परम पावन 14 वें दलाई लामा
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माइंड एंड लाइफ ३०वां ,धारणाएँ, अवधारणाएँ और आत्म - दिन २ १५/दिसम्बर/२०१५

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बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - १५ दिसंबर २०१५- आज तड़के भोर वेला में, मेघाच्छन्न आकाश के नीचे परम पावन दलाई लामा माइंड एंड लाइफ सम्मेलन के पुनरारम्भ के पूर्व सेरा महाविहार के अन्य भागों में गए।


सेरा जे में माइंड एंड लाइफ इंस्टीट्यूट के सदस्य तिब्बती ग्रंथ एवं अभिलेख पुस्तकालय के जलवायु परिवर्तन प्रदर्शनी के दौरे में उनके साथ सम्मिलित हुए। उन्होंने बॉबी सेजर का भी अभिनन्दन किया जो लंबी अवधि से एल टी डब्ल्यू ए के भिक्षु-विज्ञान शिक्षा कार्यक्रम में भाग लेने के समर्थक रहे हैं।

प्रदर्शनी में तिब्बती थंका चित्रों की तरह जलवायु परिवर्तन के पहलुओं को प्रदर्शित करती हुई इस प्रकार के शीर्षकों के अंतर्गत पृथ्वी की प्रणालियाँ किस प्रकार कार्य करती हैं? पृथ्वी की ऊर्जा संतुलन, मौसम या जलवायु, कार्बन चक्र और हम क्या कर सकते हैं? प्रदर्शनों की श्रृखंला थी। प्रत्येक प्रदर्शन में तिब्बती और अंग्रेजी में स्पष्टीकरण भी सम्मिलित था। कई भिक्षु और पुस्तकालय के निदेशक गेशे ल्हगदोर ने प्रदर्शनी में परम पावन का अनुरक्षण किया, जिसमें उन्होंने एक करीबी रुचि दिखाई। अंत में उन्होंने टिप्पणी की कि यह ध्यान देने योग्य है कि बुद्ध के जीवन में वृक्षों का क्या स्थान था। उनका जन्म वृक्ष के तले हुआ था, वे बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध हुए और दो साल के वृक्षों के बीच अपना देह त्यागा। साथ ही बुद्ध ने अपने भिक्षुओं को न केवल वृक्षारोपण का निर्देश दिया परन्तु उनकी भी देखरेख करने के लिए कहा जो अन्य लोगों द्वारा लगाए गए थे, विशेषकर वर्षावास में।

सेरा जे माध्यमिक विद्यालय अगला पड़ाव था, जहाँ छात्रों ने भी एक महत्वपूर्ण प्रदर्शनी लगाई थी जो विशेष रूप से जल से संबंधित थी। अलग- अलग भिक्षुओं ने बारी बारी से बाहर बगीचे में और विद्यालय के सभागार में उन्हें समझाया। मंच पर बैठकर उन्होंने उत्तर दिया:

"आपने जो मुझे दिखाया है बहुत अच्छा है, धन्यवाद। आपको जानना चाहिए कि नालंदा विश्वविद्यालय केवल ऐसा स्थान नहीं था जहाँ लोग प्रार्थना करने हेतु एकत्रित होते थे, पर यह पांच विद्या स्थान के अध्ययन का एक केंद्र था। नागार्जुन और उनके अनुयायियों की तरह कई विद्वान लोग वहाँ एकत्रित हुए और यह अंततः बौद्ध अध्ययन का एक केंद्र बन गया। अब, तिब्बत एकमात्र ऐसा बौद्ध देश है जिसने नालंदा परंपरा को बनाए रखा है। हमें संस्कृत या पालि जानने की आवश्यकता नहीं, हम अपने पूर्वजों की कृपा के कारण, जिन्होंने भारतीय बौद्ध साहित्य का अनुवाद किया, इस परम्परा को अपनी ही भोट भाषा में प्राप्त कर सकते हैं।

"मुझे लगता है कि हमारे विद्यालयों और महाविहारों में आधुनिक विज्ञान को शामिल करना नालंदा परम्परा की भावना के साथ सुसंगत है। साधारण लोगों और भिक्षुओं को बाहरी और आंतरिक वातावरण की देखभाल करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए हमारे द्वारा उपलब्ध कराए गए शिक्षा के स्तर को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।"

सेरा मे महाविहार के पोभोर खंगछेन में परम पावन ने एक पट्टिका का अनावरण किया और नूतन सभागार का उद्घाटन करने के लिए द्वार पर बंधे फीते को काटा। उन्होंने सिंहासन पर अपना आसन ग्रहण किया और जब चाय और मीठे चावल दिए जा रहे थे तो उन्होंने भिक्षुओं को संबोधित किया।


"सेरा मे से कई महान विद्वान हुए हैं। जैसा कि मैंने गदेन में पोभोर खंगछेन के भिक्षुओं को बताया कि आप पोभोर खंगछेन के मूल सदस्य हैं जिन्होंने दोलज्ञल के बारे में मेरी सलाह का पालन किया।

"निस्सन्देह, पहले मैंने भी अभ्यास किया था, परन्तु भली भाँति परीक्षण के पश्चात मैंने पाया कि यह किसी भी तरह अच्छा नहीं था। तो कई जांच करने के बाद मैंने अभ्यास बंद कर दिया। उस समय मेरे दोनों अध्यापक जीवित थे। मैंने क्याबजे ठिजंग रिनपोछे से अभ्यास बंद करने के अपने निर्णय की सूचना दी। जो उपाय मैंने अपनाए थे उन्होंने उसकी स्वीकृति दे दी। ऐसा नहीं था कि मैं उनकी पीठ पीछे कुछ कर रहा था। जो भी कदम मैंने उठाए वे उसे लेकर खुश थे।

"गदेन जंगचे के भिक्षुओं ने क्याबजे ठिजंग रिनपोछे को महाविहार के साथ हुई अनहोनी घटना की सूचना दी थी। उन्होंने उन्हें बताया कि वे पलदेन ल्हामो की अप्रसन्नता का परिणाम थे और उन्होंने सलाह माँगने, कि क्या किया जाए मुझसे संपर्क किया। मेरी जाँच ने पुष्टि की कि पलदेन ल्हामो का इसमें हाथ था और उसका असन्तोष दोलज्ञल को लेकर था। मैंने सेकोंग रिनपोछे को सावधानीपूर्वक बताया कि मैंने भिक्षुओं को दोलज्ञल अभ्यास को रोकने की सलाह दी थी। मैंने ऐसा तिब्बतियों के बीच बुद्धधर्म के कल्याण की चिंता और जे चोंखापा की परंपरा के फलने फूलने हेतु किया था। उस परम्परा का समर्थन करने के स्थान पर दोलज्ञल का अभ्यास सांप्रदायिक तनाव लेकर आया है।"


गोसोक रिनपोछे ने मंडल और बुद्ध काय, वाक् और चित्त के तीन प्रतीक समर्पित किए। उसके बाद परम पावन ने जे चोंखापा के 'मार्ग के तीन सिद्धांतों' का एक संक्षिप्त संचरण दिया।

"जे रिनपोछे ने कहा कि हमें शिक्षाओं की एक मोटी समझ से संतोष नहीं करना चाहिए परन्तु हमें हर प्रकार के ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए। हमें न केवल विद्वान होने की इच्छा रखनी चाहिए पर जैसा उन्होंने किया वैसा अभ्यास भी करना चाहिए। उन्होंने दिन रात अभ्यास किया तथा अष्ट लौकिक चिंताओं को त्याग दिया। हमें उनके उदाहरण का पालन करना चाहिए और अपने अध्ययन के संबंध में ऐसा व्यवहार नहीं अपनाना चाहिए जैसा हम अपने कमरों में वस्तुओं को बटोरते हुए कर सकते हैं।"

परम पावन ने कहा कि ङवांग डगपा ने सलाह का अनुरोध किया था और बदले में उन्होंने 'मार्ग के तीन सिद्धांत' ग्रंथ को प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने तगडक रिनपोछे और ठिजंग रिनपोछे दोनों से इसे प्राप्त किया था। परम पावन ने तीन सिद्धांतों, विमुक्ति की दृढ़ता, बोधिचित्त और शून्यता समझने वाली प्रज्ञा की व्याख्या की और उपदेश से साथ समाप्त किया जो कि ग्रंथ का अंत है:

पुत्र, इस प्रकार मार्ग के तीन प्रमुख आकार के
मर्म को स्वयं से यथा बोध होने पर
एकान्त में रहकर वीर्य बल से
अंतिम लक्ष्य को शीघ्र प्राप्त करो।


सेरा लाची महाविहार लौटते हुए माइंड एंड लाइफ की बैठक का प्रातःकालीन सत्र घोषित समय से बाद में प्रारंभ हुआ। संचालन करते हुए जे गारफील्ड ने कैथरीन केर का परिचय कराया जिन्होंने 'कायिक अनुभूति की धारणा का परीक्षण' पर एक प्रस्तुति रखी। कल के धारणा की प्रक्रिया की गति पर परम पावन के अवलोकन की पुष्टि करते हुए उन्होंने टिप्पणी की कि तर्जनी उंगली की एक संवेदना १/५० वें सेकंड में मस्तिष्क तक पहुँच जाती है। उन्होंने उल्लेख किया कि थेलामस संवेदी सूचनाओं के ८५% को प्रतिबंधित करता है और उन्हीं सूचनाओं पर ध्यान देने की अनुमति देता है जो महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने बताया कि किस प्रकार ध्यान दी हुई मानसिक एकाग्रता शीघ्रता से कायिक संवेदनाओं की धारणा को आकार देती है। उन्होंने उन लोगों के साथ कर रहे कार्य का उल्लेख किया जोन कबात- ज़िन द्वारा सिखाए गए सजगता का अभ्यास सीख रहे हैं। उन्होंने 'रबर हाथ भ्रम' का एक दिलचस्प संदर्भ दिया जिसमें प्रतिभागियों को अपने वास्तविक हाथ को स्वीकार न कर, रबर के हाथों को अपनाने, मानों कि वे उनके अपने हाथ हों और उसी के समान हों, में भ्रांत किया जाता है 'समूची कायिक भ्रांति'।


जॉन डन ने दूसरा विषय, जो कि अवधारणा से हटकर धारणा का था, पर एक प्रस्तुति के साथ प्रातः के सत्र को पूरा किया। उन्होंने बौद्ध ज्ञान मीमांसा परम्परा में अवधारणा गठन के चार पहलुओं की बात की। उन्होंने ७वीं शताब्दी में धर्मकीर्ति से प्रारंभ होकर उनके बाद आए लोगों के ऐतिहासिक स्रोतों का उद्धरण दिया। उन्होंने चित्त में किसी वस्तु की छवि के निर्माण को दर्शाया जो कि मात्र वस्तु का प्रतीक है, जो यह दर्शाता है कि धारणाएँ सामान्यतया ऐन्द्रिक अनुभव पर निर्भर करती है। धर्मकीर्ति के दृष्टिकोण में पाए जाने वाले अवधारणा गठन के तीन पहलू भाषा के मूलभूत हो सकते हैं।

मध्याह्न भोजन के पश्चात जो पुनः प्रतिभागियों और उपाध्यायों ने परम पावन के साथ खाया, सभा पुनः एकत्रित हुई। कैथरीन वर्थमन के संचालन में बोलती हुईं लेरा बोरोडिटस्की ने बताया कि 'किस प्रकार जो भाषाएँ हम बोलते हैं वे हमारे चिंतन को आकार देती हैं'। उन्होंने यह टिप्पणी करते हुए प्रारंभ किया कि हम सभी भाषा में बोलने और संप्रेषण करने की क्षमता को सहजता से लेते हैं। उन्होंने पूछा कि क्या लोग जो विभिन्न भाषाएँ बोलते हैं अलग ढंग से सोचते हैं। यह टिप्पणी करने के बावजूद कि संज्ञानात्मक विज्ञान के क्षेत्र में यह विचार कि भाषा हम जिस रूप में है उसे आकार देता है, लोकप्रिय नहीं है, पर उन्होंने कई उदाहरण दिए जिसमें यह सच प्रतीत होता है।


उन्होंने कहा कि 'समय' सबसे अधिक प्रयोग में आने वाले शब्दों में से एक है और समय की अवधारणा गहन रूप से स्थान में निहित है। उन्होंने लोगों के लिखने के ढंग के अनुसार कि वे बाएँ से दाएँ लिखते हैं, दाएँ से बाएँ अथवा ऊपर से नीचे की ओर, समय की दिशा में बढ़ने के अंतर की सोच की ओर ध्यानाकर्षित किया। उन्होंने विभिन्न भाषाओं के प्रयोग द्वारा दुर्घटनाओं की विभिन्न प्रतिक्रियाओं पर चर्चा की। उन्होंने अपने श्रोताओं को हँसी से पेट के बल कर दिया जब उन्होंने अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति डिक चेनी द्वारा हैरी व्हिटिंगटन को इस तरह से गोली मारने के वर्णन को उद्धृत किया "खैर, मैं ही वह आदमी हूँ जिसने बंदूक के घोड़े को खींचा, जिससे गोली निकली, जो हैरी को लगी"। उन्होंने अन्य उदाहरण दिए कि किस प्रकार लोग जब किसी घटना को स्मरण करते हैं वह भाषायी प्रयोगों से प्रभावित होती है।

परम पावन ने टिप्पणी की कि यद्यपि भाषा इत्यादि के कारण अंतर हो सकते हैं पर फिर भी वे यह मानते हैं कि आधारभूत रूप से मुनष्य सुख की इच्छा करने और दुख न चाहने में एक समान हैं। लेरा बोरोडिटस्की ने उत्तर दिया कि एक वैज्ञानिक के रूप में वह इसका प्रमाण देखना चाहेंगीं, और टिप्पणी की कि जहाँ अमरीकी रोमांच का आनंद लेते हैं, पर उनके स्वदेशी रूसी उसे अधिक यथार्थवादी मानकर उदासी अधिक पसन्द करते हैं। उन्होंने इस विचार के साथ समाप्त किया कि दूसरों को समझना स्वयं को देखने का एक रास्ता है।

माइंड एंड लाइफ बैठकें कल जारी रहेंगीं।

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