्या जानवर बुद्धत्व प्राप्त कर सकते हैं, उन्होंने उत्तर दिया कि चेतना प्रबुद्धता का बीज है। उन्होंने कहा कि मानव जीवन मूल्यवान है, क्योंकि जहाँ कुछ प्राणियों में तीव्र अनुभूति होती है, उनमें एक प्रकार की बुद्धि होती है जो अपार क्षमता प्रदान करता है। एक युवा लड़के ने पूछा कि लोग उसे स्कूल में क्यों तंग करते हैं और परम पावन ने उससे कहा कि वे नहीं जानते, क्योंकि वह तो देखने में विनम्र तथा कोमल प्रतीत होता है। परन्तु उन्होंने सुझाव दिया कि कभी कभी जब लोग आपका फायदा उठाने का प्रयास करते हैं, तो आपको थोड़ा सख्त होना चाहिए।

जब एक आदमी ने प्रारंभ किया कि, "लाखों शुगदेन लोग ..." उसके पास से माइक्रोफोन छीन लिया गया और जो वह कहना चाहता था उसे पूरा करने में वह असमर्थ रहा। परम पावन ने उस बिंदु को उठाया और शांति से उसका उत्तर दियाः

"हाँ, लोग बाहर मुझ पर चिल्ला रहे हैं। वे अभिव्यक्ति की अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग कर रहे हैं। पर यह एक नया मुद्दा नहीं है; यह १७वीं शताब्दी और ५वें दलाई लामा के समय से है। तब से, सभी तिब्बती परंपराओं के सबसे प्रमुख लामाओं ने शुगदेन अथवा दोलज्ञल को एक दुरात्मा के रूप में संदर्भित किया है। १९७० तक मैं इसे तुष्ट करता रहा जब तक मैंने अनुभव किया कि इसमें कुछ गलत था। मेरे वरिष्ठ शिक्षक बहुत हद इसके विरोधी थे। मैंने इस पर शोध किया है और यह स्पष्ट हो गया कि यह एक दुरात्मा थी। अतः मैंने बंद कर दिया और शीघ्र ही उसके बाद हमारे विहारों में से एक को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा, जैसा कि मेरे कनिष्ठ शिक्षक ने सलाह दी कि उसका कारण था कि क्योंकि वे अब इस कीर्तिरहित आत्मा के प्रति निष्ठावान थे। उनके पारंपरिक रक्षक, पालदेन ल्हामो अप्रसन्न हो गए थे।

"मैंने इसे प्रतिबंधित नहीं किया है, पर यह मेरा कर्तव्य है कि जो सच है उसे स्पष्ट करूँ। ये लोग अब भी अपने चयन की स्वतंत्रता रखते हैं।"

इस उत्तर पर जोरदार तालियाँ बजीं। मरने की प्रक्रिया की तैयारी को लेकर एक अन्य प्रश्न के उत्तर में परम पावन ने कहा कि सर्वप्रथम महत्वपूर्ण एक सार्थक जीवन जीना है और यदि संभव हो तो दूसरों की सेवा करें, पर कम से कम उन्हें हानि न पहुँचाएँ। श्रोताओं में से एक अन्य ने फेसबुक पर लोगों द्वारा धोखा दिए जाने के विषय में बताया, खासकर जब उन्हें ज्ञात हुआ कि वे शुगदेन का पालन कर रहे थीं, की कहानी सुनाई। परम पावन ने कहा कि इस तरह की स्थिति नहीं होनी चाहिए जब टाइम पत्रिका ने बर्मा के एक भिक्षु के विषय में एक मुख पृष्ठ कथा छापी और उसे 'बौद्ध आतंकवादी' का बिल्ला दिया।


स्विट्जरलैंड और लिकटेंस्टीन के तिब्बती समुदाय के अध्यक्ष ने एक वित्तीय बयान दिया और उन सभी का धन्यवाद दिया जिन्होंने परम पावन के दो दिनों के आयोजन को सफल बनाने में योगदान दिया था। इसके बाद केवल तिब्बतियों के लिए दिए गए व्याख्यान में परम पावन ने तिब्बत के भीतर तथा बाहर तिब्बतियों की प्रबल कर्तव्य परायणता तथा देशभक्ति की सराहना की। उन्होंने उन्हें अध्ययन करने, अपनी भाषा और संस्कृति का ज्ञान रखने और इसका प्रयोग करने और इस बात को सुनिश्चित करने कि वे ईमानदारी और दयालुता की तिब्बती प्रतिष्ठा पर आँच न आने देने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा:

"आपने बेसल में मुझे यहाँ महान आतिथ्य दिया है। धन्यवाद। टाशी देलेक सुखी रहें।"

जब परम पावन अपने होटल लौटे तो पुनः अंधेरा था, पर तिब्बती गायक और संगीतकार उनका अभिनन्दन करने की प्रतीक्षा कर रहे थे। कल वे नॉर्वे के लिए उड़ान भरेंगे। 

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