परम पावन 14 वें दलाई लामा
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'रत्नावली' प्रवचन का समापन और एक सार्वजनिक व्याख्यान १२/जून/२०१५

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उलुरु, उत्तरी क्षेत्र, ऑस्ट्रेलिया - १२ जून २०१५ - परम पावन दलाई लामा आज तड़के प्रातः ब्रिस्बेन कन्वेन्शन और प्रदर्शनी केंद्र पहुँच गए। चूँकि सभी श्रोतागण नहीं पहुँचे थे तो उन्होंने सुझाव दिया के सत्र का प्रारंभ प्रश्नों से करें। प्रारंभ में एक महिला इस बात की पुष्टि करना चाहती थी कि उसने पिछले दिन की शून्यता की व्याख्या से क्या समझा था । उसने कहा कि उसने समझा वह रूप विहीन, अनन्त और चेतन नहीं थी। परम पावन ने उससे कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि अनुभवजन्य अनुभव को अनदेखा न किया जाए, कि वस्तुएँ एक सांवृतिक स्तर पर अस्तित्व रखती हैं। विषय यह नहीं कि क्या वस्तुओं का अस्तित्व है, उनका अस्तित्व तो है, पर उनका अस्तित्व किस प्रकार से है, जो उस रूप में नहीं जिस रूप में वे दृश्यमान हैं। यह कहना कि वस्तुएँ शून्यता रखती हैं, इस बात को नकारना नहीं है, कि उनका अस्तित्व है।


उन्होंने यह भी दोहराया कि इस भ्रांति के आधार पर कि वस्तुएँ किस प्रकार अस्तित्व में आती हैं, हम उनके प्रति क्रोध अथवा राग जैसे विनाशकारी भावनाएँ उत्पन्न करते हैं। इस बात की प्रतिस्थापना कि वस्तुएँ वास्तव में किस प्रकार अस्तित्व रखती हैं, इन विनाशकारी भावनाओं के आधार को कम करता है। जब महिला ने प्रतिवाद किया कि वस्तुएँ के स्वतंत्र अस्तित्व को नकारने के बाद भी, कुछ अपरिभाष्य सार बचा हुआ प्रतीत होता है तो परम पावन ने उत्तर दिया कि यदि वस्तुओं में कुछ अपरिभाष्य सार है तो वे स्वतंत्र नहीं हो सकती। उन्होंने गंभीर सुझाव दिया कि चूँकि वे वह अभी भी कम उम्र की हैं और अध्ययन करने का समय रखती हैं, वे क्वांटम भौतिकी में जो समझाया गया है उसे देखें।
 
किसी ने बोधिसत्व द्वारा भूखी बाघिन को अपना मांस देने के बारे में पूछा और परम पावन ने पुष्ट किया कि यदि एक अच्छा उद्देश्य पूरा किया जा सकता है, तो शरीर के भागों को देना क्षम्य है। उन्होंने एक अन्य व्यक्ति को, जो प्रथम बुद्ध के बारे में और यह कि उन्हें किस प्रकार प्रबुद्धता प्राप्त हुई जानना चाहता था, बताया कि उस रूप में आदि बुद्ध के बारे में सोचना एक त्रुटि थी।

परम पावन को यह बताते हुए कि कितने लोग तिब्बत में स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं, एक अन्य महिला जानना चाहती थीं कि वे इसके लिए किस प्रकार योगदान दे सकते हैं। उन्होंने उत्तर दिया ः

"सबसे पहले जब मैंने तिब्बत का उत्तरदायित्व संभाला तो मैं १६ वर्ष का था। १९५४ - ५५ में मैं पेकिंग गया और माओचे तुंग से भेंट की जिनके साथ मेरे अच्छे संबंध बने। उस समय एक क्रांतिकारी के रूप में, वह व्यावहारिक और यथार्थवादी दोनों लग रहे थे। जब उन्होंने तिब्बत के स्वायत्त क्षेत्र के लिए एक तैयारी समिति के गठन का सुझाव दिया तो हम इसके लिए मान गए। १९५६ में पूर्वी तिब्बत के कुछ हिस्सों में जो तिब्बती सरकार के अधिकार क्षेत्र से परे थे, अत्यधिक उत्साही अधिकारियों ने अनुपयुक्त सुधारों को कार्यान्वित किया और एक विद्रोह प्रारंभ हुआ। लगभग उस समय मैं बुद्ध के २५००वीं वर्षगांठ के समारोह में भाग लेने भारत आया। मैंने पंडित नेहरू और चाउ एन लाइ के साथ विचार-विमर्श किया, जो हे लोंग के साथ यात्रा कर रहे थे। चाउ ने मुझे आश्वस्त किया कि सुधारों में छह वर्ष या उससे अधिक का विलंब हो सकता है पर १९५७ में १०० फूल अभियान ने उसका भुगतान कर दिया।


"१९५९ तक भागने के अतिरिक्त कोई चारा न था। १९५० में संयुक्त राष्ट्र में गुहार लगाने के बाद हम ने तीन बार और अपील की पर उसका कोई प्रभाव न हुआ। नेहरू ने मुझे बताया कि संयुक्त राज्य अमेरिका तिब्बत के मुद्दे पर चीन के साथ युद्ध नहीं करेगा। ६० दशक के उत्तरार्ध में और ७० के दशक के पूर्वार्ध में हमने निष्कर्ष निकाला कि हमें चीन से बात करनी होगी, स्वतंत्रता की मांग करते हुए नहीं अपितु बातचीत की मांग। यद्यपि कट्टरपंथी अभी भी तिब्बती अस्मिता, भाषा और आध्यात्मिक परंपराओं पर हमला करने पर आमादा थे।

"आज, चीन में जहाँ ४०० अरब बौद्ध हैं, जापान, कोरिया और वियतनाम में लोग तिब्बती बौद्ध धर्म में रुचि ले रहे हैं। इसलिए हमारी परम्पराओं का संरक्षण न केवल तिब्बतियों के लिए चिंता का विषय है। और तो और शी जिनपिंग ने सार्वजनिक रूप से चीनी संस्कृति के लिए बौद्ध धर्म के महत्व को स्वीकार किया है।

"२०११ के बाद से मैं पूरी तरह से राजनीतिक उत्तरदायित्वों से सेवानिवृत्त हो चुका हूँ और भविष्य में इस तरह के विषयों में दलाई लामा की भागीदारी का अंत कर दिया है। इसलिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ कि मैंने आपको यह कुछ हद इस प्रकार का राजनैतिक उत्तर दिया है, पर मुझे लगा कि यह उपयोगी हो सकता है। मैं बताना चाहूँगा कि आपके समर्थन की मैं कितनी सराहना करता हूँ। धन्यवाद।"

इसके बाद परम पावन ने 'रत्नावली' के निम्नलिखित श्लोकों से अपना पठन जारी रखा जो बोधिचित्तोत्पाद के विचार का परिचय देते हैं।

१७४
यदि आप और संसार प्राप्त करने के इच्छुक हैं
अनुत्तर सम्बोधि

तो इसके मूल प्रबुद्धता के परोपकारी प्रणिधान हैं
गिरिराज की तरह दृढ़,
करुणा, सभी स्थानों पर पहुँचती हुई
और प्रज्ञा जो द्वैत पर निर्भर नहीं।


उन्होंने समझाया कि एक बार आप बोधिचित्त से प्रेरित हो जाएँ तो आप दूसरों की सहायतार्थ जो कुछ भी करें, आप महान पुण्य संभार करेंगे। पाठ बताता है कि बुद्ध का रूप काय पुण्य संभार से होता है, जबकि धर्म काय, प्रज्ञा संभार से उत्पन्न होती है। इसके अतिरिक्त पुण्य और प्रज्ञा का असीम संग्रह, कायिक व चैतसिक पीड़ा का त्वरित उन्मूलन करता है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि जब बोधिचित्तोत्पाद की बात आती है तो इसके दो उपाय हैं, सात हेतु फल उपदेश और परात्मसम और परात्म परिवर्तन। दूसरा और अधिक शक्तिशाली है और यहाँ तथा शांतिदेव के 'बोधिसत्वचर्यावतार' में वर्णित है। परम पावन ने बताया कि किस प्रकार प्रारंभ में इन उपायों को लागू करने के प्रयास की आवश्यकता पड़ती है। आप उन पर ध्यान कर सकते हैं, पर जब आप ध्यान से बाहर आ जाएँ तो उन्हें दिन प्रतिदिन व्यवहार में लाने के लिए आपको प्रयास करना होगा। परन्तु उद्देश्य अभ्यास को तब तक जारी रखना है जब तक उद्देश्य सहज भाव से उत्पन्न न होने लगे। उन्होंने बोधिचित्त को विकसित करने के लिए प्रथम २० श्लोकों का पाठ प्रतिदिन करने का संकेत दिया ः

मैं सदा भोग की वस्तु होऊँ
सभी सत्वों के लिए उनकी इच्छानुसार
और बिना हस्तक्षेप के जैसे पृथ्वी,
जल, अग्नि, वायु, जड़ी बूटी, और अरण्य हैं।


मैं सत्वों के लिए उनके प्राण सम प्रियतम बनूँ
और वे मेरे लिए भी प्रिय हों
उनके अकुशल कार्य मुझ पर परिपक्व हों,
और मेरे सारे पुण्य उन पर हों परिपक्व ।

जब तक कोई सत्व
कहीं भी मुक्त न हो
मैं (इस जगत) में उस सत्व के लिए बना रहूँ
यद्यपि मुझे परम प्रबुद्धता प्राप्त हो गई हो।



मध्याह्न भोजनोपरांत उसी सभागार में लौटने पर, परम पावन के साथ मंच पर हास्य अभिनेता मेशेल लॉरी और तैराक इयान थोर्प थे जिन्होंने उनका परिचय ४००० की संख्या के श्रोताओं से करवाया। परम पावन ने बिना समय व्यर्थ किए अपना व्याख्यान प्रारंभ किया।

"भाइयों और बहनों - मैं सदा ऐसा कहता हूँ क्योंकि हम वास्तव में मानव भाई और बहनें हैं। जब बच्चे छोटे होते हैं तो वे परवाह नहीं करते कि लोग किस धर्म, जाति या देश के हैं या फिर वे अमीर या गरीब हैं पर जब हम बड़े होते हैं तो यह खुलापन खो देते हैं।

"हम आज जिन कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वे हमारे अपने बनाए हुए हैं। मैंने अभी अभी अच्छा भोजन किया है और इस समय हम इस सभागार में साथ होने का आनन्द ले रहे हैं, पर विश्व में कहीं और बिना आश्रय और भोजन के शरणार्थी हैं, उदाहरण के लिए बर्मा, बांग्लादेश और उत्तरी अफ्रीका की सीमा पर। जीवन अनमोल है और जब वह खो जाता है तो यह वास्तव में दुख की बात है। यह सोचा भी नहीं जा सकता कि लोग धर्म के नाम पर एक दूसरे की हत्या कर रहे हैं, जबकि सभी प्रमुख धर्मों का संदेश प्रेम है।

"यह सब हमारे आपसी मतभेदों पर बल देते हुए इर्द गिर्द हैं। पर साथ ही जलवायु परिवर्तन और वैश्विक अर्थव्यवस्था का अर्थ है कि इसके स्थान पर हमें मानव परिवार की एकता पर ध्यान केंद्रित करना है। हमें यह स्मरण रखना है कि अन्य ठीक हमारे जैसे हैं। उन्हें भी एक सुखी जीवन जीने का अधिकार है। यदि लोग एक दूसरे को भाई और बहनों के रूप में देखें तो वे एक दूसरे की हत्या के लिए तैयार न होंगे।

"यदि हम अब मानवता की एकता की भावना को बढ़ावा देने के लिए अभी प्रारंभ करें तो संभव है कि उसका तत्काल प्रभाव दिखाई न दे। पर एक या दो दशकों के बाद, यदि अगली पीढ़ी इस रूप में बेहतर शिक्षित हो तो वे विश्व को एक बेहतर स्थान बना सकते हैं।"

परम पावन ने बताया कि किस प्रकार भय विश्वास खोने का कारण और परिणाम दोनों हो सकता है। उन्होंने कहा कि जब लोगों में अधिक सौहार्दता होती है तो वे दूसरों में अधिक विश्वास प्रेरित करते हैं और वह विश्वास मैत्री का आधार बन जाता है। इतने सारे विभिन्न दृष्टिकोणों से, सौहार्दता सुख का असली आधार है। उन्होंने उल्लेख किया कि प्रेम हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण है।

यह देखते हुए कि अधिकांश शिक्षा प्रणालियाँ आज भौतिकवादी लक्ष्यों की ओर उन्मुख हैं और हम में से अधिकतर एक भौतिकवादी संस्कृति में रहते हैं, उन्होंने कहा कि हममें चित्त के कार्यों के संबंध में उचित समझ का अभाव है। इन कमियों को दूर करने के लिए उन्होंने भावनाओं के एक मानचित्र और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की भावना के परिचय का सुझाव दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग उस रूप में करते हैं जैसा बहु-धार्मिक भारत में होता है, जो निष्पक्ष रूप से सभी धर्मों के प्रति, यहाँ तक कि कोई आस्था न रखने वाले के प्रति भी सम्मान रखता है।

परम पावन मेशेल लॉरी और इयान थोर्प के बीच बैठे जिन्होंने लोगों के प्रश्न उनके समक्ष रखे, जो उनके बाल्यकाल में उनकी माँ की भूमिका से लेकर - उनके लाड़ प्यार ने उन्हें बिगाड़ दिया था - वे किस स्थान को अपना घर समझते हैं, तक थे। उन्होंने एक तिब्बती उक्ति उद्धृत की, कि आप जहाँ सुख का अनुभव करते हैं वही घर है।

यह पूछे जाने पर कि क्या विश्व के सबसे अच्छे दिन अब अतीत बन चुके हैं, अपने उत्तरों में उन्हंोंने उल्लेख किया कि आज लोग २०वीं सदी की तुलना में युद्ध के लिए कम उत्साहित हैं। इसी तरह जब गांधी ने अहिंसा का प्रयोग किया, लोगों ने सोचा कि यह दुर्बलता का संकेत था। फिर भी, नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग मे अंततः उसका प्रयोग किया जिसके अच्छे प्रभाव हुए। पुनर्जन्म में क्या होता है समझाने के लिए चुनौती दिए जाने पर उन्होंने उत्तर दिया कि स्पष्ट है कि शरीर नहीं बना रहता, पर अधिक सूक्ष्म चित्त ऐसा कर पाता है क्योंकि यह एक निरंतरता है।


निर्धारित समय के अंत में परम पावन ने कहा कि वे उलुरू यात्रा के लिए निकल रहे हैं, ऐसा स्थान जो कइयों के अनुसार ऑस्ट्रेलिया का आध्यात्मिक हृदय है। पर मंच छोड़ने से पहले उन्होंने श्रोताओं से एक अनुरोध किया:

"जब आप प्रातः उठे तो एक क्षण का समय निकालकर सोचें कि किस प्रकार समूची मानवता आपके भाई और बहनें हैं।"

शीघ्रता से प्रस्थान करते हुए, वे ब्रिस्बेन हवाई अड्डे के लिए गाड़ी से गए और उलुरू पहुँचने के लिए देश के पूर्वी भाग होते हुए उड़ान भरने के लिए विमान में सवार हुए। जब उनका विमान उतरा तो खुले देश में लम्बी छाया डालता सूर्य ढल रहा था। शुभ चिन्तकों के एक समूह ने उनका स्वागत किया, जिनमें कई तिब्बती थे जो केवल इस अवसर के लिए आए थे। 

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