परम पावन 14 वें दलाई लामा
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सुख और उसके कारण , सिडनी १०/जून/२०१५

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ब्रिस्बेन, क्वींसलैंड, ऑस्ट्रेलिया ,१० जून २०१५- आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा ल्यूरा से निकलने की तैयारी कर रहे थे, तो लोग उन्हें विदा करने के लिए लॉबी और होटल के बरामदे पर पंक्तिबद्ध होकर खड़े थे। उन्होंने स्थानीय पुलिस के साथ तस्वीरों के लिए पोज़ किया, मित्रों और शुभचिंतकों को अलविदा कहते हुए हाथ हिलाया और अपनी गाड़ी में चढ़ गए। सिडनी के लिए ड्राइव की रफ्तार तीन सप्ताह की पहली बारिश में प्रातः की यातायात के बावजूद तेज़ थी।


जब वह सिडनी हार्बर ब्रिज के तलहटी में लूना पार्क, जो एक मनोरंजन पार्क है, में सुख और उसके कारण सम्मेलन में भाग लेने पहुँचे तब भी बारिश हो रही थी। उन्होंने भारतीय काउंसल जनरल, संजय सुधीर और उनके परिवार के साथ बातें करते हुए कुछ क्षण बिताए। ब्रिटिश हास्य अभिनेता और मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता रूबी वैक्स और सुख पर लिखने वाले ग्रेचेन रुबिन जो सम्मेलन के बाद के सत्र में भाग लेंगे, ने भी उनके साथ बात की।
 
सम्मेलन सभागार में मंच संभालते हुए जाने-माने ऑस्ट्रेलियाई रेडियो प्रस्तुतकर्ता रिचर्ड फिडलर ने परम पावन का परिचय १७०० श्रोताओं से यह कहते हुए कराया कि इसके पहले कि अन्य पैनल के सदस्य उनके साथ शामिल हों, वे उनसे कुछ प्रश्न पूछना चाहेंगे। उन्होंने परम पावन से यह पूछते हुए प्रारंभ किया कि वे किस प्रकार अपने चित्त की शांति बनाए रखते हैं।

उत्तर था "मैं अपनी बुद्धि और सामान्य ज्ञान का उपयोग करता हूँ।" "और जहाँ शरणार्थी के रूप में जीवन में दुखद क्षण आए हैं, वहीं इससे अन्य लोगों से मिलने और उनके अलग अलग अनुभव से सीखने का अवसर भी मिला है।"

फिडलर ने पूछा कि, जो वे बदल नहीं सकते, क्या वे उन वस्तुओं को बस स्वीकार कर लेते हैं और परम पावन ने ८वीं सदी के एक भारतीय दार्शनिक को उद्धृत किया जिन्होंने कहा था ः "यदि आपके समक्ष कोई समस्या खड़ी हो, तो उसका परीक्षण करें। यदि उसका समाधान हो सकता है, तो चिंता की कोई आवश्यकता नहीं और यदि उसे सुलझाया नहीं जा सकता, तो चिंता से कोई लाभ न होगा।"

"बहुत यथार्थवादी, है ना?" उन्होंने कहा। "यह अच्छी सलाह है जिसके पालन का मैं प्रयास कर रहा हूँ। उदाहरणार्थ, जब मेरे प्रिय वरिष्ठ अध्यापक, मेरे मुख्य शिक्षक का निधन हुआ, तो मैं सुन्न और दुखी था, पर कुछ न किया जा सकता था। वह ऐसी चट्टान थे जिस पर मैं टिका था। पर मैंने अनुभव किया कि मुझे जो करना चाहिए, वह उनकी इच्छाओं को पूरा करना है।"

प्रेम तथा करुणा के बीच अंतर पूछे जाने पर, उन्होंने प्रेम की आधारभूत भावना जो मोह के साथ मिश्रित हो जाती है, और वह किस प्रकार इस पर निर्भर करती है कि अन्य आप के साथ किस प्रकार व्यवहार कर रहे हैं, पर बात की। यह सीमित होता है जो दूसरों तक पहुँचाया नहीं जा सकता। परन्तु यह एक बीज के समान है क्योंकि उसके आधार पर करुणा की भावना का विकास संभव है जो सब तक संप्रेषित की जा सकती है।
 
फिडलर जानना चाहते थे कि क्या परम पावन क्रोधित होते हैं और उन्होंने स्वीकार किया कि वे होते हैं। उन्होंने न्यूयॉर्क में एक पत्रकार के साथ हुई एक झड़प की कहानी सुनाई जिसने उनसे किए एक साक्षात्कार के दौरान पूछा कि वे अपनी विरासत को किस प्रकार देखते हैं। उन्होंने उससे कहा कि बौद्ध भिक्षु के रूप में वे इस पर नहीं सोचते। उसने कुछ अन्य प्रश्न पूछे और उनकी विरासत पर लौट आई। उन्होंने अपना पहले वाला उत्तर दोहराया। आगे कुछ और प्रश्नों के बाद उसने उनकी विरासत के विषय में तीसरी बार पूछा और वह अपना आपा खो बैठे। परम पावन ने धीरे से कहा कि जब एक वर्ष के पश्चात वह पुनः उसी पत्रकार से मिले, तो दोनों ने एक दूसरे को देखा और हँस पड़े।

उन्होंने भारत में एक और अवसर का स्मरण किया, जब उन्हें भारतीय बौद्धों के एक समूह के लिए प्रवचन देने हेतु आमंत्रित किया गया था। जिस मित्र ने इस बैठक का आयोजन किया था उसने उनसे कहा कि एक पूर्व अवसर पर इन लोगों को प्रवचन समझने में कठिनाई हुई थी। उसने पूछा कि क्या इस समय प्रवचन सरल हो सकते हैं। परम पावन ने कहा कि उन्हें पुनः क्रोध आया क्योंकि उन्हें लगा कि यदि केवल उसी पर प्रवचन दें जो वे पहले से ही जानते हैं, तो प्रवचन देने का कोई बड़ा अर्थ नहीं रह जाता।

फिडलर की ओर मुड़ते हुए वह खिलखिलाए और कहाः

"इसलिए, यदि आप मेरे कथन को अन्यथा न लें, यदि आप मुझसे मूर्खता भरे प्रश्न पूछेंगे, तो मैं आप पर क्रोधित हूँगा।"

यह टिप्पणी करते हुए कि एक युवा के रूप में वे एक सीमित स्थिति में बड़े हुए थे और बाद में जब उन्होंने यात्रा करना प्रारंभ किया तो उन्होंने एक व्यापक विश्व देखा, फिडलर ने पूछा कि क्या ऐसा कुछ है जो उन्हें आश्चर्य में डाल देता है। उन्होंने उत्तर दिया ः


"बहुत अधिक नहीं, क्योंकि पिछले दलाई लामा ने चित्र पुस्तकों और पत्रिकाओं का एक संग्रह छोड़ रखा था जिन्हें मैंने देखा था। तो उनके पृष्ठों के माध्यम से मैं पहले ही न्यूयॉर्क, लंदन, बर्लिन और पेरिस से परिचित था। और इसके अतिरिक्त तिब्बत में दो आस्ट्रियायी, जो ब्रिटिश भारत में युद्ध के समय नजरबंदी से भाग गए थे, उनमें से एक, औफश्नेटर सरकार के लिए पनबिजली और सिंचाई परियोजनाओं में लगा हुआ था और दूसरा, छोटा वाला हेनरिक हेरर मेरे निवास स्थल पर विभिन्न मशीनों की देख रेख करने के लिए आया था। वह मेरे साथ पाश्चात्य संस्कृति और यूरोप की जीवन शैली के बारे में बातें करता था, तो जब मैं वहाँ गया तो मुझे कोई हैरानी नहीं हुई।

"यद्यपि एक बात थी। १९७९ में जब मैं पहली बार संयुक्त राज्य अमेरिका गया तो मैंने कई मित्र बनाए और उनकी पत्नियों व बच्चों से भेंट की। दूसरी बार जब मैं आया तो यह देखकर मुझे आश्चर्य हुआ कि उनमें से कुछ की नई पत्नियाँ थीं और मैं जब फिर आया तो उनमें से कुछ की तीसरी पत्नी भी थी। मैं ऐसे लोगों से भी मिलकर आश्चर्य चकित हुआ जो महत्वपूर्ण प्रतिष्ठित पदों पर थे, और जो तनाव और चिन्ता के कारण दुःखी थे। इसने मुझे दिखाया कि भौतिक पुरस्कार, अच्छी प्रतिष्ठा और एक उच्च वेतन आंतरिक शांति और सुख की कोई गारंटी नहीं थे।"
 
"दूसरी ओर, मैं र्बासिलोना के पास मोंटेसेराट में एक कैथोलिक भिक्षु से मिला जो पहाड़ों में पाँच वर्ष तक चाय तथा डबल रोटी से थोड़े अधिक में एक साधु के रूप में रहा था। मैंने उससे पूछा कि वह किस पर अभ्यास कर रहा था और उसने मुझे बताया कि वह प्रेम पर ध्यान कर रहा था। जब उसने यह कहा तो उसकी आँखें चमक उठीं और उसका मुख आनन्द से दमक उठा। बिना किसी शारीरिक आराम के वह पूरी तरह सुखी था। भारत में भी ऐसे अभ्यासी हैं जो ऊँचे पर्वतों पर नग्नावस्था में ध्यान करते हैं। पिछले महाकुंभ मेले, जो कि एक महान हिंदू आध्यात्मिक सभा है जो १२ वर्ष में एक बार होता है, पर मैंने आशा की थी कि मैं उनमें से कुछ से मिलूँगा और उनके अनुभव सुनूँगा। परन्तु खराब मौसम के कारण मैं यात्रा करने में असमर्थ रहा।

"आधुनिक शिक्षा भौतिकवादी जीवन की ओर उन्मुख है। हमें स्वयं से पूछना होगा कि क्या यह वास्तव में एक सुखी समाज के लिए एक पर्याप्त आधार है। यद्यपि ब्रिटिश कोलंबिया में, सौहार्दता के महत्व के बारे में मार्गदर्शन सभी स्कूलों में प्रारंभ कर दिया गया है।"

एक व्यापक चर्चा के संचालक के रूप में, रिचर्ड फिडलर ने चार अतिरिक्त पैनल सदस्यों को उनके और परम पावन के साथ शामिल होने के लिए मंच पर आमंत्रित किया। प्रथम वक्ता बारबरा फ्रेडरिकसन ने अपने टीम के कार्य को समझाया, जो कि विभिन्न प्रकार के सुखों के शारीरिक प्रभावों के परीक्षण को लेकर था। उन्होंने भोग विषयक स्वस्थता जो संतोषदायी, फिर भी सतही अनुभव के आनन्द से उत्पन्न होती है, जैसे स्वादिष्ट भोजन करना, और संतोष विषयक स्वस्थता जो इस प्रकार के चिंतन से उत्पन्न होती है कि आपके जीवन का कुछ उद्देश्य है और आप समाज में एक योगदान दे रहे हैं। उन्होंने पाया कि भोग विषयक स्वस्थता का संबंध सूजन से जुड़ी जीन की अधिक अभिव्यक्ति से है जबकि जिस प्रकार से जीन, संतोष विषयक स्वस्थता में स्वयं को व्यक्त करते हैं, वह बिलकुल विपरीत है, एक अधिक स्वस्थ प्रतिक्रिया। निष्कर्ष यह था कि अच्छा करना, सार्थकता और सोद्देश्यता, बेहतर स्वास्थ्य के साथ संबंधित है।

परम पावन ने टिप्पणी की, कि उन्होंने भी ऐसे निष्कर्षों के विषय में सुना था कि निरंतर भय, क्रोध और घृणा हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को समाप्त करने का प्रभाव रखते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि परीक्षण के लिए एक उपयोगी क्षेत्र ऐन्द्रिक चेतना और मानसिक चेतना के बीच अंतर का होगा। उन्होंने संकेत किया कि सुखद ऐन्द्रिक अनुभव मानसिक अशांति पर कम प्रभाव डालते हैं, पर यदि हमारे चित्त शांत हों तो हम शारीरिक पीड़ा और व्याकुलता का सामना कर सकते हैं।

प्रोफेसर पॉल गिल्बर्ट, जिन्होंने करुणा में शोध का बीड़ा उठाया है और करुणा केन्द्रित उपचार का प्रारंभ किया है, ने सुझाया कि हम उसी समय सबसे समृद्धशाली होते हैं जब हम अनुभव करते हैं कि हमारी परवाह की जा रही है, हमारी आवश्यकता है और हम मूल्यवान हैं और जब हम दूसरों की परवाह करते हैं, उनकी सहायता करते हैं और उन्हें मूल्यवान समझते हैं। परम पावन सहमत हुए और सिफारिश की कि आधुनिक शिक्षा चित्त और भावनाओं की ऐसी समझ पर और अधिक ध्यान दें।


डॉ स्यूनाइट एनएसडब्ल्यू स्कूलों में प्राथमिक आचार परीक्षण की मुख्य मूल्यांकनकर्ता और प्राथमिक आचार पाठ्यक्रम की निर्माता हैं, जिसमें सम्प्रति बालवाड़ी से लेकर कक्षा ६ तक २९,००० बच्चे शामिल हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि अच्छी तरह से सोचने की तर्कों और नैतिकता पर आधारित सोच के विकास से ही शिक्षा अपने व्यक्तिगत और सामाजिक लक्ष्यों को पूरा करती है। प्राथमिक आचार कार्यक्रम का संबंध बच्चों को क्या सोचा जाए के बजाय किस प्रकार से सोचा जाए से है।

परम पावन ने अनुमोदन करते हुए टिप्पणी की, कि हमारे ग्रह पर कई समस्याएँ और दुख जिनका सामना हम कर रहे हैं, वह निश्चित रूप से हमारी अपनी निर्मिति है। यहाँ तक ​​कि धर्म के नाम पर युद्ध हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह एक विरोधाभास है कि हम सब एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं, पर फिर भी हम अपने लिए समस्याओं का निर्माण करने में लगे हुए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में अधिक नैतिकता, एक धर्मनिरपेक्ष नैतिकता, जो धार्मिक परंपराओं का विरोध न करे अपितु उनके प्रति सम्मान का भाव रखे, को लेकर वे पैनल के सदस्यों के साथ सहमत थे।

एक दूरदर्शी शिक्षाविद और जिलॉन्ग ग्रामर स्कूल के वाइस प्रिंसिपल, चार्ली स्कूडामोर ने कहा, कि वे ऐसे हर एक शिक्षक का प्रतिनिधित्व करते हैं जो बच्चों की उनके जीवन में परिवर्तन लाने में सहायता करना चाहते थे, जो विश्व को एक बेहतर स्थान बनाना चाहते थे। मूल्यांकन की ओर बढ़ते हुए स्थिति के समक्ष शिक्षा को पोषण के लिए प्रोत्साहित करने वाला होना चाहिए। उन्होंने सकारात्मक मनोविज्ञान के अग्रणी मार्टी सेलिगमैन को उद्धृत किया जो कहते हैं कि हम तीन प्रकार के सुख का अनुभव कर सकते हैं - सुख, और तृप्ति , बल और गुणों और अर्थ और उद्देश्य का साकार रूप।

चूँकि चर्चा समय से लम्बी हो गई, परम पावन ने अपने साथी पैनल के सदस्यों से कहा कि उन्होंने जो कुछ सुना वह वास्तव में अद्भुत था। उन्होंने कहाः


"मैं आपसे मिलकर और आप लोगों को सुन कर वास्तव में प्रोत्साहित अनुभव कर रहा हूँ। मैं पूरी तरह से यह विश्वास रखता हूँ कि शिक्षा के माध्यम से विश्व को एक बेहतर रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। मैं आगामी २० वर्षों तक जीवित रहकर परिणाम देखने की आशा नहीं रखता, पर यह बहुत अच्छा है, अद्भुत, धन्यवाद।"

लूना पार्क से परम पावन सिडनी हवाई अड्डे के लिए गाड़ी से रवाना हुए, जहाँ उन्होंने मध्याह्न का भोजन तिब्बत के लिए ऑस्ट्रेलियाई संसदीय ग्रुप के सदस्यों के साथ किया और अपने पुराने मित्र श्रद्धेय बिल क्रूज़ के साथ कुछ समय का आनंद लिया। मध्याह्न में, वे हवाई जहाज़ द्वारा ब्रिस्बेन गए जहाँ स्थानीय तिब्बती समुदाय के सदस्यों और अन्य मित्रों और शुभचिंतकों ने उनका पूरे उत्साह से स्वागत किया। कल, वह नागार्जुन की 'रत्नावली' पर प्रवचन देंगे और सेंट स्टीफन कैथेड्रल में बहु-धर्मीय प्रार्थना में सम्मिलित होंगे। 

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